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प्रयोगशाला में विकसित मिनिएचर मस्तिष्क कर रहा है वास्तविक जीवन की स्थितियों की नकल

यूसीएलए और स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय की शोधकर्ताओं की एक टीम ने इंसानी स्टेम कोशिकाओं से एक साल से (20 महीने) अधिक समय से एक मस्तिष्क कृत्रिम अंग को विकसित किया है और पाया है कि स्टेम-कोशिका से उत्पन्न की गई मस्तिष्क कृत्रिम अंग ठीक उसी प्रकार से काम कर रही है जैसा कि नवजात बच्चों के वास्तविक दिमाग व्यवहार करते हैं।
प्रयोगशाला में विकसित मिनिएचर मस्तिष्क कर रहा है वास्तविक जीवन की स्थितियों की नकल
चित्र साभार: फ्लिकर.कॉम

एक प्रयोगशाला के भीतर मौजूद चीजों से कृत्रिम परिस्थितियों में लघु अंगों को विकसित करना कई दशकों से अनुसंधान के क्षेत्र में बेहद लुभावना विषय रहा है। अनुसंधान के इस क्षेत्र में कई उतार-चढाव के साथ वैज्ञानिकों ने धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ी है, विशेषकर कृत्रिम अंगों को विकसित करने के क्षेत्र में – जिसे एक वास्तविक इंसानी अंगों का लघु और सामान्यीकृत संस्करण कह सकते हैं।

इंसानी स्टेम कोशिकाएं अपने आंतरिक चरित्र के कारण कृत्रिम अंग अनुसंधान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। स्टेम कोशिकायें को जब सही पोषण और परिस्थितियों के साथ प्रयोगशाला में मौजूद चीजों के साथ रखा जाता है, तो वे फलने-फूलने लगती हैं और एक विशेषीकृत कोशिका प्रकारों में तब्दील हो सकती हैं।

कृत्रिम अंग शोध का क्षेत्र शोध के मामले में एक महत्वपूर्ण घटक के तौर पर उभर चुका है जिसे आमतौर पर अनुवादन संबंधी शोध के नाम से जाना जाता है। ट्रांसलेशनल शोध के फलक में बुनियादी जीवविज्ञानं और नैदानिक परीक्षणों से लेकर प्रोद्योगिकी तक ज्ञान के परीक्षणों को शामिल किया जाता है जो क्रिटिकल चिकत्सकीय परिस्थितियों और जरूरतों को संबोधित करता है।

इस क्षेत्र में विकास के चरण में एक हालिया रिपोर्ट ने कुछ उत्साहवर्धक परिणाम सामने लाये हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफोर्निया, लास एंजेल्स (यूसीएलए) और स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं की एक टीम ने मानव स्टेम कोशिकाओं से एक कृत्रिम मस्तिष्क अंग को विकसित किया है, जो कि एक साल से अधिक की उम्र (20 महीने) का है। अपने शोध में उन्होंने पाया है कि स्टेम कोशिका से उत्पन्न होने वाला यह कृत्रिम मस्तिष्क अंग ठीक उसी प्रकार से व्यवहार करता है जैसा कि नवजात बच्चों का वास्तविक मस्तिष्क करता है। इस शोध को नेचर न्यूरोसाइंस जर्नल में 22 फरवरी को प्रकाशित किया गया था।

इस शोध का निष्कर्ष है कि इस लंबी अवधि में एक मस्तिष्क कृत्रिम अंग कुछ आनुवांशिक लक्षण प्रदर्शित कर सकता है, जैसा नवजात शिशुओं के वास्तविक मस्तिष्क में प्रदर्शित करता है, विशेषतौर पर विकास के शुरूआती चरण में ऐसा देखने को मिल सकता है।

स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में तंत्रिका विज्ञानी, सेर्गिऊ पास्का और यूसीएलए के स्नायुविज्ञानी डेनियल गेस्चविंड के नेतृत्व में इस दल ने प्रयोगशाला में उपलब्ध वस्तुओं के साथ पोषक तत्वों की सटीक मात्रा के साथ मानव स्टेम कोशिकाओं को मिलाने का काम किया। मूल कोशिकाओं में विकास को देखा गया और एक कृत्रिम मस्तिष्क अंग के तौर पर विकसित हुईं, जिस प्रकार से वास्तविक मस्तिष्क में न्यूरोन एवं अन्य कोशिका तत्व पाए जाते हैं। शोधकर्ताओं ने समय-समय पर विकसित हो रहे अंगों की कुछ कोशिकाओं को उनके भीतर आरएनए अनुक्रम को बनाये रखने के लिए अलगाव में रखा। ऐसा करते हुए शोधार्थी यह पता लगा सकने में सक्षम हो सकते हैं कि इस दौरान कौन से जीन सक्रिय हैं। इस डेटा के साथ उन्होंने डेटाबेस में संग्रहित वास्तविक इंसानी मस्तिष्क से आरएनए का मिलान किया।

दल ने पाया कि जब कृत्रिम अंग 250 से 300 दिनों के बीच पहुंचा, अर्थात जब वह 9 महीने का हो गया तो इसके जीन की अभिव्यक्ति का ढंग, नवजात पैदा हुए इंसानी मस्तिष्क से ही मिलताजुलता पाया गया था। उन्होंने यह भी पाया कि कृत्रिम अंग का डीएनए मिथाइलेशन क्रम जैसे अन्य आनुवांशिक गुण भी किसी परिपक्व मानव मस्तिष्क के समान ही व्यवहार कर रहे हैं। डीएनए का मिथाइलेशन, वस्तुतः डीएनए की रासायनिक टैगिंग (मिथाइलेशन) के महत्व को प्रदर्शित करता है जो जीन की गतिविधियों को प्रभावित करता है।

इन चीजों के साथ-साथ शोधकर्ताओं ने अवलोकन किया कि इनके कृत्रिम अंग में कुछ अन्य लक्षण भी हैं जो विकसित होते मानव मस्तिष्क से मिलते जुलते हैं। एक विकसित हो रहे मस्तिष्क में जन्म के समय के आस-पास, मस्तिष्क की कुछ कोशिकाएं एक खास प्रोटीन को धीरे-धीरे अधिक मात्रा में उत्पादित करना शुरू कर देती हैं। इस प्रोटीन को एनएमडीए रिसेप्टर के नाम से जाना जाता है और यह तंत्रिका कोशिका से तंत्रिका कोशिका के बीच में संचार के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कृत्रिम मष्तिष्क अंग ने भी एनएमडीए उत्पादन को प्रदर्शित किया है।

हालाँकि इसके साथ ही एक महत्वपूर्ण चेतावनी संदेश भी है। सेर्गिऊ पास्का को उद्धृत करते हुए टिप्पणी की गई थी “कृत्रिम मस्तिष्क अंग ठीक मानव मस्तिष्क जैसा नहीं है। उदाहरण के लिए विकसित मस्तिष्क से इसकी विद्युतीय गतिविधि मेल नहीं खाती है, और कोशिकाओं के झुरमुट में रक्त प्रवाहिका, प्रतिरक्षा कोशिकाएं, और संवेदी इनपुट सहित कई प्रमुख विशेषताओं का अभाव है। इसके बावजूद जो तथ्य हैरान करने वाले हैं, वह यह कि प्रयोगशाला जैसे अप्राकृतिक स्थितियों में होने के बावजूद कोशिकाओं को पता है कि कैसे प्रगति करनी है.”

कृत्रिम अंग के क्षेत्र में अनुसंधान का मुख्य उद्देश्य उन राहों का पता लगाना है जो एक वास्तविक मानव अंग के विकास और कार्यप्रणाली में शामिल हो सकते हैं। यह जानने के लिए इन शोधों पर काम किया जा रहा है जिससे कि कैंसर, अल्जाइमर जैसे रोगों पर चल रहे शोध कार्यों को मजबूती प्रदान की जा सके। ट्रांसलेशनल रिसर्च के क्षेत्र में भी यह संस्थापक सिद्धांतों में से एक है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

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