कश्मीर : लो-स्पीड इंटरनेट, बिना स्मार्टफ़ोन, सुरक्षा की चिंता के बीच छात्र-शिक्षक ई-लर्निंग के लिये कर रहे हैं संघर्ष
श्रीनगर: कोविड-19 की महामारी के बढ़ते प्रकोप के मद्देनज़र कश्मीर में अधिकारियों द्वारा स्कूलों को बंद करने की घोषणा करने के बाद से ही, श्रीनगर में एक निजी स्कूल की शिक्षिका, अनीसा समरीन ने ऑनलाइन शिक्षण के लिए खुद से तैयारी शुरू कर दी थी। आज, वे तीन कक्षाओं से जुड़े चार सेक्शन को रोज़ाना पढ़ाती हैं, जिसमें प्रत्येक सेक्शन में 40 से अधिक छात्र हैं – ये पढ़ाई धीमे इंटरनेट कनेक्शन के बावजूद जारी है।
उन्होंने कहा, "मैंने व्हाट्सएप ग्रुपों पर ऑनलाइन पढ़ाई करवाना शुरू कर दिया है।” अनीसा ने कहा कि पहले वे संबंधित विषय पर वीडियो बनाती थीं और फिर उसे व्हाट्सएप के विभिन्न समूहों पर अपलोड कर देती थीं, “लेकिन कुछ समय बाद मैंने ऑडियो के साथ पढ़ाना शुरू किया और कुछ विषयों पर डायग्राम्स की तस्वीरों के साथ पढ़ाया या संबंधित विषय में ग्राफ़्स की परिभाषा के साथ पढ़ाती हूँ।”
अनीसा के लिए, सीमित 2जी नेटवर्क पर ऑनलाइन पढ़ाना कोई आसान बात नहीं है। वह कहती हैं, "मैं जो वीडियो बनाती हूँ, उन्हें अपलोड करने में बहुत समय लगता है और फिर छात्रों को उन वीडियो को वापस डाउनलोड करने में समय लगता है।" लेकिन, इस नेटवर्क की बाधा से जूझते हुए भी उन्होंने अपनी ऑनलाइन कक्षाएं लेना जारी रखा हुआ है।
कश्मीर में पिछले साल अगस्त में अनुच्छेद 370 को समाप्त करने और जम्मू-कश्मीर को दो संघ शासित प्रदेशों के विभाजन करने के बाद वैसे भी स्कूल छह महीने के अंतराल के बाद खुले थे। वैश्विक महामारी कोविड-19 के प्रसार को रोकने के लिए लॉकडाउन की घोषणा के तहत स्कूलों को फिर से बंद कर दिया गया है।
वैसे भी कश्मीर में तालाबंदी कोई नई बात नहीं है और छात्र पिछले कुछ समय से रिमोट लर्निंग ले माध्यम से शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। धारा 370 को निरस्त करने के बाद, कश्मीर घाटी के छात्रों ने अपने स्कूल के खोए दिनों की भरपाई करने के लिए सामुदायिक स्कूलों में शिक्षा लेनी शुरू कर दी थी। लेकिन इस बार तो सामुदायिक स्कूल भी इस बला का कोई समाधान नहीं है। इस नए और कठोर बंद को लागू हुए करीब एक महीना बीत चुका हैं और इंटरनेट की सीमित स्पीड के बावजूद, क्षेत्र के कई छात्र ऑनलाइन कक्षाओं के माध्यम से जितना संभव हो उतना सीखने की कोशिश कर रहे हैं क्योंकि शिक्षक उन्हें व्यस्त रखने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं।
श्रीनगर के एलेन कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ाने वाली साइमा ने इस दौरान अपने स्कूल के 125 छात्रों को पढ़ाया है। सीमित इंटरनेट स्पीड के अलावा, साइमा को ऑनलाइन शिक्षण की प्रक्रिया में कई अन्य मुद्दों का सामना करना पड़ रहा है। वह कहती हैं, "मैं उन्हें ई-पेपर, ई-किताबें, होम असाइनमेंट और अन्य सीखने की गतिविधियां, यहां तक कि कॉमिक किताबें भी भेजती रहती हूं। कोई ऐसा तरीक़ा नहीं है जिससे कि पता लगा सकूँ कि मेरे छात्र पढ़ाई के मामले में चौकस हैं या नहीं... यह सिर्फ़ एक तरफ़ा मामला है, एक तरह का एकालाप है।”
कश्मीर विश्वविद्यालय में भूगोल और क्षेत्रीय विकास विभाग के एक छात्र का कहना है कि ऑनलाइन सत्रों के दौरान उनके शिक्षक की आवाज़ इतनी बार टूटती है कि वे ज्यादातर समय यह अनुमान लगाने में लगे रहते हैं कि शिक्षक ने आखिर क्या कहा है। छात्र ने कहा कि "हम शुरुआत में शिक्षकों को रोकते हैं और उनसे आवाज़ को ठीक करने की कोशिश करने को कहते हैं और फिर यह सब इतना झक्की हो जाता है कि हमें एहसास हो जाता है कि अब इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा।”
कोरोना वायरस रोग जो विश्व स्तर पर अब तक 2 लाख से अधिक लोगों की जान ले चुका है और 30 लाख से अधिक लोगों को संक्रमित कर चुका है, के प्रसार के बाद दुनिया भर में अभूतपूर्व लॉकडाउन हुआ जो कश्मीर में भी लागू है। हालाँकि, इस क्षेत्र में समस्या न केवल सीमित इंटरनेट स्पीड की वजह से बनी हुई है, बल्कि इसलिए भी है क्योंकि कश्मीर के कई ग्रामीण इलाकों में, इंटरनेट या स्मार्टफोन तक मौजूद नहीं है और अगर जिनके पास हैं भी तो वह उनके लिए बड़ी क़ीमती चीज़ है।
आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार, कश्मीर में लगभग 10,000 से अधिक सरकारी स्कूल और 2,000 निजी स्वामित्व वाले स्कूल हैं, जिनमें से अधिकांश ग्रामीण इलाकों में हैं। निम्न आय वाले परिवारों के लगभग सभी छात्र अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजते हैं।
ग्रामीण बडगाम ज़िले के एक सरकारी स्कूल की एक स्कूल शिक्षक का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्र के अधिकांश छात्र मुश्किल से स्मार्टफोन खरीद पाते हैं, जिसके कारण कई छात्र ऑनलाइन कक्षाओं का लाभ नहीं उठा पाते हैं। लॉकडाउन के बाद से, ज़ूम ऐप पर डिजिटल कक्षाएं लगभग 10 बजे शुरू होती हैं और उनकी समय की मियाद को शाम 5 बजे तक बढ़ा दिया जाता हैं। शिक्षिका ने बताया कि "केवल मेरा वीडियो खुलता है, छात्रों को अपने वीडियो को बंद करके गति की क्षतिपूर्ति करनी होती है। लेकिन ये लोग फिर भी भाग्यशाली हैं, क्योंकि इन क्षेत्रों में कई अन्य लोगों के पास न तो इंटरनेट है और न ही स्मार्टफोन है।”
जो बात हालात को और अधिक जटिल बनाती है वह छात्रों को प्राइमरी से पढ़ाना है, खासकर जब बच्चों के माता-पिता इंटरनेट अनुप्रयोगों (एप्लिकेशन) के उपयोग से अच्छी तरह से वाकिफ नहीं हैं।
कक्षा 6 के लिए बने शिक्षक-माता-पिता के एक व्हाट्सएप समूह में, एक शिक्षक ने पहली बार एक वर्कशीट अपलोड करने के बाद, माता-पिता को पीडीएफ प्रारूप को खोलने के तरीके के बारे में बताया।
छात्रों को 28 अप्रैल तक अपने 35 प्रतिशत पाठ्यक्रम या कोर्स को पूरा करने की उम्मीद है, जो उनकी कक्षा की यूनिट II को पूरा करता है। सरकारी स्कूलों में छात्रों को सालाना 210 शिक्षण कक्षा में भाग लेने की आवश्यकता होती है और इसलिए, डिजिटल कक्षाएं उनके लिए एकमात्र विकल्प हैं। लॉकडाउन के एक महीने बाद, निदेशक, स्कूल शिक्षा, कश्मीर, यूनिस मलिक का कहना है कि उन्होंने कोचिंग के प्रसारण के लिए टीवी और रेडियो प्रसारण नेटवर्क से चार घंटे का योगदान देने को कहा है। डेस्क (DSEK) की योजना है कि प्रत्येक कक्षा के छात्रों को टीवी से दो घंटे और रेडियो पर दो घंटे 30 मिनट की प्रति दिन आठ कक्षाओं के माध्यम से पढ़ाया जाएगा।
मलिक ने न्यूज़क्लिक को बताया कि, "हम पहले से ही डिजिटल नेटवर्क के माध्यम से छात्रों को पढ़ा रहे हैं लेकिन जिनके पास इंटरनेट नहीं है, हम उन्हें रेडियो और टेलीविजन के माध्यम से पढ़ा रहे हैं।" डेस्क (DSEK), दूरदर्शन केंद्र, श्रीनगर के माध्यम से, 26 मार्च से प्रारंभिक और माध्यमिक कक्षाओं के पाठ्यक्रम को कवर करने के लिए दो सेक्शन के लिए प्रसारित किया जा रहा है, जिसके लिए छात्रों को इन अनुवर्ती कक्षाओं के लिए कई दिनों तक का इंतजार करना पड़ता था।
एक अभूतपूर्व स्थिति का सामना कर रहे, कश्मीर में प्रशासन और स्कूल अधिकारियों पर कोताही बरतने का आरोप लगाया है। ऑनलाइन कक्षाओं और रिमोट शिक्षण ने क्षेत्र के शिक्षाविदों के सामने भारी चुनौतियां खड़ी कर दी हैं और इस पर अधिकारियों की प्रतिक्रिया असंगत रही है। ज़ूम ऐप के असुरक्षित होने की सूचना कई शिक्षकों और अभिभावकों के लिए डिजिटल कक्षाएं बड़ा मुद्दा बन गया है। श्रीनगर के ग्रीन वैली स्कूल में, लगभग सभी शिक्षकों ने डिजिटल कक्षाओं के लिए ज़ूम ऐप का उपयोग करने से मना कर दिया है, लेकिन इससे नाराज़ होकर स्कूल के अधिकारियों ने करीब 20 शिक्षकों को स्कूल से निकाल दिया था। हालाँकि, बाद में सभी ने जब ज़ूम एप्लिकेशन का उपयोग करने की हामी भरदी तो उन्हे बहाल कर दिया गया है।
जम्मू और कश्मीर में निजी स्कूलों की एसोसिएशन, जिसने इस क्षेत्र में इंटरनेट प्रतिबंधों के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया हुआ है, ने ज़ूम ऐप की सुरक्षा का दावा किया है, जबकि उन्ही के दावे अनुसार अधिकांश स्कूल माइक्रोसॉफ्ट टीम, स्काइप, व्हाट्सएप, फ़ेसटाइम और गूगल मीट जैसे प्लेटफार्मों का उपयोग कर रहे हैं।
अप्रैल माह में अपने पहले के बयान में एसीसिएशन के अध्यक्ष जीएन वर ने कहा, "हमें ज़ूम के बारे में कुछ शिकायतें मिली थीं, लेकिन कंपनी ने अपनी सुरक्षा को अपडेट किया है और कुछ सावधानियों को भी बर्ता है। जूम ऑनलाइन कक्षाओं के लिए एक अच्छा मंच है।"
यह कहते हुए कि ज़ूम एक सुरक्षित मंच है पीएसएजेके (PSAJK) ने अपने सभी उपयोगकर्ताओं को नेशनल साइबर कोर्डिनेशन सेंटर द्वारा जारी दिशानिर्देशों का पालन करने और बिना किसी चिंता के मंच का उपयोग करने के लिए कहा है।
लेकिन, ज़ूम हो या नहीं, धीमी गति के इंटरनेट, सीमित टेली-क्लासेस और प्रशासनिक सामंजस्य की कमी के कारण, कश्मीर में ऑनलाइन कक्षाएं घाटी के सभी छात्रों की मदद नहीं कर पा रही हैं।.
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके पढ़ा जा सकता है।
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