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यूपी: एक और दुष्कर्म पीड़िता की आत्महत्या, पुलिस लापरवाही के चलते और कितनी जानें जाएंगी?

अंबेडकर नगर में एक रेप पीड़िता ने कथित तौर पर पुलिस के उदासीन रवैये के चलते आत्महत्या कर ली। परिजनों ने पुलिस पर प्रताड़ना के गंभीर आरोप लगाए हैं। ऐसे में ये सवाल उठना लाज़मी है कि अब आम लोगों पर पुलिस का भरोसा कितना क़ायम रह सकेगा?
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योगी सरकार के 'रामराज' वाले उत्तर प्रदेश में दशहरे के दिन ही एक नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता ने कथित तौर पर पुलिस के उदासीन रवैये के चलते आत्महत्या कर ली। परिजनों का आरोप है कि इस मामले में पुलिस द्वारा आरोपियों पर कोई कार्यवाही नहीं की जा रही थी, जिसे लकेर पीड़िता सदमे में थी और अवसाद में चली गई थी। वैसे ये पहला मामला नहीं है जब योगी सरकार का शासन-प्रशासन कटघरे में हो। एक के बाद एक नाबालिगों के साथ होते दुष्कर्म और फिर  पुलिस प्रशासन पर प्रताड़ना के लगते गंभीर आरोपों के बीच ये सवाल फिर उठने लगा है कि ऐसी स्थिति में आम लोगों पर पुलिस का भरोसा कितना क़ायम रह सकेगा?

ताज़ा मामला अंबेडकर नगर से सामने आया है, परिवार का कहना है कि दुष्कर्म पीड़िता आरोपियों के खिलाफ कोई कार्रवाई न होने से परेशान थी। परिजनों के अनुसार उस किशोरी ने कहा था कि यदि गिरफ्तारी जल्द न हुई तो वह आत्महत्या कर लेगी। फिलहाल मामले में थानाध्यक्ष को लाइन हाजिर और दरोगा को निलंबित कर दिया गया है। लेकिन दिनदहाड़े अपहरण कर गैंगरेप के आरोपियों की गिरफ्तारी घटना के 15 दिन बाद भी नहीं हो सकी है। ऐसे में ये सवाल बरकरार है कि आखिर कब तक पुलिस पीड़ित को ऐसे ही प्रताड़ित करती रहेगी? और कितनी बच्चियां पुलिस लापरवाही की भेंट चढ़ती रहेंगी?

बता दें कि अभी हाल ही में संभल जिले में एक रेप पीड़िता ने कथित तौर पर पुलिस द्वारा आरोपियों से समझौता करने का दबाव बनाए जाने के चलते आत्महत्या कर ली थी। इससे पहले प्रयागराज के यमुनापार इलाके में एक नाबालिग लड़की का कथित तौर पर गैंगरेप होने की खबर सामने आई थी। जिसके बाद परिवारवालों ने आरोप लगाया था कि पुलिस ने इस मामले में हादसे का मुकदमा लिख केस को रफा दफा करने की कोशिश की है। वहीं जालौन बलात्कार मामले में भी पीड़िता के पिता का आरोप था कि घटना पर तुरंत कोई एक्शन लेने की बजाय पुलिस ने उन पर समझौता करने का दबाव बनाया। इससे पहले भी उन्नाव के माखी कांड से लेकर हाथरस तक बार-बार पुलिस की कार्रावाई पर सवाल उठ चुके हैं। कई बार तो पीड़ित महिलाओं ने पुलिस की अनदेखी से परेशान होकर खुद को पुलिस चौकी, विधान सभा और सीएम आवास के सामने तक खुद को आग के हवाले करने की कोशिश की है।

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क्या है पूरा मामला?

प्राप्त जानकारी के मुताबिक मामला अंबेडकरनगर के मालीपुर थाना क्षेत्र का है। मीडिया में आई खबरों के मुताबिक बीते 16 सितंबर को कक्षा आठ की छात्रा घर से स्कूल गयी थी और शाम को वह वापस घर नहीं लौटी। परिजनों ने खोजबीन की, लेकिन कुछ पता नहीं चला। परिजनों ने मालीपुर पुलिस को प्रार्थना पत्र दिया। आरोप है कि नामजद प्रार्थना पत्र देने के बावजूद पुलिस ने हेराफेरी कर अज्ञात के विरुद्ध अपहरण का मुकदमा दर्ज किया। परिजनों के मुताबिक दो दिन बाद जब छात्रा घर लौट कर आई तो उसने अपहरण के बाद लखनऊ के किसी होटल में दो युवकों द्वारा दुष्कर्म किए जाने की बात बताई।

नवभारत टाइम्स की खबर के मुताबिक मृतक पीड़िता के पिता तब से पुलिस के चक्कर लगा रहे थे, लेकिन पुलिस कार्रवाई के बजाय उन पर समझौते का दबाव बना रही थी। बताया यह भी जा रहा है, कि आत्महत्या करने से पहले पीड़िता ने मालीपुर थानाध्यक्ष से कहा था कि अगर मुझे न्याय नहीं मिला तो मैं आत्महत्या कर लूंगी। जिस समय यह वारदात हुई उस समय लड़की के परिजन मेला देखने बाहर गए हुए थे।

कई मीडिया रिपोर्ट्स में मृतक लड़की के पिता के हवाले से पुलिस पर कई गंभीर आरोप लगाए गए हैं। दावा किया गया है कि बिटिया के किडनैप होने के बाद पिता की ओर से नामजद एफ़आईआर कराई थी, लेकिन पुलिस ने सभी आरोपियों के नाम काट दिए। लड़की को खोजने के बजाए परिजनों को ही थाने से भगा दिया गया। पीड़ित लड़की भी अपने साथ हुए अपराध के लिए न्याय की आस में पुलिस के चक्कर लगा रही थी, लेकिन एसपी ने ही गाली देकर उसे भी भगा दिया। जब बार-बार पुलिस पीड़िता को बेइज्जत करने लगी तो उसने दशहरा के दिन अपनी जान दे दी।

पुलिस का क्या कहना है?

इस मामले में पुलिस अधीक्षक अजित सिंह ने मीडिया को बताया कि छात्रा का मेडिकल कराया गया है  और बयान के आधार पर दो लोगों द्वारा बलात्कार करने की पुष्टि हुई है। अज्ञात के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर कार्रवाई की जा रही थी, इसी बीच आज जानकारी आई कि पीड़ित लड़की ने आत्महत्या कर ली है। पुलिस मामले की जांच कर रही है।

मामले के तूल पकड़ने के बाद उत्तर प्रदेश कांग्रेस की ओर से इस मामले में आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से ट्वीट कर बीजेपी की योगी सरकार पर निशाना साधा गया है। ट्वीट में कांग्रेस ने लिखा है, "अम्बेडकरनगर के एक गांव से लड़की का अपहरण करके उसे दो दिन तक लखनऊ के एक होटल में रखकर गैंगरेप किया गया। इसके बाद पुलिस ने पीड़िता पर न्याय न मांगने के लिए इतना दबाव बनाया कि आज उसने आत्महत्या कर ली। सोचिये! यह कैसा रामराज्य है, जिसमें 'दशहरे' के दिन न्याय मांगती बेटी मार दी गयी?”

मालूम हो कि हाथरस गैंगरेप और हत्या के मामले को ‘अंतरराष्ट्रीय साजिश’ से जोड़ने वाली योगी सरकार और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के आधार पीड़िता से गैंगरेप नहीं होने का दावा करने वाली यूपी पुलिस के रवैए पर सीबीआई चार्जशीट के बाद सवाल उठे थे। सीबीआई के अधिकारियों ने चारों अभियुक्तों पर गैंगरेप और हत्या की धाराएं लगाई थीं, जबकि पी पुलिस ने पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के आधार पर दावा किया था कि पीड़िता के साथ गैंगरेप नहीं हुआ है। यूपी पुलिस के इस बयान के बाद कोर्ट ने यूपी पुलिस को फटकार भी लगाई थी।

उन्नाव के माखी कांड मामले में भी सीबीआई ने बीजेपी के पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर के खिलाफ बलात्कार के आरोप में एफआईआर दर्ज न करने के लिए उन्नाव की पूर्व जिलाधिकारी और तीन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ उचित कार्रवाई करने को कहा था। इस मामले में पुलिस ने एफआईआर लगभग 9 महीने बाद दर्ज की थी, जब पीड़िता द्वारा लखनऊ में मुख्यमंत्री आवास के पास आत्महत्या करने का प्रयास किया गया था।

यूपी पुलिस की दबिश भी अक्सर सवालों के घेरे में रही है। इसी साल मई महीने में एक के बाद एक करीब आधा दर्जन महिलाओं की यूपी पुलिस की दबिश के दौरान कथित तौर पर मौत की खबर सामने आई थी। एक मामले में तो पुलिस उपनिरीक्षक समेत छह लोगों के खिलाफ उत्पीड़न और उत्पीड़न के कारण आत्महत्या का मामला भी दर्ज किया गया था।

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यूपी पुलिस की गिरती साख और अपराध का बढ़ता ग्राफ़

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश पुलिस आए दिन अपने कारनामों को लेकर सुर्खियों में बनी रहती है। कभी गाड़ी पलटने के बाद एनकाउंटर हो, या पीड़ित को और प्रताड़ित करने का मामला। कभी पिस्तौल की जगह मुंह से ठांय-ठांय बोलकर हीरो बनते दारोगा हों या फिर कथित लव जिहाद के केस में सुपर एक्टिव अंदाज़ में प्रेमी जोड़ों को पकड़ कर केस करना हो, इन सब मामलों में यूपी पुलिस ‘सदैव तत्पर’ रहती है।

अपराध, विवाद में कानून का सही ढ़ंग से पालन हो रहा है या नहीं इससे यूपी पुलिस को शायद कोई फर्क नहीं पड़ता। तभी तो इलाहाबाद हाईकोर्ट की कई बार फटकार के बाद दिल्ली हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट से भी यूपी पुलिस को तगड़ी झाड़ लग चुकी है बावजूद इसके पुलिस के काम करने के तरीके में कोई बदलाव नज़र नहीं आता। ‘सुरक्षा आपकी, संकल्प हमारा' मोटो के साथ इनदिनों यूपी पुलिस आम लोगों की छोड़िए कानून की रक्षा भी नहीं कर पा रही। आए दिन इसकी साख गिरती ही जा रही है और यूपी पुलिस खुद अपनी छवि रोज बद से बदतर करवाती जा रही है।

वैसे अपराध की बात करें तो नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की मानें तो महिलाओं के ख़िलाफ़ सबसे ज़्यादा क्राइम में भी उत्तर प्रदेश टॉप पर है। यहां साल 2020 में महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले अपराध के 49,385 मामले दर्ज कराये गये थे। बलात्कार के मामले में भी उत्तर प्रदेश पूरे देश में दूसरे स्थान पर है। यानी राजस्थान के बाद उत्तर प्रदेश ही वो राज्य है जहां महिलाएं सबसे अधिक बलात्कार का शिकार हो रही हैं। साल 2020 में देश भर में बलात्कार के कुल 28046 मामले दर्ज किए गए, जिसमें से अकेले उत्तर प्रदेश में कुल 2,769 मामले दर्ज हुए।

दलित उत्पीड़न मामले में उत्तर प्रदेश पूरे देश में अव्वल पर है। देश में दलितों पर हर चौथा अपराध उत्तर प्रदेश में होता है। एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में साल 2017 में दलितों के खिलाफ अपराध का आंकड़ा 11,444 था, जो 2019 में बढ़कर 11,829 हो गया। यानी देश में दलितों के खिलाफ होने वाले अपराधों में उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी 25.8% है। वहीं साल 2020 के आंकड़ें देखें तो, देश में दलितों के खिलाफ अपराध के कुल 50,291 मामले दर्ज हुए, जिसमें से अकेले सिर्फ उत्तर प्रदेश में 12,714 मामले दर्ज हुए।

2022 की यूपी विधानसभा चुनाव की रैलियों में सीएम योगी के साथ-साथ पीएम नरेंद्र मोदी भी महिला सुरक्षा के कसीदे पढ़ते नज़र आ रहे थे। हालांकि सरकारी संस्था राष्ट्रीय महिला आयोग के मुताबिक़ साल 2021 में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध के सबसे ज़्यादा मामले उत्तर प्रदेश से रिपोर्ट हुए, जो कुल शिकायतों का आधे से ज़्यादा का आंकड़ा है। आयोग की हाल में जारी रिपोर्ट के अनुसार साल 2021 में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध के 30 हज़ार से ज़्यादा मामले सामने आए। जिसमें सबसे अधिक 15,828 शिकायत यूपी से थीं।

सीएम योगी आदित्यनाथ की 'ठोक दो' की नीति, 'न्यूनतम अपराध' और उत्तम प्रदेश के दावों से इतर प्रदेश की जमीनी सच्चाई ये है कि उत्तर प्रदेश में हर तरह के अपराध का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। वंचित, शोषित लोग न्याय की आस में दर-बदर भटक रहे हैं तो वहीं पुलिस पीड़ित को और प्रताड़ित कर रही है। कुल मिलाकर देखें तो सत्ता में वापसी के बाद भी बीजेपी की योगी सरकार कानून व्यवस्था और महिला सुरक्षा के मोर्चे पर विफल ही नज़र आती है।

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