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कृषि बजट में कटौती करके, ‘किसान आंदोलन’ का बदला ले रही है सरकार: संयुक्त किसान मोर्चा

मोर्चा ने इस बात पर भी जोर दिया कि केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक बार भी किसानों की आय को दुगुना किये जाने का उल्लेख नहीं किया है क्योंकि कई वर्षों के बाद भी वे इस परिणाम को हासिल कर पाने में विफल रही हैं।
farmers SKM

2022-23 के केंद्रीय बजट पर तीखा प्रहार करते हुए संयुक्त किसान मोर्चा ने मंगलवार को कहा है कि मोदी सरकार देश के किसानों को उनके द्वारा चलाये गए तीन केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ ऐतिहासिक संघर्ष का नेतृत्व करने के कारण, कृषि एवं संबद्ध गतिविधियों के लिए आवंटन में कटौती के जरिये दण्डित कर रही है। मोर्चा ने इस बात पर जोर देकर कहा है कि केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक बार भी किसानों की आय को दोगुना किये जाने के बारे में उल्लेख नहीं किया। क्योंकि वे इन परिणामों को हासिल कर पाने में विफल रही हैं।

SKM ने कहा है, “किसानों के द्वारा पिछले डेढ़ वर्षों के दौरान चलाए गए अभूतपूर्व आंदोलन के बाद देश के किसानों को उम्मीद थी कि एक संवेदनशील सरकार इस बजट में विशिष्ट प्रभावी कदमों को अपनाएगी, जिससे कि उनकी लाभकारी मूल्य न हासिल कर पाने की स्थिति, प्राकृतिक आपदाओं के चलते होने वाले फसल के नुकसान, और कर्ज में गहरे तक डूबने की स्थिति का निवारण करेगी। इसके बजाय, सरकार ने पिछले वर्ष के कुल बजट में कृषि एवं संबद्ध गतिविधियों के लिए जो हिस्सा 4.3% था उसे घटाकर इस साल 3.8% कर दिया है, जो इस बात को दर्शाता है कि सरकार किसानों को उनकी सफलता के लिए दंडित करना चाहती है।

क्रांतिकारी किसान यूनियन के अध्यक्ष और एसकेएम की कोर कमेटी के सदस्य, दर्शन पाल ने कहा है कि किसान काफी लंबे अर्से से अपनी आय को दोगुना किये जाने की कहानी सुनने को बेताब थे, और अब जबकि वे 2022 में हैं। फरवरी 2016 में प्रधानमंत्री द्वारा घोषित किये जाने के बाद कि किसानों की आय छह वर्षों के भीतर दोगुनी कर दी जाएगी, के बाद से सत्तारूढ़ दल के द्वारा हर बजट भाषण और कृषि पर भाषण में इस वादे का विशेष तौर पर उल्लेख किया जाता रहा है। अब जबकि हम 2022 में पहुँच चुके हैं, लेकिन वित्त मंत्री के द्वारा इसका जिक्र तक नहीं किया गया।

उन्होंने कहा, “जहाँ तक सरकार के द्वारा किसानों की आय को दोगुना किये जाने का प्रश्न है, तो रिपोर्ट के मुताबिक 2015-16 के लिए बेंचमार्क कृषि घरेलू आय 8,059 रूपये थी, और मुद्रास्फीति को ध्यान में रखते हुए इसे वास्तविक अर्थों में दोगुना किये जाने का वादा किया गया था। इसके मुताबिक 2022 तक किसानों की लक्षित आय 21,146 रूपये होनी चाहिए। लेकिन एनएसएसओ के 77वें दौर से पता चलता है कि 2018-19 में औसत कृषि घरेलू आय मात्र 10,218 रूपये थी। अगले तीन सालों के लिए यदि कृषि क्षेत्र में जीवीए की वृद्धि दर को अनुमानित करें तो यह आय 2022 में अभी भी 12,000 रूपये प्रति माह से कम बैठती है, जो कि आय को दोगुना करने के लक्ष्य से काफी दूर है।

पाल ने कहा कि केंद्र को अभी भी केंद्रीय कृषि मंत्रालय के जरिये किये गए वायदे पर काम करना बाकी है जिसे उसके द्वारा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की सीमाओं पर आंदोलन के अंत में किया गया था। उन वायदों में केंद्र ने किसानों को एक कमेटी के गठन का आश्वासन दिया था, जो न्यूनतम समर्थन मूल्य पर संदर्भ के स्पष्ट शर्तों को देखेगी, राज्यों को आंदोलन के दौरान दर्ज किये गए आपराधिक मामलों को वापस लेने के लिए निर्देशित करने, आंदोलन के दौरान मृतक किसानों के परिजनों को मुआवजा देने और विद्युत् संशोधन अधिनियम के बारे में किसानों की चिंताओं को दूर करने की बात कही गई थी।

बजट में न्यूनतम समर्थन मूल्य के बारे में किये गए प्रावधानों की गुत्थियों को खोलते हुए पाल ने कहा है कि जहाँ एक ओर किसानों के द्वारा सभी फसलों पर एमएसपी की गारंटी की मांग की जा रही है, वहीँ बजट भाषण में सिर्फ 1.63 करोड़ किसानों से धान और गेंहूँ की खरीद का उल्लेख किया गया है, जो देश के सभी किसानों का करीब 10% हैं। यहाँ तक कि धान और गेंहू के मामले में भी बजट भाषण से पता चलता है कि 2020-21 की तुलना में 2021-22 में खरीद में गिरावट आई है। वित्त मंत्री के द्वारा गर्व के साथ इस बात की घोषणा की गई कि 2021-22 में धान और गेंहू की रिकॉर्ड खरीद की गई है, जिसमें “163 लाख किसानों से 1,208 लाख मीट्रिक टन गेंहू और धान की खरीद की गई है, और उनके खातों में 2.37 लाख करोड़ रूपये का प्रत्यक्ष भुगतान कर दिया गया है।” जबकि ये आंकड़े 2020-21 की तुलना में गंभीर कमी को दर्शाते हैं, जब 197 लाख किसानों से 1286 लाख मीट्रिक टन अनाज की खरीद की गई थी और किसानों को 2.48 लाख करोड़ रूपये का भुगतान किया गया था। 2021-22 में लाभान्वित किसानों की संख्या में 17% की गिरावट दर्ज की गई है और 2020-21 में खरीदी गई मात्रा की तुलना में 7% की कमी आई है।  

भारतीय किसान यूनियन एकता उगराहां के अध्यक्ष जोगिंदर सिंह उगराहां ने जोर देकर कहा कि केंद्र सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए क़ानूनी गारंटी को पूरा कर पाने में विफल रही है और वित्त मंत्रालय के जरिये एमएसपी से संबंधित योजनाओं के आवंटन में कटौती कर दी गई है। एक लिखित बयान में उन्होंने कहा है कि 2018 के बजट भाषण में वित्त मंत्री अरुण जेटली के द्वारा किये गये वादे को लागू करने के लिए 2018 में पीएम-आशा योजना (प्रधान मंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान) को बड़े गाजे-बाजे के साथ लाया गया था, और दावा किया गया था कि प्रत्येक किसान को घोषित एमएसपी सुनिश्चित किया जायेगा। “इस प्रमुख योजना के लिए किया गया आवंटन ही एमएसपी के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता की कहानी को बयां करने के लिए काफी है। 1500 करोड़ रूपये से घटकर यह 500 करोड़ रूपये कर दिया गया, फिर 400 करोड़ रूपये हो गया और इस साल मात्र 1 करोड़ रूपये रह गया है।”

पंजाब के सबसे बड़े किसान यूनियनों में से एक का नेतृत्व करने वाले वयोवृद्ध नेता ने इस बात का उल्लेख किया है कि इस वर्ष की मूल्य समर्थन योजना - बाजार हस्तक्षेप योजना के लिए आवंटन 1500 करोड़ रूपये का किया गया है, जबकि पिछले साल इस पर वास्तविक खर्च 3,596 करोड़ रूपये का हुआ था। उक्त धनराशियाँ देश भर के बाजारों में किसानों के द्वारा प्राप्त एमएसपी और वास्तविक मूल्य के बीच में 50,000 करोड़ रूपये से लेकर 75,000 करोड़ रूपये के बीच की अनुमानित कमी है, की तुलना में बेहद कम हैं।

न्यूज़क्लिक के साथ फोन पर बातचीत में, अखिल भारतीय किसान सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक धवले ने कहा कि कृषि क्षेत्र में मानवीय लागत के संकट को समझ पाने में केंद्र विफल रही है, जहाँ पर गलत नीतियों की वजह से 4 लाख से अधिक किसानों ने आत्महत्या कर ली है। मौजूदा बजट किसानों, खेतिहर मजदूरों और महिलाओं को मदद पहुंचाने वाली योजनाओं के आवंटन में कटौती करके उनके जख्मों पर नमक छिड़कने का काम कर रहा है।

उन्होंने कहा, “मनरेगा के लिए आवंटन पिछले वर्ष के व्यय की तुलना में घटा दिया गया है, हालाँकि पिछले कई वर्षों के दौरान ग्रामीण अर्थव्यवस्था और ग्रामीण गरीबों को बनाये रखने के लिए यह योजना बेहद कारगर सिद्ध हुई है, जिसमें कोविड महामारी संकट भी शामिल है। 2020-21 में वास्तविक व्यय 1,11,169 करोड़ रूपये था, जबकि संशोधित अनुमान 2021-22 में 98,000 करोड़ रुपयों का था। लेकिन इसके बावजूद 2022-23 के लिए बजट आवंटन को घटाकर 73,000 करोड़ रूपये कर दिया गया है, जबकि इसमें और अधिक बढोत्तरी की जानी चाहिए थी।

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उन्होंने आगे कहा कि किसानों के लिए अधिकांश महत्वपूर्ण योजनाओं में, प्रदर्शन निराशाजनक रहा है, और इसमें सुधार की कोई गुंजाइश नजर नहीं आ रही है। कई राज्यों ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) जैसे प्रमुख कार्यक्रम से कदम से पीछे खींच लिए हैं, जिसमें पीएम के स्वंय के गृह राज्य गुजरात सहित पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु जैसे कई प्रमुख राज्य शामिल हैं। पीएम किसान योजना को 12 करोड़ किसानों के साथ शुरू करने की घोषणा की गई थी और 15 करोड़ किसानों तक इसका विस्तार किया जाना था।

उन्होंने आगे कहा कि सिंचाई योजनाओं में भी ऐसा लगता है कि कटौती की गई है, जबकि इसके लिए और भी अधिक आवंटन किये जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा, “पीएम-कृषि सिंचाई योजना के लिए 2021-22 में 4,000 करोड़ रूपये का आवंटन किया गया था, लेकिन इस पर मात्र 2,000 करोड़ रूपये खर्च किये गए। अब इसे आरकेवीवाई के विस्तारित छतरी के तहत डाल दिया गया है। जबकि वास्तविक स्थिति यह है कि पिछले वर्ष आरकेवीवाई योजना के लिए सिर्फ 3,712 करोड़ रूपये का आवंटन किया गया था, जिसमें से सिर्फ 2,000 करोड़ रूपये ही खर्च किये गए थे।”

अंग्रेज़ी में प्रकाशित इस मूल आलेख को पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें: 

Modi Government Taking Revenge from Farmers for Victorious Struggle Through Budget, says SKM

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