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द हिंदू के पत्रकार की आपबीती: 'ख़ामोश बैठे रहो वरना दंगे की साज़िश की धारा तहत कार्रवाई करेंगे'

यूपी पुलिस द्वारा अंग्रेज़ी अख़बार द हिंदू के विशेष संवाददाता उमर राशिद को हिरासत में लिए जाने को लेकर पत्रकार संगठनों ने दोषी पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई की मांग की है और पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर चिंता जताई है।
Omar Rashid


उत्तर प्रदेश पुलिस ने शुक्रवार की रात अंग्रेज़ी अख़बार द हिंदू के पत्रकार को हिरासत में लेकर उसके साथ अभद्र व्यवहार किया। इस घटना को लेकर पत्रकार संगठनों ने दोषी पुलिसकर्मियों को निष्कासित करने की मांग की है और पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर चिंता जतायी है।

इस घटना को लेकर “द हिंदू” अख़बार के विशेष संवाददाता उमर राशिद बताते हैं कि शुक्रवार की रात वह विधानसभा के निकट एक होटल पर आकर बैठे थे और सरकारी अधिकारियों द्वारा होने वाली प्रेस वार्ता की प्रतीक्षा कर रहे थे। उसी समय कुछ बिना वर्दी के पुलिसकर्मी आए और बिना कुछ बताए उनको अपनी जीप में बैठाकर ले गए। उस समय उनके साथ सामाजिक कार्यकर्ता रॉबिन वर्मा भी थे। पुलिस ने उनको भी हिरासत में ले लिया।

उमर राशिद के अनुसार उन्होंने पुलिस को अपना परिचय भी दिया और अपने अख़बार के बारे में भी बताया। लेकिन पुलिस ने उनको अभद्र भाषा में जवाब देते हुए ख़ामोश रहने को कहा। पुलिस ने पत्रकार को धमकी दी कि वे किसी को भी अपने हिरासत में लिए जाने की सूचना न दे। बाद में उनका मोबाइल फ़ोन भी भी ज़ब्त कर लिया।

उमर राशिद बताते हैं कि पुलिस उनको पहले हज़रतगंज थाने ले गई। जहाँ उनको एक कमरे में बंद कर दिया गया। कमरा थोड़ा पुलिस के साइबर सेल जैसा लग रहा था। कुछ समय बाद थाने में पहले से मौजूद पुलिसकर्मी कमरे में आ गए।

पुलिसकर्मियों ने आरोप लगाया कि उमर राशिद और रॉबिन वर्मा बृहस्पतिवार को लखनऊ में नागरिक संशोधन क़ानून के विरोध में हुए प्रदर्शन के दौरान दंगा भड़का रहे थे। थोड़ी देर बाद उन पुलिस कर्मियों ने रॉबिन वर्मा को बेल्ट और तमाचों से मारना शुरू कर दिया।

जब पत्रकार उमर राशिद ने पुलिस कर्मियों से सवाल किया कि उनको क्यों हिरासत में लिया गया है? तो पुलिस कर्मियों ने उत्तर दिया कि ख़ामोश बैठे रहो वरना तुम पर दंगे की साज़िश करने की धारा 120B के तहत कार्रवाई करेंगे।

इसके अलावा पुलिस ने पत्रकार को ये भी धमकी दी की अगर वे अपनी हिरासत को लेकर दोबरा प्रश्न पूछेंगे तो सरकारी संपत्ति को नुक़सान पहुँचाने में भी उनके ख़िलाफ़ मुक़दमा लिखा जाएगा। उमर बताते हैं कि उन्होंने एक बार फिर पुलिस को बताया कि वे लखनऊ में एक पत्रकार है और अपना पहचान पत्र भी दिखाया लेकिन पुलिस ने उनकी बात नहीं सुनी।

उल्लेखनीय है कि उमर राशिद कश्मीर के रहने वाले हैं इसलिए पुलिस लगातार प्रश्नों के दौरान कश्मीर का ज़िक्र कर रही थी। उमर बताते हैं कि पूछताछ करने के दौरान पुलिस की भाषा  अभद्र थी। उमर राशिद जब कुछ कहना चाहते थे तो पुलिस उनसे ख़ामोश रहने को कहती और धमकी देती कि तुमको बोलने का अधिकार नहीं है क्योंकि तुम एक संदिग्ध हो, अपराधी हो।

कुछ समय बाद उमर राशिद और रॉबिन वर्मा को बिना कुछ बताए हज़रतगंज थाने से सुल्तानपुरी थाने ले जाया गया। वहाँ भी पुलिस लगातार उमर राशिद से प्रश्न करती रही कि उन्होंने दूसरे कश्मीरियों को कहाँ छिपाया है? उमर राशिद बताते हैं कि थोड़ी देर में वहाँ क्षेत्राधिकारी स्तर के दो पुलिसकर्मी आए और उनसे कहा गया कि वे खड़े हो जाएं।

इन दोनों पुलिस अधिकारियों ने भी उमर राशिद को धमकियां देना शुरू कर दिया। उमर राशिद बताते हैं कि जो पुलिसकर्मी उनसे बतौर पत्रकार परिचित भी थे, वे भी ख़ामोश बैठे थे और यह नहीं बता रहे थे कि वह जानते हैं कि वे पत्रकार हैं।

उत्तर प्रदेश पुलिस के अधिकारियों ने उमर राशिद को धमकी दी कि अगर वह उनके प्रश्नों का उत्तर नहीं देंगे तो उनकी दाढ़ी काट दी जाएगी। वह बताते हैं कि एक पुलिस अधिकारी थोड़ी देर बाद कमरे से चला गया, लेकिन उन्हें रात साढ़े आठ बजे तक कमरे में ही रखा गया।

जिसके बाद जब वे बाहर आए तो क्षेत्राधिकारी हज़रतगंज ने उनसे प्रश्न किये। क्षेत्राधिकारी हज़रतगंज के प्रश्नों के उत्तर में उमर राशिद सिर्फ़ इतना कहते रहे कि वह प्रदर्शन के दौरान और मृतक मोहम्मद वक़ील के पोस्ट्मॉर्टम के दौरान सिर्फ़ एक पत्रकार की तरह ख़बर लिखने के लिए मौजूद थे। पुलिस कर्मी उनकी बातों पर विश्वास नहीं कर रहे थे।

उमर राशिद पुलिस हिरासत से उस समय छूट पाए जब यह मामला मुख्यमंत्री कार्यालय पहुँचा। हिरासत के समय मौजूद उनके कुछ मित्रों ने दूसरे पत्रकारों को टेलीफ़ोन पर इस मामले की सूचना दी। जिसके बाद पत्रकारों ने शासन प्रशासन के आला अधिकारियों से संपर्क किया, फिर  उमर राशिद को देर रात को हिरासत से छोड़ा गया है। हालाँकि रॉबिन वर्मा आदि अब भी पुलिस हिरासत में हैं।

उमर राशिद बताया कि उन्होंने इस सारे मामले की जानकारी अपनी संस्था द हिंदू के ज़िम्मेदारों को दे दी है। अब आगे की कार्रवाई उनके संस्थान द्वारा की जाएगी। उनके साथ उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा किये गए उत्पीड़न की शिकायत उचित मंच पर की जाएगी ताकि दोषियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जा सके।

दूसरी ओर उमर राशिद को हिरासत में लिए जाने को लेकर पत्रकार संगठनों और वरिष्ठ पत्रकारों में नाराज़गी का माहौल है। पत्रकार संगठन द हिंदू के संवाददाता को हिरासत में लेने वाले पुलिस अधिकारियों के तुरंत सख़्त कार्रवाई की माँग की है।

वरिष्ठ पत्रकार राम दत्त त्रिपाठी कहते हैं कि यह निंदनीय है कि पुलिस किसी पत्रकार को हिरासत में ले कर उसको प्रताड़ित करे। बीबीसी हिंदी के ब्यूरो चीफ़ रह चुके राम दत्त त्रिपाठी कहते हैं कि पत्रकार अपनी ड्यूटी करने के लिए विभिन्न स्थानों पर जाते हैं। इसका अर्थ यह नहीं है कि पत्रकारों को किसी जगह पर मौजूदगी के आधार पर हिरासत में लेकर पुलिस प्रश्न करें।

उन्होंने कहा कि जिन पुलिसकर्मियों ने उमर राशिद को हिरासत में लिया था उनके ख़िलाफ़ तुरंत करवाई होनी चाहिए ताकि भविष्य में किसी दूसरे पत्रकार को इस तरह से प्रताड़ित न किया जाए।

वरिष्ठ पत्रकारों का कहना है कि अगर उमर राशिद को हिरासत में लेने वाले पुलिसकर्मियों के ख़िलाफ़ जल्द कार्रवाई नहीं हुई तो पत्रकार आंदोलन करेंगे। वरिष्ठ पत्रकार शरद प्रधान कहते हैं कि उन्होंने शासन प्रशासन में संपर्क किया है और माँग की है कि उमर राशिद को प्रताड़ित करने वाले पुलिस अधिकारियों को तुरंत निलंबित किया जाए।

शरद प्रधान कहते हैं कि वे सभी पत्रकार संगठनों और वरिष्ठ पत्रकारों के संपर्क में हैं। अगर शासन द्वारा दोषी पुलिसकर्मियों के विरुद्ध तुरंत कार्रवाई नहीं की जाएगी तो इस बार पत्रकार सड़क पर उतरकर अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करेंगे।

उत्तर प्रदेश मान्यता प्राप्त पत्रकार समिति ने भी उमर राशिद की गिरफ़्तारी की निंदा की है। समिति के अध्यक्ष हेमंत तिवारी ने माँग की है कि शासन इस प्रकरण में दोषी पुलिसकर्मियों पर तुरंत सख़्त कार्रवाई सुनिश्चित करे।

समिति के पूर्व अध्यक्ष और वरिष्ठ पत्रकार प्रांशु मिश्रा कहते हैं कि पिछले कुछ समय से लगातार उत्तर प्रदेश में पत्रकारों को प्रताड़ित किया जा रहा है। पत्रकारों के अधिकार के लिए मुखर रहने वाले प्रांशु मिश्रा के अनुसार उमर राशिद को हिरासत में लेकर उनके साथ अभद्र व्यवहार करने वाले सभी पुलिसकर्मियों को तुरंत निष्काषित करना चाहिए।

वरिष्ठ पत्रकार मानते हैं कि अगर दोषी पुलिस कर्मियों को सज़ा नहीं मिली तो भविष्य में पत्रकारों कि सुरक्षा और प्रेस की आज़ादी को लेकर बड़ा संकट पैदा हो जायेगा। वरिष्ठ पत्रकार हुसैन अफ़सर कहते है कि एक तरफ़ सरकार पत्रकारों की सुरक्षा का आश्वासन देती है और दूसरी तरफ़ पुलिस-प्रशासन उनको लम्बे समय से प्रताड़ित कर रहा है।

उत्तर प्रदेश प्रेस क्लब के पूर्व कोषाध्यक्ष हुसैन अफ़सर कहते हैं कि अगर दोषी पुलिस अधिकारियों को जल्दी सज़ा नहीं दी गई तो यह एक नई परंपरा कि शुरुआत होगी कि संविधान के चौथे स्तम्भ के लिए काम करने वालों को पुलिस इसी तरह भविष्य में भी प्रताड़ित करती रहेगी।

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