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FATF की ग्रे सूची: क्यों पाक के ख़िलाफ़ भारतीय कूटनीति को फेल होना था  

पाकिस्तान की आर्थिक बर्बादी का मतलब है भारत को कश्मीर मामले में संकट में डाल देना।
FATF Gray List

भारत के पाकिस्तान को FATF द्वारा ब्लैक लिस्ट की सूची में डालने की तमाम कूटनीतिक कोशिशों के बावजूद, पाकिस्तान को पेरिस स्थित फाइनेंसियल एक्शन टास्क फ़ोर्स (FATF) से चार महीने की छूट मिल गई है। हाल ही में राजधानी में आतंकवाद विरोधी दस्तों के प्रमुखों की एक बैठक में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने बताया कि पाकिस्तान भारी दबाव में है और उसे यह दबाव सबसे अधिक FATF से मिला है। यह स्पष्ट है कि नई दिल्ली को उम्मीद थी कि उसकी पैरवी काम करेगी। लेकिन इस्लामाबाद को खुद को सुधारने की चेतावनी के साथ एक और मौका मिल गया है। यह जीवनदान उसे फरवरी 2020 तक मिला है।

भारतीय राजनयिकों ने FATF के 39 सदस्य-राष्ट्रों को राजी करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया। पाकिस्तान के खिलाफ आरोप लगाने की शुरुआत उच्चतम स्तर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस. जयशंकर की ओर हुई। अपनी न्यूयॉर्क यात्रा के दौरान, पीएम ने संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, इटली, बेल्जियम, फ्रांस, न्यूजीलैंड और दक्षिण अफ्रीका के अपने समकक्ष नेताओं से इस बारे में बातचीत की। जयशंकर ने ऑस्ट्रेलिया, चीन, जर्मनी, इटली, नीदरलैंड, सिंगापुर के विदेश मंत्रियों से मुलाकात की लेकिन एक बार फिर विफल रहे। निश्चित रूप से पाकिस्तान भारी दबाव में है, और उसे इसे लागू करने की बाध्यता है, लेकिन एक बार फिर से उसे एक नया जीवनदान मिला है।

हकीकत यह है कि देश के अंदर अपने कट्टर समर्थकों के बीच यह साबित करने के बावजूद कि नई दिल्ली इस कदम से पाकिस्तान को अलग-थलग करने में सफल रहा है, सच्चाई से कोसों दूर है। इस साल फरवरी में पुलवामा घटना के बाद जब भारतीय प्रचार तंत्र इस बात को जोर शोर से प्रचारित करने में मशगूल थी कि मोदी सरकार ने मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) की तुलना में पूरी दुनिया को अपने दावे से पाकिस्तान की नमकहरामी के बारे में पूरी तरह से आश्वस्त कर दिया है, जबकि सच्चाई थोड़ा अलग है।

अगर पाकिस्तान को अलग थलग करने का मतलब यह है कि अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी पुलवामा में हुए आतंकी हमले की निंदा करे तो निश्चित रूप से हर विवेकशील राष्ट्र इसकी निंदा करेगा। लेकिन इसका मतलब यह कत्तई नहीं है कि पाकिस्तान को वास्तव में अलग थलग करने में सफलता मिल गई। वास्तव में, जिस तरह पूर्व में, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का पाकिस्तान के विरुद्ध अलाप जारी था, उस रुख में बदलाव देखने को मिला है। रुख में इस गुलाटी मारने की वजह ट्रम्प की इस आशा में छिपी है कि उसे पाकिस्तान से अफगानिस्तान में स्थिरता लाने में मदद की उम्मीद है।

हालांकि अमेरिका और तालिबान वार्ता में दरार आ चुकी है, लेकिन फिर भी उसे जिन्दा रखने और पाकिस्तान की ओर से मदद की उम्मीद के प्रयास जारी हैं। पिछले कुछ वर्षों से रूस ने भी अफगानिस्तान में स्थिरता लाने के इरादे से पाकिस्तान को इसके लिए तैयार करने पर अपनी नजरें गड़ा रखी हैं। यह दावा करना कि पाकिस्तान को अलग-थलग कर दिया गया है, मुर्खता के सिवाय कुछ नहीं। अगर दुनिया को इस बात का एहसास है कि पाकिस्तान दो-मुहीं बातें करता है तो इसका श्रेय भारत को नहीं बल्कि पाकिस्तान की सेना को देना चाहिए।

पाकिस्तान और उसकी सेना अपने देश की सबसे बड़ी दुश्मन रही है। पाकिस्तान की सेना ने खुद को बेनकाब किया है और ऐसा करने के लिए उसे भारत या किसी अन्य देश पर निर्भर नहीं रहना पड़ता। अमेरिका में अलकायदा के आतंकी हमलों के बाद आतंक को लेकर अंतरराष्ट्रीय चिंता को ध्यान में रखते हुए अभी बहुत कुछ करना शेष है।

याद करें, शीत-युद्ध के दौरान पाकिस्तान अमेरिकी गुट का हिस्सा था, और राष्ट्रपति मोहम्मद नजीबुल्लाह द्वारा मदद के लिए बुलाए गए रूसी सैनिकों से लड़ने के लिए वह अफगानिस्तान में मुजाहिदीन की मदद कर रहा था। उस समय भारत द्वारा अपने कट्टर विरोधी पाकिस्तान की शिकायतों पर किस तरह अमेरिका और उसके पश्चिमी मित्र देशों ने बहरे होने का नाटक किया, यह सब जानते हैं। चीजें नाटकीय रूप से तब बदलीं जब अमेरिका और नाटो सैनिकों ने अफगानिस्तान पर आक्रमण कर तालिबान से पिंड छुड़ाया। इन 18 वर्षों के दौरान, पाकिस्तान की गुप्तचर एजेंसी इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) और सेना के खेल का अफगानिस्तान में पूरी तरह से पर्दाफाश हो चुका है।

यह एहसास कि पाकिस्तान जहाँ एक ओर पश्चिमी देशों के साथ खड़ा होने का दावा करता है वहीँ दूसरी तरफ अफगान, अमेरिकी और नाटो सैनिकों पर हमला करने वाले अपने पसंदीदा आतंकी गुटों को भी मदद पहुंचा रहा है, ने पाकिस्तान को पूरी तरह से बेनकाब कर दिया था। आज, अधिकांश देश इस हकीकत से वाकिफ हैं और दिल्ली के दावों पर विश्वास करने को तैयार हैं कि भारत और अफगानिस्तान में पाकिस्तान किस तरह आतंकियों का इस्तेमाल करता है।

पाकिस्तान जून 2018 से ही ग्रे लिस्ट में है, जो बेहद खूंखार ब्लैक लिस्ट से मात्र एक कदम की दूरी पर है। काली सूची में आने का मतलब है कि उस देश को विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) या यूरोपीय संघ से किसी प्रकार की अंतरराष्ट्रीय वित्तीय मदद नहीं मिलेगी। इमरान खान का पाकिस्तान वर्तमान में इस कठिन दौर से गुजर रहा है और अर्थव्यवस्था की हालत काफी नाजुक है। इन परिस्थितियों में, अगर उसे वित्तीय मदद नहीं मिलेगी तो वह पूरी तरह से धराशायी हो जायेगा।

भारत में पाकिस्तान से कट्टर नफरत करने वालों के सिवाय शायद ही कोई हो जो पाकिस्तान को एक बर्बाद मुल्क के तौर पर देखना पसंद करे। आखिरकार पाकिस्तान अपने आप में कोई छोटा देश नहीं है,  क्योंकि इसकी आबादी 2017 की जनगणना के अनुसार 20.8 करोड़ तक पहुँच गई है। दुनिया को पता है कि अगर पाकिस्तान बर्बाद हुआ तो नतीजे के तौर पर इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर अस्थिरता पैदा होने के साथ और अधिक आतंकी समूहों की फसल लहलहाएगी। कश्मीर में यह भारत के लिए खतरे की घंटी होगी।

भारत सरकार को इससे होने वाले नतीजों का एहसास है। जहाँ एक और इस्लामाबाद यह सुनिश्चित करे कि जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और उनके जैसे अन्य संगठनों को किसी प्रकार की वित्तीय मदद न मिले और उनके पास धन को इकट्ठा न होने दे, इसके साथ ही अगर पाकिस्तान अपने आर्थिक पतन की गर्त में चला जाता है तो यह भारत और पूरे इलाके के लिए नए खतरे को जन्म देगा।

वास्तव में, हालाँकि भारत इस बात से साफ़ इंकार करना चाहेगा कि इमरान खान के नेतृत्व में पाकिस्तान ने एक बार फिर अंतराष्ट्रीय बिरादरी का ध्यान वापस कश्मीर की ओर खींचने में सफलता पाई है। कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान को चीन, मलेशिया और तुर्की ने समर्थन दिया है। हालाँकि ट्रम्प ने मोदी सरकार की कश्मीर पर लिए गए हालिया क़दमों की सीधे तौर पर कोई मुखालफत नहीं की है, लेकिन अमेरिकी विदेश विभाग ने इस सवाल को उठाया है। उसने भारत से नागरिकों के मौलिक अधिकारों की बहाली के लिए तत्काल कदम उठाने, हिरासत में लिए गए नेताओं को आजाद करने और कश्मीर की राजनीति को दोबारा अपने पावों पर खड़ा करने के प्रयासों को शुरू करने के लिए कहा है।

अमेरिका के विदेशी मामलों की कमेटी ने हाल ही में कहा है कि दूर-संचार के पूरी तरह से ब्लैकआउट करने के कदम से कश्मीर में नागरिकों के जीवन पर इसका “विनाशकारी प्रभाव” पड़ा है। 22 अक्टूबर को यह कमेटी दक्षिणी एशिया में मानवाधिकारों की समीक्षा करेगी।

कश्मीर एक बार फिर से फोकस में रहेगा। उग्र-राष्ट्रवाद चुनाव जीतने में शायद भारतीय जनता पार्टी को मदद करता हो। भले ही हरियाणा और महाराष्ट्र राज्य विधानसभा चुनावों में संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त किये जाने के सरकार के फैसले को एक बड़ी उपलब्धि के रूप में देखा जा रहा हो, लेकिन दुनिया को इंतजार है कि कश्मीर मामले पर कुछ कदम आगे बढ़ाये जाएँ। 

अंग्रेजी में लिखा मूल लेख आप नीचे लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं। 

FATF Gray List: Why Indian Lobbying Against Pak Had to Fail

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