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बुंदेलखंड में LIC के नाम पर घोटाला, अपने पैसों के लिए भटक रहे हैं ग्रामीण

एलआईसी एजेंट गिरोह द्वारा हजारों लोगों का बीमा किया गया और उस बीमा को बिना ग्राहक की अनुमति के बीच में ही लोन में बदल दिया गया। इस तरह यह काम बांदा जिले में एलआईसी के अंतर्गत लम्बे समय से हो रहा है। एलआईसी ग्राहकों का अभी तक अनुमानित सौ करोड़ का नुकसान हो चुका है।
LIC

भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) के बांदा स्थित अतर्रा शाखा में घोटाले का एक बड़ा मामला सामने आया है। एलआईसी एजेंट के गिरोह ने बांदा जिले में ऐसे गरीब मजदूरों और किसानों को बीमा के बहाने अपना शिकार बनाया है जिन्होंने बुंदेलखंड की सूखी धरती को अपने पसीनों से सींच-सींच कर उपजाऊ बनाया और पाई-पाई बचा कर भविष्य के लिए जमा किया था, लेकिन जब वे एलआईसी अतर्रा शाखा में पैसा निकालने पाहुँचे तो उनके हाथ में कुछ नहीं आया।

अतर्रा निवासी राम पाल ने अपनी आपबीती सुनाते हुए हमें बताया, "मुझे बाइस साल पहले एक बेटी हुई। एक एजेंट घर आया बोला आपकी बेटी अभी छोटी है, एलआईसी में बीस साल का एक बीमा करा लो, बेटी जब बड़ी होगी शादी के समय तक डेढ़ लाख रुपया मिल जाएगा। हम इसी उम्मीद में अपनी मज़दूरी से कुछ पैसा बचाकर बीमा एजेंट को देते रहे, लेकिन जब बेटी की शादी का समय आया तो खाते में एक भी पैसा नहीं है। मेरी बेटी की शादी कैसे होगी हमेशा यही चिंता बनी रहती है।"

राम पाल अकेले नहीं हैं, बल्कि बांदा जिले में लोगों की एक बड़ी संख्या इस घोटाले का शिकार हो चुकी है। कई बीमाधारकों ने एलआईसी में शिकायत भी दर्ज कराई, लेकिन आज तक कोई सुनवाई नहीं हुई। हमने बांदा जिले के कई बीमा धारकों से बात की, बीमा धारक एजेंट गिरोह से पूरी तरह भयभीत नज़र आए। इतना ही नहीं जब हमने पड़ताल की तो पता चला एलआईसी का यह घोटाला पिछले बीसों सालों से लगातार चल रहा है, लेकिन एलआईसी ने अभी तक इस दिशा में कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया है।

राम पाल (56) मज़दूर हैं। छः लोगों का परिवार है। परिवार में कमाने वाले सिर्फ राम पाल हैं। मिट्टी का घर है और खेत के नाम पर सिर्फ दो बीघा जमीन है। राम पाल की प्रतिदिन की कमाई औसतन सौ रुपये से कम है। राम पाल के अनुसार वे बेटी की शादी के लिए एक बीमा पॉलिसी में लगभग दस वर्षों तक पैसा जमा करते रहे लेकिन सात साल बाद भारतीय जीवन बीमा निगम, अतर्रा शाखा से जुड़े एजेंट मोहन लाल शर्मा ने रसीद देना बंद कर दिया लेकिन क़िस्त का पैसा लेता रहा। एजेंट ने कुछ समय बाद उसी बीमा पॉलिसी पर पार्टी (राम पाल) को बिना सूचित किए लोन ले लिया।

बांदा जिले में सैकड़ों परिवारों के साथ इसी तरह का मामला सामने आया है। जब हमने अतर्रा एलआईसी के अंतर्गत बीमा धारक की पॉलिसी पर बिना सूचित किये एजेंट द्वारा लोन लेने की प्रवृत्ति की तह तक जाने की कोशिश की तो पता चला पिछले बीस वर्षों से अनवरत चल रहे इस भ्रष्टाचार में अबतक सैकड़ों परिवार फंस चुके हैं।

मुझे बांदा जिले के कई गांवों में ऐसे गरीब, दलित और पिछड़े परिवार मिले जिन्होंने अतर्रा एलआईसी ब्रांच से बीमा कराया था, लेकिन जब वे बीमा पॉलिसी पूरा होने पर अतर्रा ब्रांच पहुंचे तो उन्हें पता चला कि उनकी बीमा पॉलिसी पर लोन हो चुका है और अबतक उन्होंने जो पैसा जमा किया वह भी बीमा का ब्याज भरते-भरते शून्य हो चुका है।

एजेंट मोहन लाल शर्मा की धोखाधड़ी का शिकार हुई सुदामा राजपूत (46) पिछले कई महीनों से अपनी बीमा पॉलिसी की जानकारी लेने के लिए एलआईसी की अतर्रा शाखा में चक्कर लगा रही हैं, लेकिन चारों ओर से निराशा ही हाथ लग रही है।

सुदामा बताती हैं कि "अट्ठारह साल पहले एजेंट मोहन लाल शर्मा गांव के प्रधान को लेकर घर आया और बोला कि बीमा करवा लो। हमने बीस साल का एक बीमा करा लिया। हमने अपने बीमा पॉलिसी में दस क़िस्त जमा किया, मोहन लाल ने हमें सात क़िस्त की रसीद दिया लेकिन बाकी क़िस्त की रसीद नहीं दिया। एक दिन मोहन लाल आया पॉलिसी बांड भी ले गया और बोला कि पॉलिसी बांड ऑफिस में जमा रहेगा और मूलधन से तुम्हारा बीमा चलता रहेगा।"

सुदामा आगे बताती हैं कि "हमने पॉलिसी बांड वाला कागज मोहन लाल को दे दिया, मुझे बीमा क्षेत्र के बारे में कोई जानकारी नहीं इसलिए मैं समझ नहीं पाई कि कौन कागज जरूरी है और कौन गैर-जरूरी। बिना हमारी जानकारी के मोहन लाल ने हमारे बीमे पर लोन करा दिया। अब हमारे खाते में एक रुपये नहीं है। जब हमने एक रुपये लोन नहीं लिया, दस्तखत नहीं किया, ऑफिस तक नहीं गए,  फिर बिना हमारी अनुमति के लोन कैसे हो गया?"

सुदामा को इस पॉलिसी के पूरा होने के बाद डेढ़ से दो लाख रुपये मिलना था, लेकिन अब उनके हाथ एक रुपये नहीं आने वाला। बल्कि मूलधन भी जीरो हो गया। इसी तरह अन्य कई एलआईसी ग्राहकों को भी एक से दो लाख तक का नुकसान उठाना पड़ रहा है।

ग्राहकों की मानें तो एजेंट मोहन लाल शर्मा किसी ग्राहक का बीमा करने के बाद उस बीमा पॉलिसी को सात से आठ साल तक चलने देता है। बीस साल के बीमा पॉलिसी में लगभग सात साल तक हर क़िस्त की रसीद देता है लेकिन उसके बाद पैसा लेता रहता है जबकि रसीद नहीं देता है। यानी एलआईसी में क़िस्त का पैसा नहीं जमा करता है। इस स्थिति में एलआईसी में टेक्निकली बीमा रुक जता है। तीन से चार साल बाद एजेंट उसी बीमा पर बिना एलआईसी ग्राहकों की अनुमति के भ्रमित कर लोन ले लेता है। एलआईसी, एजेंट की क्रेडिट पर बिना पार्टी से मिले दोबारा उस बीमा को जारी कर देता है।

भारतीय जीवन बीमा निगम, अतर्रा के अंतर्गत ग्रामीण ग्राहकों के साथ करोड़ों रुपयों की धोखाधड़ी का मामला सामने आने के बाद कुछ लोगों ने एलआईसी के उच्चाधिकारियों से शिकायत भी की है, लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। अतर्रा तहसील के अंतर्गत आने वाले ग्राहकों की मानें तो इसी तरह एलआईसी अतर्रा शाखा के एजेंट गिरोह द्वारा उनके कई सगे-संबंधियों को भी धोखाधड़ी में फंसाया जा चुका है। हालांकि हमने ऐसे पांच बीमा धारकों से सम्पर्क किया जो धोखाधड़ी का शिकार हो चुके हैं और एक लाख से दो लाख तक की हानि उठा चुके हैं।

बीमा एजेंट का जालसाज गिरोह?

जालसान एजेंटों का यह गिरोह बांदा से लेकर चित्रकूट तक सक्रिय है। इस गिरोह की मुख्य भूमिका में मोहन लाल शर्मा और उसके बेटे मनोज कुमार शर्मा का नाम प्रमुखता से सामने आता है। मोहन लाल शर्मा पिछले बीस वर्षों से अधिक समय से अतर्रा ब्रांच के अंतर्गत बतौर एजेंट सक्रिय है। मोहन लाल शर्मा के अन्य कई सगे-सम्बन्धी वर्तमान समय में एलआईसी की अतर्रा शाखा में विभिन्न भूमिका में सक्रिय हैं। सूत्रों की मानें तो अभी तक मोहन लाल लगभग पांच से दस हजार ग्राहकों का बीमा कर चुका है और अधिकांश बीमा पॉलिसी पर लोन कर चुका है। अधिकांश ग्राहक ठगी का शिकार हो चुके हैं।

हमने एलआईसी में आरटीआई के मध्यम से एजेंट मोहन लाल शर्मा, मनोज शर्मा और अन्य पदाधिकारियों से सम्बंधित जानकारी मांगी, लेकिन एलआईसी ने रिपोर्टर से सम्बंधित जानकारी नहीं होने की बात करते हुए आरटीआई के कुल छः सवालों का जवाब देने से इनकार कर दिया।

ब्रांच के अधिकारियों के अनुसार मोहन लाल शर्मा के परिवार का एलआईसी अतर्रा ब्रांच में पूरी तरह कब्जा हो चुका है। मुझसे एलआईसी अतर्रा शाखा के कई पदादिकरियों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि मोहन लाल जब चाहता है तमाम गैर कानूनी काम जबरदस्ती करवा लेता है और पदाधिकारियों के साथ गाली-गलौज करता है या जान से मारने की धमकी भी देता है। वहीं स्थानीय सूत्रों की मानें तो एलआईसी में एजेंट बनने के बाद मोहन लाल शर्मा के परिवार की संपत्ति में अप्रत्याशित रूप से वृद्धि भी देखने को मिलती है।

मोहन लाल गिरोह द्वारा बीमा करने की प्रवृत्ति को देखकर लगता है कि मोहन लाल का शिकार मुख्यतः गरीब, किसान, दलित, मज़दूर, पिछड़े या सरकारी नौकरी से रिटायर्ड कर्मचारी रहे हैं।

एलआईसी अतर्रा ब्रांच के एक अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि "मोहन लाल शर्मा गिरोह द्वारा हजारों लोगों का बीमा किया गया और उस बीमा को बीच में ही लोन में बदल दिया गया। इस तरह यह काम इस ब्रांच में लम्बे समय से हो रहा है। इसके अलावा अन्य तमाम तरीके से आम जनता को गुमराह कर मोहन लाल का गिरोह पैसे ऐंठ रहा है। यदि जांच हो तो इसमें एलआईसी के उच्च अधिकारी भी सवाल के घेरे में आएंगे और आम जनता का अभी तक लगभग पचास से सौ करोड़ का नुकसान सामने आ सकता है।"

बांदा जिले में नरैनी निवासी श्रीराम सिंह (61) किसान हैं। आठ लोगों का परिवार है। अट्ठारह साल पहले एजेंट मोहन लाल शर्मा ने बीमा किया था। श्रीराम ने दस वर्षों तक प्रतिवर्ष लगभग पांच-पांच हजार रुपये जमा किया। बीमाधारक श्रीराम को एजेंट मोहन लाल ने आठ रसीद दी, लेकिन दो रसीद नहीं दी और झांसा देकर पॉलिसी बांड भी ले गया।

श्रीराम बताते हैं कि "मुझे दस की जगह आठ रसीद मिली, बीच में मोहन लाल पॉलिसी बांड ले गया। खाली कागज पर दस्तखत करवा लेता था। एक दो बार बीमा की जानकारी लेने गया लेकिन झूठ बोलता रहा कि आपका बीमा चल रहा है। जब हमने दूसरे एजेंट से स्टेटस कागज निकालवाया तो पता चला हमारे बीमा पर लोन ले लिया गया है। यह लोन मेरी जकनकारी के बिना लिया गया। लोन न जमा करने के कारण मूलधन जीरो हो गया।"

ग्रामीणों को कैसे शिकार बनाता है गिरोह?

एलआईसी एजेंटों के इस गिरोह में लगभग लोग स्थानीय हैं। स्थानीय निवासी होने के कारण आम जनता के बीच पहचान बनाने और विश्वास कायम करने में यह गिरोह आसानी से सफल हो जाता है। ग्रामीणों के पास जाकर यह गिरोह भविष्य में अधिक मुनाफा दिलाने की बात करता है और कम समय में अमीर बनाने का सपना दिखाता है। ग्रामीण अपनी कमाई का कुछ हिस्सा बचाकर भविष्य में आने वाली कठनाइयों से लड़ने के लिए एलआईसी की पॉलिसी में जमा करते रहे, लेकिन जब उनके सामने कठिनाइयां आईं तो उन्हें पता चला कि वर्षों तक जो पैसा जमा करते रहे उसका कोई लाभ नहीं है। जबकि मूल राशि भी शून्य हो चुकी है।

एक अन्य एलआईसी ग्राहक कामता प्रसाद के बेटे से हमने बात की। कामता प्रसाद राजपूत ने मोहन लाल शर्मा के बेटे मनोज शर्मा के माध्यम से एलआईसी की अतर्रा शाखा में बीमा कराया था। कामता प्रसाद ने 2010 में एजेंट मनोज शर्मा पर आरोप लगाते हुए एलआईसी में शिकायत की थी कि उनके बीमा के पैसे को मनोज शर्मा ने दूसरे के नाम हस्तांतरण कर दिया। कामता प्रसाद के पत्र का संज्ञान लेते हुए एलआईसी ने मनोज शर्मा को बर्खास्त किया। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चार साल बाद प्रक्रिया में कमी बताते हुए, प्रक्रिया को पूरा करने का आदेश विभाग को यह कहते हुए दिया कि तीन माह के अंदर इस प्रक्रिया को न्यायिक रूप से पूरा कर न्यायालय को अवगत कराया जाए।

एलआईसी द्वारा तीन महीने के वेटिंग पीरियड में कोई जांच प्रक्रिया शुरू नहीं की गई और तीन माह पश्चात सारे हित लाभों के साथ एजेंट मनोज शर्मा को बहाल कर दिया गया। बीमाधारक कामता प्रसाद 2021 में दोबारा एलआईसी पर आरोप लगाते हुए लिखते हैं कि "मेरे ही पत्र का संज्ञान लेते हुए भारतीय जीवन बीमा निगम ने मनोज शर्मा को बर्खास्त किया। हाईकोर्ट ने एलआईसी को जांच प्रक्रिया दुरुस्त कर तीन महीने के अंदर अवगत कराने का आदेश दिया। लेकिन एलआईसी द्वारा अभिकर्ता से साठगांठ कर तीन महीने का समय गुजर जाने दिया और कोई जांच प्रक्रिया शुरू नहीं की गई और दोबारा मनोज शर्मा को बहाल कर दिया गया।"

हाल ही में एलआईसी अतर्रा शाखा प्रबंधक द्वारा एजेंट मनोज शर्मा को एक बार फिर अनियमितता और भ्रष्टाचार में संलिप्त पाए जाने के कारण निलंबित कर दिया। उच्च न्यायालय में मामला जाने के बाद न्यायालय ने शाखा प्रबंधक को एजेंट को निलंबित करने के लिए सक्षम अधिकारी नहीं माना है। जबकि न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि मण्डल प्रबंधक यदि उचित समझते हैं तो नया आदेश जारी कर सकते हैं।

मण्डल अधिकारी द्वारा एजेंट मनोज शर्मा पर लगे आरोपों की जांच किये बिना भ्रष्टाचार के सभी मामले समाप्त कर दोबारा नियुक्त कर दिया गया। हमने इस संदर्भ में एलआईसी अतर्रा शाखा प्रबंधक मयंक खरे से बात की। लेकिन उन्होंने इस सन्दर्भ में कुछ भी कहने से इंकार कर दिया।

हमने आरोपी मनोज कुमार शर्मा से बात की। मनोज शर्मा ने अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को बेबुनियाद बताते हुए शाखा प्रबंधक को भ्रष्टाचार में संलिप्त बताया। शर्मा ने इस मामले में रिपोर्टर का हित जुड़ा होने का भी आरोप लगाया।

भारतीय जीवन बीमा निगम द्वारा मण्डल अधिकारियों के दिये गए आधिकारिक नम्बर पर हमने कई बार सम्पर्क करने की कोशिश की, लेकिन सम्पर्क नहीं हो सका।

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।

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