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किसान महासभा, खेग्रामस और मनरेगा मज़दूरों ने घरों पर रहकर ही किया राष्ट्रव्यापी विरोध

बिहार सहित कई राज्यों में अपने घरों में रहकर किसानों, खेत मज़दूरों और मनरेगा मज़दूर ने एकदिवसीय धरना दिया। यह धरना हर गांव में फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकारी खरीद की गारंटी करने; प्राकृतिक आपदा, आगजनी और लॉकडाउन से बर्बाद फसलों का 25 हजार रु. प्रति एकड़ मुआवजा देने समेत कई मांगों को लेकर था।
किसान महासभा

लॉक डाउन  में किसानों खेतिहर मज़दूरो और मनरेगा मज़दूरों की हो रही लगातार उपेक्षा के खिलाफ सोमवार को राष्ट्रव्यापी विरोध किया गया। इस विरोध प्रदर्शन का आवाह्न अखिल भारतीय किसान महासभा और अखिल भारतीय खेत एवं ग्रामीण मज़दूर सभा (खेग्रामस) व मनरेगा मज़दूर सभा के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। इसके तहत बिहार सहित कई राज्यों में अपने घरों में रहकर किसानों, खेत मज़दूरों और मनरेगा मज़दूर ने एकदिवसीय धरना दिया। इसके साथ ही मज़दूरों ने अपनी मांगों से सम्बंधित नारे भी लगाए।

लॉकडाउन के बाद से ही देश की अर्थव्यवथा चरमरा गई है और इसका व्यापक असर ग्रमीण अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा हैं। इसके साथ ही कुदरती आफत ने भी किसानों और खेतिहर मज़दूरों पर दोहरी मार की है।  पिछले दिनों लगातार कई राज्यों में भारी वर्षा, ओलावृष्टि और बिजली गिरने की खबरे आई हैं। जिससे किसानों की खड़ी रबी की फसलें बर्बाद हो गई है। इसके साथ लॉकडाउन में काम न मिलने से खेतिहर मज़दूर और मनरेगा मज़दूरों जिसमें अधिकतर भूमिहीन लोग हैं, जो दिहाड़ी पर काम करते हैं, उनके सामने भी भोजन का संकट खड़ा हो गया हैं। हालंकि सरकारों ने कहा है कि वो इनकी मदद कर रही है लेकिन अभी तक सरकारी मदद नाकाफी ही रही है।

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अखिल भारतीय किसान महासभा के नेताओ ने  कहा कि यह धरना हर गांव में फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकारी खरीद की गारंटी करने; प्राकृतिक आपदा, आगजनी और लॉकडाउन से बर्बाद फसलों का 25 हजार रु. प्रति एकड़ मुआवजा देने; बिजली के निजीकरण की मुहिम पर तत्काल रोक लगाने;  कोरोना, लॉकडाउन में भूख व पुलिस दमन से हुई मौतों पर 20 लाख रुपया मुआवजा देने; नफरत नहीं भाईचारा को मजबूत करने; कोरोना को पराजित करने; जिला स्तर पर कोरोना की नि: शुल्क जांच व इलाज, आईसीयू वार्ड व वैंटिलेटर का प्रबन्ध करने आदि मांगों को लेकर है।

इसी तरह खेग्रामस और मनरेगा मज़दूर महासभा के नेताओ ने कहा है कि कोरोना लॉकडाउन ने ग्रामीण गरीबों-मज़दूरों को भुखमरी के कगार पर धकेल दिया है, वहीं मनरेगा मज़दूरों से न्यूनतम से भी कम मज़दूरी पर काम लेने का सरकारी आदेश निर्गत है। उन्होंने मांग की 10 हजार रुपये गुजारा भत्ता,  सभी मजदूरों को 3 महीना का राशन व दैनिक मजदूरी 500 रुपये करने की गारंटी सरकार अविलम्ब करे।

अखिल भारतीय किसान महासभा के महासचिव व पूर्व विधायक राजाराम सिंह ने बताया कि पूरे बिहार में लगभग सौ केंद्रों पर यह  कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें हजारों किसानों ने तख्तियों के साथ धरना दिया और ईमेल के जरिये अपनी मांग प्रधानमंत्री तक पहुंचाने की कोशिश की है। उन्होंने  उम्मीद जताई कि  सरकार इनकी इन मांगों पर अविलम्ब कार्रवाई करेगी और किसानों को राहत देगी।
 
मज़दूर नेताओं ने कहा है कि राशन में महज़ चावल-गेहूं दिया जा रहा है जबकि भोजन के अन्य जरूरी सामान खरीदने की स्थिति में एक बड़ी आबादी नहीं है। उन्होंने कहा कि सभी गरीबों-मज़दूरों को तीन महीने का राशन और प्रति परिवार 10 हज़ार रुपये गुजारा भत्ता मिलना चाहिए। मनरेगा को कोरोना राहत अभियान सहित तमाम कृषि कार्यों से जोड़ना चाहिए और उन्हें 500 रुपये दैनिक मज़दूरी और 200 दिन काम मिलना चाहिए।

इस महामारी के समय में भारत सरकार के रवैया को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। जैसे कई जगह से ख़बरें आ रही हैं कि मज़दूर भोजन न मिलने पर आत्महत्या कर रहे हैं। इस तरह की घटनायें सरकार के दावों की पोल खोलती हैं।

सरकार के रवैये से नाराज़ वामपंथी पार्टी सी.पी.एम. के जन-संगठनों के द्वारा संयुक्त रूप से मंगलवार, 21 अप्रैल को देशव्यापी विरोध किया था। उनका कहना था कि "जनता को भाषण नहीं, राशन और वेतन चाहिए।" इसके साथ ही  किसान और मज़दूर संगठनों ने  किसानों को राहत देने और ग्रामीण मज़दूरों के लिए भी आर्थिक मदद करने की अपील की थी।

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