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मणिपुर में बेदख़ली से नाराज़ आदिवासियों का दिल्ली में प्रदर्शन, आज़ादी के पहले से बसे होने का दावा!

“मणिपुर की वर्तमान भाजपा सरकार ने पहाड़ी क्षेत्रों को हड़पने के उद्देश्य से पहाड़ी क्षेत्रों के कई हिस्सों को संरक्षित/आरक्षित वन घोषित कर दिया और उसके बाद आदिवासियों को उनके घरों व गांवों से बेदख़ल करना शुरू कर दिया।”
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देशभर में बुलडोज़र कार्रवाई का सिलसिला लगातार जारी है, कई मामलों में इसपर सवालिया निशान भी लगाए गए। इसी कड़ी में उत्तर-पूर्वी राज्य मणिपुर मे भी बुलडोज़र ने लोगों के आशियाने तोड़ने शुरू कर दिए जिसके ख़िलाफ़ राज्य मे तो विरोध प्रदर्शन हो ही रहे हैं लेकिन केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार तक अपनी बात पहुंचाने के लिए दस मार्च को संसद के पास जंतर-मंतर पर एक विरोध प्रदर्शन किया गया और प्रधानमंत्री कार्यालय को ज्ञापन सौंपा गया। ये विरोध प्रदर्शन 'कुकी' (Kuki) की दिल्ली इकाई द्वारा किया गया था। इसके अलावा इसी तरह मणिपुर में भी छात्र संगठनो के साथ ही आदिवासी नागरिक संगठनों ने एक साझा मंच बनाकर विरोध प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि राज्य और केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा अमानवीय और क्रूर तरीके से मणिपुर में जनजातीय गांवों से-आज़ादी के पहले से रह रहे-लोगों को बेदखल किया जा रहा है। प्रदर्शनकारियों ने इसे पूरी तरह से अवैध बेदखली बताते हुए तुरंत इस कदम को वापस लेने की मांग की।

प्रदर्शनकारियों के मुताबिक मणिपुर सरकार ने हाल ही में 20 फरवरी, 2023 को मणिपुर के चुराचंदपुर (Churachandpur) जिले के हेंगलेप (Henglep) सब-डिवीजन के अंतर्गत आने वाले के. सोंगजैंग (K. Songjang) गांव के ग्रामीणों को बेदखल कर दिया। प्रदर्शनकारियों का कहना कि सरकार ने संरक्षित वन के दायरे में रहने के बहाने उन्हें उनके घरों से बेघर कर दिया। लगभग 20 घरों को सरकारी बुलडोज़र से पूरी तरह ध्वस्त कर दिया गया। आरोप है कि इस दौरान सरकार ने मौसम का भी ध्यान नहीं रखा और सर्दियों के मौसम में महिलाओं, बच्चों और वरिष्ठ नागरिकों सहित लगभग 100 ग्रामीणों को बेघर कर दिया।

मणिपुर के नोनी जिला के संभागीय वन अधिकारी (डीएफओ) द्वारा के. सोंगजैंग के ग्राम प्रधान को 30 जनवरी 2023 को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था। मणिपुर सरकार द्वारा उन्हें स्वामित्व के दस्तावेज़ जमा करने के लिए केवल 10 दिन का समय दिया गया। गांव के नाम में के. सोंगजैंग इसलिए जुड़ा है क्योंकि वो कुंगपिनाओसेन (Kungpinaosen) नामक मुख्य मूल गांव का विस्तार या एक उपशाखा है।

एक अन्य गांव के. हेंगमोल(Hengmol) [कुंगपिनाओसेन हेंगमोल] भी मूल कुंगपिनाओसेन गांव की एक शाखा है। ये गांव भी अब बेदखली की कतार में है क्योंकि इसे भी के. सोंगजैंग के साथ कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है। इसके अलावा, मुख्य/ मूल गांव कुंगपिनाओसेन को भी डीएफओ (नोनी) द्वारा 23 फरवरी 2023 को बेदखली नोटिस जारी किया गया है। मणिपुर के ये लोग आज खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं। उनका आरोप है कि सरकार उन्हें (ग्रामीणों) अपने घरों को खाली करने और सामान हटाने के लिए केवल पांच दिन का समय दे रही है।

दिल्ली मे प्रदर्शन कर रहे छात्र संगठन के नेताओ ने कहा कि, “यहां यह उल्लेख करना ज़रूरी है कि ये गांव कुंगपिनाओसेन ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के 1947 के पहले से अस्तित्व में था। इसके सबूत के कई सरकारी रिकॉर्ड उपलब्ध हैं, दो दस्तावेजी सबूत यहां उद्धृत किए जा सकते हैं जिसमें गांव कुंगपिनाओसेन का उल्लेख किया गया है। पहला है-मणिपुर स्टेट हिल पीपल्स (प्रशासन) विनियमन, 1947 और दूसरा-द मणिपुर गज़ट एक्स्ट्राऑर्डिनरी, इंफाल प्राधिकरण जो 16 अगस्त, 1956 मे प्रकाशित हुआ था। इन दोनों में कुंगपिनाओसेन के बारे मे लिखा है।”

प्रदर्शनकारियों ने बताया कि, “इस हालिया घटना से पहले भी कुछ घरों को ध्वस्त कर दिया गया था। कांगपोकपी (Kangpokpi) वन प्रभाग के डीएफओ, द्वारा जारी किए गए 2 दिसंबर, 2022 के एक बेदखली नोटिस के बाद 6 दिसंबर 2022 को मणिपुर के कांगपोकपी जिले के तहत कांगचुप चिरू( Kangchup Chiru) गांव से आदिवासी निवासियों को बेदखल कर दिया गया था। उस वक़्त बीजेपी सरकार ने गरीब आदिवासी ग्रामीणों को अपना घर खाली करने के लिए केवल तीन दिन का समय दिया था जबकि ग्रामीणों ने दावा किया था कि वे भारत की आज़ादी से पहले से अपने गांव में रह रहे हैं।”

इस बेदखली का विरोध कर रहे लोगों का कहना है, “उपर्युक्त सभी घटनाओं में, मणिपुर सरकार ने भारतीय वन अधिनियम, 1927 और मणिपुर वन नियम, 1971 में निर्धारित कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना आदिवासी ग्रामीणों को बलपूर्वक उखाड़ फेंका और उन्हें उनके घरों से बेदखल कर दिया।”

इन सभी ग्रामीणों ने दावा किया है कि वे भारत की आज़ादी से पहले से अपने इन गांवों में रह रहे हैं। आरोप ये भी है कि मणिपुर सरकार के वन प्रभाग द्वारा ग्रामीणों को शामिल करते हुए घोषित आरक्षित वन/संरक्षित वन का कोई उचित सर्वेक्षण और सीमांकन नहीं किया गया है और बेदखली से पहले असहाय आदिवासी ग्रामीणों को सुनवाई का कोई पर्याप्त मौका भी नहीं दिया है। ग्रामीणों का साफतौर पर कहना है कि मणिपुर सरकार की ये सभी कार्रवाई मनमानी, अमानवीय और प्राकृतिक न्याय के ख़िलाफ़ है। इसके अलावा ये कदम देश के संविधान के अनुच्छेद 14 और 371-सी के तहत गारंटीकृत आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों की पूरी तरह से अवहेलना है। इनमें से किसी भी बेदखली में, उन गरीब बेरोज़गार आदिवासी ग्रामीणों-जिनकी आजीविका का स्रोत ये जंगल ही हैं-को कोई पुनर्वास, पुनर्स्थापन या वैकल्पिक आजीविका नहीं दी गई है।

बेदखली का विरोध कर रहे छात्र संगठन कुकी ने अपने बयान मे कहा कि, "दुनिया की किसी भी सत्ता, विशेष रूप से भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में किसी को घर से बेदखल करने के लिए सिर्फ 3 दिन या 5 दिन या अधिकतम 20 दिन का समय दिया जाना पूरी तरह से अमानवीय है। आख़िर इतनी जल्दबाज़ी क्यों? न तो आसमान गिरने वाला था और न ही सरकार की ओर से कोई न्यायोचित तात्कालिकता थी जिसके लिए इतने कम समय में बेदखली की आवश्यकता थी। ये सब इसलिए किया गया ताकि गरीब आदिवासी ग्रामीणों को उनके सही स्वामित्व/ बंदोबस्त को साबित करने के उचित अवसर से वंचित रखा जा सके।

उन्होंने आरोप लगाया कि मणिपुर की वर्तमान भाजपा सरकार ने पहाड़ी क्षेत्रों को हड़पने के उद्देश्य से पहाड़ी क्षेत्रों के कई हिस्सों को संरक्षित/आरक्षित वन घोषित कर दिया और उसके बाद आदिवासियों को उनके घरों व गांवों से बेदखल करना शुरू कर दिया जहां वे ब्रिटिश औपनिवेशिक काल से बसे हुए हैं। आदिवासियों और जंगल का रिश्ता पीढ़ी दर पीढ़ी का है क्योंकि वे अपनी आजीविका के लिए जंगल पर निर्भर हैं। इसलिए, आजीविका के किसी वैकल्पिक स्रोत के बिना उन्हें को विस्थापित करना, भारतीय संविधान के अनुच्छेद-14 के तहत गारंटीकृत उनके जीवन के अधिकारों का उल्लंघन है।

बता दें कि मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्रों को संविधान के अनुच्छेद 371-सी के तहत विशेष सुरक्षा प्राप्त है, जिसमें पहाड़ी क्षेत्र समिति (जिसमें निर्वाचित पहाड़ी क्षेत्र के विधायक शामिल हैं), से संबंधित और पहाड़ी क्षेत्र को प्रभावित करने वाली राज्य सरकार की सभी नीतियों में परामर्श किया जाना शामिल है। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि मणिपुर की वर्तमान सरकार द्वारा इस संवैधानिक प्रावधान और आदिवासियों व पहाड़ी लोगों की सुरक्षा की घोर उपेक्षा और अवहेलना की गई है।

उनका कहना है, "भारतीय संघ और राज्य एक 'कल्याणकारी राज्य' हैं और इसका मुख्य कर्तव्य अपने नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना और भारत के संविधान में निहित उनके मौलिक अधिकारों की रक्षा करना है, लेकिन वर्तमान सत्ता इसके ठीक विपरीत काम करते हुए भेदभाव कर रही है। वर्तमान सत्ता ने आदिवासियों को असुरक्षित किया और उनकी आजीविका छीनने का काम किया है।”

छात्र संगठन ने कहा, "इसी कारण से हम मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के निरंकुश शासन के तहत मणिपुर सरकार की नीति का विरोध करने और अपनी नाराज़गी व्यक्त करने के लिए आज (शुक्रवार) हम यहां एक शांतिपूर्ण रैली करने के लिए जुटे हैं। हम भारत के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री से इस मामले को देखने और तत्काल आवश्यक कार्रवाई करने की अपील करते हैं।"

छात्र संगठन की मांग है कि :

* मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्रों में आदिवासी गांवों को कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना बेदखल करने से रोका जाए।

* मणिपुर में पहाड़ से संबंधित सभी मामलों में पहाड़ी क्षेत्र समिति (Hill Area Committee) से परामर्श करने के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 371-सी के तहत परिकल्पना की गई है। इसका पालन सुनिश्चित किया जाए।

* चुराचंदपुर और कांगपोकपी जिलों, मणिपुर के अंतर्गत क्रमशः के. सोंगजैंग और कांगचुप चिरू के बेदखल ग्रामीणों को राहत और पुनर्वास दिया जाए।

* एचएसी से परामर्श किए बिना पहाड़ी क्षेत्रों के गांवों को जारी किए गए सभी कारण बताओ नोटिस/बेदखली नोटिस को वापस लिया जाए।

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