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भारत की कोविड-19 से लड़ाई : शास्त्र, नैतिकता और पुलिस बल हैं ज़रिया

कोविड-19 पर पीएम मोदी के तीन सार्वजनिक भाषणों में महामारी के ख़िलाफ़ उनकी सरकार की ‘लड़ाई’ की राह दिखाने वाले दर्शनशास्त्र का पता चलता है।
भारत की कोविड-19 से लड़ाई

19 मार्च को, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के लोगों को चेतावनी देते हुए कहा कि घातक कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ एक कठिन लड़ाई लड़ी जा रही है और उन्होंने जनता से इसे संकल्प और संयम के साथ लड़ने की अपील की। 24 मार्च को, अपने दूसरे संबोधन में, मोदी ने घोषणा की कि देश आधी रात को, चार घंटे के भीतर पूरी तरह से बंद हो जाएगा। फिर 25 मार्च को, अपने मन की बात में रेडियो संबोधन के माध्यम से आम लोगों को हुई परेशानी के लिए माफ़ी मांगी, लेकिन ऐसा करना अपरिहार्य था! उन्होंने कुछ संस्कृत श्लोकों के हवाले से यह भी कहा कि यही एकमात्र तरीक़ा है, फिर चाहे नतीजा कुछ भी हो।

आइये इस बीच, नज़र डालते हैं कि वास्तविक दुनिया में हो क्या रहा है। धीमी गति से ही सही, लेकिन भारत में कोविड-19 मामलों में वृद्धि हो रही है। कई लोग कम वृद्धि के पीछे कम जांच को ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं-यदि आप जांच ही नहीं करेंगे, तो आपको कुछ भी जानकारी नहीं मिलेगी। अज्ञानता ही परमानंद का स्रोत है। लेकिन हर कोई इस बात से सहमत है कि और सबको पता है कि यह बला बड़ी तेज़ी के साथ आ रही है।

बिना योजना के लॉकडाउन ने सैकड़ों हज़ारों लोगों के जीवन में मुसीबतों का पहाड़ खड़ा कर दिया है, यहां तक कि लाखों लोग घरों में उदास पड़े हैं, उनकी चिंता है कि उनका आगे क्या भविष्य हैं। उत्तर प्रदेश के एक प्रवासी मज़दूर ने कहा: "कोरोनो वायरस से बाद में, पहले तो भूख ही हमें खत्म कर देगी।"

मोदी की भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) यूपी और हरियाणा में सत्ता में है, वहाँ से हज़ारों प्रवासी मज़दूर पिछले तीन दिनों में दिल्ली के अंतरराज्यीय बस टर्मिनस पर इकट्ठा हुए, जहाँ से उन्हें उनके अपने गाँवों के लिए बस मिलने की उम्मीद थी। अब नोट करें कि पुलिस की बर्बरता का आलम सब जगह अलग अलग था, जैसे दिल्ली में 2 किमी लंबी लाइनों में मवेशियों की तरह लोगों को झुंड में हाँका गया, पुलिस कर्मी हाथ में एम्पलीफ़ायर के माध्यम से चिल्ला रहे थे और मज़दूरों को आगे बढ़ने के लिए कह रहे थे, फिर बरेली में प्रवासी मज़दूरों पर पुलिस अधिकारियों द्वारा कीटनाशक छिड़काव किया गया ताकि कोरोना न फैले।

और, अन्य समाचारों में ख़बरें ये कि अधिकतर डॉक्टरों, नर्सों, अस्पताल के कर्मचारियों, यहां तक कि कई राज्यों में एम्बुलेंस चालकों के सुरक्षात्मक गियर में भारी कमी है और वे सब लोग इनके न मिलने के खिलाफ विरोध कर रहे है। ये वे लोग हैं जिनकी प्रशंसा मोदी लगातार कर रहे थे और  यहाँ तक कि जनता कर्फ्यू के दिन उनके सम्मान में देशव्यापी तालियाँ, घंटा बजाने का आह्वान किया गया था।

तो, भारत में कोविड-19 (कोरोना वायरस) के ख़िलाफ़ तथाकथित ‘युद्ध’ की संक्षिप्त और सेनीटाईज्ड कहानी हमें क्या बताती है? ऊपर बताए गए पीएम मोदी के तीन भाषणों में निम्न बातें मौजूद हैं।

राजा का दर्शन

आमतौर पर, सवाल यह होगा कि महामारी से लड़ने में देश की रणनीति क्या है? इस पर मतभेद हो सकते हैं। चीन और दक्षिण कोरिया और कुछ अन्य देशों ने निर्णायक रूप से तेजी से इसे क़ाबू करने के लिए आगे बढ़े। अमेरिका, इटली और यूके ने इसमें देरी की और अब वे इसे काबू करने के लिए युद्धस्तर पर काम कर रहे हैं।

दुनिया के मामले में कुछ अहम आम बातें भी जानने को मिली हैं। जैसे इस महामारी को थामने के लिए विज्ञान और वैज्ञानिक आगे बढ़ रहे हैं। इस बीमारी का डाटा बड़ी कुंजी है। चिकित्सा देखभाल उसकी बुनियाद है–जांच से लेकर इलाज़ तक। सूचना और जागरूकता भी समान रूप से महत्वपूर्ण है। सरकारें ज्ञान के उद्देश्य से लोगों में ज्ञान पैदा कर रही हैं।

लेकिन, भारत में, पीएम मोदी के विचारों को लेकर चलें तो चीजें अलग हैं। यह एक समानांतर ब्रह्मांड है। मोदी जो कह रहे हैं उसकी कुछ परिभाषित विशेषताओं पर एक नजर डालें और आप पूरी रणनीति में इसके विकराल रूप को देखेंगे।

यह लड़ाई लोगों को लड़नी है(सरकार को नहीं) : 19 मार्च को अपने पहले भाषण में ही, मोदी ने यह स्पष्ट कर दिया कि महामारी केवल लोगों के संकल्प और संयम से लड़ी जाएगी। उन्हें अपनी आस्था के प्रति दृढ़ संकल्प और – जिसका निहितार्थ ये था कि- उनकी सरकार में लोगों का विश्वास होने की आवश्यकता पर ज़ोर था। और उन्हे सामाजिक दूरी बनाए रखते हुए संयम से रहने की आवश्यकता है। उनका वास्तविकता में कहना यह था कि इस महामारी/बीमारी का प्रभाव अंततः लोगों के व्यवाहार/कार्यों द्वारा निर्धारित होगा न कि सरकारी के काम की कार्यवाही  द्वारा।

एक बार जब आप यह कह देते हैं, और आपकी रणनीति इस विचार के मुताबिक बन जाती है, तो सरकार की जिम्मेदारी सिर्फ संकल्प और संयम की निगरानी करने की ही रह जाती है। और लड़ाई कानून और व्यवस्था की समस्या बन जाती है।

यह रणनीति प्राचीन ज्ञान पर आधारित है: इसकी आवश्यकता थी क्योंकि लोग जानना चाहते थे कि क्या लॉकडाउन को वास्तव में नोटबंदी की तरह घोषित करने की ज़रूरत थी, जो झटका रात 8 बजे दिया गया। उन्होंने सोचा कि क्या घर में रहने से संक्रमण की श्रृंखला वास्तव में टूट सकती है। वास्तव में हर तरफ़  व्यापक अनिश्चितता, चिंता और रातों की नींद हराम हो रही थी। न केवल उद्योग के कप्तानों और टाइकूनों की, बल्कि आम श्रमिकों, किसानों, कर्मचारियों, छोटे व्यवसायों, छात्रों इत्यादी की भी नींद हराम हो रही थी।

इसलिए, मोदी प्राचीन कहावतों का संदर्भ चले जाते हैं। घरों में यह आम धारणा हैं कि- "रोग को जड़ से ख़त्म कर दो"; "अच्छा स्वास्थ्य ही बड़ा खज़ाना है"- लेकिन इसे संस्कृत में कहा गया और प्राचीन रूप में गढ़ा गया, ऐसा लोगों के संकल्प को मज़बूत करने के लिए किया गया, उनके परेशान दिमाग़ को शांत करने के लिए - और मोदी को महान, बुद्धिमान संरक्षक के रूप में चित्रित करने के लिए किया गया था, जो देश की बहुत चिंता करते हैं।

लेकिन मुझे पता है कि आप मुझे माफ कर देंगे: ख़ुद को एक सच्चे शुभचिंतक के रूप में पेश करना उनकी एक चालबाज़ी है। यह चाल पहले संबोधन में ही शुरू हो गई थी जब मोदी ने कहा था कि वे लोगों से कुछ मांगने आए हैं और उन्हें लोगों से कभी निराशा हाथ नहीं लगी है। फिर, मन की बात में, उन्होंने कहा कि उन्होंने लॉकडाउन की वजह से हुई सभी परेशानियों के लिए माफी मांगी, लेकिन "मुझे पता है कि आप मुझे माफ़ कर देंगे!”

ऐसा तब होता है जब उनकी पार्टी द्वारा संचालित सरकारें निर्दयता से प्रवासी श्रमिकों को झुंडो में हांक रही होती है, खेल स्टेडियमों में डिटेन्शन केंद्र स्थापित कर रही होती हैं और आम तौर पर उनकी दुर्दशा के प्रति शत्रुता का व्यवहार कर रही होती हैं, यह एक बहुत बड़ा धोखा है। लेकिन फिर, मोदी अपनी उस रणनीति को आगे बढ़ा रहे हैं जिसकी शुरुवात पहले संबोधन से की गई थी: लोगों को इससे लड़ने दें, हम प्यार और मार दोनों के साथ मौजूद हैं।

ब्रेड क्रम्स के साथ गाज़र का हलवा: तो, इस सब में गाज़र क्या है? दार्शनिक मान्यता के अलावा कहा गया है कि अच्छा स्वास्थ्य खज़ाना और खुशी से भरपूर होता है - गाजर कितनी भी बड़ी हो सकती है-मोदी सरकार ने भी लोगों के कल्याण के लिए राहत के पैकेज की घोषणा की और कुछ रचनात्मक किताबों में लिप्त हुए। घोषित अधिकांश पैसे को पहले से ही खर्च करने की योजना थी लेकिन-उसे नए अंदाज़ में फिर से पेक कर बेच दिया गया।

कुछ ब्रेड क्रम्स के टुकड़ों को भी पेश किया गया, जैसे ग्रामीण नौकरी गारंटी योजना में 20 रुपए की ख़याली बढ़ोतरी। जब कोई काम ही नहीं है, तो मज़दूरी का कोई सवाल नहीं है। सामान्य घोषणाएं भी थीं, जो बाद में आए विचार हैं उनके मुताबिक मकानमालिकों से किराए नहीं लेने की अपील, मालिक से वेतन/मजदूरी में कटौती न करने की अपील, हालांकि इस सब को लागू करने का कोई तंत्र मौजूद नहीं है-बस इसे हवा में उछाला जा रहा है। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है, क्योंकि पूरा विचार लोगों के साथ हेरफेर पर आधारित है, जिसमें मुख्यधारा और सोशल मीडिया के समर्थन से प्रचार करना, और तूफान के गुज़रने तक चुप बैठने की रणनीति शामिल है।

इस महामारी से लड़ने के लिए भाजपा के नेतृत्व वाली भारत सरकार की रणनीति का एक गड़बड़झाला यह भी है। कि स्वास्थ्य कर्मियों को सुरक्षात्मक गियर प्रदान करने के लिए कोई सार्थक प्रयास नहीं है, न ही आइसोलेशन वार्ड/बिस्तरों में कोई उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, वेंटीलेटर की संख्या में कोई सुधार नहीं है, जबकि सरकार द्वारा संचालित स्वास्थ्य प्रणाली चरमराती नज़र आ रही है। भले ही भारत के भीतर एक ऐसा राज्य-केरल भी है–जिसने जांच की एक वैकल्पिक रणनीति बनाई है और उसे लागू किया है- जबकि मोदी और उनकी सरकार इस सब से सानंद अनजान बने बैठे हैं।

संक्षेप में, मोदी और उनकी विचारधारा ने एक पूरी वैकल्पिक रणनीति को विकसित किया है जो पैसे बचाती है, नाटकीयता दिखाती है और ख़ुद की छवि को बेहतर बनाती है। इस बीच, भारत और इसके लाखों लोग एक बड़े बवंडर के इंतज़ार में हैं।

अंग्रेजी में लिखे गए मूल आलेख को आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं

India Fights Coronavirus …With Scriptures, Morals and Police

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