Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

सरकारी चश्मे से नहीं दिखते मुस्लिम और ईसाई बने दलितों के वास्तविक हालात

वास्तविकता यही है कि रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट समाज के यथार्थ पर आधारित थी। यह सवर्णवादी मानसिकता ही है जिसे यह कटु यथार्थ दिखाई नहीं देता।
dalit
फ़ोटो साभार : स्क्रॉल

पिछले आठ वर्षों से केंद्र सरकार ऐसी नीतियां बना रही है जो दलितों और आदिवासियों के विकास के मार्ग को अवरुद्ध कर रही हैं। उन्हें बेहतर जीवन जीने से महरूम कर रही हैं। उस पर तुर्रा यह कि वह ‘सब का साथ सबका विकास’ का नारा देती है। दलित हितैषी होने का दावा करती है। और ऐसी बेतुकी दलीले देती है जो दलितों के विकास में बाधा उत्पन्न करती है। हाल ही में केंद्र सरकार ने दलितों (अनुसूचित जाति) के मुस्लिम या ईसाई बनने पर उन्हें आरक्षण के लाभ से वंचित करने की दलील दी।

गौरतलब है कि एक जनहित याचिका जिसमें कहा गया था कि आरक्षण का लाभ ईसाई और मुसलमान बने दलितों को भी मिले, पर जस्टिस एस.के. कॉल की पीठ ने 30 अगस्त को केंद्र सरकार से अनुसूचित जाति के मुस्लिम  और ईसाई के आरक्षण पर जवाब मांगा था। उसके जवाब में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में शपथ पत्र देकर कहा है कि— धर्म परिवर्तन कर मुस्लिम और ईसाई बनने वाले अनुसूचित जाति के लोगों को एस.सी. की तरह आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा सकता।

केंद्र सरकार की दलील थी कि 1950 का संविधान आदेश किसी असंवैधानिकता से ग्रस्त नहीं है। क्योंकि छुआछूत जैसी दमनकारी व्यवस्था कुछ हिन्दू जातियों को पिछड़ेपन की ओर  ले जाती है जबकि इसाई और इस्लामी  समाज में ऐसी व्यवस्था नहीं है। यही कारण है कि ईसाई और मुस्लिम समाज को इससे बाहर रखा गया है।

याचिका जस्टिस रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट के आलोक में दायर  की गई थी जिसने यह अध्ययन  किया था कि अन्य धर्मों के दलित भी ऐसी ही अयोग्यता झेलते हैं जैसे हिन्दू दलित अनुभव करते हैं। याचिका में कहा गया था कि एससी/एसटी आयोग ने भी इस तरह की राय व्यक्त की है।

सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि मिश्रा आयोग की रिपोर्ट फील्ड स्टडी पर आधारित नहीं थी।

लेकिन वास्तविकता यही है कि रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट समाज के यथार्थ पर आधारित थी। यह सवर्णवादी मानसिकता ही है जिसे यह कटु यथार्थ दिखाई नहीं देता। धर्म बदलने से छुआछूत की म़ार कम हो जाती है। लेकिन चूंकि समाज में भेद है तो वह यहां भी आता है। मैला ढोने वाले सीवर-सेप्टिक साफ़ करने वाले, चमड़े का काम करने वाले हर धर्म में दलित मूल के ही लोग हैं।

इस मानसिकता का उदाहरण दैनिक जागरण का सम्पादकीय भी देता है। दैनिक जागरण (11-11-2022) का सम्पादकीय कहता है – ‘...आश्चर्य है कि अपने अन्दर अपने बीच जातिवाद को दूर करने के स्थान पर मतांतरित दलितों को अनुसूचित दर्जा देने की मांग हो रही है। इसका अर्थ है कि दोहरे लाभ पाने की कोशिश हो रही है। एक, अनुसूचित जाति के रूप में, और दूसरा, अल्पसंख्यक के रूप में। यह एक तरह से उन दलितों के अधिकारों पर अतिक्रमण की कोशिश है जो मतांतरित नहीं हुए। कायदे से ईसाई और मुस्लिम दलित जैसी तो कोई संज्ञा ही नहीं होनी चाहिए। कहना कठिन है कि इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट किस नतीजे पर पहुंचेगा। लेकिन इस तरह की मांगो से तभी बचा जा सकता है, जब जाति, पंथ के आधार पर विशेष अधिकार प्रदान करने का सिलसिला थमेगा। सभी को यह समझना होगा कि देश में दो ही जातियां या वर्ग होने चाहिए – एक अमीर और दूसरा गरीब।’

असलियत यही है कि अनुसूचित जाति के लोग चाहे मुस्लिम बनें या ईसाई उनके हालात में कोई खास फर्क नहीं आता। हिन्दू समाज तो उनके धर्म परिवर्तन के बाद भी उन्हें उनकी जाति से ही पहचानता और संबोधित करता है। दूसरी ओर मुस्लिम और ईसाई धर्म के वे लोग जो अपने आप को उच्च कोटि का समझते हैं वे भी उन्हें दलित ही समझते हैं।  श्रेष्ठता और नीचता वाली खाई यहां भी बरकरार रहती है।  

इस बारे में कुछ लोगों से इस लेखक ने बात की। संक्षेप में उनके विचार इस प्रकार हैं :

सैयद परवेज़, सहायक संपादक “हाशिये की आवाज” कहते हैं– “मेरा मानना है कि धर्म की अपनी कोई संस्कृति नहीं होती। जो दलित मुसलमान बने उसके पीछे कारण था छुआछूत, जातिगत भेदभाव। सवर्ण उन्हें अपने कुएं से पानी नहीं लेने देते थे, मंदिर नहीं जाने देते थे,  शिक्षा का उन्हें अधिकार नहीं था, गाँव के दक्षिणी हिस्से में गाँव से बाहर रहते थे। एक तरह से उन्हें  इंसान नहीं समझा जाता था। लेकिन कोई भी इंसान चाहेगा कि उसे समान अधिकार मिले, सम्मान मिले। भारत में जब इस्लाम धर्म आया तो उनको लगा कि इस धर्म में सामूहिकता है, यहां न्याय ज्यादा है तो इस तरह से वे इस धर्म में आए। लेकिन मुसलमानों को तो पता था कि ये दलित हैं। उनके पास जमीन-जायदाद तो पहले भी नहीं थी। इस धर्म में आने से भी कैसे हो जाएगी। लैट्रिन साफ़ करते हैं। कब्र की देखभाल करते हैं। झाड़ू लगाते हैं। इसलिए उन्हें पसमांदा नाम दे दिया। छुआछूत तो नहीं पर उनको समानता का दर्जा नहीं दिया गया। क्योंकि समाज तो यहीं का था, संस्कृति तो यहीं की थी। इसलिए कोई पठान मुसलमान है तो वह पसमांदा मुसलमान को अपने साथ चारपाई पर नहीं बैठने देगा।...उनके साथ शादी-ब्याह भी नहीं करेगा।...उन्हें सामाजिक स्वीकृति नहीं  है।

जो सांप्रदायिक तत्व हैं उन्होंने कहा कि धर्म के आधार पर इनको आरक्षण नहीं मिलना चाहिए। लेकिन मेरा मानना है कि पसमांदा मुसलमान के लिए आरक्षण की जरूरत है और उन्हें मिलना चाहिए।”

ईसाई धर्म के जानकार और उससे जुड़े राजकुमार कटारिया जी का मानना है कि जो व्यक्ति लिखित रूप में कोर्ट में एफिडेविट देता है कि उसने ईसाई धर्म अपना लिया है उसे ही ईसाई माना जा सकता है। लेकिन बहुत से लोग ऐसे हैं जिन्होंने लिखित में  ईसाई धर्म नहीं अपनाया है पर वे ईसा मसीह में विश्वास करते हैं, बाइबिल में विश्वास करते हैं, चर्च भी जाते हैं, इसमें मैं खुद भी हूं, लेकिन मैंने अपना धर्म परिवर्तन नहीं किया है, तो सरकार कैसे तय करेगी कि कौन ईसाई है कौन नहीं है। दूसरी बात है कि इस तरह से सरकार धर्म को आधार ही क्यों बनाए। जो शोषित-पीड़ित हैं, जिसके साथ उसकी जाति विशेष की वजह से हजारों सालों से अत्याचार हुआ है, उसके विकास के लिए उसे आरक्षण का लाभ मिलना चाहि...।

मैं तो चाहता हूं कि जातियों को ही खत्म कर देना चाहिए क्योंकि न रहेगी जाति तो न रहेंगे इस तरह के सवाल। पर ये राजनेता ऐसा करेंगे नहीं क्योंकि इसी आधार पर ये वोट लेते हैं।”

ईसाई समुदाय के ही ब्रिजेश कहते हैं— “धर्म एक विश्वास है जिससे जीवन पद्धति बदलती है। कैथोलिक अगर धर्म परिवर्तन कराएं वह अलग बात है, नहीं तो बेसिकली लोग अपनी जीवन शैली बदलते हैं। इस से धर्म नहीं बदलता क्योंकि कागजी तौर पर व्यक्ति हिन्दू ही रहता है जब तक कि वह कोर्ट में एफिडेविट दाखिल कर यह न कहे कि उसने ईसाई धर्म अपना लिया है।

यहां काबिले-गौर है कि वीपी सिंह जब प्रधानमंत्री थे तब उन्होंने नवबौद्धों को आरक्षण का लाभ दिया था। उस समय मंडल बनाम कमंडल के नाम पर बहुत हंगामा हुआ था। महाराष्ट्र में Schedule Caste converted Bauddh का प्रमाण पत्र दिया जाता है लेकिन इसमें एक समस्या है कि यह राज्य सरकार द्वारा दिया जाता है और राज्य सरकार सेवा के लिए मान्य है पर केंद्र सरकार की सेवा के लिए मान्य नहीं है। उसके लिए महार, मातंग, चमार, ढोर आदि का अलग से सर्टिफिकेट लेना पड़ता है। बाबा साहेब के प्रपौत्र राजरतन आंबेडकर ने इसके खिलाफ 2020 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी जो अभी विचाराधीन है।

जहां तक आरक्षण का प्रश्न है तो ये अनुसूचित जाति (दलितों) को इसलिए दिया गया कि उनका कथित उच्च हिन्दू जातियों द्वारा शोषण किया गया। उनसे छुआछूत की गयी और उनका बहिष्कार किया गया। इनको हाशिये पर रखा गया तो मुख्यधारा में शामिल करने के लिए संविधान में इनके लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया। ...इसलिए धर्म बदल भी लेता है तो उसका अनुसूचित जाति का दर्जा बना रहना चाहिए।  उसको आरक्षण की जरूरत है। इसलिए उसे आरक्षण मिलना चाहिए।”

ईसाई धर्म से संबंध रखने वाले ए.के. सागर कहते हैं – “ हिन्दू अनुसूचित जाति के लोग दूसरे धर्म में बेहतर मान-सम्मान या कहिए एक बेहतर इंसान बनने के लिए जाते हैं। न वे अपना नाम बदलते हैं और न उनकी आर्थिक स्थिति बदलती है। ईसाई धर्म या कोई धर्म उनकी आर्थिक स्थिति थोड़े ही बदलता है। उनका सामाजिक स्तर भी वही रहता है। रहते वे अछूत ही हैं। उनके ईसाई बनने से अगर उसका सामाजिक स्तर बढ़ जाता है  तो कोई ब्राह्मण, ठाकुर उन्हें अपने साथ चारपाई पर क्यों नहीं बिठाता है? ईसाई बनने पर भी उसकी नजर में कोई भंगी, भंगी  ही क्यों रहता है? चमार, चमार ही क्यों रहता है? उसके साथ जातिगत भेदभाव क्यों किया जाता है?

दूसरी ओर सरकार उन्हें आरक्षण का लाभ न देकर उनके साथ अछूतों जैसा व्यवहार कर रही है। अगर सरकार की नीयत सचमुच में दलितों के हित में होती तो वह ईसाई और इस्लामी समाज की आड़ लेकर उन्हें आरक्षण से बाहर रखने की बात नहीं कहती। 

दरअसल सरकार जिस नजरिये से दलितों की स्थिति देखती है वह यथार्थवादी नहीं है। सरकार रंगनाथ मिश्र की रिपोर्ट पर तो आरोप लगाती है कि उनकी रिपोर्ट फील्ड स्टडी पर आधारित नहीं है। पर वास्तविकता यह है कि सरकार की दलील फील्ड स्टडी पर आधारित नहीं है। अगर सरकार ने मुस्लिम और ईसाई  बने दलितों के वास्तविक हालात देखे होते तो वह  उन्हें अनुसूचित जाति से बाहर रखने की दलील कदापि नहीं देती।”

(लेखक सफाई कर्माचारी आंदोलन से जुड़े हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest