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हाथरस मामले में सरकार और प्रशासन का दोहरा रवैया क्यों दिखाई पड़ता है?

पीड़िता की एफआईआर लिखने में देरी, मेडिकल सुविधा मिलने में देरी और आखिरकार उसके शव का आनन-फानन में अंतिम संस्कार जैसे कई गंभीर सवाल हैं जिनपर अभी तक राज्य सरकार की ओर से कोई जवाब नहीं आया है। और अब मीडिया को जातीय दंगों की साज़िश की एक नई थ्योरी पकड़ा दी गई है।
हाथरस

उत्तर प्रदेश की कानून-व्यवस्था और सीएम योगी आदित्यनाथ का ‘रामराज’ बीते कई दिनों से सुर्खियों में है। वजह हाथरस मामला तो है ही। इसके अलावा भी प्रदेश में एक के बाद एक दर्ज हो रही दुष्कर्म और यौन उत्पीड़िन की खबरें हैं, जो प्रदेश में महिलाओं और दलितों के खिलाफ बढ़ती हिंसा को उजागर कर रही हैं।

हालांकि बात अपराधों से बढ़कर सरकारी और प्रशासनिक रवैये की भी है जो कई मामलों में दोहरा और हैरान करने वाला दिखाई पड़ता है। हाथरस की बात करें तो यहां एक ओर पुलिस के द्वारा पीड़ित-प्रताड़ित के पक्ष में न्याय की गुहार लगाते तमाम नागरिक समाज, छात्र-महिलावादी संगठन, राजनेताओं पर पुलिस के लाठी भांजने के वीडियो वायरल हैं तो वहीं दूसरी ओर आरोपियों के बचाव में स्वर्ण परिषद जैसे संगठन जो लगातार सक्रिय हैं, उन पर किसी कार्रवाई की कोई खबर नहीं है।

बता दें कि हाथरस मामले में मृतक लड़की की मेडिकल रिपोर्ट पर भी बवाल मचा हुआ है। सत्तापक्ष के कुछ नेता और पुलिस के बड़े अधिकारी बिना जांच पूरी हुए ही दुष्कर्म की बात को खारिज़ करने पर तुले हुए हैं तो वहीं पीड़िता के लिए इंसाफ मांगने वालों को डर है कि कहीं पूरा मामला ही न पलट दिया जाए, पीड़ित को ही दोषी और प्रताड़ित करने वाला न घोषित कर दिया जाए।

बहरहाल, पीड़िता की जिस फोरेंसिक रिपोर्ट पर तमाम दावे हो रहे हैं। उसमें कथित बलात्कार को लेकर दो बातें सामने आ रही हैं।

आखिर सैंपल लेने में देरी क्यों हुई?

इंडियन एक्सप्रेस  की खबर के मुताबिक अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) ने कहा कि जिस एफ़एसएल रिपोर्ट पर पुलिस भरोसा कर रही है, दरअसल उसका कोई मतलब नहीं है।

सीएमओ अज़ीम मलिक ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, "लड़की के कथित बलात्कार के 11 दिन बाद सैंपल लिए गए जबकि सरकारी दिशानिर्देशों के अनुसार फोरेंसिक सबूत घटना के 96 घंटे के अंदर ही मिल सकते हैं। ये रिपोर्ट बलात्कार की पुष्टि नहीं कर सकती।"

ध्यान देने वाली बात ये है कि हाथरस मामले में पीड़ित लड़की 11 दिन तक इलाज के लिए इसी अस्पताल में भर्ती थी। 22 सितंबर को जब उसे होश आया और मजिस्ट्रेट के सामने उसका बयान लिया गया, जिसके बाद पुलिस ने इसमें बलात्कार के सेक्शन को जोड़ा, सैंपल लिए गए और फोरेंसिक लैब को ये सैंपल 25 सितंबर को मिले, यानी 14 सितंबर की घटना का सैंपल 11 दिन बाद 25 सितंबर को लिया गया।

बीते गुरुवार, 1 अक्टूबर को एडीजी प्रशांत कुमार ने मीडिया को बताया था, "एफ़एसएल रिपोर्ट के मुताबिक सैंपल में कोई सीमन (वीर्य) नहीं मिला है। पोस्टमॉर्टम की रिपोर्ट कहती है कि लड़की की मृत्यु उसकी चोटों की वजह से हुई है। अधिकारियों के बयान के बाद भी मीडिया में ग़लत ख़बरें चलाई जा रही हैं।"

इससे पहले 'द वायर' ने इसी अस्पताल से मिली एमएलसी रिपोर्ट में पाया था कि डॉक्टरों ने लड़की से मिली जानकारी में कई ऐसे बातें रिकॉर्ड की थी जिससे उसके बलात्कार न होने का दावा गलत साबित होता है।

इस एमएलसी रिपोर्ट में डॉक्टर ने नोट किया था कि "जानकारी देने वाले के आरोप के मुताबिक़ उसके गांव के चार जानने वाले लोगों ने उसके साथ यौन हिंसा की है।" इस ख़बर के अनुसार एमएलसी के सेक्शन 16 में 'पेनिट्रेशन' की बात नोट की गई है।

हालांकि सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के आईटी हेड अमित मालवीय ने इस मामले में जांच पूरी होने से पहले ही ‘बलात्कार नहीं हुआ है’ की थ्योरी मानकर इसे ट्विटर पर एक वीडियो शेयर करते हुए पीड़िता की पहचान उज़ागर कर दी है।

अमित मालवीय ने क्यों पीड़िता की पहचान उजागर की?

अमित मालवीय ने बीते दो अक्टूबर को 48 सेकेंड का एक वीडियो ट्वीट करते हुए कहा, “एएमयू (अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी) के बाहर एक रिपोर्टर के साथ हाथरस पीड़िता की बातचीत जहां उसने दावा किया कि उसका गला घोंटने की कोशिश की गई थी। इसमें से किसी से भी अपराध की क्रूरता कम नहीं हो जाएगी, लेकिन इसे किसी और रंग में रंगना और एक के खिलाफ दूसरे जघन्य अपराध की गंभीरता को कम करना गलत है।”

उसी दिन भाजपा महिला मोर्चा (सोशल मीडिया) की राष्ट्रीय प्रभारी प्रीति गांधी ने भी ट्वीट करते हुए इसे यौन उत्पीड़न मानने से इनकार किया। उन्होंने ट्वीट कर कहा, ‘यह केवल लुटियन मीडिया की कल्पना है। हम कानून से शासित होते हैं या कुछ लोगों के मतिभ्रम से?’ इसे मालवीय ने रिट्वीट किया था।

इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के अनुसार राष्ट्रीय महिला आयोग ने कहा है कि वह बीजेपी के आईटी हेड अमित मालवीय के ट्वीट का संज्ञान लेगी जिस ट्वीट में दावा किया जा रहा है कि वो हाथरस की लड़की का बयान है।

इस संबंध में आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने कहा, “अगर वह रेप पीड़िता हैं तब वीडियो शेयर किए जाने का मामला बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है और बिल्कुल गैरकानूनी है।”

मालूम हो कि आईपीसी के तहत बलात्कार, संदिग्ध बलात्कार या यौन उत्पीड़न की शिकार पीड़िता की पहचान को उजागर करने वाले शख्स को दो साल की सजा का प्रावधान है।

अभियुक्तों के समर्थन में मीटिंग पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं!

इस मामले में एक और चौंकाने वाली बात सामने आई। रविवार, 4 अक्तूबर को जब भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर आज़ाद पीड़िता के परिजनों से मिलने पहुंचे तो प्रशासन ने आज़ाद समेत 400-500 अज्ञात लोगों पर एपिडेमिक डिसीज़ एक्ट के अंतर्गत एफ़आईआर दर्ज कर ली। पीड़ित परिवार से मिलने पहुंचे आरएलडी नेता जयंत चौधरी के खिलाफ भी कार्रवाई हुई। हालांकि उसी गांव में भाजपा के एक पूर्व विधायक राजवीर सिंह पहलवान ने अभियुक्तों के समर्थन में एक मीटिंग बुलाई जिसमें 500 से ज़्यादा लोग शामिल हुए। इस पर प्रशासन की कार्रावाई की कोई खबर सामने नहीं आई।

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इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के मुताबिक़ राजवीर सिंह ने कहा, "हमने सभी जातियों की सभा बुलाई है जहां ये चर्चा हुई कि सरकार ने सीबीआई जांच और नार्कों टेस्ट करवाने का फ़ैसला सही किया है। अगर परिवार कुछ छुपाना नहीं चाहता तो उन्हें इससे डरने की ज़रूरत नहीं है। जिन्होंने गलत शिकायत दर्ज करवाई है, उनके ख़िलाफ़ भी सख़्त कार्रवाई होनी चाहिए।"

जिलाधिकारी की भूमिका पर सवाल!

हाथरस के पूरे मामले में जिलाधिकारी की भूमिका पर भी कई सवाल खड़े हो रहे हैं। कई मीडिया रिपोर्ट्स और वीडियो में डीएम को पीड़ित परिवार को धमकाते हुए भी सुना जा सकता है।

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इस संबंध में प्रियंका गांधी ने कहा कि पीड़ित परिवार ने उन्हें बताया है कि हाथरस के जिलाधिकारी ने उनके साथ बहुत बुरा व्यवहार किया है। उन्होंने इसके साथ ही यह भी सवाल खड़ा किया है कि कौन इस अधिकारी को बचा रहा है।

प्रियंका गांधी ने ट्वीट कर कहा है, "हाथरस के पीड़ित परिवार के अनुसार सबसे बुरा बर्ताव डीएम का था। उन्हें कौन बचा रहा है? उन्हें अविलंब बर्खास्त कर पूरे मामले में उनके रोल की जाँच हो। परिवार न्यायिक जांच माँग रहा है तब क्यों सीबीआई जांच का हल्ला करके SIT की जांच जारी है। यूपी सरकार यदि जरा भी नींद से जागी है तो उसे परिवार की बात सुननी चाहिए।"

देश-विदेश में इंसाफ के लिए आंदोलन-प्रदर्शन जारी

विपक्षी दल कांग्रेस ने सोमवार, 5 अक्टूबर को हाथरस के पीड़ित परिवार को इंसाफ़ दिलाने के लिए राज्य और ज़िला स्तर पर देश भर में “सत्याग्रह’ धरना प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन में कांग्रेस के सभी सांसद, विधायक, पार्टी पदाधिकारी और कार्यकर्ता शामिल हुए। प्रदेश कांग्रेस कमेटियों ने महात्मा गांधी और बाबा साहेब अंबेडकर की मूर्तियों के पास बैठकर मौन धरना दिया।

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नागरिक और छात्र संगठनों का भी दिल्ली के जंतर-मतंर पर लगातार विरोध प्रदर्शन जारी है। महिला सुरक्षा पर विफल नज़र आती यूपी सरकार से समाजिक संगठन लगातार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं।

बता दें कि बीबीसी की एक खबर के मुताबिक अलग-अलग क्षेत्रों के करीब 10,000 लोगों ने हाथरस के कथित रेप मामले को लेकर देश के लगभग सभी राज्यों में विरोध प्रदर्शन किया है। देश के अलावा विदेशों में भी ये विरोध प्रदर्शन हुए हैं।

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अमरीका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, संयुक्त अरब अमीरात, हॉन्गकॉन्ग, जापान, नेपाल, नीदरलैंड, स्वीडन और स्लोवेनिया जैसे देशों में ये विरोध-प्रदर्शन हुए हैं। लोगों ने विरोध प्रदर्शन के दौरान हाथरस की दलित लड़की के लिए इंसाफ की मांग की।

मालूम हो कि इस मामले की जांच योगी आदित्यनाथ सरकार ने सीबीआई को सौंप दी है। लेकिन पीड़ित परिवार सुप्रीम कोर्ट की निगरीनी में घटना की न्यायिक जाँच पर अड़ा हुआ है।

शनिवार, 3 अक्टूबर को परिजनों से मिलने गए राज्य के अपर मुख्य सचिव गृह और पुलिस महानिदेशक के साथ बातचीत में परिजनों ने कई सवाल उनके सामने रखे और इस बात पर भी ऐतराज़ जताया कि उन्हें झूठा साबित करने की कोशिशें की जा रही हैं।

बता दें कि प्रदेश में हाथरस की घटना के बाद भी अपराधी बेलगाम हैं। यूपी के ही कई अन्य इलाकों से दुष्कर्म की खबरें लगातार सामने आ रही हैं। बलरामपुर, बुलंदशहर के बाद भदोही से भी 14 साल की नाबालिग दलित लड़की की पत्थर से सिर कूचकर हत्या की खबर सामने आई। इसके बाद मेरठ के सिविल लाइन से नाबालिग बच्ची से दो बार दुष्कर्म किए जाने का शर्मनाक मामला सुर्खियों में आया। यहां भी आरोप है लड़की को पहले नशीली कोल्ड ड्रिंक पिलाकर रेप किया गया और फिर वीडियो बनाकर वायरल करने की धमकी देकर फिर से बालात्कार किया गया।

गौरतलब है कि बीजेपी की योगी आदित्यनाथ सरकार भले ही हाथरस के पूरे प्रकरण को जातीय और सांप्रदायिक दंगा भड़काने वाला मामला बता रही हो लेकिन जानकारों का मानना है कि एक के बाद एक महिलाओँ के खिलाफ अपराध की ये खबरें और प्रदेश में कानून व्यवस्था की स्थिति किसी से छिपी नहीं है।

महिला सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध होने का दावा करने वाली मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार हाथरस मामले में कई सवालों में घिरी है। पीड़िता की एफआईआर लिखने में देरी, मेडिकल सुविधा मिलने में देरी और आखिरकार उसके शव का आनन-फानन में अंतिम संस्कार जैसे कई गंभीर सवाल हैं जिनपर अभी तक राज्य सरकार की ओर से कोई जवाब नहीं आया है।

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