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बाद 'मारने' के मेरे घर से ये सामां निकला : मुदस्सिर के बाद

हाई स्कूल में पास हुए छात्रों के घर में जहां खुशी का माहौल है, वहीं एक घर ऐसा भी है जहां सन्नाटा है। 15 वर्षीय मुदस्सिर आलम हाईस्कूल का छात्र था, वह 10 जून को रांची में हुए प्रदर्शन में गोली लगने की वजह से मारा गया था।
Mudassir

क्या आपने जलती हुई बर्फ देखी है या काली रौशनी? ज़ाहिर है दो विपरीतगामी अलंकार साथ नहीं होते, मगर ये करिश्मा भारत में हुआ। जो मुदस्सिर 10 जून को रांची में हुए प्रदर्शन में गोली लगने से मारा गया और जिसके ग़म में उसका घराना उजाड़ है, वह मुदस्सिर दसवीं में फर्स्ट डिवीज़न पास हुआ है। बताओ तो इस खुशी को किस ताक़ में रखेंगे, और मनाएंगे कैसे?

हाल ही में झारखंड बोर्ड का हाई स्कूल के परिणाम घोषित किए हैं। झारखंड 10वीं बोर्ड परीक्षा 2022 के लिए 3.99 लाख विद्यार्थियों ने पंजीकरण कराया था। इनमें से तीन लाख 37 हजार 893 छात्र-छात्राएं झारखंड बोर्ड मैट्रिक में पास हुए हैं। पास हुए छात्रों के घर में जहां खुशी का माहौल है, वहीं एक घर ऐसा भी है जहां सन्नाटा है। घर में ग़मज़दा बैठी एक मां अपने बेटे को रो रही है। यह मुदस्सिर की मां है। 15 वर्षीय मुदस्सिर आलम हाईस्कूल का छात्र था, वह 10 जून को रांची में हुए प्रदर्शन में गोली लगने की वजह से मारा गया था। इस मौत का आरोप सीधे पुलिस पर है कि पुलिस की बंदूक से निकली गोली ने मुदस्सिर की जान ले ली।

यह प्रदर्शन भाजपा के दो पूर्व नेताओं की गिरफ्तारी की मांग के लिये हुआ था, इन नेताओं ने पैग़ंबर-ए-इस्लाम पर अमर्यादित टिप्पणी की थी। पैग़ंबर-ए-इस्लाम पर की गई भाजपा नेताओं की टिप्पणी के चलते कई मुस्लिम देशों ने भारतीय राजदूत को तलब किया, जिसके बाद भाजपा ने अपने दोनों नेताओं को पार्टी से तो निकाल दिया, लेकिन उन्हें अभी तक गिरफ्तार नहीं किया गया है। 10 जून को देश के कई राज्यों में दोनों आरोपितों की गिरफ्तारी की मांग को लेकर मुसलमानों ने विरोध प्रदर्शन किया। इसी कड़ी में झारखंड के रांची शहर में होने वाले विरोध प्रदर्शन में हिंसा हो गई, इस हिंसा में गोली लगने की वजह से मुदस्सिर आलम की जान चली गई।

मुदस्सिर ने पुनदाग स्थित लिटिल एंजेल स्कूल से पढ़ाई की थी और यहीं से उसने मैट्रिक की परीक्षा भी दी थी। 21 जून को झारखंड बोर्ड की तरफ से जारी परीक्षा परिणाम में मुदस्सिर ने हाई स्कूल की परीक्षा फर्स्ट डिवीजन के साथ पास की है। मुदस्सिर को दसवीं में कुल अंक 333 (66.60 प्रतिशत) मिले हैं। मुदस्सिर को अंग्रेजी में 71, हिंदी में 64, उर्दू में 70, साइंस में 60, सोशल साइंस में 68 और मैथ में 53 अंक मिले हैं। मुदस्सिर को तक़रीबन 66% अंक मिले हैं, लेकिन अपनी इस कामयाबी को देखने के लिये वह ज़िंदा नहीं है। उसके बेबस पिता रुंधे हुई आवाज़ के साथ कहते हैं कि हमें उम्मीद थी कि एक दिन हमारा बेटा अच्छी शिक्षा हासिल करके हमारी आर्थिक हालत को सुधारेगा। मुदस्सिर के पिता परवेज़ आलम कहते हैं कि, “मैंने 10 साल की उम्र में फल बेचना शुरू किया, 38 साल की उम्र में भी मैं फल बेचता हूं। हमें उम्मीद थी कि एक दिन हमारा बेटा अच्छी शिक्षा हासिल करेगा, जिससे हमारी आर्थिक स्थिति में सुधार होगा। लेकिन अब वह हमसे हमेशा के लिए दूर हो गया।"

मुदस्सिर अपने माता पिता (परवेज़ आलम, निकहत परवीन) की इकलौती संतान था। उसकी मौत से इस परिवार को ऐसा सदमा लगा है कि वह अभी तक उससे उबर नहीं पा रहा है। मुदस्सिर आलम की मां निकहत परवीन ने दर्द भरी आवाज़ में कहती हैं कि ''10 जून को मेरे पति ठेले पर आखिरी बार फल बेचने गए थे। हमारे बेटे की मौत को 16 दिन बीत गए, लेकिन उनके पति ने फल बेचने की गरज़ से घर के बाहर कदम नहीं रखा है। वह कहते हैं कि जिसके लिए कमाता था जब वही अब ज़िंदा नहीं है, तो मैं किसके लिए काम करूं? इस हादसे ने इस परिवार को ज़िंदा लाश में तब्दील कर दिया है। 21 मई को आए मुदस्सिर की परीक्षा परिणाम ने इस दंपत्ति के दर्द को और बढ़ा दिया। परवेज़ कहते हैं, "ऐसा लगता है जैसे मेरा मुदस्सर अपनी 10वीं की मार्कशीट लेकर खड़ा है और मुझे गले लगाना चाहता है, वह हमेशा इसी तरह अपनी खुशी का इजहार किया करता था।"

बेटे को इंसाफ दिलाना जीने की वजह

निकहत परवीन बार-बार अपने बेटे की बातों को उनसे मिलने वाले रिश्तेदारों, पत्रकारों के सामने दोहराती हैं। निकहत परवीन कहती हैं, “वह (मुदस्सिर) कहता था कि उसे सरकारी नौकरी करनी है इसके लिये वह कड़ी मेहनत करेगा। उसका दसवीं का रिजल्ट देखकर मुझे उसकी सारी बातें याद आ रही हैं, अब मेरे पास जीने की एक ही वजह बची है कि मैं अपने बेटे को कोर्ट के जरिए इंसाफ दिलाऊं।” निकहत कहती हैं “हम ग़रीब आदमी हैं, किराए के मकान में रहते हैं, पूरे परिवार में सिर्फ एक मोबाइल है। मुदस्सिर मेरा इकलौता बच्चा था, मैंने अपने बच्चे को इधर-उधर उठने बैठने भी नहीं दिया, वह खुद भी कहीं बैठकर समय बर्बाद नहीं करता था। इन दिनों वह कंप्यूटर कोर्स कर रहा था, वह चाहता था कि जल्द बड़ा होकर परिवार को ग़रीबी से निकाले, लेकिन 10 जून को सब बर्बाद हो गया।”

मुदस्सिर की मां पुलिस के रवैये से भी नाराज़ हैं। वह कहती हैं कि “हम कई बार डेली मार्केट पुलिस स्टेशन गए, लेकिन वहां से अभी तक निराशा ही मिली है।” निकहत कहती हैं, “पुलिस को, सरकार को, जो जांच करनी है करे, लेकिन मेरे बेटे को इंसाफ़ दिलाए।”

मुदस्सिर के पिता परवेज़ आलम उस पल को कोसते हैं जब उन्होंने मुदस्सिर आलम को फ्रायालाल चौक की तरफ बुलाया था। परवेज़ कहते हैं, “जब प्रदर्शनकारियों की भीड़ फ्रायालाल चौक की तरफ जा रही थी तो मैं उसी जगह पर फल बेच रहा था। मैंने जुमा की नमाज़ के बाद मुदस्सर को वहां बुलाया था। जब वह मेरे ठेले के पास पहुंचा तो सड़क पर भीड़ बढ़ गई। सड़क पर बढ़ती भीड़ को देखकर मैंने फलों से लदा अपना ठेला सड़क के किनारे करना शुरू कर दिया। कुछ ही मिनट बाद मेरी नज़र मुदस्सिर पर पड़ी, वह बीच सड़क पर भीड़ के साथ खड़ा था, मैं उसे देख ही रहा था कुछ ही सेकंड में उसे गोली लगी और वह ज़मीन पर गिर गया।” यह बताते हुए परवेज़ का गलता रुंध जाता है, वह बमुश्किल अपने आपको संभालते हैं।

मुदस्सिर के बड़े पापा (ताऊ) शाहिद आलम पुलिस के रवैये से नाराज़ हैं। वे कहते हैं कि ग़रीब का कोई नहीं है, न प्रशासन, न सरकार, ग़रीब की कहीं भी सुनवाई नहीं है। हमने मुदस्सिर की मौत के बाद ही थाने में तहरीर दे दी थी, लेकिन आज इतने दिन बाद भी पुलिस ने एफआईआर दर्ज नहीं की है। यहां यह बताना जरूरी है कि 10 जून को रांची में हुई हिंसा की जांच अब सीआईडी को सौंप दी गई है। शाहिद ने बताया कि हाल ही में उन्हें और समाज के बुद्धिजीवी एंव जागरूक लोगों सीआईडी कार्यालय में बुलाया गया था वहां हमसे इस तरह से सवाल किये गए जैसे वही अपराधी हों। मुदस्सिर को इंसाफ के सवाल पर शाहिद कहते हैं कि इंसाफ मिलना इतना आसान कहां है। इंसाफ की पहली सीढ़ी पुलिस एफआईआर होती है, लेकिन दो सप्ताह का समय बीत जाने के बाद भी प्राथमिकी दर्ज ही नहीं हो सकी। हम हर दिन पुलिस स्टेशन जाते हैं और निराश होकर लौट आते हैं।

शाहिद को एक ओर भतीजे की मौत का सदमा है, दूसरी ओर अपने भाई के परिवार का सदमा है। शाहिद को इस बात का भी डर सता रहा है कि कहीं उनके भाई और भाभी इकलौती संतान को खो देने के ग़म में अवसाद ग्रस्त न हो जाएं। वे बताते हैं कि उनके भाई और भाभी मुदस्सिर की मार्क शीट सीने से लगाए रहते हैं, उनकी आंखों में आंसू हैं, और आवाज़ में दर्द है। वे ग़मज़दा तो मुदस्सिर के जाने के बाद से ही थे, लेकिन 21 जून को आए मुदस्सिर की परीक्षा परिणाम ने उनके सदमा और गहर कर दिया है। मिर्ज़ा का एक मशहूर शेर है- 'चंद तस्वीर ए बुता और चंद हसीनाओं के ख़ुतूत, बाद मरने के मेरे घर से ये सामां निकला'।

मुदस्सिर मर गया है मगर उसकी मार्कशीट के ख़त का वो घर क्या करे जिसका परस्तार ही चला गया।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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