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कोरोना के वेरिएंट : ख़तरनाक और डराने वाले!

"हमारी खोजें इस ओर इशारा करती हैं कि बीक्यू तथा एक्सबीबी सब-वेरियंट, कोविड-19 के वर्तमान टीकों के लिए गंभीर ख़तरे उजागर करते हैं, ये सभी अधिकृत एंटीबॉडीज़ को बेअसर कर देते हैं"
covid
फ़ोटो साभार: OsborneClarke

 

चीन द्वारा कोविड-19 की अपनी पाबंदियों को ढीला करने और वहां महामारी की वर्तमान स्थिति की खबरों ने, सार्स कोव-2 वायरस के दो उभरते हुए वेरियंट्स-एक्सबीबी और बीक्यू-1 के खतरे को पीछे कर दिया है। चीन में इस समय कोरोना वायरस का बीएफ-7 वेरियंट ही फैल रहा है, जो कोविड-19 रोग का कारण बनने वाले मूल ऑमिक्रोन वायरस के काफी करीब है। इसलिए, हमारी वर्तमान रोग प्रतिरोधकता (इम्युनिटी) चाहे वह टीके से हासिल हुई हो या ऑमिक्रोन के संक्रमण से, वो हमें इस वायरस के संक्रमण से एक हद तक बचाते रहने वाली है इसके अलावा संक्रमण से गंभीर रूप से ग्रसित होने से और भी बेहतर तरीके से बचाते रहने वाली है।

मीडिया में जिस चीनी वेरिएंट को गंभीर खतरा बताया जा रहा है, वो अमरीका तथा यूरोप में इस समय ज़ोर दिखा रहे वेरिएंट के खतरे के मुकाबले बहुत कम है। ज़ाहिर है कि खतरे के कम या ज़्यादा होने का इससे कुछ लेना-देना नहीं है कि वायरस, कितनी दूर से आता है। खतरे का संबंध इस बात से है कि हम जिस सब-वेरियंट के दायरे में आ रहे हैं, वह उन सब-वेरियंट्स से जैनेटिक रूप से कितना अलग है, जिनसे टीके या पिछले संक्रमणों के ज़रिए, हमारे शरीर परिचित हैं। स्क्रिप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट के संस्थापक-निदेशक तथा मॉलीक्युलर मेडिसन के प्रोफेसर, एरिक टोपोल हमें सार्स-कोव-2 वायरस के वेरिएंट्स के बारे में बताते हैं, जिनकी हमें चिंता करनी चाहिए और इसके अलावा वे हमें 'स्केरिएंट्स' के बारे में भी बताते हैं। ये स्केरियंट्स, ऐसे वेरिएंट होते हैं जो डराते तो खूब हैं, लेकिन वास्तव में ये दूसरे स्ट्रेन की तरह ही होते हैं, जिनमें सैकड़ों, किसी भी समय मौजूद रहते हैं। टोपोल की शब्दावली का प्रयोग करें तो एक्सबीबी तथा बीक्यू-1 स्ट्रेन ही ऐसे वेरिएंट हैं जिनसे चिंता होनी चाहिए, जबकि चीन में फैला बीएफ-7 तो बस 'स्केरियंट' है!

यहां हम इसमें नहीं उलझना चाहते कि वायरस के विभिन्न स्ट्रेन्स या रूपों का नामाकरण कैसे किया जाता है। यहां सवाल यह नहीं है कि कौन सा स्ट्रेन, किस स्ट्रेन से निकला है बल्कि मुद्दा सिर्फ यह है कि ये उप-वेरियंट्स, मूल ऑमिक्रोन स्ट्रेन से कितना ज़्यादा अलग है। जहां चीन में इस समय फैल रहा मुख्य उप-वेरिएंट बीमएम-7, ऑमिक्रोन के मूल वेरिएंट से खास अलग नहीं है वहीं बीक्यू-1 तथा एक्सबीबी सब-वेरियंट, मूल ऑमिक्रोन वेरिएंट से काफी अलग हैं। इसके अलावा इसका भी काफी महत्व है कि वायरस के किस हिस्से में, मूल स्वरूप के मुकाबले ये बदलाव आए हैं। मिसाल के तौर पर अगर ऑमिक्रोन वायरस के मामले में उसके स्पाइक प्रोटीन वाले हिस्से में बदलाव आते हैं तो ये बदलाव हमें संक्रमित करने की वायरस की क्षमता को बढ़ा सकते हैं। फिर से, बीक्यू-1 तथा एक्सबीबी सब-वेरिएंट्स में स्पाइक प्रोटीन के हिस्से में ही बड़े बदलाव आए हैं, जिसका अर्थ यह है कि संक्रिमत करने के आरंभिक चरणों में, हमारी रोगप्रतिरोधकता को बायपास करने की इन सब-वेरिएंट्स की क्षमता ज़्यादा होगी।

Figure 1: Phylogenic tree from Cell, Wang et al.

लेकिन, इस सबसे हमें क्यों फर्क पड़ना चाहिए? एरिक टोपल, वायरस के किसी भी नये सब-वेरिएंट के सिलसिले में तीन गुणों की बात करते हैं। क्या यह ज़्यादा घातक है? क्या यह ज़्यादा लोगों की जान लेता है? या क्या यह ज़्यादा संक्रामक है? क्या एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में आसानी से फैलता है? या ये अधिक प्रतिरक्षी है? यानी अगर हमें टीका लग चुका हो या संक्रमण हो भी चुका हो, तब भी हमारे शरीर का रोग-प्रतिरोधक तंत्र इस वायरस को पहचान कर रोकने में असमर्थ रहता है और इसलिए, हम इससे दोबारा संक्रमित हो सकते हैं।

शुरूआत में वायरस के नए उप-रूपों को संक्रमण फैलाने में, उनके ज़्यादा संक्रमणीय होने के कारण कामयाबी मिली थी। इस कामयाबी की एक वजह यह भी थी कि वे बेहद आसानी से लोगों को संक्रमित कर पाते थे। लेकिन, अब जबकि हम लोग पहले ही इस वायरस से संक्रमित हो चुके हैं या इसके टीके की कई खुराकें ले चुके हैं, अब आने वाले किसी भी नए सब-वेरिएंट की कामयाबी इसी पर निर्भर करती है कि वे हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली से कितने प्रभावी ढंग से बच सकते हैं। अगर वे अन्य वेरिएंट्स के मुकाबले प्रतिरक्षा बचाव में अधिक प्रभावी हैं, तो नए वेरिएंट्स उन सैकड़ों नए उप-वेरिएंट्स के बीच चिंता का विषय बन जाएंगे जो लगातार उभर रहे हैं।

सार्स-कोव-2 ऑमिक्रोन के बीक्यू तथा एक्सबीबी सब-वेरिएंट इस समय उत्तरी अमेरिका तथा यूरोप में तेजी से फैल रहे हैं। पत्रिका सेल(Cell) ने एक अध्ययन की खबर छापी है, जिसका शीर्षक है, ‘उभरते हुए सार्स-कोव-2 , बीक्यू तथा एसबीबी सब-वेरिएंट्स के खतरनाक एंटीबॉडी इवेज़न गुण’। संबंधित आलेख का यह निष्कर्ष है कि सेरा द्वारा टीकों से बीक्यू-1.1, एक्सबीबी तथा एक्सबीबी-1 का निष्प्रभावीकरण, उल्लेखनीय रूप से क्षतिग्रस्त पाया गया।’ इसमें बाईवैलेंट एमआरएनए टीका भी शामिल है, जिसका अर्थ यह है कि अगर नए बाईवैलेंट एमआरएनए टीके का प्रयोग किया जाता है, तब भी नतीजे कुछ खास अलग होने वाले नहीं हैं। इसके अलावा आलेख आगे कहता है कि, ‘मूल ऑमिक्रोन वेरिएंट को निष्प्रभावी करने में सक्षम मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज़ भी, नए सब-वेरिएंट्स के खिलाफ मोटे तौर पर बेअसर रही हैं। कुल मिलाकर हमारी खोजें इस ओर इशारा करती हैं कि बीक्यू तथा एक्सबीबी सब-वेरिएंट, कोविड-19 के वर्तमान टीकों के लिए गंभीर खतरे प्रस्तुत करते हैं, ये सभी अधिकृत एंटीबॉडीज़ को बेअसर कर देते हैं और एंटीबाडीज़ को चकमा देने में अपनी क्षमता के चलते, आबादी के बीच उनका बोलबाला हो सकता है।’

Figure 2: https://covid.cdc.gov/covid-data-tracker/#variant-proportions

तब, चीन में फैले बीएफ-7 को लेकर इतना शोर क्यों मच रहा है, जबकि उसमें प्रतिरोधकता से बचाव के वैसे गुण ही नज़र नहीं आते हैं, जो बीक्यू-1 तथा एक्सबीबी सब-वेरिएंट्स में मौजूद हैं? खुद भारत में भी, हमारा सारा ध्यान चीन से आने वाले यात्रियों पर ही लगा हुआ है, यूरोप तथा अमेरिका भी यही कर रहे हैं, लेकिन नए सब-वेरिएंट्स को संभालने की हमारी क्या तैयारियां हैं? पिछले दो-तीन हफ्ते में एक्सबीबी-1.5 अमरीका में खतरनाक स्ट्रेन बनकर सामने आया है और शेष दुनिया भर में भी उसके हावी हो जाने के आसार हैं।

चीन से आने वाले यात्रियों से डरने और उनसे कोविड टेस्ट कराने की मांग करने की वजह यह है कि चीन की शून्य कोविड नीतियों में ढील दिए जाने के बाद, अब चीन कोविड के विस्फोट से गुज़र रहा है। इसलिए, इसकी जरूरत समझी जा रही है कि चीन से आने वाले यात्रियों के मामले में यात्रा शुरू होने से पहले उनके कोविड मुक्त होने की जांच कर ली जाए और यात्रा के अंत में भी उनकी जांच की जाए। हालांकि, चीन ने इस तरह की जांचों को भेदभावपूर्ण ठहराते हुए निंदा की है, सच्चाई यही है कि ये कदम जितने महामारी से बचाव के लिए हैं, उतने ही राजनीतिक कारणों से भी हैं।

चीन ने जब तक अपनी शून्य कोविड नीति के अंतर्गत लगायी गयी पाबंदियों में ढील नहीं दी थी, पश्चिमी मीडिया जोरों से इसका प्रचार करने में लगा हुआ था कि कैसे चीन, इस सत्यानाशी नीति के ज़रिए, अपनी अर्थव्यवस्था का कबाड़ा करने पर तुला हुआ है। लेकिन, जब चीन ने अपनी शून्य कोविड नीति में वाकई ढील दे दी, वही पश्चिमी मीडिया अब इसका शोर मचा रहा है कि कैसे चीन ने कोविड संबंधी पाबंदियां हटाकर तबाही मचा दी है। इसी को कहते हैं, करे तो भी गाली खाए, नहीं करे तो भी गाली खाए!

चीन की शून्य कोविड नीति ने, खासतौर पर तब जब वायरस बिल्कुल नया था और वायरस के डेल्टा वेरिएंट के प्रकोप के दौरान भी, दसियों लाख जानें बचाने का काम किया था। जहां अमेरिका में 11 लाख मौतें हुई थीं और भारत में सरकारी आंकड़ों के अनुसार 5.3 लाख मौतें हुई थीं (विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार तो वास्तविक आंकड़ा इससे बहुत ज्यादा था), वहीं चीन में करीब 5 हज़ार मौतें ही हुई थीं, जो कि तुलनात्मक रूप से बहुत छोटी संख्या है। एमआर ऑनलाइन में, 1 जनवरी 2023 को प्रकाशित एक विस्तृत लेख में, टिंग्स चक ने यह स्पष्ट किया है कि चीन ने शून्य कोविड नीति को क्यों अपनाया था। जब कोविड-19 महामारी शुरू हुई थी तो चीन में, जिसकी आबादी अमेरिका के मुकाबले पांच गुनी ज़्यादा है, उसके पास अमेरिका की तुलना में दसवें हिस्से के बराबर आइसीयू बैड ही थे। चीन ने पिछले तीन वर्षों की मोहलत का इस्तेमाल, अपने सार्वजनिक स्वास्थ्य तंत्र को मजबूत करने के लिए किया और उसकेे बाद ही अब कोविड संबंधी पाबंदियों को हटाया है।

चीनी सरकार ने कोविड-19 का वर्गीकरण, श्रेणी-ए के रोग से बदलकर, श्रेणी-बी के रोग कर दिया है, जिसका अर्थ यह है कि इस रोग के मामले में रिपोर्टिंग अब महीनावार ( महीने में एकबार) होगी। लेकिन, चूंकि इस समय वहां संक्रमितों की संख्या तेजी से बढ़ रही है और सरकारी आंकड़े जल्दी-जल्दी आ नहीं रहे हैं, इससे इस तरह की अटकलों को बल मिल रहा है कि चीन, अपने यहां कोविड की तबाही के आंकड़े छुपा रहा है क्योंकि वहां हालात बहुत ही ज़्यादा खराब हैं और मरने वालों की तादाद लाखों तक पहुंच गयी है। जहां बड़े शहरी केंद्रों में, संक्रमितों की संख्याएं पिछले एक महीने में तेज़ी से बढ़ी हैं वहीं सोशल मीडिया में अस्पतालों के मरीजों संभालने में असमर्थ हो जाने और मुर्दाघरों में लाशों के ढेर लग जाने की जिस तरह की खबरें आ रही हैं, वे भी कम से कम उस पैमाने की आपदा का इशारा नहीं देती हैं, जैसा कि वुहान में इस महामारी की शुरूआत में देखने को मिली थी या डेल्टा वेरिएंट के उफान के दौरान दुनिया के दूसरे कई हिस्सों में देखने को मिली थी।

बहरहाल, चीन अगर आधिकारिक रूप से आंकड़ें जारी करता रहे, तो यहीं ज्यादा फायदेमंद होगा। बेशक, संक्रमणों के इस तरह के उछाल के बीच, जैसा उछाल इस समय चीन में देखने को मिल रहा है, टेस्टिंग की व्यवस्था को भारी दबाव का सामना करना पड़ता है क्योंकि हर रोज़ दसियों लाख टेस्ट करने होते हैं। लेकिन, चुनौती का यही तो वह पहलू है जिसके मामले में चीन इस तूफान का कहीं बेहतर तरीके से सामना करने में सक्षम होगा क्योंकि वह तो पहले से ही, हर रोज़ दसियों लाख लोगों का टेस्ट कर ही रहा था।

मेरा अनुमान है कि चीन में कोरोना संक्रमितों की कुल संख्या, जिसमें इस बीमारी से उबर चुके लोगों की गिनती भी शामिल है, दसियों करोड़ में बैठेगी। लेकिन, ऐसा लगता है कि प्रमुख शहरी इलाकों में संक्रमणों की उछाल खत्म होकर, अब ये कम होना शुरू हो गया है। लेकिन, अब भी चीन के सामने दो चुनौतियां हैं : पहली, शहरी इलाकों में गंभीर रोगियों को संभालना, जिनकी संख्या 2-3 हफ्ते में शिखर पर पहुंच जाएगी और दूसरी, शहरी इलाकों में संक्रमणों के शीर्ष पर पहुंचने के बाद, अपरिहार्य रूप से ग्रामीण चीन में बढ़ने जा रहे संक्रमणों को संभालना।

जैसा कि हमने पहले भी रेखांकित किया था, इस संक्रमण से बड़ी संख्या में मौतें उसी सूरत में होती हैं, जब गंभीर रूप से पीड़ितों की संख्या इतनी ज़्यादा हो जाती है कि स्वास्थ्य सुविधाओं की व्यवस्था उसके बोझ तले चरमराने लगती है और आखिर में ठप्प हो जाती है। साल 2020 के आखिर में जब डेल्टा का प्रकोप अपने शीर्ष पर था, भारत और दुनिया के अन्य हिस्सों में भी, आइसीयू बैडों की अनुपलब्धता और ऑक्सीज़न की तंगी ही, मरने वालों का अनुपात बढ़ाने का कारण बनी थी। यह वह परीक्षा है जिससे चीन को गुज़रना है। हालांकि, पिछले तीन साल में चीन ने आइसीयू बैडों की संख्या में 2.4 गुना बढ़ोतरी कर ली है, फिर भी संक्रमितों की अधिक संख्या के चलते आइसीयू बैडों की कमी पड़ सकती है और खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में।

हर जगह ऑमिक्रोन संक्रमण की उछालों में बड़ी संख्या में लोग संक्रमित हुए हैं। हालांकि, डेल्टा वेरिएंट के मुकाबले, हर एक लाख संक्रमितों में मरने वालों का आंकड़ा कहीं कम रहा है, फिर भी संक्रमितों की संख्या काफी अधिक रहने का अर्थ होता है : कुल मिलाकर बड़ी संख्या में मौतें और खासतौर पर टीकों से अछूते संक्रमितों के बीच अधिक मौतें। पश्चिमी प्रचार के विपरीत, चीन में ज़्यादातर लोगों को टीके की दो खुराकें लग चुकी हैं और उसके बूस्टर डोज लगवाने वालों का अनुपात भी अमेरिका जैसे देशों से ज़्यादा ही है। फिर भी, इसे देखते हुए कि इस रोग के आसान शिकार माने वालों यानी बुज़ुर्गों तथा विभिन्न कारणों से कमज़ोर रोग-प्रतिरोधकता से पीड़ित लोगों में सभी को बूस्टर डोज़ नहीं लग पायी है। चीन को आबादी के इस हिस्से को खासतौर पर बूस्टर के लिए लक्षित करना होगा। इसमें उसे खासतौर पर अपने नए एडेनोवाइरस वैक्टर , नाक के रास्ते दिए जाने वाले टीके का उपयोग करना चाहिए।

अब हम इस सवाल पर आ सकते हैं कि क्या चीन में इस समय जो ऑमिक्रोन संक्रमण की लहर चल रही है, वह इस वायरस के नए तथा कहीं अधिक खतरनाक वेरिएंट्स पैदा करने जा रही है? ऐसा होने के अब तक कोई साक्ष्य नहीं हैं। ग्लोबल GISAIDs को चीन द्वारा उपलब्ध कराए जा रहे जीनोम सीक्वेंसों से और चीन से आने वाले यात्रियों की टेस्टिंग से तो यही पता चलता है कि चीन में इस समय भी, बीएफ-7 के सब-वेरियंट का ही प्रकोप चल रहा है। यह वेरियंट, जैनेटिक रूप से कोरोना वायरस के उस वैरिएंट के ज़्यादा करीब है, जिसने पहले सारी दुनिया को और फिर हमारे देश को भी अपनी चपेट में लिया था और हमारे टीके व हमारे यहां पहले फैला संक्रमण, दोनों हमारे यहां वायरस के इस स्ट्रेन के लिए प्रतिरोधकता( इम्युनिटी) मुहैया कराते हैं।

हालांकि, हमारी सरकार ने चीनी सब-वेरियंट बीएफ-7 के संदर्भ में अनेक चेतावनियां जारी की हैं, लेकिन वास्तव में ये खतरा अमेरिका, यूके तथा भारत के बीच हवाई आवाजाही को देखते हुए, एक्सबीबी-1.5 स्ट्रेन से पैदा हो रहा है, जो तेज़ी से अमेरिका में सबसे प्रमुख स्ट्रेन बनता जा रहा है। और यह तो हम जानते ही हैं कि अमरीका अगर इस मामले में आगे होगा, तो यूके तथा यूरोपीय यूनियन अवश्य ही उसके पीछे-पीछे ही होंगे!

भारत, सफलता के साथ एडेनोवाइरस वैक्टर, नाक से दिए जाने वाले टीके के टेस्ट कर चुका है। इसे हमारी कोविड की तैयारी में, चीनी बीएफ-7 स्ट्रेन से से ज़्यादा, एक्सबीबी-1.5 स्ट्रेन का मुकाबला करने के लिए, आगे किया जाना चाहिए। बेशक, कोविड-19 तथा उसके विभिन्न अवतारों से निपटने के लिए जानकारियों के लिहाज़ से हम पहले की तुलना में कहीं ज़्यादा तैयार हैं, फिर भी इस ज्ञान को अमल में लाने और खासतौर पर इस वायरस के संक्रमणों की किसी नयी लहर के सामने इस ज्ञान को अमल में लाने की चुनौती तो रहती ही है।  

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल ख़बर को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें :

Know Your Covid-19 Variants from Scariants

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