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केवल पेट्रोल डीजल पर सेस लगाकर भाजपा राज में 11 लाख करोड़ रुपये की वसूली

मोदी सरकार ने अपने दोनों कार्यकाल में 11 लाख करोड़ रुपये केवल सेस/सरचार्ज के रूप में पेट्रोल-डीजल की बिक्री पर कमाए हैं। अगर 2022-23 के बजट अनुमान के आंकड़ों को भी इस धनराशि में शामिल कर लें तो यह धनराशि करीब 14 लाख करोड़ हो जाती है। सेस/सरचार्ज से प्राप्त इस राजस्व को केंद्र सरकार ने राज्यों के साथ शेयर ना करके लगातार अपनी तिजोरी भरी हैं।
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मोदी सरकार ने अपने दोनों कार्यकाल में 11 लाख करोड़ रुपये केवल सेस/सरचार्ज के रूप में पेट्रोल-डीजल की बिक्री पर कमाएं हैं। अगर 2022-23 के बजट अनुमान के आंकड़ों को भी इस धनराशि में शामिल कर लें तो यह धनराशि करीब 14 लाख करोड़ हो जाती है। सेस/सरचार्ज से प्राप्त इस राजस्व को केंद्र सरकार ने राज्यों के साथ शेयर ना करके लगातार अपनी तिजोरी भरी हैं।

केंद्रीय एक्साइज ड्यूटी संग्रह में भारी बढ़ोतरी- सेस के रूप में जनता से की जा रही भारी वसूली

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के कार्यकाल के प्रारम्भ से केंद्रीय एक्साइज ड्यूटी और सेस/सरचार्ज का अध्ययन करे तो पाते हैं कि अप्रैल 2014 में केंद्रीय एक्साइज ड्यूटी 9.2 रुपये थी, जो नवंबर 2021 में (कटौती से पहले) बढ़कर 32.9 रुपये हो गयी थी, जो कि अभी वर्तमान में कुछ महीनों पहले हुई कटौती के बाद से एक्साइज ड्यूटी पेट्रोल पर 19.9 रुपये और डीजल पर 15.8 रुपये प्रति लीटर हैं।

अब अगर हम केंद्रीय एक्साइज ड्यूटी में सेस का शेयर देखें तो पाते हैं कि सेस अप्रैल 2014 में कुल केंद्रीय एक्साइज ड्यूटी का 87 प्रतिशत था, जबकि यूपीए-2 के कार्यकाल के दौरान मार्च 2011 में 56 प्रतिशत और डीजल पर 43 प्रतिशत था। सेस का यह शेयर नवंबर 2021 (कटौती से पहले) में बढ़कर केंद्रीय एक्साइज ड्यूटी का 96 प्रतिशत हो गया था जोकि अभी मई 2022 के बाद से केंद्रीय एक्साइज ड्यूटी का 93 प्रतिशत हैं।

आखिर केंद्र सरकार सेस का शेयर क्यों लगातार बढ़ा रही हैं? वह इसलिए क्योंकि केंद्र सरकार को ऐसी कोई मंशा ही नहीं हैं कि पेट्रोलियम उत्पादों से आने वाली कमाई का बड़ा हिस्सा राज्यों के साथ शेयर किया जाये, इसलिए केंद्र सरकार बेसिक एक्साइज ड्यूटी के इतर पेट्रोल-डीजल पर सेस लगा रही हैं। आपको बता दें कि पंद्रहवें वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुसार केंद्र सरकार को विभाज्य पूल के तहत सेस के अंतर्गत जमा हुई धनराशि को राज्यों के साथ शेयर करने का कोई प्रावधान नहीं हैं, केवल विभाज्य पूल (Divisible Pool) के तहत राज्यों को बेसिक एक्साइज ड्यूटी का 41 प्रतिशत ही राज्यों के साथ शेयर करना है।

सेस का इतना अधिक बढ़ा होना जनता के ऊपर दोहरी मार कर रहा हैं, क्योकि एक तरफ तो जनता बढ़ी हुई कीमतों पर महंगा तेल खरीद रही हैं और बढ़ी कीमतों के कारण ही अन्य उपभोग की वस्तुओं में महंगाई की मार झेल रही है, वहीं दूसरी और राज्यों को मिलने वाले राजस्व में भारी कटौती हो रही हैं, जिसका अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव जनता के ऊपर ही पड़ने वाला हैं क्योकि राज्यों के राजस्व में कटौती का सीधा प्रभाव राज्य में सामाजिक एवं आर्थिक विकास पर होने वाले खर्चे पर पड़ता हैं।

केंद्रीय एक्साइज ड्यूटी और सेस के रूप में प्राप्त कुल धनराशि

(धनराशि लाख करोड़ रुपयों में)

स्रोत- आंकड़ों का विश्लेषण पेट्रोलियम योजना और विश्लेषण प्रकोष्ठ(PPAC), केंद्रीय बजट एवं आरटीआई से प्राप्त सूचना के आधार पर।

इसके साथ ही मोदी सरकार ने अपने दोनों कार्यकाल में 2014-15 से 2021-22 तक पेट्रोलियम उत्पादों की बिक्री से 19.24 लाख करोड़ रुपये इकठ्ठा किये जिसमे से 11 लाख करोड़ रुपये केवल सेस के रूप में प्राप्त किये जोकि केंद्रीय एक्साइज ड्यूटी का 56 फ़ीसदी हैं। यदि हम 2022-23 के बजट अनुमान के 3.03 लाख करोड़ की धनराशि को भी शामिल कर ले तो मोदी सरकार के कार्यकाल में सेस की कुल धनराशि करीब 14 लाख करोड़ रुपये हो जाती हैं, हम ऊपर दिए गए चार्ट में भी देख सकते है कि एक्साइज ड्यूटी के कुल संग्रह में सेस का शेयर वर्ष दर वर्ष लगातार बढ़ रहा हैं। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल से 2021-22 तक पेट्रोलियम उत्पादों पर उत्पाद शुल्क से केंद्र सरकार के राजस्व में 267% की वृद्धि हुई है जबकि इसी अवधि में सेस से मिलने वाले राजस्व में 386% की बेहद चकित कर देने वाली बढ़ोतरी हुई हैं।

मोदी सरकार ने एक्साइज ड्यूटी संग्रह में अधिकांश हिस्सा केवल सेस से ही प्राप्त किया है, और यह धनराशि जनता पर सेस का अतिरिक्त बोझ डालकर वसूली हैं और इतना ही नहीं बल्कि पेट्रोलियम उत्पादों पर लगाया जाने वाला यह कर अपनी कमाई का एक निरंतर स्रोत बनाया हुआ हैं।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि बढ़ा हुआ यह टैक्स देश की जनता ही दे रही है। पेट्रोल और डीज़ल की खपत मुख्य रूप से परिवहन की ज़रूरतों को पूरा करने में होती है। पेट्रोल-डीजल की खपत मुख्य रूप से जनता के लिए चलाये जा रहे सार्वजनिक और निजी परिवहन में होती है। इसके साथ ही डीज़ल का व्यापक पैमाने पर इस्तेमाल खेती में सिंचाई करने के लिए किया जाता हैं। पेट्रोल/डीज़ल की क़ीमतों में इस बढ़ोत्तरी से आवश्यक उपभोक्ता वस्तुओं की कीमते बेतहाशा बढ़ी हुई है।

हालांकि, कुछ लोगों यह तर्क देते है कि केंद्रीय एक्साइज ड्यूटी के संग्रह में वृद्धि पेट्रोलियम उत्पादों की बढ़ती खपत के चलते ज़्यादा है और एक्साइज ड्यूटी में बढ़ोतरी के कारण नहीं है। मगर, यह सच नहीं है क्योंकि पेट्रोलियम योजना और विश्लेषण प्रकोष्ठ (PPAC) के खपत के आंकड़ों के अनुसार 2014-15 और 2021-22 के बीच खपत में महज़ 23% की वृद्धि हुई और कोरोना काल के दौरान तो यह वृद्धि 2020-21 में 17% तक गिर गयी थी, परन्तु वही इसके उल्ट एक्साइज ड्यूटी के संग्रहण में भारी बढ़ोत्तरी हुई हैं। इसलिए हम यह निष्कर्ष निकल सकते है कि केंद्रीय एक्साइज ड्यूटी में यह बढ़ोत्तरी बढ़ती खपत के कारण नहीं बल्कि बढ़ती कीमतों के कारण ही हुई हैं।

पेट्रोल-डीजल की बढ़ती क़ीमतों के पीछे की वजह क्या है?

बहुत हुई जनता पर पेट्रोल-डीजल की मार, अबकी बार मोदी सरकार - इस नारे के साथ आयी मोदी सरकार ने जनता को पेट्रोल-डीजल की मार से बचाने की वजाये, कर(केंद्रीय एक्साइज ड्यूटी) के रूप में और अधिक कीमते बढाकर जनता को और अधिक कमर तोड़ महंगाई में झोंक दिया हैं।

मोदी सरकार के कार्यकाल की शुरुवात से ही पेट्रोल-डीजल के दामों में लगातार बढ़ोत्तरी बनी हुई हैं और इतना ही नहीं बल्कि पेट्रोल-डीजल के दाम लगातार बढ़ते हुए अपने रिकॉर्ड मूल्य पर पहुंच गए थे, जिसमे पिछले कुछ महीनों में केंद्र एवं कुछ राज्यों द्वारा करो में कटौती करते हुए कुछ राहत देने कोशिश की गयी है परन्तु उसके बावजूद भी पेट्रोल-डीजल की वर्तमान कीमते अपने चरम पर है जिसका खामियाजा आम जनता को महंगाई के रूप में भुगतना पड़ रहा हैं।

अक्सर यह कह दिया जाता है कि कच्चे तेल की बढ़ती इन वैश्विक क़ीमतों के चलते ही घरेलू क़ीमतें बढ़ रही हैं परन्तु इससे बड़ा झूठ कुछ हो नहीं सकता है क्योंकि बढ़ती कीमतों की असली वजह वैश्विक मूल्य नहीं बल्कि केंद्र एवं राज्यों द्वारा लगाया जाने वाला कर हैं, इसमें भी कीमतों में बढ़ोतरी का मुख्य कारण केंद्र सरकार द्वारा लगाया जाने वाला सेस/सरचार्ज हैं।

वैसे तो कुछ वर्ष पहले पेट्रोलियम उत्पादों की क़ीमतों को नियंत्रण मुक्त कर दिया गया था और इन क़ीमतों को बाज़ार से "जोड़" दिया गया था, परन्तु मोदी सरकार के कार्यकाल में पेट्रोल-डीजल की कीमते अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम पर कम बल्कि मोदी सरकार की पेट्रोलियम उत्पादों पर कराधान की नीति पर ज्यादा निर्भर करती हैं, वर्ष 2014 से आंकड़ों का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि कच्चा तेल महंगा तो भी पेट्रोल-डीजल महंगा रहे हैं और कच्चा तेल सस्ता होने पर भी पेट्रोल-डीजल महंगा ही रहे हैं।

पेट्रोलियम योजना और विश्लेषण प्रकोष्ठ (PPAC) के नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक 15 जुलाई 2022 को दिल्ली में पेट्रोल के दाम 96.72 रुपये हैं जिसमे 19.9 रुपये केंद्र सरकार की एक्साइज ड्यूटी के है, जिसमे से 18.5 रुपये सेस के सम्मिलित हैं तथा 15.71 रुपये राज्य सरकार के सेल्स टैक्स/वैट के हैं। इसी प्रकार डीजल के दाम 89.62 प्रति लीटर हैं, जिस पर केंद्र सरकार को 15.8 रुपये एक्साइज ड्यूटी के रूप में मिल रहे हैं जिसमें सेस के 14 रुपये सम्मिलित हैं और राज्य सरकार को सेल्स टैक्स/वैट रूप में 13.11 रुपये रहे हैं। इस प्रकार हम देख सकते हैं की केंद्र सरकार को पेट्रोल एवं डीजल पर बेसिक एक्साइज ड्यूटी में रूप में क्रमश: केवल 1.4 एवं 1.8 रुपये प्राप्त हो रहे हैं, बाकि राशि सेस की हैं।

केंद्र सरकार जो राशि पेट्रोल-डीजल पर टैक्स के रूप में वसूल कर रही हैं उसमे से अधिकांश केंद्र सरकार के पास ही रह जा रहा हैं और बहुत ही कम राशि राज्यों शेयर हो रही हैं। पंद्रहवें वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुसार वर्तमान में राज्यों को विभाज्य पूल (Divisible Pool) के तहत एक लीटर पेट्रोल की वर्तमान कीमत पर 0.57 पैसे और डीजल पर 0.73 पैसे मिलेंगे, जबकि वही दूसरी और केंद्र सरकार को बेसिक एक्साइज ड्यूटी का शेयर और सेस की राशि मिलाकर प्रति लीटर पेट्रोल पर 19.32 रुपये और डीजल पर 15.06 रुपये प्राप्त हो रहे है, जो कि केवल और केवल केंद्र सरकार के पास ही रहेगा।

सकल कर राजस्व (Gross Tax Revenue- GTR) में सेस का अनुपात लगातार बढ़ता जा रहा है, वर्ष 2012-13 में यह कुल Gross Tax Revenue का 7 प्रतिशत था जो कि मोदी सरकार के आने के बाद से लगातार बढ़ते हुए वर्ष 2021-22 में Gross Tax Revenue का 18 प्रतिशत हो गया हैं | पेट्रोल और डीजल के प्रति लीटर मूल्य में लगातार बढ़ती सेस की राशि और सेस के राजस्व लगातार होतो बेतहाशा वृद्धि एक चिंता का विषय हैं।

हमारे देश में राज्यों को खर्चा करने का उत्तरदायित्व ज्यादा है और राजस्व प्राप्ति सीमित वही दूसरी और केंद्र सरकार के पास आय ज्यादा है और खर्चे के दायित्व कम हैं। ऐसे यदि केंद्र सरकार सेस के रूप में प्राप्त बड़ी धनराशि केवल अपने पास रख लेगी तो राज्यों को अपने खर्चो को पूरा करने के लिए बिक्री कर और वैट का सहारा लेना पड़ता है जिसका सीधा प्रभाव आमजन पर पड़ता हैं | इसलिए राज्य मांग भी कर रहे है कि सेस को विभाज्य पूल (Divisible Pool) के अंदर लाया जाये और राज्यों के साथ सेस शेयर किया जाए।

पेट्रोलियम उत्पादों पर केंद्रीय बनाम राज्य कर

पेट्रोलियम योजना और विश्लेषण प्रकोष्ठ (PPAC) से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, जिसका विवरण हम निचे दिए गए ग्राफ में देख सकते हैं। केंद्र सरकार के पास राज्यों की तुलना में एक्साइज ड्यूटी संग्रह में भारी बढ़ोत्तरी हुई है। केंद्र सरकार के पास संग्रह, वर्ष 2014-15 में 1.15 लाख करोड़ रुपये था जो वर्ष 2021-22 में बढ़कर 3.83 लाख करोड़ रुपये हो गया हैं।

केंद्रीय एक्साइज ड्यूटी संग्रह के आंकड़ों में एक बात गौर करने योग्य है वो है की मोदी सरकार के आने से पहले, बल्कि मोदी सरकार के पहले वर्ष भी राज्यों का बिक्री कर/वैट, केंद्र सरकार से ज्यादा हुआ करता था। परन्तु वर्ष 2015-16 में राज्यों के बिक्री कर/वैट केंद्र सरकार एक्साइज ड्यूटी के मुकाबले कम हुआ और फिर उसके बाद से केंद्रीय एक्साइज ड्यूटी और राज्यों के बिक्री कर/वैट के लगातार गैप बढ़ता गया, जिसका विवरण हम यहां ग्राफ में देख सकते हैं।

पेट्रोलियम उत्पादों पर केंद्रीय एक्साइज ड्यूटी एवं राज्य बिक्री कर/वैट

(धनराशि लाख करोड़ रुपयों में)

नोट - केंद्रीय एक्साइज ड्यूटी में संग्रह में क्रूड आयल पर लगने वाली सेस की धनराशि सम्मिलित हैं।

स्रोत- पेट्रोलियम योजना और विश्लेषण प्रकोष्ठ (PPAC)

मोदी सरकार के पिछले आठ वर्षों में केन्द्रीय एक्साइज ड्यूटी लगाकर 20.45 लाख करोड़ रुपयों का संग्रह किया हैं और इसी अवधि में राज्य सरकारों ने वैट/बिक्री कर से करीब 15 लाख करोड़ रुपये एकत्र किये हैं। जो यह दर्शाता है की केंद्र सरकार ने पेट्रोलियम उत्पादों से राज्यों के मुकाबले ज्यादा कमाई की है।

केंद्र सरकार ने एक्साइज ड्यूटी को लगातार बढाकर वस्तुओं की कीमतों में असहनीय वृद्धि की हैं और अप्रत्यक्ष रूप से किसानों और आम लोगों पर उत्पाद शुल्क का बोझ लादा दिया है और यह बोझ लगातार लादा जा रहा हैं।

पेट्रोलियम उत्पादों पर केन्द्रीय एक्साइज ड्यूटी की वृद्धि पर भाजपा नेताओं द्वारा बार-बार यह तर्क दिया जाता है कि केंद्र सरकार के करों का एक हिस्सा आखिर राज्यों को भी जाता है और सवाल किया कि फिर राज्य इस उच्च कराधान के बारे में क्यों चिल्ला रहे हैं ? उनका यह तर्क बेबुनियाद है, क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में, बेसिक एक्साइज ड्यूटी में भारी कमी आयी है (जिसका उल्लेख हमने ऊपर लेख में भी किया हैं) जिसके कारण राज्यों को टैक्स में मिलने वाले शेयर में भारी कमी आयी हैं क्योकि करों का एक बड़ा हिस्सा अब 'अतिरिक्त उत्पाद शुल्क' और उपकरों से आता है, जिन्हें राज्यों को हस्तांतरित नहीं किया जाता है।

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