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झारखंड की 'वीआईपी' सीट जमशेदपुर पूर्वी : रघुवर को सरयू की चुनौती, गौरव तीसरा कोण

पिछली बार वर्ष 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में इस सीट पर 61.5 प्रतिशत वोट हासिल कर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के रघुवर दास ने जीत हासिल की थी।
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Image courtesy: Navbharat Times

झारखंड के जमशेदपुर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसी हफ्ते चुनावी रैली को संबोधित करने आए थे। उनकी रैली में भाग लेने वाले राजेश सिन्हा और श्यामा चरण प्रधान जमशेदपुर पूर्वी सीट के मतदाता हैं। दोनों ही लंबे समय से बीजेपी को वोट करते रहे हैं लेकिन जमशेदपुर पूर्वी सीट को लेकर इस बार कंफ्यूज हैं। वे कहते हैं, 'जमशेदपुर पूर्वी सीट से इस बार मुख्यमंत्री रघुवर दास अपनी ही पार्टी के नेता से फंस गए हैं। हालांकि जीत उनकी ही होगी क्योंकि वे बीजेपी के उम्मीदवार हैं लेकिन उन्होंने इस विधानसभा क्षेत्र के लिए कुछ किया नहीं है।'

वे आगे कहते हैं, 'इस इलाके के लिए ज्यादातर काम टाटा कंपनी द्वारा किया गया है। उसी काम को लेकर पिछले 25 साल से रघुवर दास जीत दर्ज कर रहे हैं लेकिन इस बार सरयू राय से उन्हें कड़ी टक्कर मिलेगी। इस विधानसभा सीट पर कोई जातीय समीकरण नहीं है। क्योंकि यहां बाहरी बड़ी संख्या में हैं। बंगाली, बिहारी, पंजाबी, तमिल सभी आपको मिल जाएंगे। हालांकि इस बार बिहारी, बंगाली जैसा बाहरी समाज रघुवर के खिलाफ वोट करेगा।'
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आपको बता दें कि जमशेदपुर पूर्वी सीट इस बार झारखंड के सबसे हॉट सीट मानी जा रही है। यहां झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास और बीजेपी से बागी बने सरयू राय के बीच मुख्य मुकाबला है। कांग्रेस और जेएमएम गठबंधन के उम्मीदवार और कांग्रेस प्रवक्ता गौरव वल्लभ भी यहाँ से मैदान में उतरकर मामले को त्रिकोणीय बना रहे हैं।

गौरतलब है कि झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास राज्य के पहले गैर-आदिवासी मुख्यमंत्री हैं। टाटा स्टील में भी काम कर चुके हैं। मुख्यमंत्री रघुवर दास ने जमशेदपुर से बीएससी की है। वह विधि के छात्र रहे हैं। टाटा स्टील के कर्मचारी से झारखंड के मुख्यमंत्री बनने तक का रघुवर दास का सियासी सफर बेहद दिलचस्प रहा है। 3 मई, 1955 को जमशेदपुर में जन्मे रघुवर दास कॉलेज के दिनों से ही वह राजनीति से जुड़े रहे हैं। वर्ष 1977 में जनता पार्टी के सदस्य बने।

1980 में बीजेपी की स्थापना के साथ ही वह सक्रिय राजनीति में आए। उन्होंने वर्ष 1995 में पहली बार जमशेदपुर पूर्व से विधानसभा का चुनाव लड़ा और विधायक बने। तब से लगातार पांचवीं बार (2014 विधानसभा चुनाव) उन्होंने इसी क्षेत्र से विधानसभा चुनाव जीता। वह झारखंड की पहली सरकार में श्रम मंत्री रहे। बाद की बीजेपी सरकारों में वह मंत्री पद संभालते रहे। 2014 से वह राज्य के मुख्यमंत्री हैं।
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उनके सामने उन्हीं के कैबिनेट के वरिष्ठ मंत्री सरयू राय हैं। सरयू राय को भ्रष्टाचार के कई मामलों को उजागर करने के लिए जाना जाता है। मुख्यमंत्री के सामने खड़ा होने पर सरयू राय को पार्टी ने विधिवत रूप से निलम्बित कर दिया है। वह निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में हैं। जानकारों का कहना है कि अमित शाह ने उनका टिकट न देने का फैसला किया था। हालांकि भारतीय जनता पार्टी के एक और सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने भी राय के समर्थन में ट्वीट कर उन्हें टिकट न देने पर आश्चर्य व्यक्त किया है। स्वामी ने प्रधानमंत्री को उन्हें अगला मुख्य मंत्री बनाने की भी अपील की है।

स्थानीय पत्रकारों का कहना है कि वर्तमान में झारखंड मुक्ति मोर्चा हो या आरजेडी के लालू यादव सबने अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को राय के समर्थन में काम करने का निर्देश दिया है। नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने उन्हें अपना खुला समर्थन दिया है।

जेपी आंदोलन में सक्रिय रहे सरयू राय ने अस्सी के दशक में पटना के चौराहों पर जेपी की मूर्ति लगाने के संघर्ष किया था। उसके बाद उन्होंने कोआपरेटिव माफियाओं के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। उस समय की कांग्रेस की सरकार को इस पर कार्रवाई करनी पड़ी। बाद में लालू की सरकार के दौरान उन्हें भ्रष्टाचार के कई मामलों का खुलासा करने के लिए जाना जाता है। कोर्ट से लेकर मीडिया में वह इसको लेकर सक्रिय रहे। चारा घोटाले के खुलासे को लेकर सरयू राय की भूमिका जगजाहिर है।

झारखंड अलग राज्य बनने के बाद वह 2005 में जमशेदपुर पश्चिमी सीट से विधायक बने। हालांकि भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी लड़ाई लगातार जारी रही। 2014 के शासनकाल में सरयू राय मंत्री तो बने लेकिन धीरे धीरे रघुवर दास ने उसे एक के बाद एक विभाग ले लिया और एक ऐसा समय आया जब राय ने मंत्रिमंडल की बैठक में भाग लेना ही बंद कर दिया जो उनके टिकट काटने में एक मुख्य आधार भी था।

इसी तरह तीसरे उम्मीदवार गौरव वल्लभ कांग्रेस के तेज-तर्रार प्रवक्ता हैं। 1977 में जन्मे गौरव मूल तौर पर जोधपुर के पीपाड़ गांव के रहने वाले हैं। कॉलेज की शिक्षा में वे गोल्ड मेडलिस्ट रहे, इसके अलावा वाद-विवाद जैसी प्रतियोगिताओं में भी गौरव को कोई पछाड़ नहीं पाता था। जमशेदपुर के एक्सएलआरआई कॉलेज में प्रोफेसर रह चुके गौरव की गजब की तर्कशक्ति और लोकप्रियता के चलते बिना राजनैतिक बैकग्राउंड के ही कांग्रेस पार्टी ने उन्हें अपना प्रवक्ता बना दिया।
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बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा से एक टीवी डिबेट में हुई उनकी मुठभेड़ में उन्हें रातोंरात इंटरनेट सेंसेशन बना दिया। एक हिंदी चैनल पर बहस के दौरान पात्रा पांच ट्रिलियन डॉलर की भारतीय अर्थव्यवस्था की बात कर रहे थे। इसी दौरान गौरव ने उनसे पूछ लिया कि एक ट्रिलियन में कितने शून्य होते हैं। पात्रा ने इसपर गोलमोल जबाव देते हुए अंग्रेजी में कहा कि ये सवाल राहुल गांधी से पूछा जाना चाहिए। सितंबर 2019 को एयर हुआ ये वीडियो तुरंत ही इंटरनेट पर छा गया था।

गौरव की आर्थिक मामलों पर भी मजबूत पकड़ है। वे मधु कोड़ा के मुख्यमंत्री रहने के दौरान भी झारखंड सरकार के वित्त सलाहकार रह चुके हैं। हालांकि चुनावी मैदान में सीधे उतरने का उनका ये पहला मौका है। इसमें चुनावी फंड जुटाने के लिए गौरव क्राउंड फंडिंग की भी मदद ले रहे हैं।

आपको बता दें कि जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या तीन लाख है। इसमें एक लाख 56 हजार 490 पुरुष और एक लाख 43 हजार 981 महिला मतदाता शामिल हैं। नए वोटर्स की भी तादात काफी अच्छी है। जमशेदपुर एक औद्योगिक नगर है। हजारों कर्मचारी यहां अलग-अलग फैक्ट्रियों में काम करते हैं। ऐसा में ये माना जाता है कि इन्हीं का वोट डिसाइडिंग होता है। यहां के करीब 40 फीसदी मतदाता कई कंपनियों से जुड़े हैं। इस सीट पर 100 फीसदी आबादी शहरी है। यहां कुल मतदाताओं में से 15.60 फीसदी अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखते हैं और सिर्फ 0.61 फीसदी मतदाता अनुसूचित जनजाति के हैं।

हालांकि बड़े नामों वाले जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा में ज्यादातर लोग मुद्दों पर बात नहीं कर रहे थे। उनके हिसाब से महंगाई, बेरोजगारी चुनावी मुद्दा नहीं है। हालांकि अपने किसी निजी काम को लेकर रघुवर दास या सरयू राय से मुलाकात करने का जिक्र वो जरूर कर रहे थे।

जमशेदपुर पूर्वी के साकची इलाके में पान की दुकान चलाने वाले सूरज कुमार दोनों प्रमुख प्रत्याशियों की तुलना करते हुए बताते हैं, 'अपने किसी भी काम को लेकर रघुवर दास से मिलना मुश्किल है। अगर आप मिल भी लिए तो शायद ही रघुवर दास आपकी बात ध्यान से सुने लेकिन सरयू राय हमेशा उपलब्ध रहते हैं। वह सभी से मुलाकात करते हैं और आपका काम करवाने की कोशिश करते हैं।'

वो आगे कहते हैं, 'हालांकि मुकाबला कठिन है। सरयू राय के पास बीजेपी जैसा संगठन नहीं है। पैसा नहीं है। सक्रिय कार्यकर्ता नहीं है। लेकिन उनके साथ जनता की सहानुभूति है। झुग्गी झोपड़ी वाले इलाकों में वह लोकप्रिय है। जहां तक बात गौरव वल्लभ की है तो चर्चा लोग कम कर रहे हैं। वह यहां भी बस टीवी में लोकप्रिय है।'

कुछ ऐसा ही कहना बिरसानगर के राकेश दास का है। एक फैक्टरी में सुपरवाइजर की नौकरी करने वाले राकेश दास कहते हैं, 'गौरव वल्लभ को ज्यादातर लोग ट्रिलियन वाले प्रत्याशी के रूप में ही याद रखते हैं। वह अच्छे उम्मीदवार हैं लेकिन मुकाबले में नहीं हैं। यहां तक उन्हें झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकर्ता सही से सपोर्ट नहीं कर रहे हैं। यहां पर मुख्य विपक्षी उम्मीदवार सरयू राय ही हैं। रघुवर दास ने इस विधानसभा के लिए कुछ खास नहीं किया है लेकिन पिछले 25 सालों से वह यहां से जीत रहे हैं तो सिर्फ इसलिए कि वह बीजेपी के उम्मीदवार हैं। और इतने दिनों में उनका एक नेटवर्क यहां बन गया है। हालांकि इस बार उनके खिलाफ यहां एंटी इनकंबेंसी भी है।'

आपको बता दें कि पिछली बार वर्ष 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में इस सीट पर 61.5 प्रतिशत वोट हासिल कर बीजेपी के रघुवर दास ने जीत हासिल की थी। पिछले विधानसभा चुनाव  में जमशेदपुर पूर्व सीट पर कांग्रेस का उम्मीदवार दूसरे, झारखंड विकास मोर्चा का प्रत्याशी तीसरे, झारखंड मुक्ति मोर्चा का उम्मीदवार चौथे तथा निर्दलीय प्रत्याशी पांचवें स्थान पर रहे थे। पिछले चुनाव में इस सीट के मतदाताओं में से 1,674, यानी 1.0 फीसदी ने नोटा यानी 'इनमें से कोई नहीं' का विकल्प चुना था।

उससे पहले, वर्ष 2009 के विधानसभा चुनाव में भी इस सीट पर बीजेपी के रघुवर दास ने ही जीत हासिल की थी, जबकि दूसरे, तीसरे, चौथे और पांचवें स्थान पर क्रमशः झारखंड विकास मोर्चा, निर्दलीय, झारखंड मुक्ति मोर्चा और निर्दलीय प्रत्याशी रहे थे। वर्ष 2005 के विधानसभा चुनाव में भी इस सीट पर बीजेपी के रघुवर दास ने ही जीत हासिल की थी, जबकि दूसरे, तीसरे, चौथे स्थान पर क्रमशः कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल, समाजवादी पार्ट के उम्मीदवार रहे थे।

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