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ग्राउंड रिपोर्ट: बनारस समेत समूचे पूर्वांचल में बाढ़ के साथ सूखे की मार

गंगा के साथ वरुणा ने इस कदर तबाही मचाई है कि बनारसी साड़ियों का ताना-बाना भी डूबने लगा है। ऐसे लोगों की तादाद हजारों में है जो अपना घर छोड़कर दूसरी सुरक्षित स्थानों पर शरण लेने पर मजबूर हैं। तटवर्ती इलाकों के लोग योगी सरकार से राहत की उम्मीद बांधे बैठे हैं, लेकिन उनकी दुश्वारियां कम नहीं हो पा रही हैं। यह स्थिति तब है जब मानसून के रूठे होने के कारण समूचे पूर्वांचल में सूखे की स्थिति है।
Purvanchal

उत्तर प्रदेश के वाराणसी समेत समूचे पूर्वांचल में गंगा ने खतरे का अलार्म बजा दिया है। चेतावनी बिंदु के करीब पहुंच चुकी बाढ़ में थोड़ी कमी जरूर आई है, लेकिन लोगों की दुश्वारियां तनिक भी कम नहीं हुई है। गंगा के साथ वरुणा और गोमती नदियों में जलप्लावन के चलते तटवर्ती इलाकों में रहने वाले लोगों का पलायन तेज हो गया है। गंगा का पानी बनारस की गलियों में घुसने के लिए बेताब है। गंगा के साथ वरुणा ने इस कदर तबाही मचाई है कि बनारसी साड़ियों का ताना-बाना भी डूबने लगा है। ऐसे लोगों की तादाद हजारों में है जो अपना घर छोड़कर दूसरी सुरक्षित स्थानों पर शरण लेने पर मजबूर हैं। तटवर्ती इलाकों के लोग योगी सरकार से राहत की उम्मीद बांधे बैठे हैं, लेकिन उनकी दुश्वारियां कम नहीं हो पा रही हैं। यह स्थित तब है जब मानसून के रूठे होने के कारण समूचे पूर्वांचल में सूखे की स्थिति है। एक तरफ खेतों में पानी के अभाव में फसलें सूख रही हैं तो दूसरी तरफ खरीफ फसलों के साथ सब्जियों के खेत बाढ़ के पानी में डूब गए हैं।

गंगा में उफान के कारण सिर्फ बनारस ही नहीं, चंदौली, गाजीपुर से लेकर प्रयागराज और बिहार के बक्सर इलाके में नदी के तटवर्ती इलाकों में रहने वालों के घरों में बाढ़ का पानी घुस गया है। वरुणा के मुहाने पर बसे रिहायशी इलाकों में बाढ़ का पानी घुसने से कई इलाकों में जन-जीवन अस्त-व्यस्त है। बनारस शहर के दशाश्वमेध घाट पर स्थित जल पुलिस थाना भी चौतरफा बाढ़ के पानी से घिर गया है। गंगा के रौद्र रूप के कारण वरुणा में पलट प्रवाह ने तटवर्ती इलाकों में पलायन तेज कर दिया है। वरुणा कॉरिडोर पूरी तरह से पानी में समा गया है और शास्त्री घाट पर भी पानी ऊपर चढ़ने लगा है।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, "गंगा में आई बाढ़ के चलते यहां घाटों के किनारे के 1500 से ज्यादा नावों का संचालन ठप है। 1600 से ज्यादा घर पानी में घिर गए हैं और 5 हजार की आबादी प्रभावित है। 1500 से ज्यादा दुकानदारों का कारोबार बंद हो गया है। लोग अपना घर छोड़ कर सुरक्षित ठिकानों और राहत शिविरों की ओर बढ़ने लगे हैं। बनारस में गंगा का पानी तेजी से लाल निशान की ओर बढ़ रहा है। जलस्तर की रफ्तार में उतार और चढ़ाव के साथ ही गंगा चेतावनी बिंदु 70.262 मीटर से कुछ ही नीचे बह रहा है। गंगा में उफान के चलते घाटों के किनारे सैलानियों, नाविकों, घाटों पर जाकर घूमने फिरने, नहाने और बोटिंग आदि को प्रतिबंधित कर दिया गया है। गंगा घाट पर जल पुलिस को निगरानी के लिए लगाया गया है।

हरिश्चंद्र घाट पर गलियों में शवदाह किया जा रहा है और मणिकर्णिका घाट पर छतों पर शवदाह हो रहा है। जगह कम पड़ने के कारण लोगों को तीन से चार घंटे तक इंतजार भी करना पड़ रहा है। मणिकर्णिका घाट पर डोम राजा परिवार के शालू चौधरी के मुताबिक, "इन दिनों अंतिम संस्कार के लिए रोजाना 50 से 60 शव लाए जा रहे हैं। प्लेटफॉर्म पर एक साथ 10 शव की अंत्येष्टि की व्यवस्था है। इसलिए अंत्येष्टि के लिए आने वाले लोगों को डेढ़ से दो घंटे का इंतजार करना पड़ रहा है।" हरिश्चंद्र घाट पर शवदाह कराने वाले ओंकार चौधरी ने बताया, "यहां 20 शव लाए जा रहे हैं और गलियों में अंत्येष्टि की जा रही है। लाइट का इंतजाम न होने के वजह से रात में दिक्कत हो रही है। जगह संकरा होने के कारण चिंता की आंच बहुत ज्यादा लगती है। यही हाल पीएम नरेंद्र मोदी के गोद लिए गांव डोमरी, सामने घाट, रमना, रामनगर आदि शवदाह स्थलों की है।"

बाढ़ में डूबा वरुणा कारिडोर

वरुणा में पलट प्रवाह के कारण कॉरिडोर डूब गया है। इसके तटवर्ती इलाकों में बाढ़ का पानी घरों घुसने लगा है। कई लोग अपना घर छोड़कर सुरक्षित ठिकानों और बाढ़ राहत शिविरों में पहुंच गए हैं। कुछ लोगों ने घर छोड़ कर ऊंचाई पर टेंट लगा लिया है। सरैया से नक्खी घाट तक वरुणा नदी के किनारे हजारों परिवार पक्के और अस्थायी आवास में रहते हैं। घरों में कमर जितना पानी आ चुका है। सामान छतों पर पहुंचा दिया गया है।

बनारस शहर के कोनिया, सामने घाट, सरैया, डोमरी, नगवा, रमना, बनपुरवा, शूलटंकेश्वर के कुछ गांव, फुलवरिया, सुअरबड़वा, नक्खीघाट, सरैया समेत कई इलाकों में बाढ़ कहर बरपाने लगी है। सैकड़ों घर पानी में समा गए हैं अथवा चौतरफा बाढ़ से घिर गए हैं। नक्खीघाट, कोनिया, सरैया और शैलपुत्री इलाके में बड़ी संख्या में लोग घर छोड़ने के लिए मजबूर हो गए हैं। कुछ लोग सरैया स्थित सरकारी प्राइमरी स्कूल में शरण लिए हुए हैं तो शैलपुत्री इलाके में कई लोग सीवर बिछाने के लिए रखी पाइपों में ही अपना ठिकाना बना लिया है। सरैया स्थित राहत शिविर में करीब 50 लोग शरण लिए हुए हैं। तीन पुलिया मुहल्ले में कमर तक बाढ़ का पानी घुस गया है। नमो नमः घाट भी पानी में डूब गया है। सैलानियों को इस घाट की तरफ नहीं जाने दिया जा रहा है। सरैया सूरज अली सरकार की तरफ से राहत नहीं मिलने से नाराज हैं।

गंगा की बाढ़ के चलते शहर में दुश्वारियों का लेबल इस कदर बढ़ता जा रहा है कि वरुणा और गोमती के साथ असि नदी भी फुंफकार मारने लगी है। शहर दक्षिणी इलाके के कई कालोनियों और मुहल्लों में बाढ़ का पानी घुस गया है। दनियालपुर, परानापुल, सलारपुर और सराय मोहाना इलाके के बाढ़ प्रभावित इलाकों के लोगों को सुरक्षित ठौर पर पहुंचाया जा रहा है। वरुणा नदी के तटवर्ती इलाकों के ढेलवरिया, सिधवा घाट, मोहल्ला जलाल बाबा, मोमिनपुरा, मढ़िया, अमरपुर बटलोहिया आदि मुहल्लों में नालों के जरिये पानी पहुंचने लगा है।

घरों की छत पर रह रहे लोग

शहर दक्षिणी इलाके के सामने घाट के निकटवर्ती मुहल्ला मारुतिनगर, काशीपुरम, मदेरवा घाट और गायत्री नगर में रहने वाले लोग अपने घरों की ऊपरी मंजिल पर रहने के लिए मजबूर हो गए हैं। नगवां नाला के उफान पर होने की वजह से गंगोत्री विहार कालोनी जलमग्न हो गई है। रमना का शमशान घाट भी बाढ़ के पानी में डूब गया है। टिकरी, तारापुर, डेराबीर, नदुना नाला से बाढ़ का पानी रिहायशी इलाकों में घुसने लगा है। पिछले दो-तीन दिनों से पलायन का सिलसिला तेज हो गया है। कुछ लोग अपने घरों का सामान लेकर रिश्तेदारों और परिचितों के यहां जा रहे हैं। बाढ़ से घिरे लोगों में बीमारी की आशंका के चलते रमना और पीएचसी इलाके में मेडिकल कैंप लगाया गया है। हालांकि बनारस के किसी इलाके में अभी बाढ़ राहत चौकियां सही तरीके से सक्रिय नहीं हो सकी हैं।

बुनकरों के हिस्से में आई बाढ़ की तबाही

गंगा और वरुणा नदी में आई बाढ़ की वजह से शहर के दर्जन भर मोहल्लों में लूम और करघे खामोश होने लगे हैं। बाढ़ का पानी घरों में पानी घुसने की वजह से विद्युत आपूर्ति ठप हो गई है। नक्खीघाट इलाके के रसूलपुरा मुहल्ले में वसीम के छह पावरलूम बाढ़ के पानी से घिर गए हैं। पानी में डूबे अपने घर की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा, " बड़ी मुश्किल से घर में एक-एक सामान जोड़ा था। बाढ़ ने सब कुछ तबाह कर दिया है। अब सड़क पर रह रहे हैं। कामकाज बंद हो गया है और पैसा भी नहीं है। अब तक किसी ने कोई मदद नहीं की है। हमारे पड़ोसी 45 वर्षीय बैली के लूम में पानी आ गया है। इकबाल को अपने पूरे परिवार के साथ मकान के छत पर शरण लेनी पड़ रही है। इनका परिवार स्थायी ठिकाने पर जाना चाहता है, लेकिन अभी तक नाव का प्रबंध न होने के कारण लाचारी में छत पर खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर हैं। इनके घर में छह फीट पानी भरा हुआ है। हाजी शहाबुद्दीन का घर भी बाढ़ में डूबा हुआ है। घर में घुटने भर पानी है और लूम बंद हो गया है। इनके भाई जुम्मन जलालुद्दीनपुर में दूसरे के मकान में शरण लिए हुए हैं।"

नक्खीघाट इलाके के कल्लू पान वाले अपने नौ लोगों के  परिवार के साथ बड़ी बाजार स्थित बुनकर मार्केट में पलायन कर गए हैं। हिदायतनगर के बेलाल कहते हैं, "वरुणा नदी के उफान पर होने की वजह से हलक सूख रहा है। धुकधुकी लगी है। पता नहीं कब बाढ़ का पानी  घर में घुस जाए।" इसी मुहल्ले के मुबारक, काजू, कलाम, शरीफ, काजू, पप्पूस, मल्लू, छोटक, फारुक, माइकल और आजम की गृहस्थी बाढ़ के पानी में डूबने लगी है। मेहताब ने बताया, "पिछले साल बाढ़ ने इस कदर तबाही मचाई थी कि 62 वर्षीय हनीफ अपने घर में पानी में डूबकर मर गए। वरुणा में जब भी बाढ़ आती है तो हर परिवार को 20 से एक लाख रुपये की चपत लगा जाती है। महीनों सफाई नहीं होती। बिजली कट जाती है। बीमारियां महीनों तक डेरा डाले रहती हैं।"

नक्खीघाट इलाके में चौतरफा पानी से घिरे शरीफुनिशा के घर में सांपों ने स्थायी रूप से डेरा डाल दिया है। वह कहती हैं, "एक तरफ बाढ़ की विभीषिका है, दूसरी ओर सांपों से बच्चों को बचाने की जद्दोजहद चल रही है। पता नहीं कब बाढ़ का पानी उतरेगा।" राजू की मां शबनम ने कहा, "हर साल बाढ़ आती है और उसी के साथ हमारी दुश्वारियां भी बढ़ जाया करती हैं। हमारे मुहल्ले में कई घरों में बाढ़ का पानी भर जाने की वजह से कुछ लोग यहां से पलायन कर चुके हैं। बाढ़ की वजह से रोजी-रोटी के लाले पड़ गए हैं। पेट के लिए उधार लेकर काम चला रहे हैं।" वरुणा नदी के किनारे किराये के मकान में रहने वाली शकीला अपने चार बच्चों को लेकर स्थायी ठौर तलाशती नजर आईं। इनके पति पति बुनकर है। वह कहती हैं, "हमारी मदद के लिए न अफसर आ रहे हैं और न ही चुनाव के समय वोट मांगने वाले नेता।"

बाढ़ देखने के लिए जुट रही भीड़

बनारस के नक्खीघाट और पुराना पुल पर पिछले तीन-चार दिनों मेला लग रहा है। सैकड़ों लोगों का हुजूम बाढ़ से होने वाली तबाही का मंजर देखने के लिए जुट रहे हैं। अभी एनडीआरएफ का कहीं अता-पता नहीं है। एनडीआरएफ सिर्फ गंगा में गश्त कर रही है, जबकि वरुणा नदी के किनारे खतरा ज्यादा है। हिदायतनगर के इस्तियाक बताते हैं, "हर दूसरे-तीसरे साल भीषण बाढ़ आती है। पिछले साल के मुकाबले अबकी तबाही कम है। साल 2013, 2016 और 2019 में भयानक बाढ़ आई थी तो करीब एक महीने तक हजारों लोगों के घर बाढ़ में डूबे हुए थे। बहुतों का लूम का कारखाना बंद हो गया था और बरसों की गृहस्थी उजड़ गई थी। लूम और करघों पर चढ़ीं साड़ियां काली पड़ गई थी। नक्खीघाट पर प्रशासन ने पिछले साल तीन नावों का इंतजाम किया था, लेकिन अबकी लोग उन नावों की बाट जोह रहे हैं। पहले बाढ़ आती थी तो इलाके के स्कूल और मदरसों में अस्थायी आश्रय घर बनाया जाता था। प्रशासन ने इस बार भी राहत कैंप खोलने और जरूरी सुविधाएं देने का वादा किया था, लेकिन राहत हमारे नसीब में है ही नहीं।"

गंगा-गोमती की बाढ़ में डूबी फसलें

बनारस शहर ही नहीं, ग्रामीण इलाकों में भी गंगा, वरुणा और गोमती नदियां तबाही मचा रही हैं। वरुणा के साथ ही गोमती नदी का पानी उफान पर होने के कारण आवागमन ठप है। बाढ़ से घिरे लोग अपने गृहस्थी का सामान लेकर सुरक्षित ठिकानों की ओर जा रहे हैं। चिरईगांव, अराजीलाइन और चोलापुर प्रखंड के कई गांवों में खरीफ की फसलें और सब्जियों के खेत बाढ़ में डूब गए हैं। करीब दो सौ हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल में सब्जियों की खेत बाढ़ की जद में आ गए हैं।

बनारस का इकलौता आईलैंड ढाब पूरी तरह टापू बन गया है। बाढ़ का पानी इस आईलैंड पर बसे 35 हजार लोगों से लिए मुसीबत का सबब है। दर्जनों गांवों में बाढ़ का पानी निचले इलाकों में घुसकर तबाही मचा रहा है। जिले में करीब साठ गांव बाढ़ की चपेट में हैं। ढाब आईलैंड में गंगा नदी की कटान के चलते समस्या गंभीर होती जा रही है। मुस्तफाबाद के प्रधान राजेंद्र सिंह ने ‘न्यूजक्लिक’ से कहा, "रमचंदीपुर, मोकलपुर, गोबरहां, रामपुर, मुस्तफाबाद में बाढ़ का पानी किसानों की जमीनें लीलती जा रही है। ढाब इलाके के सोता में बड़े पैमाने पर हो रहे कटान के चलते सैकड़ों एकड़ उपजाऊ खेत बाढ़ के पानी में डूब गए हैं। इस इलाके में नदी के किनारे बोई गई मक्का, धान, तिल, नेनुवा, लौकी, परवल आदि फसलें बाढ़ की भेंट चढ़ गई हैं। मोकलपुर स्थित अंबा सोता पर प्रशासन ने नावों का संचालन शुरू करा दिया है। रिंग रोड बनाने के लिए ढाब आईलैंड पर किए गए अवैध खनन के चलते इस टापू पर रहने वाले लोगों की जान सांसत में है।"

दूसरी ओर, पिंडरा इलाके के कोइराजपुर, चमाव, भगतुपुर, दासेपुर, गोसाईपुर, करोमा के अलावा रामेश्वर, परसीपुर, पांडेयपुर, तेंदुई, सत्तनपुर समेत दर्जनों गांवों में सैकड़ों एकड़ खरीफ की फसलें जलमग्न हो गई हैं। हालांकि बनारस के कलेक्टर कौशल राज शर्मा दावा करते हैं, "बाढ़ से निपटने के लिए बनारस में चाक-चौबंद इंतजाम है। प्रभावित लोगों को आश्रय देने के लिए बाढ़ राहत चौकियां खोल दी गई हैं। बाढ़ग्रस्त इलाकों में नावों के प्रबंध किए गए हैं। घर-घर भोजन और राशन भी पहुंचाया जा रहा है। गंगा में एनडीआरएफ की 11वीं बटालियन के जवान पेट्रोलिंग कर रहे हैं। जल पुलिस और एनडीआरएफ निर्देश दिया गया है कि वे अतिरिक्त सतर्कता बरतते हुए मुस्तैदी के साथ काम करें।'' नगर स्वास्थ्य अधिकारी डॉ एनपी सिंह ने ‘न्यूजक्लिक’ से कहा, "कोनिया, ढेलवरिया, सरैयां आदि शेल्टर होम में लगातार कीटनाशक दवाओं का छिड़काव और फागिंग कराई जा रही है।"

चंदौली में भी बाढ़ से तबाही

बनारस से सटे चंदौली जिले में भी गंगा उफान पर है। बाढ़ का पानी रिहायशी इलाकों में घुसने को बेताब है। चंदौली में भी गंगा नदी सौ किमी तक बहती है। नदी के किनारे बसने वाले कई दर्जन ऐसे गांव हैं, जहां के किसान सब्जियों की खेती करते हैं। इन्हीं खेतों में किसान अपने पशुओं के लिए चारा भी उगाते हैं। गंगा के किनारे सब्जी की खेतों में पानी भर जाने की खेती चौपट हो गई है। चंदौली के छेमिया गांव के किसान चमन चौहान कहते हैं कि हमारी बीघा सब्जियों का खेत बाढ़ में समा गया। चमन जैसे दर्जनों किसान बाढ़ की तबाही से बेहाल हैं।

मुकुन्दपुर, हसनपुर, तीरगावा, परासी हिनौता समेत कई गांवों में बाढ़ से ग्रामीणों की दुश्वारियां बढ़ रही हैं। इन गांवों में बड़ी संख्या में किसानों के खेत पानी में डूबे हुए हैं। जहां तक नजर जा रही है वहां चारों तरफ सिर्फ पानी ही पानी। रामचंद्र कहते हैं, ''कुछ लोग अपना सामान और जानवरों को छोड़कर दूसरे स्थान पर नहीं जाना चाहते हैं। लेकिन घर और खेत डूब गया है या फिर डूबने वाला है, उनको प्रशासन के लोग सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा रहे हैं।

गाजीपुर में भी भारी तबाही

बनारस मंडल के गाजीपुर जिले की स्थिति चंदौली जैसी है। यहां परवल, मिर्चा, टमाटर सहित सब्जी और अन्य फसलें पानी में डूब गई हैं। गंगा के बाढ़ से मुहम्मदाबाद, जमानिया, सेवराई,  सदर ब्लाक के तटवर्ती इलाके प्रभावित हैं। हसनपुर गांव में बाढ़ का पानी घुस गया है। रेवतीपुर ब्लॉक के रेवतीपुर मां कामाख्या धाम बाईपास रोड पर गंगा बाढ़ का पानी पहुंचने से कई इलाकों में लोगों की मुसीबत बढ़ गई है। गाजीपुर में रेवतीपुर, बीरउपुर, अठाहठा, हसनपुरा, नगदिलपुर इलाके बाढ़ग्रस्त हैं। किसानों का कहना है कि बाढ़ के चलते ज्यादा संकट पशुओं के चारे की होने लगी है। बाढ़ को देखते हुए रेवतीपुर, रामपुर बीरउपुर, नसीरपुर,  हसनपुरा,  उतरौली,  रामपुर, परमानंदपुर आदि गांवों में बाजरा, ज्वार, परवल आदि की फसलें बाढ़ की भेंट चढ़ती जा रही हैं।

प्रयागराज में छात्रों का पलायन

प्रयागराज में भी गंगा-यमुना के किनारे बसे इलाके बाढ़ की चपेट में आ गए हैं। घरों में पानी भर गया है। लोग घर छोड़कर लोग पलायन करने को मजबूर हैं। शहर के छोटा बघाड़ा, सलोरी, शिवकुटी, अशोक नगर, नैपुरवा, गणेशनगर, शंकर घाट समेत 24 मोहल्ले के लोग इसकी चपेट में हैं। गलियों में नाव चलानी पड़ रही है। प्रयागराज के छोटा बघाड़ा, सलोरी और दारागंज इलाके में सैकड़ों लॉज हैं। गैर-जनपदों से आने वाले 80 फीसदी छात्र इन्हीं इलाकों में रहते हैं। यह इलाके गंगा के किनारे हैं। यहां घरों में सैकड़ों घरों में पानी घुस गया है। 50 हजार से छात्र लॉज छोड़कर वहां से चले गए हैं। प्रयागराज जिला प्रशासन का दावा है कि 12 बाढ़ राहत शिविर बनाए गए हैं और 98 बाढ़ चौकियों को अलर्ट रहने का निर्देश दिया गया है। पानी से चौतरफा घिरे लोगों को घरों से निकालने के लिए स्टीमर लगाए गए हैं, लेकिन हकीकत में यह सब कागजों पर ही हो रहा है।

एडीएम वित्त एवं राजस्व जगदंबा सिंह ने मीडिया से बात करते हुए कहा, "गंगा-यमुना बढ़ते हुए जलस्तर को देखते हुए सभी संबंधित लोगों को अलर्ट पर रखा गया है। बघाड़ा, सलोरी, बेली, राजापुर आदि क्षेत्रों में निगरानी बढ़ा दी गई है। वहीं, निचले इलाके में बसे लोगों के घर तक पानी पहुंचने लगा है। जिन्हें सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया गया है।"

हालात और भी ज्यादा गंभीर होंगे

जाने-माने पर्यावरणविद और गंगा विशेषज्ञ प्रोफ़ेसर यूके चौधरी कहते हैं, "बाढ़ का अर्थ है उल्टी होना। यदि आपने जरूरत से ज्यादा खा लिया हो या आपका पेट ताकत के साथ बांध दिया गया हो तो आप उल्टी कर सकते हैं। इसी तरह से जब नदी को तटबंधों में बांध दिया जाता है तो उसके पेट में रेत और गाद का स्तर लगातार बढ़ता रहता है। बनारस में बाढ़ इसलिए आ रही है, क्योंकि नदी के पेट पर कोई ध्यान नहीं दे रहा। गंगा नदी के पेट में निर्माण कार्य चलते रहते हैं। वरुणा और असि नदी के किनारे घेरकर लोगों ने निर्माण करा लिया है। ऐसे में नदी का पेट साफ कैसे रहेगा?  जब नीचे रेत और गाद जमा होगी तो ऊपर बाढ़ आएगी ही। सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि वाराणसी जिला प्रशासन साल भर बाढ़ से निपटने की तैयारियों पर ध्यान नहीं देता। आखिर में जब बाढ़ आती है तब लोग सड़कों पर तंबुओं में रहने के लिए मजबूर हो जाते हैं। नदियों के रास्ते से अतिक्रमण हटाया जाना चाहिए और एक 'कन्ज़र्वेशन ज़ोन' बनाया जाना चाहिए। इसकी शुरुआत उन आवासों और कारखानों को हटाकर करनी चाहिए जो नदियों को दूषित करते हैं। बनारस में रेत की तस्करी धड़ल्ले से हो रही है। इसे रोका नहीं गया तो और भी ज्यादा ख़तरनाक नतीजे सामने आएंगे।"

काशी पत्रकार संघ के पूर्व अध्यक्ष प्रदीप श्रीवास्तव कहते हैं, " जंगलों की कटाई हो रही है जिससे नदियों में सिल्टेशन पहुंच रहा है और नदियों की आधार शक्ति कम हो रही है। खासकर नदियों के पास बड़े पेड़ों की कटाई पर रोक लगाने की जरूरत है, क्योंकि इन पेड़ों की जड़ों में पानी रोकने की क्षमता बहुत होती है। बनारस की गंगा और वरुणा जीवन की धमनियां हैं। नदियों में गाद (शील्ट) भरने की वजह से बाढ़ विनाशकारी हो जाती है। प्रायः हर साल ऐसी स्थिति पैदा होती है। भाजपा सरकारें नदियों के साथ क्रूर व्यवहार कर रही हैं, इसलिए स्थितियां ज्यादा जटिल हैं। गंगा-वरुणा को फिर से ज़िंदा करने की ज़रूरत है। मुमकिन समाधान के बारे में गंभीरता से सोचने की जरूरत है। वाराणसी जिला प्रशासन साल भर बाढ़ से निपटने की तैयारियों पर ध्यान नहीं देता। आखिर में जब बाढ़ आती है तब लोग सड़कों पर टेंटों में रहने को मजबूर हो जाते हैं।"

(लेखक बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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