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‘हमारी फिल्मों का ‘ऑस्कर’ वाला ख्व़ाब’!

भारतीय फिल्मों की दुनिया विशाल है, पूरी दुनिया के मुकाबले हर साल सबसे अधिक फ़िल्में यानी लगभग एक हज़ार फ़िल्में यहीं बनाती हैं। फिर ऐसा क्यों होता है कि एक भी फिल्म ऐसी नहीं होती जो ‘ऑस्कर’ के मज़बूत दरवाजों को खटखटा सके!
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दुनियाभर में सिनेमा जगत के सबसे चर्चित पुरस्कार ऑस्कर यानी अकेडमी अवॉर्ड्स साल 2020 के नामांकन का ऐलान 13 जनवरी को हो चुका है। इसकी वोटिंग जनवरी के पहले सप्ताह में हुई थी। ये पुरस्कार 9 फरवरी, 2020 को दिए जायेंगे। यह दुनिया भर के 225 से अधिक देशों में लाइव देखा जा सकेगा।

92वें अकादमी पुरस्कारों के लिए इस बार नौ कटेगरी में व्यक्तियों और फिल्मों को शॉर्टलिस्ट किया गया है। कड़ी वोटिंग प्रक्रिया के कारण डॉक्यूमेंट्री फीचर में 159 फिल्मों में से टॉप फाइव में ‘अमेरिकन फैक्ट्री, द केव, द एज ऑफ़ डेमोक्रेसी, फॉर समा और हनीलैंड’ ही अपना स्थान बना सकी हैं ।

डॉक्यूमेंट्री शॉर्ट सब्जेक्ट में 96 फिल्मों में अंतिम शॉर्ट लिस्टेड 10 फिल्मों में से टॉप फाइव में ‘इन द अबसेन्स,लर्निंग टु स्केटबोर्ड इन वॉरज़ोन, लाइफ ओवरटेक्स मी, सेंट लुईस सुपरमेन और ‘वाक रन चा-चा’ ही शॉर्ट लिस्ट हो सकीं हैं।

इंटरनेशनल फीचर फिल्म या यूँ कहें कि फॉरेन लैंग्वेज़ बेस्ट फिल्म कटेगरी में 91 फिल्मों में से केवल 10 फ़िल्में अगले राउंड की वोटिंग में क्वालीफाई कर सकीं हैं। जिसमें से टॉप फाइव में अपनी जगह बनाने में कामयाब रहीं पोलैंड की "कॉर्पस क्रिस्टी", मैसेडोनिया की "हनीलैंड", फ्रांस की "लेस मिजरेबल्स", साउथ  कोरिया की "पैरासाइट" और स्पेन, की "पेन & ग्लोरी" ।

जिन फिल्मों ने प्रोडक्सन डिजाइन में टॉप फाइव में जगह बनाई उनमें हैं ‘द आयरिश मैन,जो-जो रैबिट,1917, वन्स अपान अ टाइम इन हॉलीवुड और पैरासाईट ने।

जिन फिल्मों ने बेस्ट फिल्म एडिटिंग के लिए टॉप फाइव में जगह बनाई है, वे हैं ‘द आयरिश मैन, जो-जो रैबिट, फोर्ड वर्सेज फरारी, जोकर और पैरासाईट। जिन फिल्मों में बेस्ट सिनेमेटोग्राफी के लिए टॉप फाइव में जगह बनाई हैं, वे हैं ‘द आयरिश मैन,जोकर, द लाइट हाउस,1917 और वन्स अपान अ टाइम इन हॉलीवुड ।

बेस्ट विजुअल इफेक्ट कटेगरी में एक्सपर्ट ने ऑस्कर के लिए अंतिम पांच में "एवेंजर्स: एंडगेम्स" द आयरिशमैन" "1917" "स्टार वार्स: द राइज़ ऑफ़ स्काईवॉकर" और ‘द लायन किंग" को सलेक्ट किया है ।

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बेस्ट मेकअप और हेयर स्टाईल कटेगरी में टॉप फाइव फ़िल्में हैं, बूमसेल, जोकर, जूडी,मेलिफिस्नेट- मिस्ट्रेस ऑफ़ ईविल और 1917।
बेस्ट एनिमेटेड शॉर्ट फिल्म कटेगरी में शामिल 92 फिल्मों में से सलेक्ट दस फिल्मों में से जिन फिल्मों ने टॉप फाइव में जगह बनाई है, वे हैं, हाऊ टू ट्रेन योर ड्रेगन(द हिडेन वर्ड), आई लॉस्ट माई बॉडी,क्लस,मिसिंग लिंक और टॉय स्टोरी-4।

म्यूजिक (ओरिजिनल स्कोर) की कटेगरी में 170 फिल्मों में से अंतिम 15 फिल्मों में से जिन टॉप फाइव सॉंग ने जगह दी गई है उसमें हैं ‘आई कांट लेट यू थ्रो योर सेल्फ अवे( टॉय स्टोरी -4, लव यु अगेन (रॉकमेन) आई एम स्टैडिंग विद यू(ब्रेक थ्रू), इन टू द अननोन( फ्रोजन 2nd) और स्टैंडअप(हैरियेट)।

अडॉप्टड बेस्ट स्क्रीन प्ले के लिए टॉप फाइव में स्टीवन जलींन (द आयरिश मैन),टायिका वाईटीटी(जो जो रैबिट),टॉड फिलिप्स और स्कॉट सिल्वर(जोकर), ग्रेटा गेर्विज (लिटिल वीमेन), और एन्थोनी मैकेन(द टू पोप्स) को नामांकित किया गया है।

ओरिजनल बेस्ट स्क्रीन प्ले के लिए टॉप फाइव में नामांकित हुए हैं, रियान जोन्सन( नीव्स आउट),नोह बौमेक (मैर्रिज स्टोरी), सैम मेंडेस और क्रिस्टी विल्सन( 1917), क्वेंटिन टरन्टीनों(वन्स अपान अ टाइम इन हॉलीवुड) और फिल्म पैरासाईट के लिए बोंग जून हो एवं हैन जिन होन ।

बेस्ट लीड एक्टर में टॉप फाइव में जो नामांकित हुए हैं उनमें हैं अंटोनियो ब्रेंदर्स( पेन & ग्लोरी),लियांर्दो डीकेप्रिओ((वन्स अपान अ टाइम इन हॉलीवुड),एडम ड्राईवर ( मैरिज स्टोरी), जैक्वीन फोनिक्स( जोकर) और जोंनथन प्रेज ( द टू पोप्स) ।

बेस्ट डायरेक्शन के लिए टॉप फाइव में जो नामांकित हुए हैं उनमें हैं द आयरिश मैन के लिए मार्टिन स्कोर्सेज,जोकर के लिए टॉड फिलिप्स, वन्स अपान अ टाइम इन हॉलीवुड के लिए क्वेंटिन टरन्टीनों और पेरासाईट के लिए बोंग जून हो ।

बेस्ट लीड एक्ट्रेस में टॉप फाइव में जो नामांकित हुए हैं, उनमें हैं, सिन्थियाँ इरियो(हरियेट), स्कारलेट जोंसन (मैरिज स्टोरी),चार्लीज थेरोन( बूमसले) और रेनी जेलवेगर(जूडी)।और अंत में बेस्ट पिक्चर के लिए फ़ाइनल रेस में नामांकित हुई कुल 9 फ़िल्में हैं, फोर्ड वर्सेज फरारी, आयरिश मैंन, जो जो रैबिट, जोकर, लिटिल वीमेन, मैरिज स्टोरी, 1917, वन्स अपान अ टाइम इन हॉलीवुड और पैरासाईट ।

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यहाँ सवाल इस बात का है कि इन घोषित नामांकनों में भारत की कोई भी फिल्म नहीं है ? वो इस लिए क्योंकि हमारी फिल्म ‘टॉप फिफ्टीन’ में भी जगह नहीं बना सकी तो टॉप फाइव में आने का सवाल ही नहीं उठता लेकिन ये सवाल ज़रूर उठता है कि ऐसा क्यों होता है? और एक अदद ‘ऑस्कर’ का ख़्वाब क्यों भारतीय फिल्म मेकर पाले रहते हैं ?

हमारी फिल्मों की विशाल दुनिया, पूरी दुनिया के मुकाबले हर साल सबसे अधिक फ़िल्में यानी लगभग एक हज़ार फ़िल्में बनाती हैं। लेकिन ऐसा क्यों होता है कि एक भी फिल्म ऐसी नहीं होती जो ‘ऑस्कर’ के मज़बूत दरवाजों को खटखटा सके! वास्तव में इतनी सारी फिल्मों में ये ज़रूरी नहीं कि सब अच्छी हो या सब हिट भी हों। इनमें से कुछ फ़िल्में ठीक होती हैं, कुछ अच्छी होती हैं और कुछ बहुत अच्छी होती हैं पर होता ये है कि इसका आंकलन फिल्मों के हिट होने या न होने से नहीं बल्कि उस फिल्म को मिलने वाले महत्वपूर्ण सम्मानों से होता है।

इन सम्मानों में हमारे देश में नेशनल अवार्ड मिलना गर्व की बात मानी जाती है और ऐसे ही पब्लिक चाँईज अवार्ड  में फिल्म फेयर अवार्ड मिलना भी एक महत्वपूर्ण बात मानी जाती है लेकिन इन सबसे ऊपर दुनिया भर के फिल्ममेकर्स का ख़्वाब होता है कि उन्हें ऑस्कर अवार्ड मिल जाए। क्योंकि ‘ऑस्कर’ अवार्ड दुनिया भर में फिल्मों का सर्वाधिक प्रतिष्ठित अवार्ड माना जाता है ।

ये प्रतिष्ठित फिल्म अवार्ड यानी अमेरिकन फिल्म अकेडमी अवार्ड 1929 में शुरू हुए थे। पहले इन्हें अमेरिकन फिल्म अकेडमी अवार्ड के नाम से ही दिया जाना था लेकिन जब इसकी ट्राफी बनकर ऑफिस में आई तो वहां काम करने वाली एक महिला क्लर्क ने यूँ ही मजाक में बोला कि ये तो उनके अंकल ऑस्कर जैसी दिखती है! मजाक में कही गई ये बात सब लोगों को एकदम क्लिक कर गई और इस तरह ये अवार्ड दुनिया भर में प्रतिष्ठित “ऑस्कर” अवार्ड बन गया।  

हर साल आयोजित  होने वाले इस प्रतिष्ठित सम्मान को हासिल करने के लिए दुनिया भर के लोग अपनी फ़िल्में भेजते हैं। ऐसे ही हमारा देश भी हर साल किसी एक फिल्म को ऑस्कर में भेजने के लिए के लिए नॉमिनेट करती है। ऑस्कर नॉमिनेशन भी किसी फिल्म के लिए  एक बड़े सम्मान की बात मानी जाती है। लेकिन अगर कोई व्यक्तिगत रूप से भी फ़िल्में भेजना चाहे तो वो भेज सकता है यद्यपि अनऑफिसियली इंट्री के रास्ते और भी कठिन होते हैं ।

इस साल आयोजित होने वाले ऑस्कर अवार्ड में 91 देशों ने अपनी फ़िल्में भेजी थीं। जिसमें  फिल्मों में इंडियन इंट्री के रूप में जोया अख्तर की फिल्म ‘गली बॉय’ भेजी गई थी। जो दुर्भाग्य से नॉमिनेशन की टॉप फिफ्टीन फिल्मों में भी अपना स्थान नहीं बना सकी! जिसमें से ऑस्कर के लिए अंतिम टॉप फाइव फिल्मों का चयन होता है। कुछ मौके को छोड़ दिया जाय तो ज्यादातर मौके में भारत के साथ यही होता है कि वे टॉप फाइव में भी अपना स्थान नहीं बना पातीं हैं ।

सवाल ये कि ऐसा क्यों होता है? अब जैसे गली बॉय की बात की जाय तो एक रैपर के रियल इंसिडेंट पर बेस्ड इस फिल्म में रणवीर सिंह और अलिया भट्ट ने काम किया है। इस फिल्म ने इन्डियन बॉक्स ऑफिस में भी अच्छा बिजिनेस किया था और काफी तारीफें भी बटोरीं लेकिन यहाँ ये जानना ये ज़रूरी है कि यह बात फिल्म को ऑस्कर में भेजने का कोई मापदंड नहीं है। असली मापदंड होता है फिल्म का कंटेंट और मेकिंग का अच्छा होना ।

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ऐसे ही इस साल प्रसार भारती और दूरदर्शन द्वारा निर्मित एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘मोती बाग' को भी ऑस्कर पुरस्कार के लिए भेजा गया था। यह डॉक्यूमेंट्री उत्तराखंड के पौढ़ी गढ़वाल के एक गाँव सांगुणा के किसान विद्यादत्त शर्मा पर आधारित है। जो गाँव से पलायन के इस दौर में रिटायर होने के बाद रहने के लिए शहर की बजाय अपना गाँव चुनते हैं और यहाँ आकर पहाड़ों में किसानी करते हुए एक उपजाऊ मोती बाग़ बनाते हैं। यह फ़िलहाल शार्ट फिल्म (लाइव एक्शन) में भेजी गई थी।

पिछले साल 2018 में ‘न्‍यूटन’ फिल्म को भारत की तरफ से विदेशी भाषा में सर्वश्रेष्ठ फिल्म के ऑस्‍कर सम्मान के लिए बतौर ऑफिसियल एंट्री भेजा गया था। फिल्म की कहानी में पोलिंग एजेंट बना नायक नक्सली आतंक के बीच महज कुछेक वोट के लिए अपनी जान पर खेल जाता है लेकिन वो वोटिंग करवा के ही मानता है। इस फिल्म को अमित मसूरकर ने डायरेक्ट किया था और मनीष मुंद्रा ने प्रोड्युज किया था। फिल्म में राजकुमार राव और पंकज त्रिपाठी की भूमिकाओं को काफी सराहा गया।

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फिल्म ने 63 वें फिल्मफेयर अवार्ड्स में आठ नामांकन हासिल किये थे जिसमें क्रिटिक्स की ओर से बेस्ट फिल्म के साथ राजकुमार राव को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और पंकज त्रिपाठी को सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का पुरस्कार प्राप्त किया। फिल्म को सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। यह फिल्म भी ऑस्कर में अंतिम पांच में भी अपना स्थान नहीं बना सकी थी।

आपको बता दें कि ऑस्कर में फिल्म भेजने भर से कुछ नहीं होता बल्कि इसके बाद प्रोड्यूसर को फिल्म को इंग्लिश सबटाइटल के साथ ऑस्कर अवार्ड के जूरी के सदस्यों को अपनी फिल्म थिएटर में प्रिव्यू भी करवानी पड़ती है। फिल्म के बारे में समझाना पड़ता है। इसके बाद ही उस जूरी मेम्बर का वोट गिना जाता है। ये काफी कठिन प्रक्रिया है। इस कारण अभी तक कोई भी भारतीय फिल्म ऑस्कर अवार्ड नहीं जीत सकी है। हालाँकि कई फ़िल्में आखिरी पांच में ज़रूर अपना स्थान बनाने में कामयाब रहीं। इस सबके बावजूद ये फख्र की बात है पांच भारतीय हस्तियों ने ऑस्कर सम्मान हासिल किया। हम इन सबके बारे में आपको बताएँगे लेकिन इसके पहले आपको बताते हैं कि हमारे देश ने कब से अपनी फ़िल्में भेजनी शुरु कीं।

साल 1957 में भारत की ओर से पहली बार ऑस्कर में ऑफिसियली इंट्री के रूप में महबूब खान की क्लासिक फिल्म ‘मदर में इंडिया’ को नॉमिनेट किया गया था। आप सोचेंगे कि 1929 से शुरू हुए इस अवार्ड में इसके पहले कोई फिल्म क्यों नहीं भेजी गई? तो वो इसलिए क्योंकि 1956 तक ऑस्कर में “बेस्ट फाँरेन फिल्म’ की कटेगरी में कोई अवार्ड था ही नहीं।

खैर ‘मदर इंडिया’ फिल्म ने अंतिम पांच फिल्मों में जगह बनाई लेकिन ऑस्कर अवार्ड जीतने की कगार पर पहुंचकर केवल एक वोट से फ़ेदेरिको फ़ेलिनी की 'नाइट्स ऑफ़ कैबेरिया' फिल्म से पिछे रह गई। कहा गया कि एक जूरी मेम्बर यह समझाने में नाकाम रहा कि जब लाला ने नर्गिस को शादी का ऑफर दिया तो उसने ठुकरा क्यों दिया जबकि लाला, सब बच्चों की देखभाल करने के लिए तैयार था। यह सब इसलिए क्योंकि वे वेस्टर्न कल्चर के सामने इस भारतीय मूल्य को समझने में नाकाम रहे कि पति के मरने के बाद भी पत्नी, पति की खातिर जी सकती है।

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इस फिल्म के बाद 1987 तक कोई भी फिल्म ऑस्कर में बतौर ऑफिसियल इंट्री नॉमिनेट नहीं हो पाई। हालाँकि 1978 में विधु विनोद चोपड़ा की एक लघु फिल्म ‘एन एनकाउंटर विद फेसेस’ ने बेस्ट शार्ट फिल्म कटेगरी में ऑस्कर में नामांकन हासिल करने का सम्मान प्राप्त किया लेकिन कोई अवार्ड ये भी अपने नाम नहीं कर सकी ।

इसके बाद ऑस्कर के लिए भारत की ऑफिसियल इंट्री के रूप में दूसरी फिल्म 1988 में मीरा नायर की फिल्म ‘सलाम बाम्बे’ को नॉमिनेट किया गया था। फिल्म ने अंतिम पांच में जगह भी बनाई लेकिन जीत इसके नसीब में भी नहीं आई। ये फिल्म मुंबई की झुग्गी बस्तियों में रहने वाले बच्चों की टफ लाइफ पर बनी थी। फिल्म में रघुवीर यादव, अनीता कंवर, नाना पाटेकर और इरफान खान जैसे सितारों के साथ शफीक सैयद, हंसा विट्ठल, चंदा शर्मा जैसे छोटे बच्चों ने अभिनय किया था। फ़िल्म को उस समय द न्यूयॉर्क टाइम्स द्वारा "द बेस्ट 1,000 मूवीज़ एवर मेड" की सूची में शामिल किया गया था ।

इसके बाद 2001 में आमिर खान स्टारर आशुतोष गवारीकर की बहुचर्चित ‘लगान’ फिल्म को तीसरी बार भारत की ओर से ऑफिसियल इंट्री के रूप में नॉमिनेट किया गया। फिल्म के लिए आमिर खान और आशुतोष गवारीकर ने लॉस एंजल्स में रह कर जूरी मेम्बर्स को फिल्म दिखा-दिखाकर एड़ी चोटी का जोर लगा दिया। मीडिया ने भी फिल्म के जीतने के मौके की बात कही, बावजूद इसके वे जूरी के उतने वोट नहीं पा सकें जितने ज़रूरी थे और उनके मुकाबले बोस्निया की फिल्म ‘नो मेंस लेंड’ को ये अवार्ड मिला। हालाँकि इस पर ‘ऑस्कर’ की काफी आलोचना भी हुई कि भारत की फिल्मों को अकेडमी अवार्ड में जानबूझकर अवाईड किया जाता है। वास्तव में यह फिल्म वाकई बेहद अच्छी बनी थी और इसका प्लाट भी बहुत ही यूनिक था। जहाँ भोले भाले गाँव वालों और अंग्रेजो के बीच लगान माफ़ करने के लिए क्रिकेट मैच का आयोजन होता है।

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इस तरह 2019 तक केवल तीन भारतीय फिल्में- मदर इंडिया, सलाम बॉम्बे और लगान ही ऑस्कर अवार्ड के लिए अंतिम पांच में नामांकित हुईं। इसके बाद 2011 में, 58 वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों की निर्णायक मंडल ने एक सिफारिश की कि वार्षिक राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में सर्वश्रेष्ठ फिल्म विजेताओं को आधिकारिक प्रविष्टि के रूप में चुना जाए। हालाँकि 1988 वें अकादमी पुरस्कारों को छोड़कर कोई भी सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता फिल्म भारत से वर्षों तक नहीं भेजी गई। फिर 1984 के बाद साल दर साल ऑस्कर में फिल्में सबमिट तो की जाती रहीं लेकिन दुर्भाग्य से कोई भी फिल्म ऑस्कर में नामांकन हासिल नहीं कर पाई।

जैसे साल 2002 में संजय लीला भंसाली की शाहरुख खान ,माधुरी दीक्षित और एश्वर्या रॉय स्टारर बहुचर्चित फिल्म देवदास को सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा फिल्म के लिए अकादमी पुरस्कार के लिए भारत की ओर सबमिट की गई लेकिन बहुत सराहना के बाद भी ये ऑस्कर में नामांकित नहीं हो सकी। हालांकि 2010 में एम्पायर मैगज़ीन के "द 100 बेस्ट फिल्म्स ऑफ़ वर्ल्ड सिनेमा" में # 74 वां स्थान मिला था जो दुनिया में इस फिल्म की उपस्थिति को दर्शाता है ।

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इसके अगले साल 2003 में फिल्म फेडरेशन ऑफ़ इण्डिया ने विवादास्पद रूप से एक भी फिल्म नहीं भेजी क्योंकि उन्हें लगा कि कोई भी फिल्म अन्य राष्ट्रों की फिल्मों से मुकाबला करने की स्थिति में नहीं है। फिर साल 2004 में इन्डियन इंट्री के रूप में संदीप सावंत की मराठी फिल्म ‘श्वास’ भेजी गई थी। यह फिल्म रेटिना कैंसर से पीड़ित बच्चे और दादा के बीच एक खूबसूरत रिश्ते पर थी  लेकिन यह कम बजट की फिल्म थी और इसके प्रोड्यूसर के पास इतने पैसे नहीं थे कि वो फिल्म को ऑस्कर में ले जा सके तब महानायक अमिताभ बच्चन और अन्य कई लोगो ने प्रोड्यूसर की आर्थिक मदद की थी ।

बावजूद इसके यह फिल्म ऑस्कर अवार्ड जीतने में कामयाब नहीं हो सकी लेकिन सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा फिल्म कटेगरी के लिए अकादमी पुरस्कार में यह 6 वें स्थान पर रही। यह भी किसी सम्मान से कम नहीं था। इसकी कहानी पुणे की एक वास्तविक जीवन की घटना पर आधारित थी ।इसे 30 दिनों में सिंधुदुर्ग, कोंकण, पुणे और मुंबई के केईएम अस्पताल में शूट किया गया था लेकिन पोस्ट प्रोडक्शन में डेढ़ साल लगे थे। यह फिल्म बेहद सफल हुई इसके बाद, इसे हिंदी, बंगाली और तमिल भाषाओं में भी रिलीज़ किया गया था।

2005 में अस्विन कुमार की लघु फिल्म ‘अ लिटिल टेररिस्ट’ को सर्वश्रेष्ठ लाइव एक्शन शॉर्ट फिल्म श्रेणी के लिए ऑस्कर में प्रतिष्ठित नामांकन तो हासिल हुआ लेकिन यह भी अवार्ड को अपने नाम नहीं कर सकी । फिल्म में सोनी राजदान और अंशुमन झा ने मुख्य रोल निभाएं थे। यहाँ आपको बता दें कि शार्ट फिल्म्स ज़्यादातर प्रोड्यूसर खुद ही अपनी ओर से भेजते रहे हैं।

इसके बाद 2005 रिलीज़ हुई अमोल पालेकर द्वारा डायरेक्ट, शाहरुख़ खान और रानी मुखर्जी स्टारर पहेली फिल्म को ऑस्कर में भारत की आधिकारिक प्रविष्टि के रूप में भेजा गया। यह मणि कौल द्वारा 1973 में निर्मित हिंदी फ़िल्म ‘दुविधा’ की रीमेक थी। यह फिल्म राजस्थान के कहानीकार विजयदान देथा की एक कहानी पर आधारित थी जहाँ रानी मुखर्जी अपने पति यानि शाहरुख खान के कामकाज के लिए शहर जाने के कारण अकेली हो जाती है। ऐसे में उसके पति के रूप में शाहरुख खान का भूत वहां आ जाता है जो उससे प्यार करने लगता है। फिल्म में शाहरुख़ खान, रानी मुखर्जी के साथ अमिताभ बच्चन, अनुपम खेर ,सुनील शेट्टी, जूही चावला, राजपाल यादव, विजय मिश्र और आलोक शुक्ला आदि अन्य सहायक भूमिकाओं में थे ।

साल 2006 में, 26 जनवरी 2006 को रिलीज हुई राकेश ओमप्रकाश मेहरा की आमिर खान स्टारर बहुचर्चित फिल्म ‘रंग दे बसंती’ को, सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा फिल्म श्रेणी में अकादमी पुरस्कार के लिए भारत की आधिकारिक प्रविष्टि के रूप में चुना गया। हालांकि फिल्म ऑस्कर में नामांकन नहीं हासिल कर सकी। भारत में इसे खूब प्रशंसा मिली और कई अन्य पुरस्कारों के साथ इसने सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय फिल्म के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी जीता। फिल्म में ए आर रहमान के म्यूजिक ने धमाल मचा दिया था और आमिर खान के साथ, सिद्धार्थ नारायण, सोहा अली खान, कुणाल कपूर, आर, माधवन, शरमन जोशी, अतुल कुलकर्णी और ब्रिटिश अभिनेत्री एलिस पैटन ने बेहद खुबसूरत काम किया है ।

2007 में विधु विनोद चोपड़ा द्वारा निर्देशित, अमिताभ बच्चन स्टारर एकलव्य: द रॉयल गार्ड फिल्म को ऑस्कर के लिए भारत की ओर से सर्वश्रेष्ठ विदेशी फिल्म कटेगरी में भेजा गया था। इस फिल्म में अमिताभ बच्चन के साथ सैफ अली खान, शर्मिला टैगोर, संजय दत्त, जैकी श्रॉफ और बोम्मन ईरानी जैसे एक्टर्स ने काम किया था। फिल्म में विधु विनोद चोपड़ा की सात साल बाद निर्देशन में वापसी हुई । लेकिन ये फिल्म दर्शको और अवार्ड्स, दोनों की कसौटी पर खरी नहीं उतर सकी। हालाँकि अमिताभ बच्चन और सैफ के काम की खूब प्रशंसा हुई ।

साल 2008 में आमिर खान द्वारा प्रोड्यूस और डायरेक्ट ‘तारे ज़मीन पर’ को ऑस्कर में सर्वश्रेष्ठ विदेशी फिल्म के लिए भारत की आधिकारिक प्रविष्टि के रूप में भेजा हालाँकि फिल्म शॉर्ट-लिस्ट नहीं हो सकी। फिल्म में ईशान यानि दर्शील सफारी नाम के एक 8 वर्षीय डिस्लेक्सिक बीमारी से पीड़ित बच्चे की कहानी है। इससे वो ठीक से पढाई नहीं कर पाता है लेकिन पेंटिंग में वो बेहद अच्छा है। ईशान के नए आर्ट टीचर यानि आमिर खान उसकी परेशानी को समझकर उसकी मदद करते हैं। फिल्म का क्रिएटिव डायरेक्टशन और राइटिंग अमोल गुप्ते की थी जबकि शंकर-एहसान-लॉय ने फिल्म में म्यूजिक दिया था और प्रसून जोशी ने गीत लिखे थे। इस फिल्म ने सर्वश्रेष्ठ फिल्म के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार और परिवार कल्याण पर सर्वश्रेष्ठ फिल्म के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार हासिल किया। यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर भी हिट रही।

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इसी कड़ी में 2009 में परेश मोकाशी की मराठी फिल्म ‘हरीशचन्द्र ची फैक्टरी’ को ऑस्कर में ऑफिसियली इन्डियन इंट्री के रूप में भेजा गया था ।यह फिल्म ऑस्कर सम्मान में जाने वाली ‘श्वास’ के बाद दूसरी मराठी फिल्म बनी। ‘हरीशचन्द्र ची फैक्टरी’ 1913 में दादा साहेब फाल्के द्वारा भारत की पहली फीचर फिल्म बनाते समय होने वाले संघर्षो पर बेस्ड थी। फिल्म के लिए परेश मोकाशी ने पुणे इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार हासिल किया।

साल 2010 में अनुषा रिज़वी द्वारा डायरेक्ट और आमिर खान द्वारा प्रोड्युज़ ‘पीपली लाइव’ को 83 वें अकादमी पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ विदेशी फिल्म श्रेणी के लिए भारत की आधिकारिक प्रविष्टि थी, हालांकि इसे भी नामांकित नहीं किया गया था।

यह फिल्म किसानों की दुर्दशा पर एक व्यंग थी जहाँ किसान के रोल में हबीब तनवीर के नया थिएटर के कलाकार ओंकार दास मानिकपुरी द्वारा आत्महत्या करने की बात करने पर मीडिया और राजनीतिक प्रतिक्रिया का एक तमाशा सा दिखाया गया है। फिल्म में अन्य प्रमुख भूमिकाओं में नसीरुद्दीन शाह, रघुबीर यादव, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, शालिनी वत्स, अनूप त्रिवेदी और मलाइका शेनॉय हैं।

साल 2011 में मलयाली फिल्म अबू, सन ऑफ एडम, को अकादमी पुरस्कार के लिए सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा फिल्म के लिए भारत की आधिकारिक प्रविष्टि के रूप में भेजा गया था, लेकिन फिल्म को नामांकित नहीं किया गया। इस फिल्म का निर्देशन और सह-निर्माण सलीम अहमद ने किया था और यह उनकी पहली ही फिल्म थी। फिल्म में सलीम कुमार और जरीना वहाब ने मुख्य भूमिकाए निभाई थी। फिल्म की कहानी में एक गरीब इत्र विक्रेता अबू के जीवन की एकमात्र कामना हज यात्रा है, जिसे पूरा करने के लिए वह कड़ी मेहनत करता है।

इसकी कहानी, निर्देशन, कास्ट, सिनेमोग्राफी और म्यूजिक के लिए बहुत प्रशंसा मिली। इस फिल्म ने 58 वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में चार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार: सर्वश्रेष्ठ फिल्म, सर्वश्रेष्ठ अभिनेता, सर्वश्रेष्ठ छायांकन और सर्वश्रेष्ठ बैकग्राउंड म्यूजिक का पुरस्कार प्राप्त किया था ।

साल 2012 में अनुराग बसु द्वारा लिखी और डायरेक्ट की हुई रणवीर कपूर, प्रियंका चोपड़ा स्टारर बहुचर्चित ‘बर्फी’ फिल्म को 85 वें अकादमी पुरस्कार के लिए सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा फिल्म में नामांकन के लिए भारत की आधिकारिक प्रविष्टि के रूप में चुना गया था। हालाँकि फिल्म ऑस्कर में नामांकन हासिल नहीं कर सकी। यह एक मूक-बधिर लड़के-लड़की की प्रेम कहानी पर आधारित थी। फिल्म में अन्य प्रमुख रोल में इलियाना डिक्रूज,  सौरभ शुक्ला, आशीष विद्यार्थी, जिशु सेनगुप्ता और रूपा गांगुली आदि कलाकार थे। यह 2004 की फिल्म नोटबुक पर आधारित थी। फिल्म में म्यूजिक प्रीतम ने दिया था। इस फिल्म ने दुनिया भर कमाई का रिकार्ड बनाया। 58 वें फिल्मफेयर अवार्ड्स में, फिल्म में प्रियंका चोपड़ा को बेस्ट एक्ट्रेस और रणवीर कपूर को बेस्ट एक्टर समेत तेरह नामांकन प्राप्त हुए।

साल 2013 में ज्ञान कोरिया द्वारा लिखी और डायरेक्ट की हुई एक गुजराती फिल्म  ‘द गुड रोड’ को 86 वें अकादमी पुरस्कार, में सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा फिल्म के लिए भारतीय प्रविष्टि के रूप में चुना गया था लेकिन इसे भी नामांकित नहीं किया गया था। फिल्म ने 60 वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में सर्वश्रेष्ठ गुजराती फिल्म का पुरस्कार जीता।

फिल्म में कच्छ के एक कस्बे के पास गुजरात की ग्रामीण भूमि में नेशनल हाइवे होने के साथ कई कहानियाँ आपस में जुड़ी हुई हैं। यह फिल्म पहली गुजराती फिल्म है जिसे ऑस्कर में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना गया था । इसमें सोनाली कुलकर्णी , अजय गेही और शाम जी धन्ना आदि ने प्रमुख रोल निभाएं थे।,फिल्म इसी साल की बहुचर्चित फिल्म ‘लंच बॉक्स’ को पीछे छोड़ते हुए ऑस्कर में भेजी गई थी।

साल 2013 में गीता मोहनदास द्वारा लिखित और निर्देशित, नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी स्टारर हिंदी फिल्म ‘लायर्स डाइस’ (Liar's Dice ) को 87 वें अकादमी पुरस्कारों के लिए सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा फिल्म के लिए भारत की आधिकारिक प्रविष्टि थी, लेकिन नामांकित नहीं हुई थी। यह एक सुदूर गांव की एक युवा माँ की कहानी है, जो अपने लापता पति की तलाश में जी रही है । यह फिल्म शहरों में प्रवासियों की मानवीय स्थिति और प्रवासी श्रमिकों के शोषण की हकीक़त बताती है।

यह फिल्म डायरेक्टर की पहली फिल्म थी जो देश के साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खूब सराही गई, इसने 61 वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में दो राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्राप्त किए।

साल 2014 में चैतन्य तम्हाने द्वारा लिखी और डायरेक्ट की हुई फिल्म ‘कोर्ट’,  88 वें अकादमी पुरस्कारों के लिए सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा फिल्म के लिए भारत की आधिकारिक प्रविष्टि थी, लेकिन यह भी नामांकित नहीं हुई थी। यह फिल्म मराठी, हिंदी, गुजरती और इंग्लिश में एक साथ बनी थी। फिल्म में एक वृद्ध गायक, नारायण कांबले के ऊपर मुंबई कोर्ट में मुकद्दमे के दौरान भारतीय कानूनी प्रणाली की खामियां दिखाई गई हैं। इस वृद्ध गायक पर एक लोकगीत के माध्यम से एक मैनहोल कार्यकर्ता को आत्महत्या के लिए प्रोत्साहित करने का आरोप लगाया जाता है। फिल्म में प्रमुख रोल गीतांजलि कुलकर्णी, प्रदीप जोशी और शिरीष पवार ने निभाई हैं। इस फिल्म को कई अंतरराष्ट्रीय पुरष्कारों में जगह मिलने के साथ 62 वें राष्ट्रीय फिल्म में सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का पुरस्कार मिला।

साल 2015 में वित्रमरन द्वारा लिखित और निर्देशित तमिल फिल्म विसरनई यानि Interrogation को 89 वें अकादमी पुरस्कार में सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा फिल्म के लिए भारत की आधिकारिक प्रविष्टि के रूप में चुना गया था लेकिन इसे भी नामांकित नहीं किया गया था। यह फिल्म ऑटो ड्राइवर एम चंद्रकुमार के उपन्यास लॉक अप पर आधारित थी। फिल्म में दिनेश, आनंदी, समुथिरकानी, आदुकलम मुरुगादॉस, किशोर, प्रधान राज, आदि ने प्रमुख रोल निभाए। फिल्म कुछ श्रमिकों के जीवन पर है। जो एक छोटे मामले में पकडे जाते हैं और बाद में पुलिस उन पर एक झूठा आरोप स्वीकार करने के लिए यातनाएं देती हैं। यह फिल्म भारत में 5 फरवरी 2016 को रिलीज़ हुई थी। इसे समीक्षकों और दर्शकों, दोनों से काफी सकारात्मक प्रतिक्रियाए मिली, साउथ सुपरस्टार रजनीकांत ने तो यहाँ तक कहा था कि ऐसी फिल्म उन्होंने कभी नहीं देखी हालाँकि ऑस्कर में यह नामांकन हासिल नहीं कर सकी ।

साल 2017 में रीमा दास की असमी फिल्म ‘विलेज रॉकस्टार’ को 91 वें अकादमी पुरस्कारों में भारत की आधिकारिक प्रविष्टि के रूप में चुना गया था, लेकिन इसे 87 फिल्मों में से शीर्ष नौ फिल्मों के लिए भी नामांकन नहीं हासिल हो सका। इस फिल्म को रीमा दास ने, न सिर्फ डायरेक्ट किया था बल्कि संपादन और सह-निर्माण भी किया था। फिल्म ने 65 वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का 'स्वर्ण कमल' पुरस्कार प्राप्त किया। इसके अलावा सर्वश्रेष्ठ बाल कलाकार, सर्वश्रेष्ठ लोकेशन साउंड और सर्वश्रेष्ठ संपादन के पुरुस्कार भी प्राप्त किये। फिल्म, वास्तव में गाँव के बच्चों के रॉक स्टार्स के एक समूह ऊपर थी। जो कड़ी मेहनत से आगे बढ़ते हुए, अपने खुद का एक रॉक बैंड बनाते हैं हालाँकि इस दौरान उन्हें काफी व्यक्तिगत और समाजिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है लेकिन अंत में वो अपने लक्ष्य को पा ही लेते हैं।

यहाँ एक बात आपको बताते चलें कि ये सारी फ़िल्में ‘बेस्ट फाँरेन फिल्म’ कटेगरी के लिए भेजी गई थीं। जबकि सीधे मुख्य धारा के पुरस्कारों के लिए केवल दो ही फ़िल्में अभी तक पहुँच पाई हैं लेकिन ये फ़िल्में केवल भारतीय पृष्ठभूमि में भारतीय एक्टर्स और कुछ क्रू के साथ बनी थी। बाकी ये फिल्में भारतीय नहीं थी लेकिन हाँ इन फिल्मों में कई भारतीयों ने यह अति प्रतिष्ठित ऑस्कर अवार्ड ज़रूर हासिल किये जिसकी आरंभ में मैंने आपसे चर्चा की थी ।

ऐसी पहली फिल्म थी 1982 में बनी रिचर्ड एटनबरा की दुनिया भर में सराही गई फिल्म ‘गाँधी’, लेकिन इस फिल्म में कई भारतीय एक्टर्स और कुछ फिल्म क्रू अलावा बस ये था कि यह फिल्म भारतीय स्वतंत्रता के महानायक गाँधी के ऊपर बनी थी। ये फिल्म एक अमेरकी फिल्म निर्माता निर्देशक रिचर्ड एटनबरा की फिल्म थी और गाँधी का बेहतरीन रोल निभाया था ब्रिटिश एक्टर बेन किंग्सले ने। इस फिल्म की ऑस्कर में इंट्री बतौर अमेरिकी फ़िल्मी हुई थी। फिल्म 1983 के ऑस्कर अवार्ड्स में 11 कटेगरी में नोमिनेट हुई थी जिसमें से आठ अपने नाम किये थे। इस फिल्म में कॉस्टयूम के लिए भानु अथैया को ऑस्कर अवार्ड मिला जो किसी भी भारतीय को मिला पहला ऑस्कर अवार्ड था।

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ऐसी ही दूसरी फिल्म 2008 ‘स्लमडॉग मिलेनियर’ थी जिसे ब्रिटिश फिल्म मेकर क्रिस्टिन कालसन और डायरेक्टर डैनी बोयल ने भारतीय लेखक विकाश स्वरूप के एक उपन्यास के ऊपर  बनाई थी। यह एक ब्रिट्रिश फिल्म के रूप अकेडमी अवार्ड यानि ऑस्कर में सम्मलित हुई थी हालाँकि इस फिल्म में देव पटेल, फ्रीदा पिंटो आदि भारतीय मूल एक्टर्स के साथ अनिल कपूर इरफ़ान खान आदि कई भारतीय एक्टर्स ने भी काम किया था।

नामचीन संगीतकार एआर रहमान ने म्यूजिक दिया था और साउंड मिक्सिंग की थी रसूल पुकट्टी ने, फिल्म में गुलजार का लिखा और सुखविंदर सिंह के गाया गीत ‘जय हो’, फिल्म के साथ इतना हिट हो गया था कि आज भी इसे नेशनल प्राइड के रूप में यह जाना जाता है। इस गाने के लिए गुलज़ार को बेस्ट सांग का ऑस्कर अवार्ड मिला और एआर रहमान को बेस्ट ओरिजल म्यूजिक स्कोर का ऑस्कर अवार्ड मिला। इसी के साथ रसूल पुकट्टी ने रिचर्ड और इयान के साथ मिलकर बेस्ट साउंड मिक्सिंग का ऑस्कर अवार्ड हासिल किया। फिल्म को ऑस्कर में 11 कटेगरी में नोमिनेट किया गया था जिसमें आठ फिल्म के नाम रहे। इस फिल्म की एक खास बात ये कि अनिल कपूर का रोल पहले अमिताभ बच्चन निभाने वाले थे लेकिन इस फिल्म के स्लमडॉग नाम पर अमिताभ को आपत्ति थी और डेनी बोयल नाम बदलने को तैयार नहीं हुए थे।

इसी प्रकार साल 2009 में अमरीका की मेगान मायलन की ‘स्माइल पिंकी’ डॉक्यूमेंट्री को बेस्ट डॉक्यूमेंट्री का ऑस्कर अवार्ड हासिल। यह डॉक्यूमेंट्री उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर की पिंकी के असली जीवन पर बनाई गई थी। पिंकी भारत के उन कई हज़ार बच्चों में से है जिनके होंठ कटे होने के कारण उन्हें सामाजिक तिरस्कार का सामना करना पड़ा है। पिंकी का एक स्वयंसेवी संगठन ने इलाज करवाया और उसकी जिंदगी बदल गई। क़रीब 39 मिनट के इस डॉक्यूमेंट्री में दिखाने की कोशिश की गई है कि किस तरह एक छोटी सी समस्या से किसी बच्चे पर क्या असर पड़ता है और ऑपरेशन के बाद ठीक हो जाने पर बच्चे की मनोदशा कितनी बेहतरीन हो जाती है। पिंकी की सर्जरी डॉक्टर सुबोध कुमार सिंह ने की है। डॉक्टर सुबोध कुमार सिंह स्माइल ट्रेन नाम की अंतरराष्ट्रीय संस्था के साथ मिलकर उत्तर प्रदेश में काम करते हैं।

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ऐसा ही फिल्म 'पीरियड : एंड ऑफ सेंटेंस' के साथ हुआ जिसे पिछले साल के 91वें एकेडमी अवार्ड सेरेमनी में डॉक्यूमेंट्री शॉर्ट सब्जेक्ट की कटेगरी में ऑस्कर पुरस्कार हासिल किया है। यह यूँ तो अपने उत्तर प्रदेश के हापुड़ के गांव काठीखेड़ा में कुछ महिलाओं द्वारा स्वरोजगार योजना के अंतर्गत महिलाओं के सेनेटरी पैड बनाने मशीन स्थापित सस्ता पैड उपलब्ध कराने के ऊपर आधारित है जहाँ गांव की महिलाएं खुद पैड बनाकर उसे इस्तेमाल भी कर रही हैं और बेच भी रही हैं। बावजूद यह भारतीय फिल्म नहीं थी।

इसका निर्देशन ईरानी-अमेरिकी फिल्ममेकर रेका जेहताबची ने किया था और निर्माण लॉस एंजेलिस के ओकवुड स्कूल के विद्यार्थियों के एक समूह और उनकी शिक्षिका मेलिसा बर्टन द्वारा स्थापित द पैड प्रोजेक्ट द्वारा किया गया है। इस पुरस्कार को लेने के लिए भी रेका जेहताबची और बर्टन ही मंच पर पहुंची थीं। यद्यपि इसका सह-निर्माण भारतीय फिल्मकार गुनीत मोंगा की सिखिया एंटरटेनमेंट कंपनी द्वारा किया गया है और फिल्म को फेमिनिस्ट मेजॉरिटी फाउंडेशन का मदद की थी ।

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उक्त संदर्भों को पढ़ पर एक बारगी ज़हन में आता है कि हमारे फिल्ममेकर अकेले ऐसे सब्जेक्ट पर फिल्म क्यों नहीं बनाते लेकिन यहीं ये सवाल भी है कि जब बनाते हैं तो उनको ऑस्कर में वो सम्मान नहीं दिया जाता जो किसी ब्रिटिश या अमेरिकी फिल्म मेकर को मिलता है। यह बात सदासे भारतीय फिल्म मेकर्स को परेशान करने वाली रही है हालाँकि ऐसा नहीं कि किसी भारतीय को यह ऑस्कर अवार्ड नहीं मिला....लेकिन यह किसी अपवाद से कम नहीं। जी हाँ हम बात कर रहे हैं दुनिया में बीसवीं शताब्दी के सर्वकालिक महान डायरेक्टर्स में शामिल सत्यजित रे जी की, जिन्हें 1992 में उनके कार्यो के लिए आँनरेरी लाइफ टाइम ऑस्कर अवार्ड से सम्मानित किया गया था। यह पूर्णतया भारतीय फिल्मों के लिए एक भारतीय निर्देशक को दिया गया ऑस्कर अवार्ड था। उन्हें यह कोलकाता के हॉस्पिटल में दिया जबकि वे वहां अपनी बीमारी का इलाज करवा रहे थे। अवार्ड नाईट में उनकी थैंक्स स्पीच को हॉस्पिटल से लाइव दिखाया गया था।

(लेखक वरिष्ठ रंगकर्मी, लेखक, निर्देशक एवं पत्रकार हैं)

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