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एल्गार मामला : परिजनों ने मुख्यमंत्री से की कार्यकर्ताओं को रिहा करने की मांग

एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में जेल में बंद कार्यकर्ताओं के परिजनों ने बुधवार को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र लिखकर मांग की कि महामारी की दूसरी लहर के मद्देनजर आरोपियों को रिहा किया जाना चाहिए।
Political Prisoners

मुंबई: एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में जेल में बंद कार्यकर्ताओं के परिजनों ने बुधवार को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र लिखकर मांग की कि महामारी की दूसरी लहर के मद्देनजर आरोपियों को रिहा किया जाना चाहिए।

पत्र पर कार्यकर्ताओं-आनंद तेलतु्म्बडे, गौतम नवलखा, स्टैन स्वामी, सुधा भारद्वाज और रोना विल्सन सहित 15 कार्यकर्ताओं के परिजनों के हस्ताक्षर हैं।

पुरुष आरोपी फिलहाल नवी मुंबई स्थित तलोजा जेल में, जबकि महिला विचाराधीन कैदी मध्य मुंबई स्थित भायखला जेल में बंद हैं।

पत्र में कहा गया है कि कार्यकर्ता विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित हैं और उनमें से एक ज्योति जगताप को कोरोना वायरस से संक्रमित पाया गया है।

परिजनों ने मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में कहा है, ‘‘हम सभी संबंधित परिस्थितियों में उनकी (आरोपी कार्यकर्ताओं) सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं जहां हर किसी को खतरा है। इसलिए, हम आपसे विनम्र निवेदन करते हैं कि हमारे परिवार के सदस्यों की रिहाई के लिए समय पर और आवश्यक कदम उठाएं।’’

इस बीच, आरोपियों में शामिल दिल्ली विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर हैनी बाबू को जेल अधिकारी आंखों की जांच के लिए एक अस्पताल ले गए।
यह मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में आयोजित एल्गार परिषद के सम्मेलन में दिए गए कथित भड़काऊ भाषणों से संबंधित है, जिसके बारे में पुलिस ने दावा किया कि इससे शहर के बाहरी इलाके में स्थित कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास अगले दिन हिंसा भड़की।

पुणे पुलिस ने दावा किया कि सम्मेलन माओवादियों द्वारा समर्थित था।

आपको बता दें कि इसी मामले में देश के कई बुद्धजीवियों, पत्रकारों, लेखकों सहित समाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी हुई है।  हालांकि, किसी भी मामले में पुलिस कोई ठोस सबूत पेश नहीं कर पाई है। इसमें आनन्द तेलतुम्बड़े के अतिरिक्त, सुधा भारद्वाज, सोमा सेन, अरुण फरेरा, वेरनॉन गोंजाल्विस, फादर स्टेन स्वामी, सुधीर धावले वरवरा राव, रोना विल्सन, गौतम नवलखा, जैसे बुद्धिजीवी भी शामिल हैं। यह सभी, आम लोगों के सम्मानपूर्वक जीने के हक के पक्ष में, कोर्ट से लेकर सड़क तक संघर्षशील रहे हैं। ये लोग स्वास्थ्य-शिक्षा मुफ्त मिले, इसके लिए निजीकरण का विरोध करते रहे हैं और उन आदिवासियों के साथ खड़े हुए जिनकी जीविका के संसाधन को छीन कर पूंजीपतियों के हवाले किया जाता रहा है। इसलिए ये लोग शासक वर्ग के आंखों के किरकिरी बने हुए थे।

सुधा भरद्वाज, सोमा सेन, अरुण फरेरा, वेरनॉन गोंजाल्विस, फादर स्टेन स्वामी, सुधीर धावले, वरवरा राव, रोना विल्सन भीमा कोरेंगांव केस में जून और सितम्बर, 2018 से ही महाराष्ट्र के जेलों में बंद हैं। जबकि उस केस के असली गुनाहगार संभाजी भिंडे और मिलिन्द एकबोटे बाहर हैं।

महाराष्ट्र में सरकार बदलने के बाद केन्द्र सरकार ने इस केस को एनआईए के हाथों में सुपुर्द कर दिया था। 18 माह बाद लम्बी कानूनी प्रक्रिया झेलने के बाद 14 अप्रैल 2020, को गौतम नवलखा और आनन्द तेलतुम्बड़े को एनआईए के समक्ष आत्मसमर्पण करना पड़ा। तब से ही ये दोनों भी जेल में हैं।

(समाचार एजेंसी भाषा इनपुट के साथ)

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