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दिल्ली : भूमि अधिकार आंदोलन ने किया जबरन भूमि अधिग्रहण के ख़िलाफ़ 10 दिसंबर को विरोध प्रदर्शन का ऐलान

देश के अलग-अलग राज्यों में केंद्र सरकार द्वारा बड़े स्तर पर भूमि और वन हड़पने के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए बना एक सांझा मंच भूमि अधिकार आंदोलन (बीएए) का चौथा राष्ट्रीय सम्मेलन 26 और 27 सितंबर को दिल्ली में हुआ।
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देश के अलग-अलग राज्यों में केंद्र सरकार द्वारा बड़े स्तर पर भूमि और वन हड़पने के खिलाफ लड़ने के लिए बना एक सांझा मंच भूमि अधिकार आंदोलन (बीएए) का चौथा राष्ट्रीय सम्मेलन 26 और 27 सितंबर को दिल्ली में हुआ। जिसमें 20 राज्यों के 70 संगठनों के 200 से अधिक नेता और कार्यकर्ता पहुंचे थे। सम्मेलन के बाद नेताओं ने ऐलान किया कि केंद्र के भूमि अधिग्रहण के असंवैधानिक तरीकों के खिलाफ़ 10 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के मौके पर राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन किया जाएगा।

इस सम्मलेन मे मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, ओडिशा, झारखंड, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, दिल्ली, केरल, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, असम, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और पंजाब से लोग आए थे।

बीएए  के चौथे राष्ट्रीय सम्मेलन में देश के विभिन्न राज्यों में सरकार और कॉरपोरेट्स द्वारा भूमि हथियाने के खिलाफ लड़ने वाले जन आंदोलनों के प्रतिनिधियों और कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। डॉ. हन्नान मोल्ला, मेधा पाटकर, उल्का महाजन, प्रफुल्ल सामंत्रे, दयामणि बारला, डॉ. सुनीलम, डॉ अशोक धवले, अरविंद अंजुम, माधुरी, रोमा मलिक, सत्यवान, विजू कृष्णन अन्य लोगों के साथ भूमि और वन अधिकारों के लिए संघर्ष को तेज करने के लिए एक साथ आए।

भूमि अधिकार आंदोलन की रिसर्च विंग ने देश भर में हो रही ऐसी लूट के 80 मामलों का संकलन किया है जहां कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किए बिना उनके सारे संसाधन ले लिए जा रहे हैं। सम्मलेन ने पूरे देश में पूँजीपतियों  के खिलाफ एक गहन अभियान और संघर्ष का आह्वान किया, जिन्होंने स्थानीय लोगों से जबरन जमीन हड़प ली है और पानी, जंगल, जमीन और खनिज जैसे सदियों से जनता के पास रहे सार्वजनिक संसाधनों को छीन लिया है।

बीएए के बारे मे कहते हुए ऑल इंडिया किसान सभा के महासचिव हन्नान मोल्लाह ने कहा, "इसका 2015 में  गठन किया गया था और इसने शुरुआत ही एक विजयी संघर्ष का नेतृत्व के साथ किया था। जिससे मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार को किसान विरोधी और कॉर्पोरेट-समर्थक भूमि अधिग्रहण अध्यादेश वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा। जबरदस्त विरोध के कारण तब केंद्र सरकार को पीछे हटना पड़ा था और वह 2013 के कानून में बदलाव नहीं कर सके थे । संगठन का उद्देश्य मूल रूप से जल जंगल और जमीन का संरक्षण है।"

बीएए अपने गठन के साथ ही ऐसे तमाम स्थानीय संघर्षों और प्रतिरोधों के साथ एकजुटता प्रदर्शित करता आया है। इन 80 स्थानों पर चल रहे प्रतिरोधों के साथ सम्‍मेलन ने एकजुटता ज़ाहिर की और इन संघर्षों को साथ आने का आह्वान किया।

इस सम्‍मेलन में  प्रतिनिधियों ने जनपक्षीय कानूनों के खिलाफ़ मौजूदा भाजपा सरकार की असंवेदनशील ढंग से चलाई जा रही मुहिम के खिलाफ़ चिंता ज़ाहिर की और ऐसे कानूनों को जो नागरिक को उसकी गरिमा और इज्‍जत से जीने के मौलिक अधिकार को संरक्षित करते हैं, बचाने के लिए अपनी प्रतिबद्धता ज़ाहिर की। सम्‍मेलन ने यह संकल्प लिया कि ऐसे किसी कानूनों में कोर्पोरेट्स के मुनाफे के लिए लाए जा रहे बदलावों के खिलाफ़ व्यापक और लंबा संघर्ष चलाने की तैयारी की जाएगी।

बीएए ने भारत सरकार जिस तरह से संघीय ढाँचे के खिलाफ़ जाकर राज्यों के अधिकार क्षेत्रों में दखल देते हुए राज्यों के अधीन विषयों, मसलन ज़मीन और खनिज, नदियों, जैव विविधतता और जंगलों पर एकतरफा कानून बनाकर समुदायों की परंपरागत आजीविका के संसाधनों को हडपने की कोशिश कर रही है उसकी मुखालफत इस सम्‍मेलन में की गयी और ऐसी किसी भी कोशिश के खिलाफ़ मुखर जन संघर्ष करने के प्रति प्रतिबद्धता ज़ाहिर की गयी।

बीएए ने कहा कि "वह देश की मौजूदा साम्प्रादायिक, कोर्पोरेटपरस्त फासिस्ट सरकार के खिलाफ़ पूरे देश में जन जागरूकता के कार्यक्रम लेते हुए" अभियान चलाएगा। स्थानीय स्तर से लेकर प्रादेशिक और राष्ट्रीय स्तर तक जनवादी, प्रगतिशील ताकतों को लामबंद करते हुए आंदोलन ने देश और संविधान बचाने के लिए प्रतिबद्धता प्रदर्शित की।

सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए, हन्नान मोल्ला ने कहा, "इस देश के आदिवासियों, किसानों, दलितों और श्रमिकों के अधिकारों पर लगातार चौतरफा हमला हो रहा है। एसकेएम के नेतृत्व में किसान संगठनों द्वारा किए गए लंबे संघर्ष के बाद, सरकार तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिए मजबूर किया गया था। अब हमारी भूमि, जंगलों और प्राकृतिक संसाधनों पर लोगों के अधिकारों को बचाने के लिए ऐसी एकता की आवश्यकता है। आने वाले दिनों में बीएए इसके लिए अपने संघर्ष को तेज करेगा।"

उल्का महाजन ने कहा “यदि आप भारत के नक्शे पर पांच राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारों के तहत भूमि अधिग्रहण से खतरे वाले क्षेत्र को स्थानांतरित करते हैं, तो इस देश के लोगों के लिए शायद ही कुछ बचेगा। देश कारपोरेटों को बेचा जा रहा है और देश की 43 प्रतिशत से अधिक भूमि पर कार्पोरेटों द्वारा भूमि हड़पने का खतरा है।"

मेधा पाटकर ने कहा, "कॉर्पोरेट मुनाफाखोरी ने न केवल जमीन और जंगलों पर कब्जा कर लिया है बल्कि पूरी दुनिया में जलवायु को भी प्रभावित किया है।"

माधुरी ने कहा, "वन संरक्षण नियमों में प्रस्तावित परिवर्तन वन अधिकार अधिनियम, 2006 का उल्लंघन करते हैं, क्योंकि यह एफआरए की भावना को कमजोर करता है। ये परिवर्तन आदिवासी समुदायों के खिलाफ ऐतिहासिक अन्याय को दूर करने के लंबे संघर्ष पर हमला करने का प्रयास करते हैं।”

अशोक चौधरी ने कहा, "निहित स्वार्थों के कड़े विरोध के बावजूद वन अधिकार अधिनियम पारित किया गया था। इसने वन भूमि और आदिवासियों से संबंधित सभी पुराने कानूनों को हटा दिया। लेकिन अब भी भाजपा शासन द्वारा इस पर हमला किया जा रहा है। इस हमले को खारिज किया जाना चाहिए। ।"

सम्मेलन का समापन करते हुए, डॉ अशोक धवले ने कहा, "तेलंगाना संघर्ष भारत के इतिहास में सबसे बड़ा और सबसे उग्र भूमि संघर्ष था। वह सामंतवाद के खिलाफ था। जबकि सामंतवाद के खिलाफ संघर्ष जारी है, कॉर्पोरेट भूमि हड़पने और भूमि अधिकारों के लिए संघर्ष जारी है। आदिवासियों की संख्या अब तेज हो गई है। मनुवादी कॉरपोरेट सांप्रदायिकता के खिलाफ लड़ाई को कई गुना मजबूत किया जाना चाहिए।"

इस सम्‍मेलन में निम्नलिखित प्रस्ताव पारित किए गए:

1. भूमि अधिकार आंदोलन वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के नियमों में किए गए परिवर्तनों की निंदा करता है। बीएए  परिवर्तनों को आदिवासी समुदायों और अन्य पारंपरिक समुदायों की गरिमा और आजीविका के खिलाफ मानता है और इसे भारत की संसद द्वारा पारित एक प्रगतिशील ऐतिहासिक कानून, वन अधिकार अधिनियम, 2006 की भावना के साथ खेलने के रूप में देखता है। बीएए से जुड़े सभी राज्यों के जन संगठन इन नियमों के खिलाफ ग्राम सभाओं से बड़े पैमाने पर प्रस्ताव पारित करेंगे।

2. बीएए मोदी सरकार के मालिक अदानी द्वारा कोयले पर एकाधिकार स्थापित करने के लिए मध्य भारत के फेफड़े कहे जाने वाले हसदेव अरण्य, छत्तीसगढ़ जैसे समृद्ध जंगलों के विनाश का कड़ा विरोध करता है। स्थानीय समुदायों को आश्वासन देने के बाद भी आज राज्य ने सशस्त्र बलों की उपस्थिति में पेड़ों की कटाई की, जहां स्थानीय कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया है। बीएए हसदेव अरण्य के लोगों के संघर्ष के साथ खड़ा है जो 170 दिनों तक जारी रहा और छत्तीसगढ़ राज्य सरकार की इस बर्बर कार्रवाई की निंदा करता है।

3. बीएए ने देश में लोकतांत्रिक आंदोलनों और कार्यकर्ताओं पर दमन की कड़ी निंदा की और सरकार को अपनी फासीवादी गतिविधियों को रोकने की चेतावनी दी।

क्या है मांगें?

सम्मेलन ने 18 माँगों का चार्टर तैयार किया है। जिसमें किसानी से लेकर जल जंगल जमीन की सुरक्षा के साथ ही निजीकरण को रोकने की मांग है। मुख्य मांगे यह हैं-

भूमि के कॉर्पोरेट अधिग्रहण को रोकें, सभी अवैध विस्थापन और बेदखली को रोकें और किसानों के भूमि अधिकारों को सुनिश्चित करें।

एलएआरआर 2013 को सख्ती से लागू करें। गैरकानूनी विस्थापन और बेदखली के खिलाफ किसान प्रतिरोध पर खुला दमन न होने दें।

कृषि भूमि को अन्य उद्देश्यों के लिए रूपांतरण से बचाने के लिए धाराओं को सख्ती से लागू करें और भूमि के वैध और उचित अधिग्रहण पर उचित मुआवजे के लिए भूमि कानूनों की शर्तों का पालन करें।

वन संरक्षण नियम 2022 को वापस लें। जैव विविधता (संशोधन) अधिनियम 2022 को वापस लें।

तटीय भूमि पर मछली श्रमिकों के सामुदायिक अधिकारों को पहचाना और दर्ज किया जाना चाहिए।

किसानों को अपने पशु धन का आदान-प्रदान करने की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए देश भर में पशु व्यापार बाजार को वैध बनाना।

गोरक्षा के नाम पर विशेष रूप से मुसलमानों और दलितों के खिलाफ हिंसा और मॉब लिंचिंग करने वाले सांप्रदायिक तत्वों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित करें।

सभी कृषि श्रमिकों और 2 हेक्टेयर तक भूमि वाले छोटे और सीमांत किसानों को 60 वर्ष की आयु में 5000 रुपये की सार्वभौमिक मासिक पेंशन सुनिश्चित करें।

मुक्त व्यापार समझौतों को उलट दें और किसानों को बीज, उर्वरक, बिजली, सिंचाई और इनपुट उद्योगों पर सब्सिडी बहाल करें।

बेरोजगारी को नियंत्रित करें और रोजगार के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में सुनिश्चित करें।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली और एनएफएसए का प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित करना। अनाज के वर्तमान प्रावधान को प्रत्यक्ष नकद लाभ हस्तांतरण द्वारा प्रतिस्थापित नहीं किया जाना चाहिए।

भूमि सुधारों के उद्देश्यों की रक्षा के लिए भूमि अभिलेखों का डिजिटलीकरण किया जाना चाहिए और कमजोर समुदायों, अपंजीकृत किरायेदारों के अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए। इस प्रक्रिया का क्रियान्वयन पारदर्शी होना चाहिए।

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