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केंद्रीय बजट-2022: मजदूर संगठनों ने कहा- ये कॉर्पोरेटों के लिए तोहफ़ा है

अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एआईटीयूसी) ने बजट पर अपनी प्रारंभिक प्रतिक्रिया देते हुए कहा है- नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा घोषित बजट कॉर्पोरेटों के लिए एक और बोनस है और इसमें आम नागरिकों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है।"
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फोटो: PTI/कमल सिंह

मोदी सरकार के बजट को ट्रेड यूनियनों और कई नागरिक समूहों (सिविल सोसायटी) ने जन विरोधी और मज़दूरों के खिलाफ बताया है। उनका कहना है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा आगामी 2022-23 वित्तीय वर्ष के लिए पेश किए गए, आम बजट में मज़दूरों की बेहतरी के लिए कोई भी सार्थक नीतिगत उपाय नहीं किए हैं। जबकि कोरोना ने मज़दूरों पर गहरी चोट की है। आज भी कई परिवार कोरोना के प्रहार से दबे हुए हैं ऐसे में उससे उबरने के लिए कोई भी नीतिगत बदलाव नहीं किया गया है।

अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एआईटीयूसी) ने मंगलवार को केंद्रीय बजट पर अपनी प्रारंभिक प्रतिक्रिया देते हुए कहा- नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा घोषित बजट कॉर्पोरेटों के लिए एक और बोनस और इसमें आम नागरिकों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है।"

सेंट्रल ट्रेड यूनियन ने तर्क दिया है कि 2022-23 के लिए केंद्रीय बजट "मध्यम वर्गों की निराशा" को बढ़ाने वाला है, क्योंकि  उन्हें कर में कोई छूट नहीं दी गई है। जबकि आवश्यक सेवाओं और वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि  हुई है जो उन्हें प्रभावित करती है।

एटक महासचिव अमरजीत कौर ने कहा “वित्त मंत्री, रोजगार, स्मार्ट शहरों, कौशल भारत, किसानों की दोहरी आय, गरीब और मध्यम आय वर्ग के लोगों को राहत, स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे में सुधार आदि के लिए निर्धारित सभी बड़े दावों और लक्ष्यों का क्या हुआ, इसका हिसाब देने में विफल रही हैं।”

भारतीय ट्रेड यूनियनों के केंद्र (सीटू) ने 2022-23 के केंद्रीय बजट को लेकर कहा है- थोथा चना बाजे घना, सरकार ने केवल दिखावा किया, हकीकत में ये आम जन विरोधी है। सेंट्रल ट्रेड यूनियन ने निराशा  व्यक्त करते हुए कहा- "बजट ने कोरोना महामारी से आम लोगो की आजीविका और कमाई के नुकसान की भरपाई पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है।  यह पूरी तरह से  मेहनतकश लोगो के ख़िलाफ़ है। जहां तक राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का संबंध है, यह बजट पूरी तरह विनाशकारी हैं।"

कोरोना के ओमीक्रॉन वेरिएंट के बीच में घोषित बजट में सीतारमण ने कहा कि वित्त वर्ष 2022-23 के इस बजट में भारत की आजादी के 75 से 100 साल तक के अमृत काल में अगले 25 साल में अर्थव्यवस्था को दिशा देने के लिये बुनियाद तैयार करने और उसकी रूपरेखा प्रस्तुत करने का प्रस्ताव किया गया है। इसमें 2021-22 के बजट में तैयार किये गये दृष्टिकोण को आगे बढ़ाया जाएगा।

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मंत्री ने कहा, ‘‘हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं और अमृत काल में प्रवेश कर चुके हैं।’’ उन्होंने कहा कि बजट के मूलभूत सिद्धांत में वित्तीय विवरण तथा राजकोषीय स्थिति की पारदर्शिता शामिल है। इसमें सरकार के इरादे, शक्ति और चुनौतियों को दर्शाया गया है। सीतारमण ने कहा कि बजट वृद्धि को गति देता रहेगा। उन्होंने कहा कि इस बजट में भविष्य के अनुरूप और समावेशी अमृत काल के लिये खाका पेश किया गया है। इससे हमारे युवाओं, महिलाओं, किसानों, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को सीधा लाभ होगा। वित्त मंत्री ने कहा कि इसमें आधुनिक बुनियादी ढांचे पर भी जोर है, जो 100 साल के भारत के लिये होगा। यह पीएम गतिशिक्ति द्वारा निर्देशित होगा और मल्टी-मॉडल दृष्टिकोण के साथ समन्वय से लाभ होगा।

उन्होंने कहा कि पीएम गतिशक्ति के अलावा सरकार की तीन अन्य प्राथमिकताएं- समावेशी विकास, उत्पादकता में वृद्धि एवं निवेश, उभरते अवसर, ऊर्जा परिवर्तन और जलवायु कार्य योजना होंगी। सरकार द्वारा कई महत्वाकांक्षी दावे किए गए लेकिन ये मजदूर संघों  को खुश करने में पूरी तरह नाकाम रहे। उन्होंने कहा उनके(मजदूर संघों) द्वारा उठाए गए मांगो  को इस बजट में कोई जगह नहीं मिला है।

पिछले साल दिसंबर में केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के साथ वित्त मंत्रालय द्वारा आयोजित पूर्व-बजट परामर्श में,  इस बात पर प्रकाश डाला गया था कि भारतीय अर्थव्यवस्था, महामारी के दबाव में है  "मंदी के संकेत" दिख रहे हैं। जो खतरनाक रूप से बढ़ रहा है, मांग में लगातार गिरावट जारी है। उसी को संबोधित करने के लिए, उन्होंने केंद्र सरकार को, कॉरपोरेट्स पर प्रत्यक्ष कर बढ़ाने, संपत्ति कर को पुनर्जीवित करने यानी सरकार द्वारा सरकारी कंपनियों में पुनः निवेश करना और यह सुनिश्चित करने का सुझाव दिया कि इसके माध्यम से उत्पन्न राजस्व को सामाजिक क्षेत्रों और स्वास्थ्य, शिक्षा सहित बुनियादी आवश्यक सेवाओं, खाद्य सुरक्षा सहित अन्य में आवंटित किया जाए।

हालांकि सीतारमण ने पूंजीगत व्यय आवंटन में वृद्धि पर जोर दिया, यह घोषणा करते हुए कि पूंजी निवेश अर्थव्यवस्था के त्वरित और स्थायी पुनरुद्धार की कुंजी है। केंद्र सरकार ने अपने प्रेस बयान के अनुसार, 2022-23 वित्तीय वर्ष में विभिन्न बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए पूंजीगत व्यय के परिव्यय में 35.4 प्रतिशत की वृद्धि की घोषणा की है। लेकिन वहां भी, जैसा कि सीटू ने तर्क दिया, बढ़े हुए पूंजीगत व्यय के "आंकड़े सरकार के दावे  से मेल नहीं खाते''।

सीटू के महासचिव तपन सेन ने तर्क दिया “2022-23 में प्रभावी पूंजीगत व्यय बजट 1.06 लाख करोड़ रुपये है, जो 2021-22 में एक ही शीर्ष पर वास्तविक व्यय की तुलना में मामूली और नगण्य वृद्धि को दर्शाता है, और मुद्रास्फीति के प्रभाव से बड़े पैमाने पर बेअसर हो रहा है। वास्तव में, 2022-23 के लिए प्रभावी पूंजीगत व्यय पिछले वर्ष की वास्तविक पूंजी प्राप्ति से लगभग 63000 करोड़ रुपये कम है।”

इस बजट के कुछ ही पहले ओक्सफोम इनीक्वलिटी रिपोर्ट प्रकाशित हुई है जिसके अनुसार भारत में आर्थिक विषमता भयानक स्तर पर पहुंच चुकी है, वर्ष 2022 में देश में 84 प्रतिशत परिवारों की आय घट चुकी है, जिसके साथ ही भारत में अरबपतियों की संख्या 102 से बढ़ कर 142 हो गई है। मज़दूर संगठन ऐक्टू के नेताओ ने कहा कि इस बजट ने कॉरपोरेट टैक्स में और कमी का प्रस्ताव लाकर एवं गरीबों को किसी प्रकार की राहत न देकर, इसी आर्थिेक विषमता और बढ़ाने का काम किया है।

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ऐक्टू ने कहा- घटती विकास दर के साथ भारत भयानक बेरोजगारी के संकट से गुजर रहा है, दिसम्बर 2021 को 5.1 करोड़ नौजवान बेरोजगार थे, इस बजट ने नये रोजगार सृजन और आम आदमी की इनकम गारंटी जैसे महत्वपूर्ण प्रश्न पर आपराधिक चुप्पी साध ली है।

वित्तमंत्री ने अपने बजट भाषण में कहने को भी मनरेगा जैसी जीवन रक्षक योजनाओं का जिक्र नहीं किया है, जबकि मांग तो शहरी मनरेगा लाने की भी हो रही थी जिसकी अनुसंशा एक संसदीय समिति ने भी की थी। 

पीपुल्स एक्शन फॉर एम्प्लॉयमेंट गारंटी (पीएईजी) ने मंगलवार को टेलीफोन साक्षात्कार में न्यूज़क्लिक को बताया कि "मनरेगा के तहत बड़ी मात्रा में मजदूरी भुगतान अभी भी लंबित है, जिसका अर्थ है कि नए आवंटन का एक बड़ा हिस्सा पहले बकाया चुकाने में जाएगा और इससे ग्रामीण आबादी के लिए नए रोजगार पैदा करने में मदद नहीं मिलेगी।" इसी कारण से, पीएईजी ने पिछले महीने अपने बजट पूर्व बयान में, ग्रामीण रोजगार योजना के लिए 2.64 लाख करोड़ रुपये के आवंटन की मांग की थी।

संयोग से, देश में रोजगार की स्थिति ऐसी हो गई है कि शहरी आबादी के लिए मनरेगा जैसी योजना ने इस साल के बजट से पहले  व्यापक आकर्षण प्राप्त किया था। हालांकि, इसे एक व्यापक अर्थ देते हुए, केंद्र ने मंगलवार को 14 क्षेत्रों में अपनी उत्पादकता से जुड़ी प्रोत्साहन योजना के तहत 60 लाख नई नौकरियों के सृजन की घोषणा की, यहां तक कि इसके लिए समय-सीमा के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई।

महामारी के इस दौर में जब देश में रोजगार के अवसर बहुत कम हो गए हैं, ऐसे समय में मनरेगा के लिए बजट आवंटन में वास्तव में कटौती कर दी गयी है। वित्तीय वर्ष 2021-22 का संशोधित अनुमान 98,000 करोड़ रुपये था, इस बार बजट में केवल 73,000 करोड़ रुपये ही आवंटित किए गए हैं। हाल के एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि मनरेगा के तहत 100 दिन/घर रोजगार सुनिश्चित करने के लिए लगभग 2.64 लाख करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी जिसमें कि समाशोधन सहित बकाया करीब 21,000 करोड़ रुपये का  है। 

मज़दूर नेताओ ने कहा कि इस बजट से यह ज़ाहिर हो गया है कि भाजपा-आरएसएस की मोदी-सरकार के लिए किसान, मजदूर गरीब, खेतिहर मजदूर और आम जनता प्राथमिकता में नहीं हैं। सिर्फ बड़े पूंजीपतियों और देशी-विदेशी कार्पोरेट घराने इनकी प्राथमिकता में है। उन्होंने आगे कहा यह केंद्रीय बजट ना केवल आर्थिक असमानताओं को बढ़ायेगा अपितु यह गरीबी, बेरोजगारी और भुखमरी को भी बढ़ायेगा।

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