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तिरछी नज़र: रुपये का गिरना और शीर्षासन

यह मैंने स्वयं अनुभव किया है कि शीर्षासन करते हुए, देश की प्रगति के ग्राफ देखने में कितना सुख महसूस होता है, मन को कितनी शांति मिलती है।
Rupee

अभी पिछले मंगलवार, इक्कीस जून को विश्व योग दिवस था। अब कुछ वर्षों से हर साल इक्कीस जून को विश्व योग दिवस मनाया जाता है। योग के व्यायाम, जिन्हें आसन कहते हैं, किए जाते हैं और उनकी फोटो अखबारों में छपती है। बताया जाता है कि योग ऑल इन वन है। योग के आसनों से व्यायाम के अतिरिक्त और भी कई लाभ हैं।

योग में बहुत सारे आसन हैं। इन सारे आसनों के कई सारे लाभ है। कुछ आसान तो शारिरिक व्यायाम के अतिरिक्त बहुत सारी बीमारियों से भी बचाते हैं और बताया तो यह भी जाता है कि बीमारियों को ठीक तक कर देते हैं। हर व्यक्ति का पसंदीदा आसन अलग अलग हो सकता है पर सारे आसनों में मुझे तो शीर्षासन ही सबसे अधिक पसंद है। शायद सरकार जी भी शीर्षासन को ही सबसे ज्यादा पसंद करते हैं। नहीं, ऐसा नहीं है कि यह उन्होंने किसी फिल्मी हस्ती को दिए साक्षात्कार में कहा है। मैं तो ऐसा बस अंदाजे से ही कह रहा हूं।

मेरा यह अंदाजा सिर्फ इसलिए नहीं है कि मैंने सरकार जी की शीर्षासन के पोज़ में फोटो देखी हैं। बल्कि मेरा तो यह मानना है कि सिर्फ सरकार जी को ही नहीं बल्कि सारे भक्तों को भी शीर्षासन ही सबसे अधिक पसंद है। ऐसा इसलिए है क्योंकि शीर्षासन की मुद्रा में ही गिरता हुआ रुपया उठता हुआ दिखाई देता है। सरकार जी जब तक सरकार जी नहीं थे, तब तक मानते थे कि रुपये का गिरना तत्कालीन सरकार जी की अयोग्यता का परिणाम है पर अब जब सरकार जी स्वयं सरकार जी बन चुके हैं, तो उन्हें रुपये का गिरना अपनी अयोग्यता नहीं लगता है। ऐसा इसीलिए है क्योंकि शीर्षासन करते हुए देखने पर गिरता हुआ रुपया भी उठता हुआ दिखता है और सरकार जी इस गिरते हुए रुपये को शीर्षासन करते हुए ही देख रहे हैं।

वैसे केवल रुपये के गिरने की बात नहीं है। रुपये का गिरना अच्छी बात हो या न हो पर सरकार जी और उनके भक्त लोग तो इसके भी लाभ बता ही देंगे। जैसे कि डालर के मुकाबले रुपया गिरने से सर्विस इंडस्ट्री, जो विदेशों को सेवा देती है और जिसकी आय डालर में होती है, उसकी आय रुपये में तो बढ़ ही गई है ना। जैसे कि हमारा निर्यात जिसका भुगतान डालर में होता है, बिना बढ़े ही रुपये में तो बढ़ ही गया है ना, आदि, आदि। परन्तु जहां लाभ नहीं है वहां भी हम जब शीर्षासन करके ही चीजों को देखते हैं तो उन्नति ही लगती है।

यह मैंने स्वयं अनुभव किया है कि शीर्षासन करते हुए, देश की प्रगति के ग्राफ देखने में कितना सुख महसूस होता है, मन को कितनी शांति मिलती है। इस योग दिवस पर मैंने सोचा दुनिया हर वर्ष योग दिवस मनाती है, क्यों न इस वर्ष मैं भी मना लूं। तो मैं योग के व्यायाम करने लगा। आसन करते करते जब मैं शीर्षासन पर पहुंचा तो अचानक ही मेरी निगाह कमरे में लगे रुपये की कीमत के ग्राफ पर पड़ी। मैंने देखा, रुपया तो छलांग मार रहा है। नई ऊंचाइयां छू रहा है। मेरा दिल बाग-बाग हो गया। सही से समझ में आ गया कि किस तरह शीर्षासन न सिर्फ शरीर को स्वस्थ रखता है अपितु मन को भी प्रसन्न रखता है, शांति प्रदान करता है। शीर्षासन करने का एक लाभ और भी है। जिनका दिमाग घुटने में या फिर टखने में होता है और काम नहीं करता है, शीर्षासन करने से वह भी काम करने लगता है।

अभी दो सप्ताह पहले ही विश्व पर्यावरण सूचकांक (एनवायरमेंट परफॉर्मेंस इंडेक्स) की रिपोर्ट आई थी। भारत का स्थान एक सौ अस्सी देशों में से एक सौ अस्सीवां रहा। मुझे तो बड़ी शर्म आई क्योंकि मैंने तब तक शीर्षासन करना शुरू नहीं किया था। पूरी क्लास में सबसे फिसड्डी। शर्म तो सरकार जी और भक्तजनों को भी आनी चाहिए थी, पर आई नहीं। क्योंकि उन्होंने इसे शीर्षासन करके देखा। अरे वाह! पहला नम्बर, पूरे विश्व में सबसे ऊपर, पूरे विश्व में प्रथम स्थान। मतलब स्वर्ण पदक। हम समझ गए यह स्थान सरकार जी के पर्यावरण संरक्षण पर दिये गए अच्छे अच्छे भाषणों का ही परिणाम है। सरकार जी पर्यावरण के मामलों में भाषण बहुत ही अच्छा देते हैं। ब्रिटेन, अमरीका और यूरोप के देशों को खूब खरी खरी सुना देते हैं। इससे हमारा पर्यावरण संरक्षण का काम हो जाता है। पर्यावरण पर हमारे यहां अधिकतर काम भाषण-बाजी तक ही सीमित रहता है। इसीलिए हमें अपना स्थान शीर्षासन करके ही ढूंढ़ना पड़ता है। 

एक और पैमाना है, खुशहाली का पैमाना (वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स)। पूरे विश्व के स्तर पर, 'हैप्पीनेस इंडेक्स'। उसमें भी हम लगातार नीचे जाते जा रहे हैं। पर हम मान रहे हैं कि उसमें भी हम ऊपर उठ रहे हैं, देश खुशहाल हो रहा है। आखिर शीर्षासन करके जो देख रहे हैं। पर असलियत में तो उसका ग्राफ भी लगातार नीचे गिरता ही जा रहा है। और तो और पाकिस्तान भी हमारे से ऊपर हो गया है। पर जब हम शीर्षासन करके देखते हैं, सिर के बल खड़ा हो कर देखते हैं तो हम अपने को काफी ऊपर पाते हैं। पाकिस्तान की बात तो छोड़ो, इंग्लैंड, अमरीका, डेनमार्क आदि सभी देश हमारे देश से नीचे दिखते हैं। सच ही तो है कि योग की रेगुलर प्रेक्टिस करने का एक लाभ यह भी है कि हम किसी भी नीचे गिरते ग्राफ को शीर्षासन कर ऊपर उठता हुआ देख सकते हैं।

सिर्फ हैप्पीनेस इंडेक्स में ही नहीं, हम और भी बहुत सारे मानकों में ऊपर उठे हैं, उनमें विकास किया है। परन्तु यह विकास आपको यह तभी दिखाई देगा जब आप शीर्षासन करके देखेंगे। अब देखो, भारत ने भुखमरी (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) में भी बहुत उन्नति की है। यकीन न हो तो सिर के बल खड़े हो कर देख लो। एक सौ सोलह देशों में उच्च एक सौ एकवां स्थान। अगर सिर के बल खड़ा हो कर देखें तो सभी पड़ोसी देशों से आगे दिखेंगे। पिछले वर्षों में इतना ऊंचा स्थान कभी भी नहीं रहा है। बस भुखमरी इंडेक्स के ग्राफ को भी शीर्षासन करके देखने की जरूरत है।

कोई एक ही इंडेक्स हो जिसमें हम नीचे गिर रहे हों तो उसे शीर्षासन करके देख भी लें परन्तु इतने सारे इंडेक्स हैं जिनमें हम नीचे गिर रहे हैं। चाहे पत्रकारों की स्वतंत्रता का सूचकांक (वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स) हो या हमारी खुद की स्वतंत्रता का, चाहे गरीबी का इंडेक्स हो या अमीरी गरीबी में बढ़ती खाई का सूचकांक (वर्ल्ड इनइक्वालिटी इंडेक्स), और चाहे विश्व में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को दिखाने वाला कोई सूचकांक हो, या फिर धार्मिक आजादी दिखाने वाला, हमें सभी में अपना विकास खोजने के लिए शीर्षासन ही करना पड़ता है।  

ये सारी की सारी रिपोर्ट, ये सारे के सारे सूचकांक इतना जल्दी जल्दी आते रहते हैं कि उन्हें समझने के लिए, उनमें देश का विकास ढूंढने के लिए बार बार, जल्दी जल्दी, शीर्षासन करना पड़ता है। बार बार शीर्षासन करने से थकान भी अधिक हो जाती है। और बार बार सिर के बल खड़े होने पर, बैलेंस बिगड़ने का, गिरने का डर भी होता है। और इनके अलावा गिरते रुपये को सम्हालने के लिए, बढ़ती महंगाई को घटाने के लिए, देश का विकास देखने के लिए, सबके लिए शीर्षासन करना पड़ता है। इसलिए मेरा सुझाव है कि बार बार शीर्षासन करने की परेशानी से बचने के लिए क्यों न हम सब चमगादड़ ही बन जाएं। उलटे लटके रहेंगे और रसातल में जाते देश को ऊपर जाते देखते रहेंगे। बार बार शीर्षासन करने का झंझट भी खत्म हो जायेगा। देश को विकसित होते देखने का बस यही एक तरीका है कि हम सब चमगादड़ बन जाएं और उल्टे लटक कर देश का विकास देखें।

(व्यंग्य स्तंभ तिरछी नज़र के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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