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क्यों बंद किया जा रहा कोलकाता स्थित सेल का कच्चा माल विभाग

केंद्र की इस कार्यवाही के विरुद्ध अभी से श्रमिकों का विरोध फूट पड़ा है। सेल और आरआईएनएल के ट्रेड यूनियनों ने तय कर लिया है कि वे 30 जून को कोलकाता-स्थित आरएमडी के बंद होने के विरुद्ध हड़ताल पर जाएंगे।
क्यों बंद किया जा रहा कोलकाता स्थित सेल का कच्चा माल विभाग

12 जून से ही मीडिया में खबरें आने लगी थीं कि स्टील ऑथाॅरिटी ऑफ इंडिया, यानी सेल (SAIL) के बोर्ड की बैठक में निर्णय ले लिया गया कि उसका कच्चा माल विभाग (Raw Material Department : RMD) को बंद कर दिया जाएगा। सेल की यह इकाई कोलकाता में स्थित है और पूर्वी भारत के उन तमाम स्टील मिलों को कच्चा लोहा सप्लाई करती है जो सेल के तहत काम करते हैं। निर्णय के अनुसार इस इकाई का काम अब बोकारो और राउरकेला में होगा। कारण बताया जा रहा है कि ये खदानों के पास रहने से सहूलित होगी।

कुछ ही दिनों पहले पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री अमित मित्रा ने कंद्रीय इस्पात मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को अपना विरोध व्यक्त करते हुए एक पत्र लिखा। 16 जून को अमित मित्रा ने दोबारा श्री प्रधान को एक पत्र भेजा, जिसमें उन्होंने खुलकर मोदी सरकार पर आरोप लगाया कि वह पश्चिम बंगाल में ममता सरकार के विरुद्ध बदले की कार्यवाही कर रही है। उन्होंने अपनी बात की पुष्टि करते हुए कहा कि ऐसी कई और कार्यवाहियां हुईं हैं- मस्लन टी बोर्ड के मुख्यालय को हटाना; हिंदुस्तान स्टील कन्स्ट्रक्शन लिमिटेड यानी HSCL के काॅरपोरेट ऑफिस, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के सेंट्रल अकाउन्ट्स हब (Central Accounts Hub), युनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया का केंद्रीय कार्यालय और कोल इण्डिया का सहायक या सब्सिडियरी ऑफिस को 2016 के बाद से कोलकाता से बाहर ले जाना। मित्रा कहते हैं कि ‘‘एक साजिशाना ढंग से ऐसे सार्वजनिक क्षेत्र उपकरणों को कोलकाता से हटाने का पैटर्न बन गया है, जो एक शताब्दी या कम-से-कम 50 साल से यहां रहे हैं।’’ अपने पिछले पत्र में अमित मित्रा ने इन रिपोर्टो पर हैरानी जताई थी कि टी बोर्ड, दामोदर वैली काॅरपारेशन ऑफिस, नेशनल इंश्योरेंस कम्पनी ऑफिस और कोलकाता स्टाॅक एक्सचेंज ऑफिस को हटाया जा रहा था।

उन्होंने कहा कि सेल के आरएमडी को कोलकाता से स्थानांतरित करने से पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर और बर्नपुर इस्पात संयंत्र दोनों ही प्रभावित होंगे क्योंकि वे इसी के द्वारा सप्लाई किये गए लौह अयस्क पर पूरी तरह निर्भर हैं। फिर, ये दोनों स्टील प्लांट मुनाफे पर चल रहे हैं और उनमें 14,400 श्रमिक कार्यरत हैं। यदि RMD से लौह अयस्क (iron ore) आना बंद हो जाएगा, इन संयत्रों का काम बुरी तरह प्रभावित होगा क्योंकि उनके पास अपने लौह अयस्क की जरूरत पूरी करने के लिए आवद्ध खदान (captive mines) नहीं हैं।

अमित मित्रा के पत्र का केंद्रीय इस्पात मंत्री ने अजीब सा उत्तर दिया। उनका कहना था कि दुर्गापुर और बर्नपुर को लौह अयस्क के लिए RMD द्वारा सप्लाई पर निर्भर रहने के बजाय स्वयं अपना प्रबंध करना चाहिये। पर यह बात तो सर्वविदित है कि इन दोनों इस्पात संयंत्रों के पास कोई आबद्ध यानी कैप्टिव लौह अयस्क खदान हैं ही नहीं और केंद्र ही इस्पात व विद्युत संयंत्रों को कैप्टिव खदान (captive mines) आवंटित करता है। बिना कोई वैकल्पिक व्यवस्था का आश्वासन दिये, केंद्रीय मंत्री एक धृष्ट उत्तर दे देतें हैं, जिसका केवल एक ही मतलब निकल सकता है-‘‘चूल्हे में जाओ!’’ सचमुच पत्र से ऐसा लगता है कि केंद्र की भाजपा सरकार बदले की भावना से प्रेरित है!

लगभग सभी विपक्षी दल, और मीडिया पर्यवेक्षक केंद्र की एक विपक्षी राज्य सरकार के विरुद्ध ऐसी धृष्टता की कार्यवाही को देखकर हैरान हैं। वे समझ रहे हैं कि इससे संघीय राजनीति और देश में लोकतांत्रिक मूल्यों को भारी धक्का लगेगा। बजाय इसके कि इस समय केंद्र सरकार अपनी पूरी ऊर्जा कोविड-19 के संकट से देश को उबारने में लगाती, वह पश्चिम बंगाल के चुनाव हारने की हताशा और कुण्ठा ममता के खिलाफ बदले की कार्यवाही में निकाल रही है।

इस कार्यवाही के विरुद्ध अभी से श्रमिकों का विरोध फूट पड़ा है। सेल और राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड आरआईएनएल के ट्रेड यूनियनों ने तय कर लिया है कि वे 30 जून को कोलकाता-स्थित आरएमडी के बंद होने के विरुद्ध हड़ताल पर जाएंगे। तृणमूल कांग्रेस के ट्रेड यूनियन विंग INTTUC के अध्यक्ष रितब्रत बनर्जी ने भी घोषणा की है कि RMD को बंद करने के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किये जाएंगे। अन्य विपक्षी दल भी समर्थन में हैं। यानी केंद्रीय नियंत्रण में काम कर रहे सेल बोर्ड की उश्रृंखलता के परिणामस्वरूप पश्चिम बंगाल में विरोध एक प्रमुख संघर्ष का रूप लेने जा रहा है।

कोलकाता के RMD मुख्यालय में 166 स्थायी कर्मचारी हैं, जिनमें 75 एक्ज़ीक्यूटिव स्टाफ, 31 गैर-एक्ज़ीक्यूटिव कर्मचारी और 60 ठेके पर काम कर रहे कर्मचारी हैं। क्योंकि यहां 100 से अधिक कर्मचारी स्थायी कर्मचारी हैं, सेल को औद्योगिक विवाद अधिनियम के चैप्टर 5बी की धारा 25 के अनुसार पश्चिम बंगाल सरकार के श्रम विभाग से अनुमति लेकर ही आरएमडी को बंद किया जा सकता है। यह भी तय है कि पश्चिम बंगाल सरकार अनुमति नहीं देगी। तब तो निश्चित है कि लड़ाई तेज़ होगी और केंद्र कोशिश करेगा कि किसी और षडयंत्र के जरिये कर्मचारियों की संख्या में कटौती करे या तबतक प्रतीक्षा करे जबतक श्रमिक संख्या को 300 तक बढ़ा देने वाला औद्योगिक विवाद लेबर कोड सूचित नहीं हो जाता। यद्यपि प्रभावित कर्मचारियों की संख्या कम ही है, केंद्र की कार्यवाही का राजनीतिक चरित्र ही उसे राज्य में प्रमुख राजनीतिक मुद्दा बना रहा है। स्वाभाविक है कि जनमत भी इस कदम के खिलाफ हो गया है।

यद्यपि सेल -या कोई भी कम्पनी-अपना कानूनी अधिकार सुरक्षित रखती है कि वह अपनी किसी यूनिट को किसी भी अन्य स्थान पर ले जाए, यह कदम किसी जायज कारण के लिए उठाया जाना चाहिये। यदि यह कदम आर्थिक तौर पर व्यवहारिक नहीं है या किसी दुर्भावनापूर्ण मकसद से उठाया जाता है, उसे साक्ष्य सहित न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। जहां तक RMD की बात है, तो वह वर्तमान समय में घाटा नहीं दिखा रहा है। न ही उसके कर्मचारी बेकार हो गए हैं। इस डिजिटल युग में यह आवश्यक भी नहीं कि कच्चे माल के प्रबंधन का मुख्यालय खानों के पास स्थित हो। इसके अलावा हम देखते हैं कि चार खदान हैं, तो खान से नज़दीकी का तर्क भी बेमानी साबित हो जाता है। आखिर क्या आरएमडी को चार हिस्सों में बांटकर चार खदानों के पास ले जाया जाएगा?

सेल बोर्ड ने कर्मचारियों को वाजिब समय तक नहीं दिया गया कि वे इस परिवर्तन के लिए अपने को तैयार कर सकें। आदेश दे दिया गया है कि 1 जुलाई से स्थानांतरण की कार्यवाही लागू हो जाएगी, यानी राज्य सरकार से अनुमति लेने से पूर्व, जोकि गैरकानूनी है। स्थायी कर्मचारियों से कहा गया है कि या तो वे बोकारो या फिर राउरकेला के नए कार्यालय पर रिपोर्ट करें। यानी उन्हें 15-20 दिन का समय भी नहीं दिया गया कि वे फैसला कर लें उन्हें क्या करना है। राउरकेला और बोकारो जैसे छोटे शहरों के पास के इलाकों में मकान खोज पाना, बच्चों की शिक्षा का प्रबंध करना और स्थानांतरण का भारी खर्च वहन करना- इन सवालों का कोई समाधान आनन-फानन में नहीं निकल पाएगा-क्या मनमाना निर्णय लेते समय इसपर विचार किया गया? इस निर्णय से कोविड के इस दौर में दर्जनों कर्मचारियों व उनके परिवारों के लिए मानव संकट पदा कर दिया गया है। और यह बिना किसी मजबूत प्रबंधन-संबंधी या तकनीकी कारण के हो रहा है। एक ही कारण स्पष्ट है कि यह ममता बनर्जी की धमाकेदार विजय का बदला है।

कुल मिलाकर सेल पर मोदी सरकार की गाज गिरी है। मोदी सरकार द्वारा बीपीसीएल (BPCL) और एयर इंडिया (Air India) के साथ सेल की दो इकाइयों के-एक विशाखापटनम में और दूसरा सेलम में- रणनीतिक बिक्री का प्रयास काफी विकसित स्थिति में पहुंच चुका है और इसकी घोषणा कुछ ही हफ्तों में अपेक्षित है।

निर्णय यह है कि सेल जैसे पीएसयू (PSU) को अलग-अलग इकाइयां, मस्लन इस्पात संयंत्र, इस्पात कन्स्ट्रक्शन वर्क्स और लौह अयस्क खानों तथा प्रसंस्करण इकाइयों में बांटकर उनकी नीलामी कर दी जाएगी। नीति आयोग की नीजीकरण सूची में सेल का नाम भी आ चुका है।

केंद्र में क्रमशः सत्तारूढ़ होने वाली सरकारों ने इस्पात उद्योग को मनमाने ढंग से अत्यधिक क्षमता बढ़ाकर कर्ज में ढकेल दिया था। इस्पात कम्पनियों के आर्थिक संकट को हल करने की जगह केंद्र इस हालात का लाभ उठाते हुए संकट को और भी गहराने की दिशा में ले जा रहा है ताकि सेल की एक-एक इकाई को कौड़ी के दाम बेच सके।

जहां निजीकरण वित्तीय घाटे या बाजार के अभाव जैसी किन्ही वस्तुगत मजबूिरयों के चलते नहीं, बल्कि विचारधारात्मक कारणों से किया जाता है, ऐसे में बदले की कार्यवाही आसान हो जाती है। वैसे भी मोदी, जो आरएसएस से आए हैं, ने व्यक्तिगत तौर पर फैसला कर लिया है कि वे नेहरू के औद्योगिकरण के माॅडल को दफ्ना कर ही सांस लेंगे। आज भारत को एक प्रमुख वैश्विक औद्योगिक शक्ति के रूप में देखा जाता है। आज हम जो कुछ हैं वह जवाहरलाल नेहरू द्वारा परिश्रम से भारी उद्योग की जो बुनियाद तैयार की गयी थी, उसकी बदौलत हैं। नेहरू की विरासत को तब तक दफ्नाया नहीं जा सकता जबतक उस सारी राष्ट्रीय परिसंपत्ति को ध्वस्त नहीं कर दिया जाता जो उन्होंने तैयार किया था। ये अनाधिकार चेष्टा करने वाले लोग, जो आर्थिक नीति संभालने में नौसिखिया हैं, ऐसा कोई नवनिर्माण नहीं कर सके जिससे उनका कोई बेहतर रिकार्ड बने। फिर भी भगवा डिमाॅलिशन स्क्वाड आज उन पीएसयूज़ को ज़मींदोज़ करने निकल पड़ा है जिन्हें नेहरू ने ‘‘आधुनिक भारत के मंदिर’’ का नाम दिया था।

पर इस कदम को ‘पार्ट-बाई-पार्ट’(part by part) सेल के निजीकरण की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है। इसलिए इस मामले में अधिकतर इस्पात श्रमिकों की व्यापक एकजुटता दिखाई पड़ रही है; और अंतिंम दम तक निजीकरण के प्रतिरोधा की नई संस्कृति जन्म ले रही है। राजनीति में भी यह अवश्यंभावी है कि प्रत्येक क्रिया के खिलाफ बराबर की प्रतिक्रिया होगी!

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