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अनिश्चितता के इस दौर में रौशनी दिखाता श्रमिकों का संघर्ष  

पोटेरे अल पोपोलो के राष्ट्रीय प्रवक्ताओं ने 6 से 8 मई तक इटली के रोम में आयोजित वर्ल्ड फ़ेडरेशन ऑफ़ ट्रेड यूनियन्स की 18वीं कांग्रेस को संबोधित किया।
George Mavrikos
डब्ल्यूएफ़टीयू के महासचिव, जॉर्ज मावरिकोस; डब्ल्यूएफ़टीयू के अध्यक्ष, मज़्वंडिले माइकल मकवेइबा; यूनियन सिंडाकेल डि बेस (यूएसबी इटालिया) के सिन्ज़िया डेला पोर्टा और पोटेरे अल पोपोलो के मार्टा कोलॉट।

वर्ल्ड फ़ेडरेशन ऑफ़ ट्रेड यूनियंस (WFTU) की 18वीं कांग्रेस का आयोजन इटली में किया गया। इसकी मेजबानी देश के मुख्य ज़मीनी स्तर का संगठन यूनियन सिंडाकेले डि बेस (USB) कर रहा है। 101 देशों के 435 ट्रेड यूनियन प्रतिनिधियों ने इटली के रोम में चले इस कांग्रेस में भाग लिया। इसके अलावा, अन्य 300 प्रतिनिधि कांग्रेस से ऑनलाइन जुड़े।

इस साल की कांग्रेस में बहस का केंद्र बिंदु विश्व स्तर पर उस मज़दूर वर्ग की समस्याओं पर केंद्रित रहा, जो महामारी से पैदा होने वाले आर्थिक संकट का खामियाजा लगातार भुगत रहा है और यूक्रेन में चल रहे युद्ध के साथ ही उन समस्याओं में और तेज़ी आ गयी है।

शनिवार, 7 मई की सुबह इस सम्मेलन के हिस्से के रूप में प्रतिभागियों ने फ़ॉसे अर्डेटाइन नरसंहार के शिकार हुए लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित की, जहां 24 मार्च, 1944 को जर्मन कब्ज़े वाले सैनिकों ने इतालवी राजधानी में छापेमार प्रतिरोध पर हमलाकर 335 इतालवी नागरिकों और सैनिकों, राजनीतिक क़ैदियों, यहूदियों या आम बंदियों की हत्या कर दी थी। इसके बाद उस शिलालेख पर माल्यार्पण किया जायेगा,जिस पर लिखा है- " नाज़ीवाद फिर कभी नहीं, फ़ासीवाद फिर कभी नहीं।"  

इसके अलावा इस कांग्रेस में मौजूद वामपंथी राजनीतिक दल पोटेरे अल पोपोलो (पीपुल टू द पीपल) जैसी विविध इतालवी सामाजिक और राजनीतिक ताक़तें भी मौजूद रहीं। इस पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता मार्टा कोलॉट और गिउलिआनो ग्रेनाटो ने इस सभा के साथ एकजुटता दिखाते हुए बधाई दी।

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प्यारे साथियों, प्यारे कार्यकर्ताओं,

हम मुश्किल वक़्त में जी रहे हैं, और सैकड़ों संघर्षशील ट्रेड यूनियन प्रतिनिधियों को एक साथ आते देखना हमारे दिलों में गर्मजोशी पैदा करता है और हमें संघर्ष का एक ठोस उम्मीद दिखाता है। उसके लिए हम आपका शुक्रिया अदा करते हैं।

महामारी और यूक्रेन में चल रहे युद्ध ने पूरी दुनिया में हर एक व्यक्ति के सामने यह साफ़ कर दिया है कि हमारे घरों से हज़ारों हजार मील दूर जो कुछ हो रहा होता है,वह सीधे-सीधे हमारी ज़िंदगी पर असर कर रहा होता है,उन भाग्यशाली लोगों पर भी असर होता है, जिनके सर पर छत हैं।

यह उस वायरस को लेकर भी सच था, जिसने एक ऐसे स्वास्थ्य संकट को जन्म दिया, जिसमें उस सामूहिक एंटीबॉडी, जिसके लिए हमारे दादा और दादी, हमारे पिता और माता ने जिस लड़ाई को लड़ा थी,यानी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के लिए लड़ाई की थी,वह भी हमारे लोगों की अपेक्षा से कहीं ज़्यादा नाज़ुक साबित हुई।

यह कोई स्वास्थ्य सेवा कर्मियों की अक्षमता का नतीजा नहीं था। इसके उलट, उन्होंने तो हमारे लोगों के लिए सबसे क़ीमती चीज़,यानी कि ज़िंदगी की रक्षा में अपना सारा आत्मोत्सर्ग कर दिखाया है। हमारे स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों का संकट में होना न तो श्रमिकों की ज़िम्मेदारी है, और न ही यह किसी दुर्भाग्य का नतीजा है। नहीं ! यह तो हमारे सभी देशों में दशकों से चली आ रही निजीकरण नीतियों का उत्पाद है।

बड़ी संख्या में राष्ट्रीय सरकारों की मिलीभगत से अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक ने अपने उन तौर-तरीक़ों को नहीं बदला है,जिनमें शामिल हैं : हमारे देशों को पैसा उधार देना जारी रखना, सार्वजनिक क्षेत्र पर कम मज़दूरी दिये जाने की शर्तों को थोपना,निजी क्षेत्रों में बहुत आसानी से श्रमिकों को बर्ख़ास्त कर देना, मूल्य वर्धित करों की शुरूआत या बढ़ोत्तरी करना, और सार्वजनिक खर्च में कटौती करना, इन सबों की शुरुआत हमारी आबादी के सबसे ज़्यादा पीड़ित तबक़ों के लिए उपभोग सब्सिडी से होती है।

हमें ख़ुशी और हर्ष है कि वर्ल्ड फ़ेडरेशन ऑफ़ ट्रेड यूनियन्स का यह सम्मेलन इटली में हो रहा है। महामारी के प्रकोप को लेकर हमें बताया गया था कि "सब ठीक हो जायेगा" और "हम बेहतर तरीक़े से बाहर आ जायेंगे।"  झूठ ! मेहनतकश मर्द और औरतें और बेरोज़गार लोग बेज़ार होते गये हैं, मुट्ठी भर विशेषाधिकार प्राप्त लोगों ने अपनी पहले से ही अनुचित तरीक़े से बटोरी गयी दौलत में और इज़ाफ़ा कर लिया है।

काम का कभी-कभी मिलना,दूसरों पर निर्भरता, भुखमरी वाली मज़दूरी और अधिकारों का अभाव लाखों-करोड़ों श्रमिकों की हक़ीक़त है।

और फिर भी, इस स्याह समय में भी सूरज अपनी किरणों से हममें उम्मीद भरता रहता है।

ये किरणें वे संघर्ष हैं, जो हर दिन उन लाखों लाख पुरुषों और महिलायें में विकसित होते रहते हैं, जो ट्रेड यूनियनों में संगठित होते हैं, जिसका दिल संघर्ष से धड़कता है और यह "सामाजिक शांति" के लिए व्यवस्था में निहित भ्रष्टाचार, उसकी स्वीकार्यता के ख़िलाफ़ होता है।

अमेज़ॉन तानाशाही में घुसने में कामयाब रहा संयुक्त राज्य अमेरिका की पहली ट्रेड यूनियन से लेकर "कार्टोनेरोस" (कार्डबोर्ड रिसाइकलर) तक और "ट्रैबजाडोरेस सिन टेको" (अर्जेंटीना में बेघर मज़दूर) ब्राजील में ज़मीन पर कब्ज़ा करने वाले और स्व-प्रबंधन करने वाले किसानों से लेकर जीवन यापन की बढ़ती लागत के ख़िलाफ़ हड़ताल करते और सड़कों पर उतरते ,कठोर सरकारी दमन का सामना करते श्रीलंका के मज़दूरों तक की ऐसी कई लड़ाइयां हैं, जो उस रौशनी को आने देती हैं।

एक-एक बीज को विकसित होने और फूलने-फलने के लिए रौशनी और पानी की तबतक ज़रूरत होती है, जब तक कि वह एक मज़बूत और ज़ोरदार पौधा नहीं बन जाता, जबतक कि वह उस दुश्मन का विरोध कर पाने में सक्षम नहीं हो जाता, जिसके हज़ारों चेहरे हो सकते हैं, जो हज़ारों भाषायें बोल सकता है, भूगोल के आधार पर अलग-अलग रणनीति इस्तेमाल कर सकता है, लेकिन हर जगह उसकी लड़ाई उसी पूंजी की उस दलील के ख़िलाफ़ है,जो शासक वर्गों की हर पसंद को संचालित करती है।

इस आम दुश्मन के ख़िलाफ़ और विद्रोह के इस पौध और उसके भविष्य को विकसित करने के इस संघर्ष में हम पोटेरे अल पोपोलो हमेशा आपके भाई-बहन बने रहेंगे।

हम आपके साथ हैं और आपके भले काम की कामना करते हैं और वर्ल्ड फ़ेडरेशन ऑफ़ ट्रेड यूनियंस की ओर से इस कांग्रेस को शुभकामनायें देते हैं !

आपके समर्थन में एकजुटता के साथ, मार्टा कोलॉट, गिउलिआनो ग्रेनाटो

साभार : पीपल्स डिस्पैच

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