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किसानों ने पारियों में आने की बनाई रणनीति, मज़बूत हुआ आंदोलन

पहले एक-एक गांव से पांच से छः ट्रॉलियां भरकर आ जाती थीं, लेकिन अब गांव से एक टोली में लगभग दस लोग भेजे जाते हैं-पांच टीकरी बॉर्डर, पांच लोग सिंघु बॉर्डर के लिए। ये आंदोलन लम्बे समय तक चलेगा इसलिए अब किसान दिमाग से काम कर रहे हैं।"
किसानों ने पारियों में आने की बनाई रणनीति, मज़बूत हुआ आंदोलन
फ़ोटो : गौरव गुलमोहर

दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलन को एक बार फिर कमजोर बताया जा रहा है। मुख्यधारा की मीडिया अंदोलन में घटती किसानों की संख्या का हवाला देते हुए आंदोलन को कमज़ोर बता रही है। लेकिन किसान और किसान नेताओं का दावा है कि आंदोलन कमजोर नहीं बल्कि मजबूती की ओर बढ़ रहा है। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के गांवों के किसानों ने पारियों में आने का निर्णय लिया है।

तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की मुख्यतः तीनों सीमाओं सिंघु, टीकरी और ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर आंदोलन को चलते तीन महीने होने को हैं। किसानों की मानें तो पहले से आंदोलन व्यवस्थित और स्थाई हुआ है। दूसरी ओर खेतों में खड़ी फसलों के कटने का वक्त भी आ रहा है। पंजाब और हरियाणा में मार्च महीने में बड़े स्तर पर गेंहूँ की फसलें कटनी शुरू हो जाती हैं। लेकिन किसान दिल्ली की सीमाओं पर बैठे हैं।

सरकार का तीन कृषि कानून को वापस लेने के रवैया देख और गांव में फसलों को घर लाने का काम ठीक ढंग से चल सके इसलिए किसानों ने गांवों में कमेटियाँ बनाकर पारी सिस्टम से टोलियों में आने का निर्णय किया है। वहीं देश के विभिन्न राज्यों में किसान महापंचायतें आयोजित हो रही हैं जहां किसानों का भारी हुजूम इकट्ठा हो रहा है।

वहीं हरियाणा के खरक पूर्णिया में भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने शुक्रवार को कहा कि किसान 70 साल से घाटे की खेती कर रहा है। टिकैत ने कहा कि "सरकार को इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि किसान अपनी फसल काटने के लिए चले जाएंगे। अगर वे अड़ेंगे तो हम अपनी फसल में आग लगा देंगे। टिकैत ने कहा- सरकार को यह नहीं सोचना चाहिए कि आंदोलन दो महीने में खत्म हो जाएगा। हम खेती भी करेंगे और प्रदर्शन भी करेंगे।

क्या है पारियों में आने का सिस्टम?

पहले किसान आंदोलन में किसानों का जत्था ट्रॉली भरकर आ जाता था। लेकिन अब पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में किसानों ने टोलियों में पारी से आना शुरू किया है। सभी गांवों में पंचायतों ने कमेटियां गठित की हैं। आंदोलन में जाने का नम्बर कमेटियां ही तय करती हैं। गांव की कमेटियों ने एक सप्ताह की पारी बनाई है।

ग़ाज़ीपुर सीमा पर लगभग एक-डेढ़ किलोमीटर में आंदोलन फैला है वहीं सिंघु बॉर्डर पर लगभग दस किलोमीटर तक तम्बू लगी ट्रॉलियां सघन रूप से खड़ी हैं। इसी तरह टीकरी बॉर्डर पर भी तम्बू लगी ट्रॉलियां खड़ी हैं। गांव से अब ट्रॉलियां नहीं बल्कि किसान गाड़ियों से आंदोलन में आ रहे हैं।

आंदोलन स्थल से ट्रॉलियां गांव की ओर नहीं जा रही हैं क्योंकि बीच से एक ट्रॉली निकालने के लिए पूरे आंदोलन में अव्यवस्था पैदा हो सकती है। ट्रॉलियां सघन तरीके से खड़ी हैं। ट्रॉलियों को घर नुमा बनाया गया है। ट्रॉली के भीतर गद्दा, कम्बल, तकिया और मोबाइल चार्ज करने के लिए बजली कनेक्शन दिया गया है। गांव से किसानों का एक समूह अपने गांव की ट्रॉली में आता है और दूसरा समूह गांव की ओर निकल जाता है। वहीं गांव से इक्का दुक्का ट्रॉलियां अभी भी आंदोलन में पहुंच रही हैं।

'बिल वापसी नहीं, घर वापसी नहीं' पर टिके किसान

आंदोलन में लंगर चल रहे हैं। किसी लंगर में पकौड़ी तो किसी में जलेबी छन रही है। कहीं मक्खन लगे पराठे बंट रहे हैं तो कहीं दाल-चावल और रोटी खिलाया जा रहा है। हरियाणा के लंगरों में पूड़ी, सब्जी और खुर्मा बंट रहा है। किसान और आस-पास के मज़दूर लंगर छक (खा) रहे हैं। हालांकि पहले की अपेक्षा किसानों की संख्या घटी है लेकिन इसलिए नहीं कि किसान आंदोलन छोड़कर जा रहे हैं। बल्कि किसान टोलियों में आने के अपने नम्बर का इंतजार कर रहे हैं।

पटियाला बीकेयू, राज्यवाल के ब्लॉक अध्यक्ष हजूरा सिंह शुरू से आंदोलन में शामिल हैं। उनके गांव से कई ट्रॉलियां मंच से थोड़ी दूरी पर लगी हैं। वे आंदोलन के कमजोर होने की बात पर कहते हैं कि "जिनकी ट्रॉली आंदोलन में है गांव वाले उनका काम करेंगे। पंद्रह दिनों से पारी सिस्टम शुरू हुआ है। अब हरियाणा, उत्तर प्रदेश और पंजाब के सभी गांवों सर्वसहमति से कमेटियां बनी हैं और सभी गांवों में ऐसा ही हो रहा है। पटियाला के मिर्जापुर संदारसी से 13 तारीख को किसान आये थे कल चले गए, दूसरी टोली के लोग उसी ट्रॉली में आ गए हैं। ट्रॉली तो अब घर है, अब यहां से जाएंगी नहीं। लोग आते रहेंगे जाते रहेंगे।"

पंजाब के मोगा जिले से सिंघु बॉर्डर पर लगभग 25 ट्रॉलियां आई हैं। आज ही कुछ किसानों की टोलियां आंदोलन में पहुंची हैं। टोली में आये नवजवान किसान तलविंदर सिंह बताते हैं कि "पहले एक-एक गांव से पांच से छः ट्रॉलियां भरकर आ जाती थीं लेकिन अभी सब प्लानिंग से आ रहे हैं। गांव से एक टोली में लगभग दस लोग भेजे जाते हैं। पांच लोग टीकरी बॉर्डर पर गांव की ट्रॉली में चले जाते हैं पांच लोग सिंघु बॉर्डर पर अपने गांव की ट्रॉली में पहुंच जाते हैं। ये आंदोलन लम्बे समय तक चलने वाला है अब किसान दिमाग के साथ काम कर रहे हैं।"

किसानों का मानना है कि यदि किसान अपनी बारी से आंदोलन में आते रहेंगे तो आंदोलन को लम्बे समय तक चलाया जा सकता है। और इससे गांव में किसानों का काम भी बाधित नहीं होगा।

पंजाब के फतेहगढ़ से पांच महिलाओं का समूह तीन दिन पहले आंदोलन में पहुंचा है। महिलाएं बताती हैं कि गांव-गांव में जो विरोध था वह भी खत्म हो गया है। वे कहती हैं कि "मरें-जियें कोई परवाह नहीं, चाहे चार साल लग जाएं, जब तक कानून वापस नहीं होते यहां से जाएंगे नहीं। अच्छा थोड़ी लगता है यहां बैठना लेकिन यह दिन भी देखना पड़ेगा पता नहीं था।"

2024 चुनाव तक चलेगा आंदोलन?

किसानों में आंदोलन को लेकर जोश वही नज़र आता है जो आंदोलन के पहले दिन नज़र आ रहा था। हालांकि किसान नेताओं का आंदोलन में आना जाना कम हुआ है। किसान नेता पिछले कुछ दिनों से देश के कई राज्यों में घूमकर किसान महापंचायत का आयोजन कर रहे हैं। किसानों की ओर से बीच में किसी बड़े आयोजन का संकेत भी मिलता है।

पहले सिंघु बॉर्डर पर सिख किसानों की संख्या अधिक थी लेकिन हाल ही में हरियाणा के किसानों की संख्या आंदोलन में बढ़ी है। एक तरफ गुरुबाणी चल रही है तो दूसरी ओर हनुमान चालीसा भी चल रहा है। किसान मजदूर एकता के साथ-साथ मंच से पंजाब-हरियाणा भाई चारा जिंदाबाद के नारे लग रहे हैं।

सिंघु बॉर्डर पर हरियाणा के कैथल, तारागढ़ से बारह किसानों का समूह 13 फरवरी को आया है। आज इस समूह का समय पूरा हो रहा है दूसरा समूह राजहुंद तक पहुंचा है, चार घण्टे में पहुंच जाएगा। रणधीर सिंह की आठ एकड़ जमीन है वे कहते हैं कि "मैं भाजपा कार्यकर्ता हूँ। कई चुनावों में भाजपा के लिए वोट मांगा है, लेकिन नहीं जानता था कि हमारे साथ सरकार ऐसा करेगी। आने वाले दिनों में तैयारी और तेज होगी। ट्रॉली में कूलर, एसी लगेगी। फ्रिज आएगा ताकि गर्मी से दूध न खराब हो।"

वे आगे कहते हैं कि "गांव से फोन आ रहा है कि सिंघु बॉर्डर खाली हो गया है। मीडिया झूठ फैला रहा है कि आंदोलन खत्म हो गया है। आंदोलन खत्म हो गया होता तो हम यहां क्यों बैठे होते? कानून खत्म होने से पहले हम यहां से जाने वाले नहीं हैं।"

इकहत्तर वर्षीय किसान कलवंत सिंह आंदोलन में शुरू से ही सक्रिय हैं। सरकार से ज्यादा मीडिया पर नाराजगी व्यक्त करते हैं। वे कहते हैं कि "आंदोलन जैसे चल रहा है मीडिया वैसे नहीं पहुंचा रहा है। पंजाब में 12600 गांव हैं। बड़े से पंद्रह और छोटे से पांच किसान आ रहे हैं। मीडिया बोल रहा है कि यहां बंदे ही नहीं हैं। जबकि यहां किसान दिन रात पड़े हैं। तेरे दर पे आया हूँ, कुछ करके जाऊंगा, झोली भरके जाऊंगा या मर के जाऊंगा।"

किसानों से जब पूछा जाता है कि आप कब तक घर वापस जाएंगे तो उनकी ओर से पहला जवाब होता है कि जबतक बिल वापसी नहीं तब तक घर वापसी नहीं। दूसरा जवाब होता है कि 2024 का चुनाव यहीं आंदोलन से ही होगा।

पटियाला जिले से टोली में आए बलजिंदर सिंह ट्रॉली में दोनों हाथों में पैरों को समेटे सुबह की धूप सेंक रहे हैं। बात-चीत में सिंह कहते हैं "हम तभी जाएंगे जब कानून वापस हो जाएगा। जब तक मोदी को गद्दी से उतार नहीं देंगे, तब तक नहीं जाएंगे। 2024 का चुनाव यहीं से होगा।"

किसान जिस व्यवस्थित ढंग से आंदोलन को आगे बढ़ा रहे हैं और बदलते मौसम की अग्रिम तैयारी में जुटे हैं उसे देखकर लगता है कि किसान लम्बे समय तक आंदोलन करने के लिए कमर कस चुके हैं। यह भी देखना दिलचस्प होगा कि सरकार की रणनीतियों के सामने किसानों की बदलती रणनीति क्या होगी।

(लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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