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अक्षय ऊर्जा: जन, पर्यावरण और भविष्य की ऊर्जा की चुनौतियां

“अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में सुधार लाने के लिए कई नीतिगत पहल आज़मायी जा सकती हैं। अक्षय ऊर्जा स्रोतों से मिलने वाली बिजली को सरकार अवश्य खरीदे। इसे राज्य की बिजली वितरण कंपनियां अनदेखा करती हैं। क्योंकि उनके सामने कोयला जैसे सस्ती बिजली लेने का विकल्प है। हमें ये तय करना होगा कि छोटे या मझोले ऊर्जा उद्यमियों को उनके पूंजीगत निवेश का लाभ मिले”।
Solar Wind park
तमिलनाडु में सोलर-विंड हाइब्रिड पार्क

पहाड़, जंगल, नदी किनारे रहने वाले और गांवों में बसे लोग अपने हिस्से की पर्याप्त बिजली का अब भी इंतज़ार कर रहे हैं। रिन्यूएबल एनर्जी यानी नवीकरणीय ऊर्जा इन लोगों के जीवन में बेहतर बदलाव ला सकती है। वैश्विक तापमान बढ़ने की वजह से उपजी प्राकृतिक आपदाओं का शिकार भी इन्हीं क्षेत्रों में रहने वाले लोग सबसे अधिक हैं।

रिन्यूएबल ऊर्जा जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिए हमारा एक मज़बूत विकल्प है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले वर्ष नवंबर में ग्लासगो में हुए कॉप-26 सम्मेलन में वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा का महत्वकांक्षी लक्ष्य रखा था। ताकि ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम करने के लिए राष्ट्रीय निर्धारित योगदान लक्ष्यों (INDC) को हासिल किया जा सके।

अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में लगातार प्रगति के बावजूद इस क्षेत्र में काम कर रहे उद्यमी नीतिगत मुश्किलों से जूझ रहे हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि केंद्र और राज्य स्तर पर नीतियों में सुधार की जरूरत है। ताकि इस क्षेत्र में कार्य कर रहे छोटे-मझोले उद्यमियों को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। 

टिहरी का कफुल्टा गांव। दूरस्थ क्षेत्रों में अक्षय ऊर्जा स्रोतों से टिकाऊ बिजली व्यवस्था की जा सकती है।

अपने हिस्से की ‘बिजली’ का इंतज़ार

टिहरी में सूरज ढलते ही अंधेरे में डूब जाने वाले गांव कफुल्टा की रातें सोलर स्ट्रीट लाइट ने सिर्फ रोशन ही नहीं की, बल्कि गांव की महिलाओं और बच्चों को सुरक्षा, पढ़ने के लिए अधिक समय, घर के कामों में सहूलियत समेत जीवन में कई बेहतर बदलाव आए। पिछले वर्ष अक्टूबर में मैंने इस गांव में एक रात बिताई। गांव की महिलाओं ने बताया कि बारिश के मौसम, सर्दियों की बर्फ़बारी में गांव में कई-कई दिनों तक बिजली नहीं आती है। ऐसे में सोलर स्ट्रीट लाइट्स उनके लिए उजाले का भरोसा था। इस गांव के घरों में सोलर रूफ टॉप की बहुत जरूरत महसूस हुई। लेकिन गांव की महिलाओं को इसकी जानकारी नहीं थी। वे नाराज़ थी कि जनप्रतिनिधि वोट मांगने तो घर-घर तक आते हैं लेकिन ऐसी योजनाओं के बारे में उन्हें जानकारी नहीं देते।

बिजली की शक्ति

मानव विकास सूचकांक और ऊर्जा की खपत एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 में कहा गया कि भारत को प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत कम से कम 2.5 गुना बढ़ाने की जरूरत है। पानी की उपलब्धता, खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा, कौशल विकास, आजीविका के साथ-साथ लैंगिक समानता लाने में ऊर्जा सक्षम बनाती है। पर्याप्त और किफायती दरों पर उपलब्ध ऊर्जा जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने में भी मदद करती है।

युनाइटेड नेशनल डेवलपमेंट प्रोग्राम (यूएनडीपी) की वर्ष 2020 में जारी मानव विकास रिपोर्ट के मुताबिक 189 देशों में भारत 131वें स्थान पर था। रिपोर्ट के मुताबिक 0.645 अंकों के साथ भारत मध्यम मानव विकास श्रेणी में भी स्थान नहीं बना सका। वर्ष 2020 में भारत में ऊर्जा की खपत 23.2 गीगाजूल/प्रतिव्यक्ति थी। जबकि चीन 101.2 गीगाजूल/प्रतिव्यक्ति और वैश्विक औसत 71.5 गीगाजूल/प्रतिव्यक्ति थी। (गीगाजूल ऊर्जा को मापने की एक इकाई है।)

भारत की अक्षय ऊर्जा स्थिति, स्रोत- नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय

जन की ऊर्जा

तमिलनाडु में नीलगिरी की पहाड़ियों के बीच जन-पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर स्थानीय समुदाय के साथ कार्य कर रही संस्था की-स्टोन फाउंडेशन की उपनिदेशक अनीता वर्गीज़ कहती हैं “बिजली या पानी जैसी जरूरी सुविधाएं हम आमतौर पर शहरी क्षेत्र को देने के लिए सोचते हैं। गांवों या सुदूर क्षेत्रों में रह रहे लोगों तक बुनियादी सुविधाएं पहुंचाने के बारे में नहीं सोचते। ऐसे क्षेत्रों के लिए रिन्यूएबल एनर्जी अच्छा विकल्प बन सकता है”।

अनीता कहती हैं कि हमें पहाड़, जंगल, नदियों के किनारे रह रहे लोगों के लिए योजनाएं बनाने की जरूरत है। “कोविड लॉकडाउन के समय जब स्कूल ऑनलाइन हुए तो देश का एक बड़ा हिस्सा इस व्यवस्था से जुड़ नहीं सका। क्योंकि उन तक बिजली या इंटरनेट की पहुंच नहीं थी। जब बाढ़ या प्राकृतिक आपदाएं आती हैं तो इन सुदूर पर्वतीय क्षेत्रों में बहुत दिक्कत होती है। लोगों को ये तक नहीं पता होता है कि कौन कहां फंसा है। सौर ऊर्जा के साथ खास बात है कि ये जहाँ सूरज की रोशनी पहुंचे, वहां पैदा की जा सकती है और वहां के लोगों के काम आ सकती है। जहां ट्रांसमिशन लाइन नहीं हैं वहां भी सौर-पवन ऊर्जा के जरिये बिजली पहुंचाई जा सकती है”।

ऊर्जा क्षेत्र से होने वाले ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम करने के लिए अक्षय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा दिया जा रहा है। 2030 तक अपनी ऊर्जा जरूरतों का 500 गीगावाट अक्षय ऊर्जा स्रोतों से हासिल करने पर हम ऊर्जा क्षेत्र से होने वाले जीएचजी उत्सर्जन को कम से कम 37% तक कम कर सकते हैं। 2050 तक 80-82% जीएचजी उत्सर्जन कटौती का लक्ष्य है।  

पर्यावरण के लिए ऊर्जा का विकल्प

इंटरनेशनल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज की रिपोर्ट के मुताबिक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में जीवाश्म ईंधन का सबसे अधिक योगदान है। जो जलवायु परिवर्तन की एक बड़ी वजह है। ऊर्जा क्षेत्र से होने वाले ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम करने और ऊर्जा की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए अक्षय ऊर्जा एक सशक्त विकल्प है।

मार्च 2022 तक देश में सौर-पवन ऊर्जा समेत 157 गीगावाट अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता हासिल कर ली है। 2030 तक 500 गीगावाट और 2070 तक भारत के ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को शून्य करने के लिए लक्ष्य नेट-ज़ीरो तक पहुंचने के लिए अक्षय ऊर्जा उत्पादन बढ़ाना अनिवार्य है।

अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में कार्य कर रहे उद्यमी कई चुनौतियों से जूझ रहे हैं।

ऊर्जा उद्यमियों की मुश्किलें

अक्षय ऊर्जा लक्ष्यों को हासिल करने में बड़े उद्यमियों के साथ-साथ छोटे-मझोले उद्यमियों की भी अहम भूमिका है। केंद्र सरकार उद्यमियों को इस क्षेत्र में आने और निवेश बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। लेकिन क्या केंद्र और राज्यों की नीतियां सही दिशा में ले जा रही हैं।

तमिलनाडु भारत में रिन्यूएबल एनर्जी के क्षेत्र में 15,914 मेगावाट क्षमता के साथ शीर्ष राज्य है। जिसमें सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता  4,894 मेगावाट और पवन ऊर्जा क्षमता 9,857 मेगावाट शामिल है। राज्य के कन्याकुमारी और तिरुनेलवेली जिले में पवन चक्कियों और सौर-पवन ऊर्जा के हाइब्रिड पार्क देश के अक्षय ऊर्जा लक्ष्यों को हासिल करने की उम्मीद जगाते हैं। लेकिन यहां के ऊर्जा उद्यमियों की मुश्किलें नीतिगत बदलावों की मांग करती हैं।

तमिलनाडु के मुप्पंडल में रैमको विंड फार्म 1993 में स्थापित हुआ था। देश के सबसे बेहतरीन विंड पास (जहां सबसे अधिक पवन ऊर्जा हासिल हो सकती है) पर बने इस विंड फार्म की ज्यादातर पवन चक्कियां पुरानी हो गई हैं। जिससे ऊर्जा उत्पादन घटने लगा है। पवन चक्कियों के टावर की ऊंचाई बढ़ाना, ब्लेड का आकार बढ़ाना या नई आधुनिक मशीनों से बदलने जैसे विकल्प के साथ तकनीकी और ढांचागत मुश्किलें जुड़ी हैं।

2016 में केंद्र सरकार विंड पावर प्रोजेक्ट्स के लिए रि-पावरिंग पॉलिसी भी लेकर आई। 90 के दशक की 250, 500, 800 किलोवाट क्षमता तक की मशीनों की जगह यदि मौजूदा तकनीक के आधार पर 1 से 4 मेगावाट की मशीनें लेती हैं तो उसी विंड पार्क से ऊर्जा उत्पादन कई गुना बढ़ जाएगा।

ग्लोबल विंड एनर्जी काउंसिल के फ्रांसिस जयसूर्या कहते हैं कि सरकार रि-पावरिंग पॉलिसी तो लेकर आई लेकिन इस पर कुछ किया नहीं जा रहा। तमिलनाडु के इस क्षेत्रों में नए विंड फार्म के लिए अब कोई जगह नहीं बची। पुराने विंड फार्म की रि-पावरिंग के लिए सरकार की तरफ से उद्यमियों को कोई मदद या सब्सिडी नहीं दी जा रही है। उद्यमियों के लिए इसकी लागत एक बड़ी समस्या है। इसके साथ ही सभी विंड फार्म को साथ लेना होगा और ट्रांसमिशन लाइन बदलने होंगे। बिना सरकार की पहल के ये संभव नहीं है।  

तमिलनाडु के सौर-पवन ऊर्जा क्षेत्र में कार्य कर रही सीएएलएस रिन्यूएबल एनर्जी कंपनी के निदेशक अरुण बालन कहते हैं रिवर्स ऑक्शन (सबसे कम दर पर बोली लगाना) व्यवस्था के चलते रिन्यूएबल एनर्जी से बनी बिजली की कीमत 2.50 रुपये प्रति यूनिट तक गिर गई है। जिससे उद्यमियों को लगातार नुकसान हो रहा है और लागत निकालना मुश्किल हो रहा है। सौर-पवन ऊर्जा फार्म को स्थापित करने में आऩे वाली लागत को देखते हुए इनका न्यूनतम मूल्य तय करना चाहिए। बालन बताते हैं कि उनकी कंपनी समेत कई विंड फार्म्स की सरकार पर एक साल से अधिक रकम बकाया है।

ऊर्जा उद्यमियों की मुश्किलें ये भी है कि कई सोलर-विंड फार्म्स ग्रिड से नहीं जुड़े हुए हैं। उनकी शिकायत है कि राज्य की बिजली वितरण कंपनियां ग्रिड कनेक्टिविटी देने से इंकार कर देती हैं। सुज़लॉन कंपनी के अधिकारी बताते हैं कि वे अपने विंड फॉर्म पर बनने वाली बिजली सीमेंट, स्टील, रबर बनाने वाली कंपनियों या होटल तक पहुंचाते हैं।

अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में कार्य कर रहे छोटे-मझोले उद्यमियों को बढ़ावा देने की जरूरत है ताकि उनके पूंजीगत निवेश का लाभ मिल सके।

नीतिगत सुधार की ज़रूरत  

ऊर्जा क्षेत्र कवर करने वाले और द हिंदू बिजनेस लाइन के पूर्व संपादक आर श्रीनिवासन कहते हैं “अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में सुधार लाने के लिए कई नीतिगत पहल आज़मायी जा सकती हैं। अक्षय ऊर्जा स्रोतों से मिलने वाली बिजली को सरकार अवश्य खरीदे। इसे राज्य की बिजली वितरण कंपनियां अनदेखा करती हैं। क्योंकि उनके सामने कोयला जैसे सस्ती बिजली लेने का विकल्प है। हमें ये तय करना होगा कि छोटे या मझोले ऊर्जा उद्यमियों को उनके पूंजीगत निवेश का लाभ मिले”।

श्रीनिवास कहते हैं कि बिजली की दर में नीलामी प्रणाली का फायदा स्वाभाविक तौर पर बड़े खिलाड़ियों को मिलता है। हमे ऊर्जा क्षेत्र में कार्य कर रही छोटी कंपनियों को वित्तीय मदद देने की जरूरत है। साथ ही भुगतान में एक-एक वर्ष तक की देरी छोटी कंपनियों के सामने बड़ा वित्तीय संकट पैदा करती है और उन्हें इस क्षेत्र से बाहर भी कर सकती है।

अक्षय ऊर्जा उत्पादन में अग्रणी तमिलनाडु जैसे राज्य के उद्यमियों के सामने ये चुनौतियां हैं। 2030 तक 500 गीगावाट का लक्ष्य हासिल करने के लिए उद्यमियों की इन मुश्किलों को हल करना और ज्यादा उदारवादी नीतियों की जरूरत है। ताकि देशभर के उद्यमियों को अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में पहल के लिए प्रोत्साहित किया जा सके और गांवों-दूरस्थ क्षेत्रों तक टिकाऊ बिजली पहुंचाने की व्यवस्था की जा सके।

(देहरादून स्थित वर्षा सिंह स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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