भूख और अकेलेपन का होता है दिमाग़ पर एक जैसा प्रभाव : शोध
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अकेलापन हमेशा से मनोरोग चिकित्सकों और मनोविज्ञानियों के लिए चिंता का विषय रहा है। लेकिन कोविड-19 के चलते उपजने वाली सामाजिक दूरी की व्यवस्था अब ज़्यादा बड़े डर के तौर पर खड़ी हो गई है। इसके चलते आबादी का एक बड़ा हिस्सा एकांत में जाने को मजबूर है।
अकेलेपन के प्रतिकूल प्रभावों के बारे में हम पहले से ही जानते हैं। इससे याददाश्त में कमी, तर्कशक्ति की क्षमता में कमी, सुसाइड की प्रवृत्ति बढ़ने के अलावा भी कई सारी समस्याएं पैदा होती है। हाल में इस क्षेत्र में अहम खोज करने वाले दो अध्ययन हुए, जिनमें इस प्रवृत्ति का न्यूरोलॉजिकल आधार सामने आना शुरु हुआ है।
पहला अध्ययन 23 नवंबर को नेचर न्यूरोसाइंस जर्नल में प्रकाशित हुआ। इसमें कुछ अहम चीजें सामने आईं। अध्ययन कहता है कि जब हमें अकेलापन या भूख महसूस होती है, तो दिमाग का कुछ हिस्सा सक्रिय हो जाता है। इसके चलते लोगो में सामाजिक व्यवहार करने की मांग उसी तरह बढ़ती है, जैसे उन्हें खाने की जरूरत के वक़्त भूख लगती है।
अध्ययन में शामिल प्रोफेसर रेबेका साक्से, MIT में मस्तिष्क और स्नायु विज्ञान के प्रोफेसर जॉन डब्ल्यू जार्वे के साथ अध्ययन में शामिल एक लेखक ने कहा, "जिन लोगों को अकेला रहने पर मजबूर होना पड़ता है, वह सामाजिक व्यवहार के लिए उतने ही आतुर होते हैं, बिलकुल वैस ही जैसे भूखा इंसान खाने के लिए तड़पता है। हमारी खोज उस सहज ज्ञान के विचार में सही बैठती है जिसके मुताबिक़ सकारात्मक सामाजिक व्यवहार इंसान की बुनियादी जरूरत होते हैं और तीव्र अकेलापन, वह प्रतिकूल अवस्था होती है, जो लोगों को, जिस चीज की कमी है, उसे हासिल करने के लिए प्रेरित करती है। बिलकुल भूख की तरह।"
यह रिसर्च डाटा 2018 से 2019 के बीच इकट्ठा किया गया था। यह महामारी फैलने से काफ़ी पहले का वक़्त था। शोधार्थियों ने इस पर ध्यान केंद्रित किया कि सामाजिक तनावों की स्थिति में मस्तिष्क कैसे काम करता है। अकेलापन इनमें से एक बड़ा तनाव है। अध्ययन के लिए शोध करने वाली टीम ने अपने वॉलेंटियर्स के लिए अकेलेपन की स्थिति निर्मित की। अध्ययन में शामिल वॉलेंटियर्स ज़्यादातर स्वस्थ्य कॉलेज छात्र थे। अकेलेपन की स्थिति बनाने के लिए उन्हें एक खिड़की रहित कमरे में दस घंटे के लिए रखा गया। यह कमरा एमआईटी कैंपस में ही स्थित था। उन्हें फोन नहीं दिए गए, पर कंप्यूटर दिया गया था, ताकि जब उन्हें जरूरत हो, तो वे शोधार्थियों से संपर्क कर सकें।
लंबे आइसोलेशन पीरियड के बाद, हर वॉलेंटियर का fMRI (फंक्शनल MRI) स्कैन करवाया गया। मशीन में वॉलेंटियर्स को खुद बैठना था, ताकि वे इसमें किसी की मदद ना लें, ताकि पूरे प्रयोग के दौरान सामाजिक संपर्क से बचा जा सके। वॉलेंटियर्स को इस आइसोलेशन के लिए पहले प्रशिक्षण दिया गया था।
वॉलेंटियर्स को एक दूसरे दिन, दस घंटे का उपवास भी रखवाया गया। उपवास और आइसोलेशन के दौरान प्रतिभागियों को खाने और आपस में बातचीत करते लोगों के साथ-साथ कुछ फूलों की तस्वीरें दिखाई गईं। इसके बाद उनका एफएमआरआई मशीन में स्कैन किया गया। शोधार्थियों ने मुख्यत: "सब्सटानशिया निग्रा" पर ध्यान केंद्रित किया, जो खाने या नशे की इच्छा के साथ जुड़ा होता है। मानव का यह मस्तिष्क क्षेत्र, चूहों के मस्तिष्क क्षेत्र में स्थित "डोर्सल रेफे न्यूक्लियस" की तुलना में ज़्यादा विकासशील होता है। चूहों पर एकांत प्रयोग के दौरान डोर्सल रेफे न्यूक्लियस में सक्रियता देखी गई थी।
शोधार्थियों ने इस अवधारणा के साथ शुरुआत की थी कि सामाजिक तौर पर एकांत में रह रहे लोगों में सामाजिक व्यवहार की तस्वीरें देखने के बाद लोगों से मिलने-जुलने की इच्छा जागेगी और उनके मस्तिष्क का चाहत पैदा करने वाला हिस्सा सक्रिय हो जाएगा। fMRI के नतीजों ने शोधार्थियों की अवधारणा को सही साबित किया। ऊपर से चाहत की प्रबलता, चाहे वह सामाजिक संपर्क हो या फिर खाने की इच्छा, वह हमेशा विषय विशेष पर ही आधारित रही। दोनों ही मामले में चाहत के प्रतीक, दिमाग के एक ही हिस्से के सक्रिय होने से मिलते थे।
इन खोजों से साबित हुआ है कि सामाजिक संपर्क भी व्यक्ति को खाने की तरह ही जरूरी हैं। यही इनकी अहमियत है। जिस तरह लोग लंबे वक़्त तक भूखे नहीं रह सकते, उसी तरह वे लंबे वक़्त तक अकेले नहीं रह सकते।
दूसरा अध्ययन 15 दिसंबर को नेचर कम्यूनिकेशन में प्रकाशित हुआ था। इसने बताया कि जो लोग अकेलेपन से पीड़ित होते हैं, उनके मस्तिष्क में एक अनोखी प्रतिक्रिया मिलती है, जो उन्हें बुनियादी तौर पर दूसरों से अलग बनाती है।
इस अध्ययन में 40,000 अधेड़ और वयस्क उम्र वाले वॉलेंटियर्स की अनुवांशकीय और मानसिक आत्म विश्लेषण की जानकारी के साथ उनका MRI डाटा शामिल किया गया। तब टीम ने इस डाटा की तुलना अकेलापन महसूस करने और ना करने वाले लोगों के MRI डाटा से की। इस दौरान "डिफॉल्ट नेटवर्क" नाम से पहचाने जाने दिमाग के एक क्षेत्र में मस्तिष्क हस्ताक्षर (ब्रेन सिग्नेचर) के संकेत पाए गए। यह वह क्षेत्र है जो आंतरिक विचारों जैसे, भविष्य की योजना, सोचना, याद करना, कल्पना जैसी भावनाओं में सक्रिय रहता है।
डिफॉल्ट नेटवर्क उन लोगों में मजबूती से पाया गया, जिन्हें अकेलापन महसूस होता है, उनके डिफॉल्ट नेटवर्क में भूरे तत्व की मात्रा भी बढ़ गई। शोधार्थियों ने अकेले लोगों के फोर्निक्स में भी अंतर पाया। फोर्निक्स कोशिकाओं का एक बंडल होता है, जो हिप्पोकैंपस (मस्तिष्क का एक ऐसा हिस्सा जो सीखने और याददाश्त में अहम भूमिका निभाता है) से डिफॉल्ट नेटवर्क तक संकेत पहुंचाती हैं।
इस अध्ययन की मुख्य लेखक, मैक्गिल यूनिवर्सिटी के द न्यूरो (मांट्रियल न्यूरोलॉजिकल इंस्टीट्यूट-हॉस्पिटल) की नाथन स्प्रेंग कहती हैं, "मनचाहे सामाजिक अनुभवों की अनुपस्थिति में अकेले इंसान सामाजिक अनुभव को याद या उसकी कल्पना करने जैसे आत्म-दिशा केंद्रित विचारों की तरफ मुड़ सकता है। हम जानते हैं कि यह संज्ञानात्मक क्षमताएं दिमाग के डिफॉल्ट नेटवर्क द्वारा समन्वित होती हैं। इसलिए खुद की झलक की तरफ बढ़ा हुआ यह ध्यान और संभावित कल्पित सामाजिक अनुभव स्वाभाविक तौर पर डिफॉल्ट नेटवर्क के याददाश्त आधारित क्रियाओं को चालू कर देंगे।"
इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।
Loneliness Triggers Same Area in Brain as Hunger, Researchers Find
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