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क्यों बिना सही डेटा के कोरोना से लड़ाई बहुत भारी पड़ रही है?

अनुमान है कि कोरोना के वास्तविक मामले और सरकार द्वारा आधिकारिक तौर पर जारी किए जा रहे मामलों के बीच तकरीबन 7 गुना का अंतर है।
क्यों बिना सही डेटा के कोरोना से लड़ाई बहुत भारी पड़ रही है?
फ़ोटो साभार: सोशल मीडिया

भारत बहुत बड़ा मुल्क है। क्षेत्रफल की दृष्टि से दुनिया का सातवां सबसे बड़ा मुल्क और आबादी की दृष्टि से दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मुल्क। इतना बड़ा मुल्क कि भारत के प्रशासन और जनता के बीच अगर रिश्ता तय किया जाए तो अधिकतर जनता ऐसी मिलेगी जिसकी जिंदगी में प्रशासन ने कभी प्रत्यक्ष तौर पर दखल नहीं दिया होगा। इतने बड़े मुल्क में जब पहले से ही स्वास्थ्य की बुनियादी सुविधाएं जर्जर तौर पर मौजूद हो, सरकार और प्रशासन महज मीडिया में मौजूद हो तो कोरोना जैसी महामारी के दौर में सरकार और प्रशासन रणभूमि छोड़ कर भाग जाएं तो उन्हें कायर कहना अतिरेक न होगा।

ऑक्सीजन और बिस्तर की कमी से मरते हुए लोगों की तस्वीरें सरकार का कायराना रवैया ही दिखा रही हैं। तकरीबन साल भर से अधिक हो चुके कोरोना के प्रकोप के लिए अभी तक सरकार ने कोई संगठित खाका नहीं तैयार किया है, जो पूरे भारत में कोरोना से जूझता हुआ दिखे। इसकी सबसे बड़ी कमी कोरोना को ठीक ढंग से समझने के लिए जरूरी डेटा के कमी के मुहाने पर दिख रही है।

देशभर में कोरोना के मामले दो करोड़ से अधिक हो गए हैं। पिछले हफ्ते भर से हर दिन कोरोना की वजह से तकरीबन तीन हजार से अधिक लोग अपनी जान गंवा रहे हैं। इतनी भयावह स्थिति है। लेकिन वैज्ञानिकों, जानकारों और जमीन पर मौजूद पत्रकारों का कहना है कि चारों तरफ की स्थिति इससे भी बहुत बुरी है। सही आंकड़े सरकार नहीं बता रही है। 

वैज्ञानिकों की मानें तो वह शुरू से कहते आ रहे हैं कि यह बिल्कुल नया वायरस है। इसके बारे में पहले से कोई जानकारी नहीं है। इसके बारे में सही तरह से अनुमान लगाने के लिए सबसे जरूरी चीज यह है कि पता चलता रहे कि लोगों पर इसका असर किस तरीके से पड़ रहा है? यह किस दर से आगे बढ़ रहा है? कौन सी परिस्थितियां इसके लिए अनुकूल है और कौन सी परिस्थितियां इसके लिए प्रतिकूल? इन सारे पहलुओं के बारे में जब तक जानकारी नहीं होगी तब तक वायरस से लड़ना बहुत मुश्किल होगा। वह हम पर हावी होता रहेगा और हम कुछ भी ठोस करने में नाकामयाब रहेंगे। 

अगर प्रशासनिक मामलों से जुड़े जानकारों की बात करें तो उनका कहना है कि कोरोना से अब तक की लड़ाई में सरकार और प्रशासन पूरी तरह से लचर साबित हुआ है। आगे भी लचर साबित होता रहेगा अगर वही संगठित तरीके से भारत जैसे बड़े देश के लिए ठोस योजना के साथ चलते हुए काम नहीं करता। और इस ठोस योजना के लिए बहुत जरूरी है कि कोरोना के असर के सही आंकड़े आते रहे।

अमेरिका की मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की रिसर्चरों की माने तो दुनिया भर में कोरोना मामलों के लिए मिल रहे डेटा और वास्तविक स्थिति में बहुत अधिक अंतर है। हर जगह कोरोना के मामलों को कम करके दिखाया जा रहा है। अनुमान है कि कोरोना के वास्तविक मामले और सरकार द्वारा आधिकारिक तौर पर जारी किए जा रहे मामलों के बीच तकरीबन 7 गुना का अंतर है। भारत में दूसरी लहर के बाद कोरोना से जुड़े डेटा को लेकर और भी विकट स्थिति देखने को मिल रही है। विशेषज्ञों द्वारा कोरोना से जुड़े महामारी अध्ययन के मॉडल और सरकार के जरिए जारी किए जा रहे आंकड़ों के जरिए यह अंतर नजर आता है। 

भारत की बुनियादी स्वास्थ्य संरचना पहले से ही बहुत अधिक जर्जर है। गांव देहात के इलाकों में मौतों की मेडिकल रिपोर्ट नहीं हो पाती है। एक अनुमान के मुताबिक साल 2017 में महज 5 मौतों में से एक मौत ही मेडिकल तौर पर रिपोर्ट की गई। मतलब यह कि पहले से ही मौतों के सही आंकड़े पहुंचाने की सरकार के पास कोई बेहतर मशीनरी नहीं है। इसके बाद कोरोना के हालात को देखा जाए तो इस स्थिति बहुत गंभीर दिखती है। विशेषज्ञ कहते हैं कि कोरोना संक्रमण के सही आंकड़े इकट्ठा करने में कई तरह की सीमाएं हैं। जैसे कि कोरोना से संक्रमित व्यक्ति कई मामलों में बिना लक्षण के भी होते हैं। बड़े स्तर पर टेस्टिंग करवाने की सुविधा नहीं है। अगर कहीं है भी तो सभी लोग टेस्टिंग करवाने नहीं जाते हैं। टेस्टिंग को लेकर कई तरह की अफवाह मौजूद है। जैसे गांव देहात के इलाके में लोग कहते हुए मिल जाएंगे कि टेस्ट के बाद अगर कोरोना पता चलेगा तो घर नहीं आने दिया जाएगा। इसके अलावा कई लोग कोरोना से संक्रमित होकर घर में ही उन्होंने दम तोड़ दिया। इसलिए भी उनका मामला रिकॉर्ड नहीं हो पाया। 

इसी तरह के कई और बाधाएं हैं जिनकी वजह से कोरोना का सही डेटा मिलना मुश्किल है। लेकिन फिर भी इन बाधाओं के बावजूद भी जिस तरह की डेटा मिलना चाहिए वह नहीं मिल रहा है। मीडिया में कई सारे ऐसे रिपोर्ट भी छपी हैं, जो यह बतलाती हैं कि कोरोना से जुड़े मौत और मामलों की संख्या को जानबूझकर कम करके दिखाया जा रहा है।

उदाहरण के तौर पर स्वयंसेवकों के एक संगठन ने कोरोना की पहली लहर के दौरान अखबारों में छपने वाली हर एक मौत की श्रद्धांजलि की गिनती की। इस गिनती का मिलान जब सरकार द्वारा जारी किए गए आधिकारिक आंकड़ों से की गई तो पाया गया कि सरकार के आधिकारिक आंकड़ों से तकरीबन 2 गुना अधिक लोगों की मौत कोरोना की वजह से हुई है। इसी तरह कोरोना की दूसरी लहर में अप्रैल के मध्य में गुजरात में हर दिन तकरीबन 73 से लेकर 121 लोगों की मरने की खबर आधिकारिक तौर पर जारी हुई। लेकिन जब गुजरात के स्थानीय अखबार ' संदेश ' ने अपने रिपोर्टरों को शमशान घाट पर जाकर पड़ताल के करने का काम सौंपा तो उन्होंने पाया कि हर दिन तकरीबन कोरोना की वजह से 600 से अधिक लोगों की मौत हुई। आंकड़ों से लग रहा है कि दिल्ली की भयावह स्थिति है लेकिन बहुत सारे जानकार कह रहे हैं कि दिल्ली से भी भयावह स्थिति उत्तर प्रदेश की हो सकती है। यह इसलिए नहीं दिख रही क्योंकि सरकारी आंकड़े सही तरीके से नहीं आ रहे हैं।

द हिंदू अखबार में जनसांख्यिकी के जानकार स्वामी पुरकायस्था लिखते हैं कि जब कोरोना के संक्रमण के मामले और कोरोना से हुई मौत दोनों की संख्या ठीक ढंग से पता चलेगी तभी सही मायने में पता चल पाएगा यह वायरस कितना घातक है। कितने मामलों पर औसतन कितनी मौतें हो रही हैं। किन इलाकों में सबसे अधिक और कम मौतें हो रही हैं। 

जब यह सब मालूम होगा तभी तैयारी ठीक ढंग से हो पाएगी। देश का बहुत बड़ा हिस्सा कोरोना की चपेट से बाहर होने के बावजूद देश की स्वास्थ्य सुविधाएं पूरी तरह से चरमरा चुकी हैं। इसलिए जब आंकड़े ठीक ढंग से पता होंगे तभी पता चलेगा कि आने वाले समय में किस तरह की योजना बनानी है। कितने डॉक्टर नर्स दवा ऑक्सीजन बेड बिस्तर की जरूरत पड़ेगी। भारत स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने में बहुत कमजोर है। अगर आंकड़े नहीं रहेंगे तो यह कमजोरी भारत के लिए भयानक साबित हो सकती है। अभी से अगर पता चले तो सही तरह से महामारी मॉडल के अध्ययन के आंकड़े योजना बनाने में कारगर हो सकते हैं। किन इलाकों में कितने बेड और ऑक्सीजन की जरूरत है? अगर डॉक्टर और नर्स की संख्या कम है तो इसकी भरपाई कैसी होगी? अगर हॉस्पिटल की संख्या कम पड़ने वाली है तो कैसे नए हॉस्पिटल तैयार होंगे? दवा और ऑक्सीजन कम है तो दवा और ऑक्सीजन कैसे अधिक हो पाएंगे? कौन से इलाके कोरोना से बहुत अधिक प्रभावित होने वाले हैं? किस उम्र के लोग कोरोना से बहुत अधिक प्रभावित हो रहे हैं? जब यह सारी बातें पता होंगी तभी कम संसाधन का जायज इस्तेमाल हो पाएगा। इसलिए कोरोना से लड़ने के लिए डेटा बहुत बड़ा हथियार है।

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