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हिंद महासागर में माइक्रोप्लास्टिक का बोझ स्पष्ट रूप से चिंताजनकः नए अध्ययन में खुलासा

इस अध्ययन में हिंद महासागर के निकट-सतह के पानी में औसतन एक घन मीटर पानी में 50 माइक्रोप्लास्टिक कण और फाइबर पाए गए।
Microplastic

छोटे-छोटे माइक्रोप्लास्टिक कण तेजी से एक संभावित पर्यावरणीय खतरा साबित हो रहे हैं। ये वास्तव में प्लास्टिक के कण हैं और इनका आकार लगभग 1 माइक्रोन (मिलीमीटर का एक हजारवां हिस्सा) से लेकर 5 मिलीमीटर तक होता है। उच्च त्रुटि दर और अधिक समय की मांग के कारण इन छोटे कणों का सटीक विश्लेषण एक कठिन कार्य है। हालांकि, उनका कई स्तरों पर विश्लेषण किया जाता है और वैज्ञानिक समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर उनके दीर्घकालिक प्रभाव के बारे में चेतावनी देते हैं।

'एनवायरमेंटल पॉल्यूशण' पत्रिका में प्रकाशित एक नवीनतम शोध से पता चलता है कि हिंद महासागर में इन छोटे-छोटे खतरनाक कणों को देखा जा सकता है। नया अध्ययन न केवल हिंद महासागर में माइक्रोप्लास्टिक को मापता है बल्कि पानी के नमूनों से माइक्रोप्लास्टिक कणों को निकालने और पहचानने के लिए एक नई विधि भी विकसित की है।

शोधकर्ताओं द्वारा दावा की गई नई विधि में एलडीआईआर (लेजर डायरेक्ट इन्फ्रारेड केमिकल इमेजिंग) नामक तकनीक का उपयोग शामिल है। इसे पानी के नमूनों में माइक्रोप्लास्टिक की पहचान करने के लिए नमूना तैयार करने के लिए एक नए प्रोटोकॉल के साथ जोड़ा गया है। इसमें रासायन और एंजाइम की प्रतिक्रियाओं द्वारा इस नमूने में हस्तक्षेप करने वाले घटकों का अपघटन शामिल है। इसके लिए पिछली विधियों की तुलना में कम से कम कार्य के चरणों की आवश्यकता थी। डैनियल प्रोफ्रॉक के नेतृत्व में इस नए प्रोटोकॉल को जर्मनी हेल्महोल्ट्ज़-ज़ेंट्रम हिरॉन के पर्यावरण रसायन विज्ञान विभाग में विकसित किया गया था।

इस विधि पर टिप्पणी करते हुए अध्ययन के प्रमुख लेखकों में से एक लार्स हिल्डेब्रेंट ने कहा, "इस अध्ययन में वह उपकरण जो एक तथाकथित क्वांटम कैस्केड लेजर का उपयोग करता है उसने पर्यावरण के नमूनों में माइक्रोप्लास्टिक कणों के विश्लेषण में अपने अनुकूल स्थिति का प्रदर्शन किया। यह तेज़ और स्वचालित है जो भविष्य की मानक प्रक्रिया के लिए महत्वपूर्ण है।"

विश्लेषण से पता चला कि हिंद महासागर के निकट-सतह के पानी में औसतन एक घन मीटर पानी में 50 माइक्रोप्लास्टिक कण और फाइबर पाए गए। माइक्रोप्लास्टिक की यह मात्रा हिंद महासागर में अप्रत्याशित है और सूक्ष्म प्रदूषक की उच्च स्तर की उपस्थिति का प्रतीक है।

इस अध्ययन में उन प्रमुख स्रोतों पर भी प्रकाश डाला गया जिनसे माइक्रोप्लास्टिक समुद्र के पानी में आते हैं। इसमें कहा गया है कि इनमें से 49% पेंट कणों से मिलने का अनुमान है। माना जाता है कि इन पेंट कणों की उत्पत्ति जहाज की पेंटिंग के विखंडन से हुई है। इसके बाद पीईटी (पॉलीइथाइलीन टेरेफ्थेलेट) का स्थान आता है जिसका 25% योगदान होता है। विशेष रूप से पीईटी सिंथेटिक कपड़ों (पॉलिएस्टर माइक्रोफाइबर के रूप में) और पेय पदार्थों को स्टोर करने के लिए उपयोग की जाने वाली बोतलों के उत्पादन में उपयोग किया जाने वाला एक घटक है। पीईटी का संभावित स्रोत कपड़े की धुलाई और पेय पदार्थों के बोतलों का विनष्टिकरण है। हाल के वर्षों में माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण में लगातार वृद्धि देखी गई है। खास तौर से, प्लास्टिक के कण अब सभी समुद्री जीवों में पाए जा सकते हैं।

इस अध्ययन के एक अन्य प्रमुख लेखक एल गारेब ने उन श्रोतों पर प्रकाश डाला जिनके माध्यम से माइक्रोप्लास्टिक प्रमुख रूप से समुद्र में प्रवेश करता है। उन्होंने कहा, "हमारे परिणाम बताते हैं कि पॉलीप्रोपाइलीन, पॉलीस्टाइनिन और पॉलीइथाइलीन जैसे कई माइक्रोप्लास्टिक कण भूमि-आधारित स्रोतों से खुले समुद्र में जाने के रास्ते में खंडित हो जाते हैं। इस प्रकार, वे जीवों द्वारा और भी आसानी से निगल लिए जाते हैं। सुमात्रा और जावा के बीच का एक जलडमरूमध्य सुंडा जलडमरूमध्य के माध्यम से पाए गए प्लास्टिक कचरे का एक बड़ा हिस्सा हिंद महासागर में प्रवेश कर सकता है, जिससे यह माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण के मामले में एक हॉट स्पॉट बन गया है।”

समुद्र के पानी में अत्यधिक मात्रा में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी का एक अन्य प्रमुख मुद्दा यह है कि कचरे का एक बड़ा हिस्सा हिंद महासागर की सीमा से लगे देशों से जाता है। अप्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन रणनीतियों के कारण, लाखों टन सूक्ष्म प्रदूषक हर साल समुद्री जल में प्रवेश करते हैं जिससे समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान होता है।

इस अध्ययन के लेखकों का उद्देश्य दुनिया के अन्य महासागरों में माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषकों के अध्ययन में अपनी नई विकसित पद्धति का उपयोग करना है। इस अध्ययन के एक अन्य लेखक ट्रिस्टन ज़िमर्मन ने अपनी भविष्य की योजनाओं के बारे में बात करते हुए कहते हैं, "हम इस अगस्त महीने में शोध पोत मारिया एस. मेरियन से समुद्री यात्रा के दौरान ग्रीनलैंड के पूर्वी तट पर आर्कटिक जल का नमूना लेंगे। यहां, माइक्रोप्लास्टिक कणों के संबंध में डेटा आधार अभी भी बहुत अपर्याप्त है।" शोधकर्ता व्यापक प्रश्न को संबोधित करना चाहते हैं कि दूरदराज के क्षेत्रों में माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण कितना महत्वपूर्ण है और वे पारिस्थितिकी तंत्र को कितना गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं।

अंग्रेजी में मूल रुप से प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Microplastic Burden in Indian Ocean Clearly Measurable, Says New Study

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