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दिल्ली दंगे का एक साल : पीड़ित परिवार ने कहा 'पुलिस ने भरोसा तोड़ा'

दिल्ली दंगे के एक साल पूरे होने पर सीपीआई(एम) द्वारा आयोजित प्रेस-कॉन्फ्रेंस में पार्टी की पोलिट ब्यूरो सदस्य बृंदा करात ने कहा, "भाजपा ने अपना शब्दकोश बदल दिया है। उसमें कपिल मिश्रा और अनुराग ठाकुर जैसे नेताओं की अभद्र भाषा एवं राष्ट्रविरोधी कार्य को देशभक्तिपूर्ण कार्य माना जाता है।"
 सीपीआई(एम)

सीपीआई(एम) की दिल्ली कमेटी की ओर से मंगलवार 23 फरवरी को दिल्ली दंगे के एक साल पूरे होने पर प्रेस-कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया जिसमें दंगे के पीड़ितों और पार्टी की पोलिट ब्यूरो सदस्य बृंदा करात सहित अन्य लोगों ने अपनी बात रखी। पीड़ित परिवारों ने कहा कि एक साल बीत जाने के बाद भी सांप्रदायिक हिंसा के शिकार परिवारों को न्याय नहीं मिला। उल्टा पुलिस चश्मदीद गवाहों को ही धमकाने का काम कर रही है।

मुशर्रफ मूल रूप से बदायूं के रहने वाले थे। वो भागीरथ विहार में किराए पर रहते थे। परिवार में पत्नी मल्लिका और तीन बच्चे हैं। ग्रामीण सेवा(ऑटो रिक्शा) चलाकर परिवार का पेट पालने वाले मुशर्रफ दंगे की स्थिति को देखते हुए 25 फरवरी 2020 को रिक्शा चलाने नहीं गए थे। घर पर ही तीसरी मंजिल से स्थिति पर नज़र बनाए हुए थे। उन्हें 25 फरवरी 2020 को भागीरथ विहार में उनके घर से निकाल कर दंगाइयों ने मार दिया था।

यह एक पीड़ित की कहानी थी। ऐसी ही कई कहानियों को लेकर भारत की कम्युनिस्ट पार्टी(मार्क्सवादी) यानि सीपीआई(एम) की दिल्ली राज्य कमेटी की ओर से मंगलवार 23 फरवरी को उत्तर-पूर्वी दिल्ली की सांप्रदायिक हिंसा के एक साल पूरे होने पर प्रेस-कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया जिसमें राज्य में पिछले साल हुए दंगे के पीड़ितों और पार्टी की पोलिट ब्यूरो सदस्य बृंदा करात सहित अन्य लोगों ने अपनी बात रखीI पीड़ित परिवारों ने कहा कि एक साल बीत जाने के बाद भी सांप्रदायिक हिंसा के शिकार परिवारों को न्याय नहीं मिला। उन्होंने साफ-साफ कहा कि सांप्रदायिक हिंसा में शामिल अपराधियों के खिलाफ कार्यवाही करने की बात तो दूर पुलिस ने उन अपराधियों के खिलाफ मामला भी नहीं दर्ज किया है। उल्टा पुलिस चश्मदीद गवाहों को ही धमकाने का काम कर रही है। उन्होंने करावलनगर क्षेत्र के भाजपा विधायक मोहन सिंह बिष्ट का नाम लेकर उनकी साम्प्रदायिक हिंसा में नेतृत्वकारी भूमिका की बात भी रखी। हिंसा का शिकार हुए परिवार के सदस्यों ने प्रेस से अपील करते हुए कहा कि इस नाउम्मीदी के दौर में प्रेस अभी भी हमारे लिए एक उम्मीद है। प्रेस हमारी बात ज़रूर उठाए।

मुशर्रफ की पत्नी मल्लिका प्रेस कॉन्फ्रेंस में आई और अपना दर्द बयां किया और उस ख़ौफ के मंजर को याद किया। अपनी बातों को मीडिया के सामने रखते हुए वो रोने लगी और रोते हुए बताया, "25 तारीख़ को घर के बाहर हंगामा हो रहा था। वे (मुशर्रफ) सब माहौल सामान्य होने की दुआ मांग रहे थे। इसी दौरान एक भीड़ ने घर का दरवाज़ा तोड़ दिया। छत पर आकर उन्होंने मुझे (मल्लिका) और तीनों बच्चों को एक कमरे में बंद कर दिया और मुशर्रफ पर हमला बोल दिया।" मल्लिका ने बताया कि भीड़ ने उनके पति को बुरी तरह पीटा। चीख सुनकर वह बार-बार अंदर से ही पति को छोड़ने की गुहार लगा रही थीं। फिर अचानक शोर थम गया, उन्हें लगा कि भीड़ चली गई तो उन्होंने मुशर्रफ को आवाज़ लगाई। मगर जवाब नहीं मिला। काफी देर बाद जब पड़ोसियों ने उन्हें घर से बाहर निकाला तो मुशर्रफ का अता-पता नहीं था। मल्लिका के मुताबिक उन्हें नहीं पता कि मुशर्रफ की मौत घर पर हो गई थी या भीड़ उन्हें ज़िंदा उठाकर ले गई थी। फिर उन्हें पहले जलती गाड़ियों पर फेंका और फिर उनकी लाश को नाले में फ़ेंक दिया। 26 फरवरी को सूचना मिली कि मुशर्रफ का शव एक नाले से बरामद हुआ है।

उन्होंने पुलिस पर भी आरोप लगाए और कहा, "पुलिस ने भी कोई मदद नहीं की है। मैंने अपने पति को घर के बेड में छुपाया था लेकिन उसे निकाल कर बेदर्दी से मार दिया। उसके बाद हमारे बच्चे को भी मारने को धमकी दी। मैं रात में 11 बजे सिंदूर और बिंदी लगाकर अपने बच्चों को निकालकर गई और किसी तरह से उनकी जान बचा पाई थी। आज भी इंसाफ नहीं मिला है।

शिव विहार में रहने वाले मोहम्मद वकील की उनके घर के नीचे ही परचून की दुकान थी। इस दुकान से होने वाली आमदनी से उनके सात सदस्यीय परिवार का गुज़ारा चल रहा था। लेकिन पिछले वर्ष इन्हीं दिनों इस इलाके में हुए सांप्रदायिक दंगों ने उनकी जिंदगी की गाड़ी को पटरी से उतार दिया। दंगे के दौरान फेंकी गई एक तेजाब की बोतल की चपेट में आने से उनकी आंखें चली गईं और वह अब परिवार के भरण पोषण की बात तो दूर अपनी नियमित दिनचर्या के लिए भी दूसरों के मोहताज हैं। वकील जिनकी उम्र 52 वर्ष थी वो शिव विहार फेज-छह की गली नंबर 13 में बीते तीस साल से रह रहे हैं।

दिल्ली दंगे में वैसे तो पूरा उत्तर पूर्व दिल्ली ही चपेट में था लेकिन हिंसा का सबसे अधिक तांडव शिव विहार में ही हुआ था। वकील ने प्रेस क्लब में मीडिया से बात करते हुए बताया कि ‘‘उस दिन (25 फरवरी को) मैं अपने घर की छत पर था। तभी अचानक किसी ने तेजाब से भरी बोतल फेंकी। मेरे चेहरे के पास यह बोतल फटी और मेरी आंखों के आगे अंधेरा छा गया।’’ वकील ने बताया, ‘‘हमारी गली में 25 फरवरी को दिनभर तनाव था। परिवार के सारे सदस्य घर में ही थे। हमने घर के दरवाज़े बंद कर लिए थे। मैं बाहर का जायज़ा लेने छत पर गया और नीचे देख ही रहा था तभी किसी ने मुझे निशाना बनाते हुए कांच की बोतल फेंकी जिसमें तेजाब भरा हुआ था।'' वकील ने बताया कि तेजाब की वजह से उनकी आंखों की रोशनी पूरी तरह जा चुकी है। उन्होंने कहा, "हमें दो लाख मुआवज़ा दिया गया। लेकिन हमें न्याय चाहिए।

इस दंगे के दौरान सुरक्षा बलों की भूमिका पर भी गंभीर सवाल उठ रहे हैं। दंगे के दौरान ही एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें सुरक्षा बल के लोग कुछ लड़कों को जन-गण-मन गाने के लिए बोल रहे हैं और उन्हें बुरी तरह पीट रहे हैं। इसी में पुलिस की मार से मरने वाले युवकों में से एक थे वसीम। उनके पिता भी आए और उन्होंने कहा कि पुलिस ने भरोसा तोड़ दिया। हमें हमारे बेटे की याद आती है। पुलिस शिकायत नहीं ले रही है बल्कि जो हमारी मदद कर रहे हैं उल्टा उन्हे परेशान किया जा रहा है।

सीपीआई(एम) की पोलिट ब्यूरो सदस्य बृंदा करात ने प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए आरोप लगाया कि गृह मंत्री अमित शाह और दिल्ली पुलिस ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा को जानबूझकर रोकने का प्रयास नहीं किया। उन्होंने आगे कहा, "दिल्ली पुलिस वास्तव में सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए हस्तक्षेप नहीं कर रही थी, खासकर उन स्थानों पर जहाँ अल्पसंख्यकों पर हमले हो रहे थे। भाजपा ने अपना शब्दकोश बदल दिया है। उसमें कपिल मिश्रा और अनुराग ठाकुर जैसे नेताओं की अभद्र भाषा एवं राष्ट्रविरोधी कार्य को देशभक्तिपूर्ण कार्य माना जाता है।"

बृंदा करात ने कहा, "आज एक साल बाद भी सभ्य सरकार और कोर्ट से न्याय की उम्मीद की जानी चाहिए लेकिन वो अबतक नहीं मिला है।"

उन्होंने कहा कि भाजपा अपनी नीतियों के खिलाफ किसी भी असंतोष या विरोध को खत्म करना चाहती है, चाहे वह सीएए हो या कृषि कानून। उन्होंने आगे कहा कि दिल्ली पुलिस ने पीड़ितों / मृतकों के बयान को दर्ज करने से इनकार कर दिया है। इसके बजाय दिल्ली पुलिस द्वारा पीड़ितों के परिवारों को धमकी दी जा रही है और अल्पसंख्यक समुदाय के युवाओं को झूठे मामलों में फंसाया जा रहा है। केवल एक स्वतंत्र जांच ही उत्तर पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा की सच्चाई को उजागर कर सकती है।

उन्होंने आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार के द्वारा पीड़ित परिवारों की मदद में हो रही कमी को रेखांकित किया। 18 साल की उम्र के होने के कारण चार मृतक परिवारों को मुआवज़े के तौर पर मात्र 5 लाख दिया गया है जो किसी भी तरह से ठीक नहीं। सहायता से ज़्यादा जरूरी है कि जिन परिवारों में कमाने वाले सदस्य की हत्या हो गई है उनके आश्रितों को जीवन-यापन में मदद दी जाए। उन्होंने दिल्ली सरकार से इस संदर्भ में तुरंत योजना लाने की मांग की।

आपको बता दें पिछले साल हुए दिल्ली दंगे में दिल्ली के उत्तर-पूर्व क्षेत्र में हिंसा का तांडव हुआ था। 23 फरवरी, 2020 से शुरू होने वाली हिंसा का नंगा-नाच पांच दिनों तक चलता रहा। इस दंगे के प्रमुख केंद्र में जाफराबाद, खजूरी खास, शिव विहार, मुस्तफाबाद और करावल नगर था। इस पूरी हिंसा में 53 से अधिक लोगों की मौत हुई थी।

इन दंगों ने राष्ट्रीय राजधानी में अल्पसंख्यकों के जीवन पर एक लंबे समय तक प्रभाव छोड़ा जबकि कई उत्पीड़न और गिरफ्तारी का सामना कर रहे हैं।

पुलिस ने इस दंगे के आरोप में छात्रों और कई सामाजिक कार्यकर्ता जो एंटी सीएए प्रोटेस्ट का हिस्सा थे जैसे कि नताशा नरवाल और देवांगना कलिता, कार्यकर्ता उमर खालिद और कई अन्य उनपर इस हिंसा का आरोप लगाते हुए अब तक कुल 1,825 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। पुलिस की इस जाँच को लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं और कहा जा रहा है कि पुलिस के द्वारा मुख्य आरोपियों को बचाने के लिए इस तरह के लोगो को फँसाया जा रहा है।

हालाँकि दिल्ली पुलिस इन आरोपों को लगातार नकारती रही हैं। बृंदा करात द्वारा उच्च न्यायालय में दाखिल एक याचिका के जवाब में पुलिस ने शपथ पत्र दाखिल किया और दावा किया कि दिल्ली दंगे की जाँच के दौरान पुलिस बल किसी भी तरह से दोषी नहीं है।

इस पर बृंदा ने कहा, "कई ऐसे सबूत है जहाँ पुलिस दंगाइयों के साथ खड़ी दिख रही है फिर भी इसे सिरे से नकारना दिखाता है कि इस दंगे और दंगाइयों को सत्ता का संरक्षण प्राप्त था।"

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