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आंध्र प्रदेश : नए हवाई अड्डे को अनुमति दिए जाने के क्रम में स्थानीय मुद्दों को नज़रअंदाज़ किया गया

आरोप है कि विशाखापट्टनम के पास भोगापुरम अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के लिए ग़लत तरीक़े से उर्वर भूमि का अधिग्रहण कर लिया गया। 
आंध्र प्रदेश : नए हवाई अड्डे को अनुमति दिए जाने के क्रम में स्थानीय मुद्दों को नज़रअंदाज़ किया गया

नई दिल्ली: क्या मोदी सरकार ने आंध्र प्रदेश में एक नए एयरपोर्ट को पर्यावरणीय अनुमति देने के क्रम में स्थानीय लोगों की चिंताओं को नज़रअंदाज़ किया? इस महीने की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट ने विशाखापट्टनम के पास बनने वाले भोगापुरम अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे को पर्यावरणीय अनुमतियां दिए जाने के दौरान हुए कथित उल्लंघन के केस को दोबारा खोले जाने का आदेश दिया है। 

यह ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट आंध्र प्रदेश सरकार और दिल्ली आधारित GMR समूह की अधीनस्थ कंपनी के बीच PPP मॉडल (पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप) के तहत बनाया जा रहा है। एक याचिका में दावा किया गया था कि प्रोजेक्ट की सार्वजनिक सुनवाई के दौरान जताई गई चिंताओं और भूमि अधिग्रहण से जुड़े मुद्दों का भी समाधान नहीं किया गया है। हालांकि इस याचिका को जुलाई, 2017 में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (NGT) ने ख़ारिज कर दिया था। इसके लिए NGT ने याचिका लगाने में देरी को आधार बनाया था। लेकिन 2 मार्च को जस्टिस एस रविंद्र भट और जस्टिस एल नागेश्वर राव की पीठ ने NGT के आदेश को रद्द कर दिया, जिससे इस केस के दोबारा खुलने का रास्ता साफ़ हो गया है। 

सेवानिवृत्त अफ़सर ईएएस सरमा कहते हैं, "भोगापुरम में एक निजी हवाई अड्डे के लिए स्थानीय किसानों से जबरदस्ती 2000 एकड़ ज़मीन ली गई थी, जबकि विशाखापट्टनम की जरूरतें वहां मौजूद एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे से पूरी हो जाती हैं। दरअसल भोगापुरम के रहवासियों को सभी उपकरणों से सुसज्जित एक अच्छे बस टर्मिनल की जरूरत थी, ना कि उन्होंने एक ऐसे हवाईअड्डे की मांग की थी, जो विशाखापट्टनम के शहरी कुलीनों के काम आएगा।"

इस ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट को विशाखापट्टनम एयरपोर्ट से 56 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में बनाया जा रहा है। यह केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्रालय की उस नीति से विरोधाभास भी रखता है, जो कहती है कि किसी मौजूदा नागरिक हवाई अड्डे की 150 किलोमीटर की परिधि में किसी नए ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट का विकास नहीं किया जाना चाहिए। विजयनगर जिले की भोगापुरम तहसील के कम से कम 6 गांव- अमतम रविवालासा, सावराविल्ली, गुदेपूवालासा, कंचेरू, कावुलावाडा और रवाडा इस परियोजना से प्रभावित हुए हैं। याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि परियोजना के लिए कोई गंभीर सामाजिक प्रभाव विश्लेषण नहीं किया गया, ना ही पुनर्वास योजना बनाई गई।

पर्यावरण मंत्रालय की “मूल्यांकन विशेषज्ञ समिति (एक्सपर्ट एप्रेज़ल कमेटी)” ने 13 अप्रैल, 2017 को हुई एक बैठक में कहा था कि परियोजना की सार्वजनिक सुनवाई के दौरान जिन मुद्दों को उठाया गया था, उनका संतोषजनक जवाब नहीं दिया गया है। लेकिन एक दिन बाद ही जब परियोजना प्रशासन ने सार्वजनिक सुनवाई का संशोधित बिंदुवार ब्यौरा पेश किया, तो दिलचस्प तरीके से समिति ने टिप्पणी करते हुए कहा, "मुद्दों पर संतोषजनक ढंग से प्रतिक्रिया दे दी गई है।"

इसके बाद परियोजना से प्रभावित एक भूस्वामी, श्रीदेवी दातला ने राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण में याचिका दाखिल करते हुए आरोप लगाया कि जब भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी भी नहीं हुई थी, तभी परियोजना प्रशासन ने पर्यावरणीय अनुमति के लिए आवेदन लगा दिया था। श्रीदेवी ने आरोप लगाया कि इस दौरान तेलंगाना और आंध्रप्रदेश हाईकोर्ट में भूमि अधिग्रहण को चुनौती देने वाले कई मामले लंबित थे। 

दातला ने अपनी याचिका में कहा, "काकरलापुडी सत्यानारायण राजू एवम् अन्य बनाम आंध्रप्रदेश राज्य एवम् अन्य" केस, और दूसरी संबंधित याचिकाओं में माननीय हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से ज़मीन खाली करवाए जाने पर रोक लगा दी थी, कोर्ट ने यह कार्रवाई भूमि अधिग्रहण कानून, 2013 की धारा 11 के तहत जारी संसूचना के ज़रिए की थी। कोर्ट ने यह आदेश 25.1.2016 को जारी किया था। साफ़ तौर पर परियोजना प्रशासन ने 27.2.2016 को आवेदन करने के लइए फॉर्म-1 भरते हुए इस तथ्य को छुपाया था।"

11 जनवरी 2017 को हुई सार्वजनिक सुनवाई के दौरान शर्मा ने लंबित भूमि अधिग्रहण से जुड़े मुद्दों को उठाया था, लेकिन आंध्र प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने सुनवाई की जो रिपोर्ट बनाई, उसमें इन बातों को शामिल नहीं किया गया था। 

शर्मा ने न्यूज़क्लिक को बताया, “कानून के मुताबिक़, लोगों की अनुमति के पहले पहले सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन करवाया जाना था, ताकि वे जान सकें कि चयनित जगह सबसे बेहतर है या नहीं, क्या परियोजना से समुदाय को अंत में लाभ पहुंचेगा या नहीं। लेकिन इसके उलट, गंभीर सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन करवाए बिना सरकार ने लोगों को विस्थापित करने का कदम उठा लिया। संबंधित क्षेत्र की खाद्यान्न सुरक्षा प्रभावित ना हो, इसके लिए भूमि अधिग्रहण कानून में कृषि योग्य भूमि की एक न्यूनतम सीमा तय की गई है, जिसे अधिग्रहण के पहले अलग रखना होता है। लेकिन सरकार ने इस प्रावधान की भी कोई परवाह नहीं की।”

आंध्र प्रदेश सरकार ने चार बसाहटों के परियोजना से विस्थापित होने वाले 376 परिवारों की पहचान करते हुए इन्हें पर्याप्त मात्रा में मुआवज़ा देने का दावा किया है। परियोजना में पुनर्वास के लिए पर्याप्त प्रावधान ना होने के आरोपों से बिल्कुल उलट, आंध्र प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने सार्वजनिक सुनवाई को मिनट-दर-मिनट दर्ज़ करने वाली रिपोर्ट में लिखा है "प्रभावित रहवासियों के पुनर्वास के लिए उचित जगह का चुनाव कर लिया गया है, सरकार इन परिवारों को नए भूमि अधिग्रहण कानून, 2013 के हिसाब से पुनर्वास मुआवज़ा पैकेज देगी।" खैर, यह तर्क भी दिया जा रहा है कि इस पैकेज को तभी तय कर दिया गया था, जब भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया पूरी भी नहीं हुई थी। 

आंध्र लोकसत्ता पार्टी की प्रदेशाध्यक्ष और सार्वजनिक सुनवाई में शामिल हुए लोगों के ही जिले से आने वाले भीशेट्टी ए बाबजी कहते हैं, "परियोजना से प्रभावित भूस्वामियों में करीब 80 फ़ीसदी अशिक्षित महिलाएं हैं। इनमें से कई गरीबी रेखा से नीचे रहती हैं। यह महिलाएं कैसे आजीविका के कोई दूसरे स्त्रोतों को खोजेंगी? मैंने सरकार से इन भूस्वामियों को प्रशिक्षण देने और एयरपोर्ट परियोजना में नौकरी देने को कहा है।"

पहले चरण के लिए करीब 2004.52 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया गया है। जनवरी 2018 में तत्कालीन मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने घोषणा करते हुए कहा कि एयरपोर्ट के आसपास का इलाका हवाई परिवहन से जुड़ी निर्माण इकाइयों, हवाई-जहाजों की देखरेख, मरम्मत सुविधा केंद्रों, शोध और विकास केंद्रों, मल्टी मॉडल लॉजिस्टिक्स, विमानन शिक्षा और प्रशिक्षण केंद्र, प्रदर्शनी और कॉन्फ्रेंस समेत मनोरंजन की सुविधाओं के लिए विकसित किया जाएगा।

लेकिन इसके बाद आई रिपोर्ट बताती हैं कि एयरपोर्ट का निर्माण करने वाले निजी साझेदारों ने आसपास की ज़मीन के विकास की परियोजना से हाथ खींच लिए। नतीजतन राज्य सरकार ने पूरी ज़मीन निजी साझेदारों को नहीं सौंपी और 500 एकड़ ज़मीन अपने पास बचा ली। नतीज़तन पुराने भूस्वामियों ने अपनी इन पुरानी ज़मीनों को वापस करने की मांग की।

स्थानीय लोगों का आरोप है कि जिस ऊपजाऊ भूमि का अधिग्रहण हुआ है, वह अच्छे तरीके से सिंचित है और उसका उपयोग केला और नारियल जैसी नगदी फ़सलों के उत्पादन के लिए होता है। स्थानीय सीपीआई(एम) नेता टी सूर्यानारायण कहते हैं, "जब पहली बार इस हवाईअड्डे की परियोजना की घोषणा हुई थी, तो स्थानीय लोगों ने अपनी ज़मीनें छीने जाने के खिलाफ़ आंदोलन शुरू कर दिया था। जब परियोजना की सार्वजनिक सुनवाईयां करवाई गईं, तो उसके पहले कई लोगों को पुलिस कार्रवाई का डर दिखाते हुए इनसे दूर रखा गया। उस वक़्त विपक्ष में मौजूद वाय एस जगन मोहन रेड्डी ने स्थानीय प्रदर्शनकारियों को पूरी मदद देने का वायदा किया था। लेकिन अब जब जगन सत्ता में हैं, तो उन्होंने हवाईअड्डे के निर्माण की गतिविधियां शुरू कर दी हैं।"

GMR एयरपोर्ट्स लिमिटेड की एक अधीनस्थ कंपनी- GMR विशाखापट्टनम इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड ने इस परियोजना के लिए आंध्र प्रदेश हवाई अड्डा विकास निगम के साथ एक समझौता किया था। इस निगम की स्थापना प्रदेश सरकार ने राज्य में चार ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट का विकास करने के लिए की थी। इन ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट में भोगापुरम भी शामिल है। कथित उल्लंघनों से संबंधित एक प्रश्नावली GMR विशाखापट्टनम इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड और आंध्र प्रदेश हवाई अड्डा विकास निगम को भेज दी गई है। इस लेख को प्रकाशित करने तक उनकी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई थी। जब प्रतिक्रिया आ जाएगी, तो इस लेख में उन्हें शामिल कर लिया जाएगा।

विशेषज्ञों ने पर्यावरण प्रभाव विश्लेषण अध्ययन करने के दौरान बरती गई खामियों की ओर भी ध्यान दिलाया है। 

दिल्ली आधारित पर्यावरणीय मुद्दों पर काम करने वाले वकील राहुल चौधरी कहते हैं, "हवाई अड्डे की परियोजना के लिए शर्तों के निर्धारण से पहले ही पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन रिपोर्ट को बनाने के लिए अध्ययन किए जा चुके थे। ऊपर से अनुमतियां दिए जाने के पहले ना तो संतोषजनक कोलाहल अध्ययन किया गया और ना ही जल आपूर्ति की मांग का कोई संतोषजनक विश्लेषण किया गया। ऊपर से ज़मीन से आंकड़े भी एक गैर-मान्यता प्राप्त एजेंसी ने इकट्ठे किए थे।”

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Locals’ Issues Ignored in Clearance to New International Airport in Andhra Pradesh?

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