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पठानकोट-पुलवामा में NIA की चार्जशीट: अब पाकिस्तान का हाथ, तब जिहादी ताकत!

2016 में NIA पाकिस्तान को ज़िम्मेदार ठहराने से बच रहा था, आज आतंकियों को ‘जिहादी’ बताने से बचा गया है।
पठानकोट-पुलवामा में NIA की चार्जशीट: अब पाकिस्तान का हाथ, तब जिहादी ताकत!

25 अगस्त को एनआईए की ओर से दायर चार्जशीट में दो बातें पूरे देश और दुनिया का ध्यान खींचने वाली हैं। एक- पुलवामा हमले में पाकिस्तान का हाथ। दूसरा- बालाकोट स्ट्राइक की तारीफ। इन दोनों बातों का महत्व पता चलता है जब पुलवामा हमले और पठानकोट हमले से जुड़ी चार्जशीट की हम तुलना करते हैं। पठानकोट हमले की चार्जशीट में पाकिस्तान का नाम लेने से बचा गया था जबकि षडयंत्रकारी संगठन और नेतृत्व से लेकर घटना को अंजाम देने के तौर-तरीके दोनों घटनाओं में लगभग एक समान हैं। दोनों आरोप-पत्रों को देखने से भी यह बात साफ तौर पर मालूम पड़ जाती है।

पठानकोट-पुलवामा हमलों का मास्टरमाइंड मसूद अजहर-राउफ असगर

एनआईए की ओर से पुलवामा आतंकी हमले और पठानकोट आतंकी हमले में दायर चार्जशीट में सबसे बड़ी समानता यह है कि दोनों हमलों में पहले और दूसरे नंबर पर वही दो नाम हैं- मसूद अजहर और राउफ असगर। पुलवामा हमले में एक और बड़ा नाम जुड़ गया है मसूद अजहर का भाई अम्मार अलवी उर्फ चाचा उर्फ छोटा मसूद। यह बात भी समान रूप से पायी गयी है कि दोनों हमले पाकिस्तान स्थित जैश-ए-मोहम्मद के नेतृत्व की ओर से रची गयी सुनियोजित आपराधिक साजिश का नतीजा थे।

दिसंबर 2016 में पठानकोट हमले में दायर चार्जशीट का हिस्सा

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पठानकोट और पुलवामा हमले की चार्जशीट में आतंकी हमले, हमलावर, षडयंत्र, ट्रेनिंग, तौर-तरीके और कई अन्य मामलों में बड़ी समानता है। मगर, चौंकाने वाली बात यह है कि एनआईए ने अपने आरोप पत्र में पुलवामा हमले में खुलकर पाकिस्तान का हाथ बताया गया है। जबकि, इसी एनआईए ने पठानकोट हमले में कहीं भी पाकिस्तान का नाम नहीं लिया था।

गौर करने वाली बात यह है कि जैश-ए-मोहम्मद का जिक्र एनआईए ने 2016 में पाकिस्तान में गैर कानूनी संगठन के तौर पर किया था। तब कहा गया था कि पठानकोट हमले को पाकिस्तान की सरजमीं से अंजाम तो दिया गया, लेकिन इसमें पाकिस्तान के नॉन स्टेट एक्टर्स का हाथ था। पाकिस्तान को एक तरह से क्लीन चिट दी गयी थी। ये वही समय था जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ब्रेकफास्ट अफगानिस्तान में, लंच पाकिस्तान में और डिनर हिन्दुस्तान में करने का शौक पूरा कर रहे थे। 25 दिसंबर 2015 को पीएम मोदी लाहौर पहुंचे थे और एक हफ्ते बाद 2 जनवरी 2016 को पठानकोट में आतंकी हमला हो गया था। नवाज़ शरीफ के साथ नरेंद्र मोदी की खूब छन रही थी।

ISI ने भी की थी पठानकोट हमले की जांच

पीएम नरेंद्र मोदी और पीएम नवाज शरीफ में करीबी का ही नतीजा था कि पठानकोट हमले की जांच के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराना तो दूर, पाकिस्तान की एजेंसियों को जांच के लिए भारत बुला लिया गया था। पठानकोट हमले की जांच के लिए पाकिस्तान से 5 सदस्यों की संयुक्त जांच टीम पठानकोट आयी थी जिसमें पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई भी शामिल थी। बाद में इस जांच टीम ने हमले में पाकिस्तान का हाथ होने से इंकार किया था।

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पुलवामा हमले में पाकिस्तान का हाथ- चार्जशीट

एनआईए की वेबसाइट पर मौजूद पुलवामा हमले से जुड़े आरोप-पत्र के दस्तावेज में चार्जशीट के 12वें बिन्दु के अंतिम हिस्से में कहा गया है कि आरोप पत्र में पाकिस्तान स्थित सभी संस्थानों की संलिप्तता को रिकॉर्ड में लाया गया है जो कश्मीरी युवाओँ को भड़काते और उकसाते हैं और भारत में आतंकी हमले कराते हैं। वहीं इससे पहले 11वें बिन्दु में कहा गया है कि जांच में यह भी खुलासा हुआ है कि पाकिस्तान शासकों (Establishment) की ओर से आतंकियों को भारतीय क्षेत्र में अच्छे तरीके से योजना बनाकर भेजा जाता है। ये आतंकी जम्मू के साम्बा-कठुआ सेक्टर के ठीक दूसरी ओर पाकिस्तान स्थित शकरगढ़ स्थित लांच पैड से भेजे जाते हैं।

आरोप-पत्र में यह बात भी उल्लेखनीय है कि जैश-ए-मोहम्मद अपने कार्यकर्ताओँ को विस्फोट और अन्य आतंकी प्रशिक्षण के लिए अफगान स्थित अलकायदा-तालिबान-जैश-ए-मोहम्मद और हक्कानी-जैश-ए-मोहम्मद के पास भेजा करता था।

NIA के आरोप पत्र में बालाकोट स्ट्राइक की तारीफ़

NIA के पठानकोट और पुलवामा के आरोप पत्रों को देखकर ऐसा लगता है मानो यह किसी आतंकी हमले की जांच के साथ-साथ शासकीय नीति के हिसाब से पॉलिटिकली करेक्ट होने की कोशिश की गयी हो। ताजा चार्जशीट में बालाकोट स्ट्राइक की इस रूप में प्रशंसा की गयी है कि इसी वजह से हाफिज सईद और साथियों की दूसरे हमले की योजना नाकाम हो गयी और पाकिस्तान पहले की तरह झूठ नहीं बोल पाया।

भारत में आतंकी हमलों में पाकिस्तान की सरजमीं का इस्तेमाल भी होता रहा है और षडयंत्रकारियों को पाकिस्तान के हुक्मरानों का समर्थन भी मिलता रहा है। इसके बगैर ये घटनाएं हो नहीं सकतीं। फिर भी नेशनल इन्वेस्टिगेंटिंग एजेंसी जब इसकी जांच करती है तो इसके सबूत पेश किए जाते हैं। इस बार भी कई ऐसी बातचीत को बतौर सबूत पेश किया गया है जिससे यह पता चलता है कि भारत में पुलवामा हमले के पहले और बाद भी आतंकियों को पाकिस्तान से निर्देश दिए जाते रहे। मगर, सवाल यह है कि क्या पठानकोट हमले में भारत के पास ऐसे सबूत नहीं थेतब क्यों पाकिस्तान की सरकार को क्लीन चिट दी गयी?

पठानकोट की चार्जशीट में जिहाद, पुलवामा की चार्जशीट में जिहाद का जिक्र नहीं

यह बात भी उल्लेखनीय है कि जिहाद शब्द का इस्तेमाल पुलवामा हमले की ताजा चार्जशीट से जुड़े दस्तावेज में एक बार भी नहीं दिखता। जबकि, पठानकोट हमले से जुड़े दस्तावेज में यह शब्द बार-बार आया है। तब कहा गया था कि युवाओं को जिहाद के नाम पर तैयार किया जाता है, उकसाया जाता और उनसे आतंकी गतिवधियों को अंजाम दिलाया जाता है।

दिसंबर 2016 में मोहाली स्थित एनआईए के स्पेशल कोर्ट में दायर पठानकोट हमले की चार्जशीट में बताया गया था कि जांच के दौरान यह तथ्य सामने आया था कि पठानकोट स्थित एअर फोर्स स्टेशन पर हमला आतंकी कार्रवाई थी। यह पाकिस्तान में मौजूद गैर कानूनी संगठन जैश-ए-मोहम्मद को चलाने वाले और उसके नेताओं की साजिश का नतीजा थे। इसी संगठन ने जम्मू-कश्मीर के कठुआ, साम्बा, तंगधार और राजबाग के साथ-साथ दिल्ली में भी फिदायीन हमलों की जिम्मेदारी ली थी।

पठानकोट और पुलवामा हमलों के आरोपपत्रों में जो एक बात समान रूप से देखी गयी है वह यह है कि भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने के मकसद से बड़ी साजिश के तहत पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर स्थित आतंकी कैम्प में आतंकियों की नियुक्ति और प्रशिक्षण दिए जाते हैं ताकि उन्हें अवैध तरीके से भारतीय क्षेत्र में भेजा जा सके और आतंकी कार्रवाई को अंजाम दिया जा सके।फिर भी एक फर्क है कि पहले पाकिस्तानी शासक का नाम तब नहीं आया था, इस बार खुलकर आया है।

सार यह है कि पाकिस्तान की सरजमीं से भारत में आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है। चाहे उसे गैरकानूनी जैश-ए-मोहम्मद कहें या फिर सीधे पाकिस्तानी हुक्मरान की कार्रवाई। आखिर इस बात से कौन इनकार कर सकता है कि जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठन को पाकिस्तान की सरकार का संरक्षण प्राप्त है? 2016 में NIA पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराने से बच रहा था, आज आतंकियों को जिहादी बताने से बचा गया है। आज पाकिस्तान को इन घटनाओं के लिए जिम्मेदार माना गया है, तब वही जैश-ए-मोहम्मद गैर कानूनी संगठन और जिहादी था। जिहाद के नाम पर लोगों को भड़काने वाला संगठन था। आरोप पत्र में बालाकोट स्ट्राइक की तारीफ भी याद की जाएगी।

 

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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