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क्या यमन में युद्ध खत्म होने वाला है?

यमन में अप्रैल माह में दो अहम राजनीतिक उथल-पुथल देखने को मिला, पहला युद्धविराम की घोषणा और दूसरा राष्ट्रपति आबेद रब्बू मंसूर हादी का सत्ता से हटना। यह राजनीतिक बदलाव क्या यमन के लिए शांति लेकर आएगा ?
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Image courtesy : Al Jazeera

यमन में पिछले सप्ताह एक अहम राजनीतिक उथल-पुथल देखने के मिला। जिसे यमन में युद्ध शुरू होने के बाद से अब तक की सबसे बड़ी राजनीतिक घटना माना जा रहा है। दरअसल पिछले सप्ताह यानी की गुरुवार 7 अप्रैल को यमन के निर्वासित राष्ट्रपति आबेद रब्बू मंसूर हादी ने एक आदेश जारी किया, जिसमें उन्होंने उपराष्ट्रपति अली मोहसेन अल-अहमर को बर्खास्त कर दिया। उपराष्ट्रपति को बर्खास्त करने की घोषणा के अलावा उन्होंने एक राष्ट्रपति परिषद की स्थापना भी कर दी और साथ ही अपने पद की तमाम शक्तियों को राष्ट्रपति परिषद को स्थानांतरित कर दिया।

इस परिषद में सदस्यों की कुल संख्या आठ है और जिसकी अध्यक्षता रशीद अल आलमी करेंगे। परिषद के अन्य सदस्यों में सुल्तान अली अल-अरदा, तारिक मोहम्मद सालेह, अब्दुलरहमान अबू ज़राअ, अब्दुल्लाह बावज़ीर, ओस्मान हुसैन मेगाली, इदरीस कासेम अल-ज़ुबैदी और फ़राज़ सल्मिन अल-बहसानी हैं। यह परिषद हूती विरोधी सैन्य और राजनीतिक गुटों के प्रमुख नेताओं से मिलकर बनी है जिनकी यमन की राजनीतिक और सैन्य मामलों में अच्छी पकड़ है। सऊदी की राजधानी रियाद में यमन में चल रहे युद्ध को ख़त्म करने के लिए शांति वार्ता के अंतिम दिन यह तमाम घोषणा राष्ट्रपति हादी ने टेलीविजन पर प्रसारित एक बयान में दी। 

इससे पहले इसी महीने की शुरुआत में एक और अहम राजनीतिक घटनाक्रम देखने को मिला था। जिसमें यमन की सरकार और हूती विद्रोहियों के बीच युद्धविराम का समझौता भी हुआ था, जो की पिछले 7 वर्षों के युद्ध के दौरान पहली बार संभव हुआ था। यह समझौता संयुक्त राष्ट्र और संयुक्त राज्य अमेरिका के पहल पर संभव हो पाया था। 

वर्षों की निरर्थक वार्ता के बाद, यमन के नेतृत्व में बदलाव और एक नए बहुपक्षीय युद्धविराम से भले ही यमन में शांति की उम्मीदें जगी हों लेकिन इस युद्ध ने यहां बृहद रुप से राजनीतिक अस्थिरता और विभिन्न तरह की समस्याएं पैदा की है।

अस्थिरता की शुरुआत 

यमन में अस्थिरता के शुरुआत की जड़ें 2011 के अरब स्प्रिंग से शुरू होती हैं जब तत्कालीन  राष्ट्रपति अली अब्दुल्ला सालेह की सरकार के खिलाफ जनआक्रोश चरम पर पहुँच जाता है। उनके खिलाफ जनता बड़े पैमाने पर प्रदर्शन करने को उतारू हो जाती है जिस कारण उन्हें मजबूरन अपने पद से इस्तीफा देने के बाद सत्ता अपने डिप्टी आबेद रब्बू मंसूर हादी को सौंपनी पड़ती है। हालाँकि राष्ट्रपति बदलने के बाद भी यमन की स्थिति में कुछ ख़ासा बदलाव देखने को नहीं मिलता है, क्योंकि देश पहले से ही विभिन्न समस्याओं से गुज़र रहा था और उस पर मौजूदा सरकार काबू में करने में नाकामयाब साबित हो रही थी। 

लोगों में सरकार के प्रति बढ़ती नाराज़गी और बढ़ती समस्याओं के कारण जनता का सरकार पर से मोह भंग होना शुरू हो गया था जिसका फायदा विद्रोही समूह लेने लगे और धीरे-धीरे सरकार की पकड़ कमज़ोर होती चली गई। हूती विद्रोही समूह ने इसका फायदा उठा कर 2014 के शुरुआत में सादा प्रांत पर कब्ज़ा किया और उसके बाद यमन की राजधानी सना पर कब्ज़ा कर लिया। और फिर धीरे-धीरे उत्तरी यमन के अधिकांश हिस्सों को हूती विद्रोहियों ने अपने नियंत्रण में कर लिया।  हूती विद्रोहियों के बढ़ते प्रभाव को देखकर सऊदी अरब ने गठबंधन का निर्माण कर उनके खिलाफ एक सैन्य अभियान शुरू किया और तब से यमन युद्ध से ग्रसित है।

यमन में हो रही अस्थिरता के कारण लाखों लोगों की जानें जा चुकी है और वहीँ हज़ारों घर तबाह-बरबाद हो चुके हैं। इसके अलावा यहाँ हो रही अस्थिरता की वजह से यमन के नागरिक भूख, गरीबी, बेरोजगारी, स्वास्थय समस्याओं, भ्रष्टाचार और विस्थापन जैसी समस्याओं से बुरी तरह से जूझ रहे हैं और साथ ही यमन के इस युद्ध ने विश्व का सबसे बड़ा मानवीय संकट पैदा किया है।

यमन में चल रहे युद्ध ने पैदा किया दुनिया का सबसे बड़ा मानवीय संकट

इस युद्ध के कारण तक़रीबन 3,77,000 लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से हताहत हो चुके हैं। अंतर्राष्ट्रीय संकट समूह (आईसीजी) की रिपोर्ट के अनुसार हताहत होने वालों में ज़्यादातर लोग लड़ाई, गोलाबारी या हवाई हमले के कारण नहीं मारे गए हैं, बल्कि भूख और रोकथाम योग्य बीमारी का समुचित इलाज न मिलने के कारण मारे गए हैं। यहाँ हो रहे संघर्ष के कारण दुनिया का अब तक का सबसे बड़ा मानवीय संकट पैदा हो गया है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार वर्तमान समय में 24.1 मिलियन लोगों यानी की यमन की 80% आबादी को मानवीय सहायता और सुरक्षा की आवश्यकता है जो भयावह है।

यूनाइटेड नेशंस हाई कमिश्नर फॉर रिफ्यूजीज़ के आंकड़ों की मानें तो यहां 20.7 मिलियन लोगों को मानवीय सहायता की सख्त जरूरत है। मौजूदा समय में 16.2 लाख यमनवासी भूख से पीड़ित हैं, जिनमें 5 मिलियन लोग अकाल के कगार पर हैं। आने वाले महीनों में अगर इस स्थिति पे काबू नहीं पाया गया तो स्थिति बद से बदतर हो जाएगी। 

रुस-यूक्रेन में हो रहे युद्ध के कारण यहाँ के नागरिकों की पीड़ा और भी बढ़ गई है। वहां चल रहे युद्ध के कारण वहां से आने वाली गेहूं की आपूर्ति भी बाधित हो गई है, जिस कारण यमन में भूख का स्तर और भी बढ़ सकता है।

इसके अलावा इस युद्ध के कारण लाखों लोगों को देश के अंदर व विदेशों में विस्थापित होना पड़ा है और यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। यूनाइटेड नेशंस हाई कमिश्नर फॉर रिफ्यूजीज़ के आंकड़ों के मुताबिक इस युद्ध की वजह से पिछले सात सालों में चार मिलियन से ज़्यादा लोगों को देश के अंदर तथा बाहर विस्थापित होना पड़ा है। देश के अंदर जो लोग विस्थापित होकर रह रहे हैं उन्हें और भी भयावह समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। 

युद्ध के कारण स्वास्थ्य सम्बंधित समस्याओं में भारी बढ़ोतरी देखी गई है। बुनियादी सुविधाओं और समय पर छोटी से छोटी बीमारी का इलाज न मिलने के कारण लोग तरह-तरह के घातक रोग से ग्रसित होते जा रहे हैं। चल रहे युद्ध में महिलाएं और बच्चे स्वास्थ्य समस्याओं से बुरी तरह से जूझ रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक यहां प्रति बारह मिनट एक नवजात बच्चे की मृत्यु हो जाती है। वहीं यहां के निवासी अब तक दर्ज किए गए सबसे बड़े कॉलेरा के प्रकोपों में से एक से पीड़ित हैं। यहां 2016 से लेकर अब तक कॉलेरा बीमारी के तक़रीबन 2.5 मिलियन मामले आये हैं और वहीँ इस बीमारी के कारण लगभग 4,000 लोगों की मौतें हो चुकी हैं। 

युद्ध ने यहाँ की 75 फीसदी आबादी को गरीबी रेखा के नीचे लाकर खड़ा कर दिया है, हालाँकि 2015 में जब यमन युद्ध की ओर धकेला जा रहा था तब भी यह सारे अरब देशों में सबसे गरीब और दयनीय स्थिति में था।

युद्धविराम और राष्ट्रपति हादी द्वारा अपनी शक्ति के हस्तांतरण का क्या कारण है?

वैश्विक संस्थाओं के अनुसार यमन युद्ध में मानवाधिकारों के व्यापक स्तर पर उल्लंघन के साथ साथ "युद्ध-अपराध" भी हुआ है। इसके अलावा सऊदी अरब और यूएई को यूएसए द्वारा दिए गए हथियारों का भी इस युद्ध में व्यापक स्तर पर इस्तेमाल हुआ है। 

मानवाधिकार उल्लंघन, "युद्ध-अपराध" और यूएसए निर्मित हथियार के इस्तेमाल के कारण संयुक्त राज्य अमेरिका की वैश्विक स्तर पर लगातार निन्दा हो रही है। जिस कारण यूएसए, सऊदी अरब पर युद्ध ख़त्म करने के लिए पिछले कुछ समय से दबाव बना रहा है।

इसके अलावा यह युद्ध यमन के लोगो को समस्या पैदा करने के अलावा वहां की आर्थिक स्थिति को दिन-प्रतिदिन बद से बदतर बनाता जा रहा था। वहीँ यह युद्ध सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात की आर्थिक स्थिति पर भी भयंकर रूप से बोझ बन रहा था। 

पिछले कुछ महीनों से देखा जाए तो यह युद्ध और भी हिंसक होता जा रहा था। हूती विद्रोहियों द्वारा यमन देश के बाहर भी हिंसक हमले शुरू कर दिए गए थे। सऊदी के तेल भंडारों पर आक्रमण और संयुक्त अरब अमीरात के अबुधाबी हवाई अड्डे पर आक्रमण इसका हालिया उदहारण है।

इन सब वजहों के कारण सऊदी अरब भी यह युद्ध का खात्मा चाहता है, हालिया समय में रियाद में संपन्न हुई शांति वार्ता से तो यही ज़ाहिर होता है। समीक्षकों के अनुसार यह तमाम वजहें राष्टपति हादी द्वारा अपनी शक्ति का हस्तांतरण और देश को युद्धविराम की ओर ले जाने का कारण प्रतीत होती हैं।

क्या इस परिवर्तन से यमन में युद्ध की समाप्ति के आसार हैं ?

अंतर्राष्ट्रीय संकट समूह (आईसीजी) की रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्रपति हादी के इस फैसले का यमन के लोगों पर मिला-जुला असर देखने को मिल रहा है। इस रिपोर्ट के मुताबिक राष्ट्रपति हादी, यमन के लोगों में अमूमन नापसंद किये जाते थे और उनके पास कोई खासी लोकप्रियता भी नहीं थी जिस कारण भी लोग नए परिषद के गठन का स्वागत कर रहे हैं। साथ ही राष्ट्रपति हादी 2015 के बाद से ही सऊदी अरब में निर्वासन में रह रहे हैं और वहीँ से सरकार चला रहे हैं जिस कारण भी यमन की जनता की उनसे नाराज़गी है। इन तमाम वजहों से वहां की जनता में नए परिषद् के गठन के बाद देश में शांति स्थापित होने की थोड़ी उम्मीद जगी है।

गौरतलब है की लम्बे समय से चले आ रहे यमन के इस युद्ध को तमाम शामिल देश ख़त्म करना चाह रहे हैं। खासकर सऊदी अरब इस युद्ध को समाप्त करने के लिए भरसक प्रयास कर रहा है। हालिया समय में यमन में हुए राजनीतिक परिवर्तन और सऊदी की यमन के प्रति विदेश नीति को देखकर तो यही ज़ाहिर होता है। इसी सिलसिले में वह पिछले कुछ समय से लगातार प्रयासरत है। 

यमन के राष्ट्रपति हादी की राष्ट्रपति परिषद की घोषणा के बाद सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने फौरन संयुक्त रूप से तीन बिलियन यूएस डॉलर की युद्ध-ग्रस्त अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने के नाम पर आर्थिक मदद यमन को देने की घोषणा की। दरअसल हूती समूह के अलावा यमन के नागरिक किसी देश से सबसे ज़्यादा नाराज़ हैं तो वह सऊदी अरब है। यमन में हूती समूह ने जितनी आतंक व तबाही फैलाई है उतनी ही बर्बरता सऊदी समर्थित सैन्य समूह द्वारा फैलाई गई है और इस कारण वहां के नागरिक देश की वर्तमान स्तिथि का जिम्मेदार इन तमाम समूहों को मानते हैं। सऊदी अरब समूह द्वारा दी गई आर्थिक सहायता और शांति वार्ता पहल यमन में चल रहे युद्ध और उसके नागरिकों की समस्याओं को समाप्त करने का एक आतुर प्रयास है।

राष्ट्रपति परिषद के अध्यक्ष व बाकी सदस्यों को सऊदी अरब का समर्थन प्राप्त है और साथ ही यह सारे सदस्य हूती विरोधी समूहों से आते हैं। जिस कारण भी ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं की यह परिषद हूती समूह को समझौता-टेबल पर लाने में सफल हो पाएंगे। इन सब वजहों के कारण देखा जाए तो यह युद्ध समाप्ति की ओर अग्रसर दिखता नज़र आ रहा है।

भले ही राजनीतिक विश्लेषक वर्तमान राजनीतिक घटनाक्रम से यमन में शांति की उम्मीद और युद्ध ख़त्म होने के कयास लगा रहे हों लेकिन अगर हम हूती समूह की प्रतिक्रिया को देखे तो ऐसा साफ़-साफ़ नज़र नहीं आ रहा है। हूती समूह के मुख्य वार्ताकार मोहम्मद अब्दुलसलाम ने परिषद के गठन पर प्रतिक्रिया देते हुए हूती, हादी द्वारा परिषद की स्थापना को मज़ाक बताया और कहा की हूती उनके इस फैसले को नहीं मानते हैं। इसके अलावा उन्होंने कहा की यमन का भविष्य यमन से ही तय होगा। 

अब यमन में युद्ध समाप्त होगा या नहीं यह तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन हालिया समय में घटित हुए घटनाक्रम तो इसकी समाप्ति का ही संकेत दे रहे हैं

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