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एमसीडी चुनाव 2022 : आप और बीजेपी के बाग़ी नेता बिगाड़ सकते हैं खेल

दिल्ली नगर निगम के एकीकरण के बाद होने वाले चुनाव बेहद अहम होने वाले हैं। इस लेख में जानिए कि सीटों का समीकरण क्या है, कौन-कौन से दल मैदान में हैं और क्या बीजेपी के विजयरथ इस बार के एमसीडी चुनाव में थम सकेगा।
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दिल्ली नगर निगम चुनाव का बिगुल बज चुका है। बुधवार को सभी उम्मीदवारों के नामांकन पत्र की जांच हो चुके हैं। इसके बाद से सभी दलों के उम्मीदवार अपने-अपने प्रचार में लग गए हैं। इस चुनावी समर में मुख्य मुक़ाबला भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), आम आदमी पार्टी(आप) और कॉंग्रेस में है। जबकि वाम दल, बहुजन समाज पार्टी, चंद्र शेखर की आजाद समाज पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एमआईएम) मुकाबलों को रोचक बना रही है।

सभी दल अपनी पूरी ताकत झोंक कर निगम की सत्ता पर काबिज होना चाहती है लेकिन इसबार का संघर्ष बहुत ही टक्कर का है। लेकिन सभी पार्टी टिकट बंटवारे के बाद से अंतर्कलह से परेशान है और पार्टी से बागी नेता बड़ी संख्या मे निर्दलीय चुनावी मैदान मे उतर रहे हैं। जो सभी दलों के समीकरण बिगाड़ सकती है। दिल्ली की सत्ताधारी आप ने अपने कार्यकर्ताओं से अधिक बाहर से आए नेताओं पर भरोसा दिखाया है। इससे उनके पार्टी के नेता और कार्यकर्ताओं में नाराजगी है। आप के एक विधायक के पीए को पैसा लेकर टिकट बेचने के आरोप मे गिरफ्तार भी किया गया है। बीजेपी में भी बगावत थम नहीं रही है। मुंडका वार्ड के तो पूरे मण्डल ने ही अपना सामूहिक इस्तीफा दे दिया। उन्होंने इशारा किया कि ज़मीनी कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर पैसे लेकर टिकट बाँटा गया है। वहीं कॉंग्रेस की बात करें तो वर्तमान हाल ये है कि वो 250 सीटों पर अपने उम्मीदवार भी पक्के नहीं कर पाई है। अभी तक की सूचना के अनुसार 243 सीटों पर ही उनकी नामांकन प्रक्रिया पूरी हो पाई है। इसके आलवा हाल ये है कि एक सीट पर पार्टी ने जिसे सिंबल दिया वो नामांकन दाखिल करने ही नहीं पहुंचा। इसी तरह बीजेपी के कार्यकर्ता ने पार्टी सिंबल ही चोरी कर लिया और उस आधार पर नामांकन भी दाखिल कर दिया है।

वहीं वाम दल भारत की कम्युनिस्ट पार्टी(भाकपा), भारत की कम्युनिस्ट पार्टी(मार्क्सवादी) यानी माकपा और भाकपा - माले ने भी अपने 19 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। जबकि आजाद समाज पार्टी और एआईएमआईएम ने सांझे तौर पर 50 सीटों पर अपने उम्मीदवार दिए हैं।

ये चुनाव जैसे जैसे अपने परिणाम की तरफ बढ़ रहा है वैसे वैसे रोचक होता जा रहा है। क्योंकि तीनों निगम के एकीकरण के बाद निगम की सत्ता काफी अहम हो गई क्योंकि एक तरीके से दिल्ली के मेयर की शक्ति दिल्ली के मुख्यमंत्री के समान ही है। इसलिए सभी दल किसी भी हाल मे ये चुनाव जीतना चाहते हैं।

निगम मे वर्त्तमान सत्ता संतुलन

आपको बता दें कि साल 2017 के नगर निगम चुनाव में भाजपा ने 272 वार्डों में से 181 में जीत हासिल की थी, आम आदमी पार्टी ने 48, कांग्रेस ने 30 और अन्य 13 सीट जीतने में सफल रहे थे। वहीं 2012 के नगर निगम चुनाव में भाजपा ने 138, कांग्रेस ने 77 और अन्य ने 57 सीटें जीती थीं।

हालांकि उस समय निगम की सत्ता तीन भागों उत्तर, दक्षिण और पूर्व मे बंटी थी। उनमें क्रमश: 104-104 और 64 वार्ड थे। पहले दिल्ली में एक ही नगर निगम था, लेकिन 2011 में इसे तीन भागों में बांटकर दक्षिण, पूर्वी और उत्तरी दिल्ली नगर निगम का गठन किया गया। तब तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित सरकार का तर्क था कि दिल्ली काफी फैल चुकी है। ऐसे में एक ही नगर निगम की बजाय अगर उसे विभाजित कर दिया जाए तो स्थानीय स्तर पर बेहतर कामकाज होगा। हालांकि अब भाजपा ने एक बार फिर तीनों नगर निगमों का एकीकरण कर 250 वार्ड कर दिए हैं। यानी 22 वॉर्ड घटा दिए गए। फिलहाल आपको बता दें कि दिल्ली में 70 विधानसभा सीटें हैं, लेकिन, एमसीडी के चुनाव सिर्फ 68 विधानसभा सीटों पर होने हैं, क्योंकि दिल्ली कैंट और नई दिल्ली विधानसभा नगर निगम के दायरे में नहीं आती है।

बीजेपी को एक बार फिर सत्ता में वापसी का भरोसा

बीजेपी ने 2007 से ही नगर निगम पर अपनी सत्ता कायम की हुई है। जबकि इस दौरान केंद्र से लेकर राज्य सरकार तक में फेरबदल हुए लेकिन उसकी निगम की सत्ता को कोई हिला नहीं सका है। 15 साल से अपने अभेद किले को बचाने के लिए बीजेपी एक बार फिर मैदान में है। उसके नेताओं का कहना है कि उनको हर बार की तरह इस बार भी जनता से सीधे जुड़े होने का फायदा होगा और बेहतर आकड़ों से निगम की सत्ता हासिल करेंगे। बीजेपी ये स्थानीय चुनाव भी मोदी और राम मंदिर के सहारे लड़ रही है। उसके स्थानीय नेता निगम के अपने रिपोर्ट कार्ड की जगह नरेंद्र मोदी और राम के नाम पर वोट मांग रहे हैं।

दिल्ली बीजेपी को जहां अपने मजबूत जमीनी संगठन पर भरोसा है वहीं उन्हें केजरीवाल सरकार को शराब नीति पर भी घेरने का मौका मिल गया है। इसके अलावा वो आप पर भ्रष्टाचार के लगातार लगते आरोपों पर घेर रही है। उसका कहना है कि भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से निकली पार्टी आज भ्रष्टाचार का पर्याय बन गई है।

बीजेपी को सत्ता विरोधी लहर के साथ ही बागियों से निपटने की चुनौती

बीजेपी 15 साल से निगम में सत्ता में है इस कारण उसे सत्ता विरोधी लहर का सामना करना है। वहीं अपने अनुशासन के लिए जाने जाने वाली पार्टी इस बार बागियों से परेशान दिख रही है। टिकट बँटवारे के बाद से पार्टी में लगातार विद्रोह दिख रहा है। कई इलाक़ों में पार्टी के बागी नेता निर्दलीय मैदान में उतर गए हैं। वहीं सोमवार को बाहरी दिल्ली के मुंडका मंडल के अध्यक्ष सभी पदाधिकारियों ने सामूहिक इस्तीफा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को भेज दिया था। उन्होंने राज्य नेतृत्व पर लेनदेन कर टिकट देने का आरोप लगाया है। इसके आलवा गुटबाजी के कारण उन्हें 9 घोषित उम्मीदवार बदलने पड़े। इसके आलवा एक अजीबोगरीब घटना हुई जिसको लेकर बीजेपी की लगातार फजीहत हो रही है। पूर्ता हरीओम गुप्ता ने चांदनी चौक (वार्ड 74) सीट पर बिना उम्मीदवार घोषित हुए अपना नामांकन दाखिल कर दिया। पार्टी के अनुसार, इस वार्ड से रविंद्र कुमार उर्फ रवि कप्तान का नाम घोषित किया गया था, उसको सिंबल देकर नामांकन भी करवाया गया। लेकिन मंगलवार को यह जानकारी सामने आई कि इसी सीट से पार्टी के सिंबल के साथ हरिओम गुप्ता ने भी अपना नामांकन दाखिल कर दिया है। इस मामले में भाजपा नेताओं ने नार्थ एवेन्यू थाने एवं चुनाव आयोग से शिकायत की है और गुप्ता का नामांकन रद्द करवाया।

आप को बाहरी उम्मीदवारों के सहारे नैया पार होने की है उम्मीद

आप के लिए जहां अरविंद केजरीवाल का चेहरा सफलता की कुंजी है, वहीं स्थानीय स्तर पर पार्टी ने अपना संगठन भी मज़बूत किया। इसके अलावा पार्टी ने सिर्फ चुनाव जीतने वाले उम्मीदवारों पर दाव खेला है। पार्टी कांग्रेस हाल-फिलहल में आम आदमी पार्टी का दामन थामने वाले नेताओं को बड़ी संख्या मे टिकट दिया, इसमें कॉंग्रेस के कद्दावर नेता और निगम में नेता प्रतिपक्ष रहे मुकेश गोयल भी शामिल हैं। इस तरह पूर्व पार्षद रेखा रानी और गुड्डी देवी समेत लगभग 20 से अधिक पूर्व कॉंग्रेस नेताओं को अपने सिंबल पर मैदान में उतारा है।

पार्टी पर लगातार लग रहे टिकट बेचने के आरोप

आप के लिए यमुना नदी की गंदगी, गंदे पानी की समस्या और प्रदूषण के मुद्दे पर किए गए AAP सरकार के वादे पूरे नहीं होना आम आदमी पार्टी की चिंता बढ़ा सकती है। इसके अलावा टिकट बँटवारे के बाद से लगातार ही पार्टी पर पैसे लेकर टिकट बेचने का आरोप लग रहा है। अब तो इस मामले ने और तूल तब पकड़ लिया जब बुधवार को एंटी करप्शन ब्रांच ने मॉडल टाउन के विधायक अखिलेश त्रिपाठी के पीए और करीबी रिश्तेदार को गिरफ्तार किया है। AAP विधायक के पीए और रिश्तेदार पर एमसीडी चुनाव में गोपाल खारी नाम के शख्स से टिकट के लिए रिश्वत लेने का आरोप है। इसके आलवा पार्टी कार्यकर्ताओं मे टिकट बँटवारे को लेकर भी गुस्सा दिख रहा है।

कॉंग्रेस को निगम चुनाव से दिल्ली की सत्ता में वापसी की उम्मीद

निगम चुनाव में कांग्रेस को अपने खो चुके पारंपरिक वोटर के वापसी की उम्मीद है। पहले दिल्ली मे अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और मुसलमानों मे अच्छी पकड़ थी परंतु APP के आने के बाद से इसमें सेंधमारी हुई । इस चुनाव मे पार्टी को इनसे वापस समर्थन मिलने की उम्मीद है।

कांग्रेस का लापरवाह रुख चुनाव में कर सकता है नुकसान

दिल्ली प्रदेश कांग्रेस में लगातार गुटबाजी और आपसी मनमुटाव और राहुल गांधी का भारत जोड़ो यात्रा में व्यस्त होना, शीर्ष नेतृत्व का नगर निगम चुनाव की तरफ ध्यान ना देना, इस तरह की चीजें कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती हैं। कॉंग्रेस का हाल ये है की वो 250 सीटों पर ठीक से नामांकन नहीं करा पाई है। निगम चुनाव में कांग्रेस को एक और झटका लग गया है। मीडिया की खबरों के अनुसार कांग्रेस की पूर्व निगम पार्षद सुशीला खोरवाल का नामांकन रद्द हो गया है। अभी तक 250 सीटों में से कांग्रेस के 243 नामांकन को ही हरी झंडी मिली है। अगर कुछ और नामांकन रद्द हुए तो कांग्रेस के लिए बड़ी मुसीबत हो सकती है।

छोटे दल भी इस चुनाव में लगा रहे हैं जोड़

इन तीन दलों के बीच ही मुख्य मुकाबला है लेकिन कई दूसरे छोटे दल भी इस चुनाव को रोचक बना रहे हैं। जनता दल (यूनाइटेड) 33 सीटों पर चुनाव लड़ रही हैं जहां अधिकतर यूपी बिहार के प्रवासी लोगों रहते है ये पूर्वांचली मतदाताओं पर दाव लगा रही है। वही एमआईएम ने भी 17 मुस्लिम बहुल इलाकों मे अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं। जबकि उनकी सहयोगी आजाद समाज पार्टी ने 23 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं। बहुजन समाज पार्टी भी मैदान में हैं और वहीं वाम दल भी अपनी सीमित संसधानों एंव शक्ति के साथ चुनावी रण मे हैं। वाम दल अधिकतर मजदूर कालोनियों से चुनाव लड़ रहे हैं। क्योंकि वाम दल भले दिल्ली की सत्ता की राजनीति में मजबूत न हो परंतु दिल्ली की मेहनतकश आबादी में उनकी एक मजबूत पकड़ है वो उसे ही इस चुनाव में अपने पक्ष मे भुनाने का प्रयास करेगी। 

निगम चुनावों की तारीख 4 दिसंबर रविवार के दिन तय की गई है, जबकि इसके नतीजे 7 दिसंबर को आएंगे।

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