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केंद्रीय फ़सल बीमा योजना से सरकारी फ़र्मों के मुक़ाबले निजी कंपनियों की दोगुनी कमाई

पीएमएफ़बीवाई के तहत पैनल में शामिल 13 निजी बीमा कंपनियों में से 10 फ़र्मों ने अपने आकर्षक बिजनेस मॉडल के साथ 2016-17 से 2020-21 के बीच 24,350 करोड़ रुपये कमाये हैं।
Modi

भोपाल : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के किये वादे के आठ साल बीत जाने के बाद भी किसानों को अपनी आय के दोगुनी होने का अब भी इंतज़ार है। लेकिन, फ़सल बीमा योजना के तहत पिछले पांच सालों में सरकारी कंपनियों की तुलना में निजी बीमा कंपनियों ने किसानों की फ़सल को बीमित करते हुए अपना मुनाफ़ा दोगुना ज़रूर कर लिया है।

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की प्रमुख योजना-प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना (PMFBY) के तहत सूचीबद्ध 13 निजी बीमा कंपनियों में से 10 फ़र्मों ने 2016-17 से 2020-21 के बीच अपने आकर्षक व्यवसाय मॉडल के साथ 24,350 करोड़ रुपये बनाये हैं। जैसा कि संसद में पेश किये गये कृषि विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि इस बीच पांच में से दो सरकारी स्वामित्व वाली फ़र्मों ने 3,344 करोड़ रुपये का नुक़सान उठाया है।

निजी और सरकारी स्वामित्व वाली कंपनियों के मुनाफ़े के बीच का यह अंतर तब सामने आया, जब 2018-19 और 2019-20 में, सभी पांच सरकारी फ़र्मों को इस योजना के तहत 2,506 करोड़ रुपये का घाटा हुआ, जबकि इसी अवधि में निजी कंपनियों ने 9,278 करोड़ रुपये का लाभ अर्जित किया।

2016-17 में शुरू की गयी पीएमएफ़बीवाई एक ऐसी फ़सल बीमा योजना है, जिसका मुख्य उद्देश्य प्राकृतिक आपदाओं, कीटों और बीमारियों के चलते किसी भी बीमित फ़सल के ख़राब हो जाने की स्थिति में किसानों को बीमा कवरेज और वित्तीय सहायता देना है। सरकार ने इस योजना के क्रियान्वयन के लिए 13 निजी फ़र्मों सहित 18 सामान्य बीमा कंपनियों को शामिल किया है।

इस योजना के तहत प्रीमियम के अपने हिस्से के रूप में किसान बीमा राशि का 2% ख़रीफ फ़सलों, रबी फ़सलों (सर्दियों की फ़सलों) के लिए 1.5% और बाग़वानी और वाणिज्यिक फ़सलों के लिए 5% का भुगतान करते हैं। इस फ़सल बीमा के प्रीमियम पर भारी सब्सिडी दी जाती है, जिसकी लागत राज्य और केंद्र वहन करती है।

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने राज्यसभा को एक लिखित जवाब में कहा, " योजना की शुरुआत के बाद से ख़रीफ़ 2021-22 सीजन तक इस योजना के तहत किसानों को दावों के रूप में 4,190 रुपये / हेक्टेयर का भुगतान किया गया है।"

पेश किये गये आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि 2016-17 से 2020-21 के बीच सरकारी और निजी दोनों ही फ़र्मों को कुल प्रीमियम (किसान, राज्य और भारत सरकार की ओर से दिये गये प्रीमियम) के रूप में कुल 1,38,312 करोड़ रुपये मिले। इसमें किसानों की हिस्सेदारी 15.5%, राज्यों की हिस्सेदारी 43.4% और केंद्र सरकार की हिस्सेदारी 41.1% थी।

ख़ासकर निजी बीमा कंपनियों को सकल प्रीमियम के रूप में 69,697 करोड़ रुपये मिले और इन बीमा कंपनियों ने 24,350 करोड़ रुपये का प्रत्यक्ष लाभ पाने वाले दावों में से 45,317 करोड़ रुपये का ही भुगतान किया।

इस बीच सरकार की ओर से संचालित फ़र्मों को प्रीमियम के रूप में 68,645 करोड़ रुपये मिले और पांच सालों में दावों के रूप में 56,728 करोड़ रुपये का भुगतान किया, जिससे उनका लाभ 11,917 करोड़ रुपये का रहा, जो कि निजी कंपनियों को हुए मुनाफ़े का तक़रीबन आधा था।

आंकड़े बताते हैं कि निजी और सरकारी दोनों ही फ़र्मों को क़रीब-क़रीब समान प्रीमियम प्राप्त हुए, लेकिन निजी कंपनियों ने दोगुना मुनाफ़ा कमाया। ऐसा तब हुआ,जब कुल 2.47 करोड़ कर्ज़दार किसानों में से सरकारी फ़र्मों के पास इस फ़सल बीमा बाजार का 55% हिस्सा था, जबकि निजी कंपनियों के पास बाक़ी 45% का स्वामित्व था।

केंद्रीय कृषि विभाग के मुताबिक़, पांच सरकारी बीमा कंपनियों में से भारतीय कृषि बीमा कंपनी (AIC) को अकेले 14,934 करोड़ रुपये का लाभ मिला, जबकि दो अन्य कंपनियों-नेशनल इंश्योरेंस और यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस को क्रमशः 140 करोड़ रुपये और 187 करोड़ रुपये का मुनाफ़ा हुआ। बहरहाल, बाक़ी दो कंपनियों- न्यू इंडिया एश्योरेंस और ओरिएंटल इंश्योरेंस को संयुक्त रूप से 3,344 करोड़ रुपये का भारी नुक़सान हुआ।

दूसरी ओर, अनिल अंबानी के स्वामित्व वाली रिलायंस जनरल इंश्योरेंस ने 4,731 करोड़ रुपये बनाते हुए इस फ़सल बीमा पॉलिसी से सबसे ज़्यादा मुनाफ़ा कमाया, उसके बाद एचडीएफ़सी एर्गो ने 4,060 करोड़ रुपये की कमाई की। इनके मुक़ाबले इफ़को टोकियो जनरल इंश्योरेंस कंपनी ने 3,704 करोड़ रुपये का मुनाफ़ा कमाया।

यूनिवर्सल सोम्पो जनरल इंश्योरेंस और बजाज आलियांज ने भी क्रमश: 3,365 करोड़ रुपये और 3,221 करोड़ रुपये के मुनाफ़े अर्जित किये हैं। पीएमएफ़बीवाई में 2017-18 में शामिल होने वाली भारती एक्सा बीमा ने अगले चार सालों में 1,865 करोड़ रुपये कमाये। इसने बतौर प्रीमियम  2,529 करोड़ रुपये पाये और बतौर दावे 664 करोड़ रुपये का भुगतान किया।

नुक़सान उठाने वाली या बेहद कम मुनाफ़ा कमाने वाली कुछ निजी कंपनियां इस व्यवस्था से ही बाहर हो गयी हैं। श्रीराम जीआईसी लिमिटेड को 2016-19 में 170.95 करोड़ रुपये का प्रीमियम मिला, लेकिन 256.95 करोड़ रुपये के दावे का भुगतान करने के बाद यह पीएमएफ़बीवाई से अलग हो गयी। आईसीआईसीआई लम्बर्ड भी एक साल बाद इस योजना से हट गयी।

कम मुनाफ़ा होने के चलते टाटा टीआईजी और चोला मंडलम ने भी 2018-19 के बाद पीएमएफ़बीवाई में भाग लेना बंद कर दिया।

मध्य प्रदेश में किसी निजी बीमा फ़र्म के लिए काम करने वाले एक अधिकारी ने न्यूज़क्लिक को बताया, "इसके अलावा, ये बीमा कंपनियां ब्याज़ से भारी मुनाफ़ा कमाती हैं।"

नाम नहीं छापे जाने का अनुरोध करते हुए उन्होंने इसे इस तरह समझाया, "इस योजना के प्रावधानों के मुताबिक़, दावों का भुगतान छह महीने के भीतर किया जाना चाहिए। लेकिन, पूरी प्रक्रिया में तक़रीबन डेढ़ साल का समय लगता है। मान लीजिए कि किसी कंपनी को जून 2020 तक कुल प्रीमियम के रूप में 2,000 करोड़ रुपये हासिल होते हैं, लेकिन यह सितंबर 2021 में किये गये दावे का भुगतान उस समय करती है, जब सरकार बीमा कंपनी को इन दावों की आख़िरी सूची सौंपती है। इस 12 से 18 महीनों की अवधि में ये कंपनियां उन ब्याज़ों से मुनाफ़ा कमा चुकी होती हैं, जो कि वास्तविक डेटा में प्रतिबिंबित होते ही नहीं।"

उन्होंने कहा, "निजी बीमा कंपनियां मुनाफ़ा इसलिए कमा रही हैं, क्योंकि ये कंपनियां हाल के मौसम, मिट्टी और फ़सल की रिपोर्ट के आधार पर चुनिंदा क्षेत्र समूहों का ही चुनाव करती हैं। इसके अलावा, वे ज़्यादातर गेहूं उगाने वाले ऐसे इलाक़ों पर अपना ध्यान केंद्रित करती हैं, जिनमें नुक़सान की आशंका नहीं के बराबर होती है, लेकिन मुनाफ़े की संभावना बहुत ज़्यादा रहती है।"

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव हन्नान मुल्ला ने बताया कि ये आंकड़े दिखाते हैं कि पीएमएफ़बीवाई के तहत निजी बीमा कंपनियां की भागीदारी कोई अच्छा विचार तो नहीं है।

“जब किसान नुक़सान उठा कर रहे हैं, तो बीमा कंपनियां उनकी ही फ़सलों से करोड़ों कमा रही हैं। यह योजना निजी बीमा कंपनियों के बजाय किसानों की मदद के लिए शुरू की गयी थी। हमने किसान विरोध के दौरान भी इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया है।”

सार्वजनिक क्षेत्र की इस प्रभावी बीमा प्रणाली पर ज़ोर देते हुए मुल्ला ने कहा, “सिर्फ़ सरकारी स्वामित्व वाली कंपनियों को इस योजना के तहत सूचीबद्ध किया जाना चाहिए, फ़सल-वार बीमा किया जाना चाहिए, छोटे किसानों को छूट मिलनी चाहिए, और इस योजना के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए सरकार को किसानों को हुए नुक़सान का आकलन करने के लिए गांव-दर-गांव प्रतिनिधियों की नियुक्ति करनी चाहिए। हमें कृषि संकट को दूर करने के लिहाज़ से बीमा और खेती के लिए एक बिल्कुल ही नये नज़रिये और विचार की ज़रूरत है।"

मध्य प्रदेश के एक दूसरे किसान नेता, शिवकुमार कक्का ने न्यूज़क्लिक को बताया, "यह कोई छुपी हुई बात तो है नहीं कि बीमा कंपनियां,ख़ासकर निजी कंपनियां किसानों के बजाय पीएमएफ़बीवाई से भारी मुनाफ़ा कमा रही हैं। उन्होंने इस नुक़सान को भांपते हुए सरकारी एजेंसियों की परवाह किए बिना अपनी एक व्यापक जगह बना ली है। उदाहरण के लिए, 2018 और 2019 के बीच जब सरकारी फ़र्मों को भारी नुक़सान हुआ था, तो ये निजी कंपनियों ने 9000 करोड़ रुपये से ज़्यादा के लाभ अर्जित किये थे। भला यह कैसे मुमकिन हो सकता है?”

उन्होंने कहा, "मध्य प्रदेश में किसानों को हुए एक लाख रुपए की फ़सल के नुकसान के लिए महज़ एक रुपए मिले हैं।"

2020 में जब मध्य प्रदेश सरकार ने 22 लाख किसानों को फ़सल बीमा मुआवज़ा दिया था, तो कई किसानों ने फ़सल बीमा दावों के रूप में कम राशि पाने की शिकायत की थी। मध्य प्रदेश के बैतूल ज़िले के एक किसान पूरनलाल, जो कि अपनी फ़सल को हुए नुक़सान के लिए 1 लाख रुपये के मुआवज़े के हक़दार थे, उन्हें महज़ 1 रुपये ही मिले हैं, जबकि पूरनलाल की तरह बेतूल के दो अन्य किसानों को इतनी ही रक़म की फ़सल को हुए नुक़सान के लिए 70 और 92 रुपये के मुआवज़े मिले।

कम से कम 21 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में पीएमएफ़बीवाई लागू है, जबकि आंध्र प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और अन्य राज्यों ने इसी तर्ज़ पर अपनी-अपनी फ़सल बीमा नीतियां तैयार की हुई हैं।

अपनी शुरुआत के चार साल बाद,यानी 2020 में इस योजना को इस तरह नया रूप दिया गया था ता कि किसानों की स्वैच्छिक भागीदारी हो सके। इसने किसान के लिए फ़सल बीमा ऐप, सीएससी केंद्र या निकटतम कृषि अधिकारी के माध्यम से किसी भी घटना के 72 घंटों के भीतर फ़सल को हुए नुक़सान की रिपोर्ट किये जाने के साथ-साथ दावे की पात्रता वाले लाभार्थी किसानों के बैंक खातों में इलेक्ट्रॉनिक रूप से रक़म के हस्तांतरित किये जाने को भी सुविधाजनक बना दिया है

आय के उच्चतम अंतर वाले राज्य

संसद के चालू मानसून सत्र में पीएमएफ़बीवाई के राज्यवार आंकड़े पेश करते हुए कृषि मंत्री ने कहा कि पीएमएफ़बीवाई के तहत इन बीमा कंपनियों ने शीर्ष 15 कृषि से जुड़े राज्यों से क़रीब 31,000 करोड़ रुपये बनाये हैं।

इन बीमा कंपनियों ने महाराष्ट्र से सबसे ज़्यादा 8,070 करोड़ रुपये बनाये, इसके बाद गुजरात से 6,813 करोड़ रुपये कमाये, जबकि उनकी कमाई के मामले में उत्तर प्रदेश का स्थान 3,902 करोड़ रुपये के साथ तीसरा स्थान रहा।

जहां बिहार, तेलंगाना, झारखंड और असम में 28 लाख से 50 लाख के बीच कर्ज़दार हैं, वहां इन बीमा कंपनियों ने 4,524 करोड़ रुपये कमाये हैं, जबकि सबसे ज़्यादा किसानों वाले राज्यों में इन बीमा कंपनियों ने भारी मुनाफ़ा अर्जित किया है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Private Companies Earned Double Profits Than Govt. Firms in Union Crop Insurance Scheme

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