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क्यों पराजित हुआ पेरिस कम्यून ?

(पेरिस कम्यून के डेढ़ सौवीं वर्षगांठ (1871-2021, भाग-3)  
क्यों पराजित हुआ पेरिस कम्यून ?

ये सवाल बाद के वर्षों व दशकों में बार-बार उठाया जाता रहा कि क्या पेरिस कम्यून की हार अवश्यम्भावी थी? जर्मन सेनाओं की घेरेबंदी में परिस्थिति में कम्यून की पराजय एक त्रासद नियति थी? या इससे बचा जा सकता था? बाद के क्रांतिकारियों, इतिहासकारों, जीवित रह गए कम्यूनयार्डों ने इस बात पर अपने विचार प्रकट किए हैं। खुद मार्क्स ने पेरिस कम्यून के नेतृत्व द्वारा की गई गंभीर गलतियों की को, इस विषय पर लिखी अपनी महत्वपूर्ण किताब "सिविल वार इन फ्रांस में" विश्लेषित किया है जो आज भी हमारे लिए एक अमूल्य खजाना है।

किसानों को साथ लाने में बर्जुआ वर्ग सफल रहा 

पेरिस कम्यून की एक बड़ी असफलता थी कि वे किसानों को अपने साथ न ला पाए। साथ ही पेरिस के संदेश को फ्रांस के दूसरे सूबों में न फैला सजे। हालांकि पेरिस कम्यून के पश्चात कई प्रांतों में विद्रोह हुए पर उन्हें सख्ती से दबा दिया गया। फ्रांस तब तक पेरिस सरीखे कुछ केंद्रों को छोड़ मुख्यतः किसानी व कारीगरी की प्रधानता वाला देश ही था। 

दूसरी तरफ पेरिस के सशस्त्र मज़दूरों से लड़ने के लिए प्रतिक्रान्तिकारी सरकार के मुखिया एडॉल्फ थियेरस ने बिस्मार्क से अपने बंदी बनाये कैदियों को छोड़ने की मांग की। पैसों के बदले बिस्मार्क ने इस मांग को पूरा कर दिया। इस प्रकार विदेशी जर्मनों की मदद से अपने देश के मज़दूरों पर विजय पाई गई।

थियेरस ने बिस्मार्क के सहयोग से एक लाख 30 हजार की सशक्त सेना खड़ी कर ली। इस सेना में पहले के सैनिकों के बजाए, (जिनमें से अधिकांश पेरिस कम्यून के क्रांतिकारियों से सहानुभति रखते है) फ्रांस के सबसे पिछड़े इलाकों के किसान पृष्ठभूमि के सैनिकों की भर्ती की गई। 

फ्रांसीसी बर्जुआ ने इन किसानों के मन में यह बात बिठा दी थी कि पेरिस कम्यून के लोग जो आज बुर्जआ संपत्ति पर हमला कर रहे हैं वे ही कल पलट कर आपकी (किसानों) संपत्ति को भी जब्त करेंगे। फ्रांस के किसानों को भूमि 1789-93 की क्रांति के दौरान मिली थी। 

तत्कालीन राजशाही - सामंतशाही के खिलाफ संघर्ष में बर्जुआ तबका किसानों के साथ था। लिहाजा 1871 में बर्जुआ व किसानों ने मिलकर मजदूरों के विरूद्ध एका कायम कर लिया था। पेरिस कम्यून के इसी अनुभव से सबक लेकर बोल्शेविकों ने मजदूरों-किसानों के मध्य संश्रय की वकालत की थी।

प्रतिक्रिया के गढ़ को छोड़ देना 

कम्यून की सबसे बड़ी गलती थी प्रतिक्रियावाद के गढ़ पर हमला न करना। जब थिएरस और उसके साथ फ्रांस का बर्जुआ पेरिस छोड़कर भाग रहा था उसी वक्त उनका पीछा करते हुए उनपर हमला नहीं किया गया। नेशनल गार्ड और पेरिस कम्यून ने प्रारंभिक दो सप्ताह ऐसे ही जाया कर दिया। उस वक्त खुद थिएरस की सेना इंकलाबी तेवर से लबरेज थी। यदि पेरिस कम्यून हमला करता तो आम सैनिक भी आसानी से पेरिस के मज़दूरों के साथ आसानी से आ जाते। उन सबों को यूंही जाने दिया । परिणाम कम्यून की पराजय में हुआ। 

पेरिस कम्यून की 50 वीं वर्षगांठ पर बोलते हुए रूसी क्रांति के एक प्रमुख नेता ट्रॉटस्की ने कहा था " कम्यून के शत्रु वर्साई भाग गए थे। क्या यह जीत नहीं थी? उस वक्त इस सरकार को बिना रक्त बहाए आसानी से दबा दिया जा सकता था। पेरिस में सरकार के नेता थिएरस और उसके मंत्रियों को गिरफ्तार किया जा सकता था। उस समय उनकी रक्षा के लिए कोई भी हाथ नहीं उठाता। लेकिन यह नहीं किया गया।"

ट्रॉटस्की यह भी जोड़ते हैं "1871 के लड़ाकू कम्यूनार्डो में बहादुरी की कमी नहीं थी। जिस चीज की कमी थी वह थी काम करने के तरीके व पद्धति में स्पष्टता अभाव साथ थी नेतृत्व करने वाले केंद्रीकृत संगठन का अभाव। और ठीक इसी वजह से वे पराजित हो गए।" 

वैधता व कानूनीपन के प्रति अत्यधिक भरोसा 

ट्रॉटस्की कहते हैं "कम्यून में शामिल पेटी बर्जुआ क्रांतिकारी और समाजवादी रुझानों वाले आदर्शवादियों के मन के ‘कानूनसम्मत' होने व दिखने के प्रति बहुत आग्रह था। जो लोग 'कानूनी या वैध' सरकार के प्रतीक थे वे अपने दिल की गहराई से इस बात को सोचते थे कि थिएरस क्रांतिकारी पेरिस की सीमा पर आकर सम्मानपूर्वक ठहर जाएगा यदि हम वैध व कानूनी बने रहेंगे।"

कम्यून के लोगों में केंद्रीकृत संगठन के बजाए स्थानीयता व स्वायत्तता के प्रति अत्यधिक रुझान को ट्रॉटस्की हार की एक प्रमुख वजह मानते हैं “निस्संदेह फ्रांसीसी मज़दूर वर्ग का कमजोर पक्ष रहा है स्थानीयतावाद व स्वातत्तावाद के प्रति झुकाव जो कि एक पेटी बर्जुआ का लक्षण है। कई क्रांतिकारियों की नजर में जिला, मोहल्ला, बटालियन और शहरों के किये स्वायत्तता ही सही मायने में व्यक्तिगत स्वतंत्रता और असली सक्रियता की गारंटी है। लेकिन यह एक बहुत बड़ी गलती थी किसका खामियाजा फ्रांसीसी सर्वहारा को भुगतना पड़ा। लेकिन किसी भी अन्य चीज से भी ज्यादा इस बात से इसे धोखा हुआ है।”

दरअसल सेंट्रल कमिटि का नेतृत्व को यह भोला भ्रम पाले रहा कि थियेरस के साथ यह समझौता हो जाए कि हमें पेरिस में स्वायत्त रूप से अपनी मर्जी की नीतियों को लागू करने इजाजत दी जाए। 

पेरिस कम्यून के सेंट्रल कमिटि के अधिकांश लोग, थे तो क्रांतिकारी, लेकिन उसमें प्रूधोंवादी, सुधारवादियों और ब्लांकीवादियों का दबदबा था। इक्का-दुक्का मार्क्स व एंगेल्स के समर्थक फर्स्ट इंटरनेशनल के भी कुछ लोग थे। मार्क्स के अनुसार "पेरिस कम्यून में प्रूधोंवादी आर्थिक तो बलांकीवादी राजनीतिक मामलों पर प्रभाव रखते थे।" 

पेरिस के मज़दूरों के बीच अगस्त ब्लांकी सर्वमान्य नेता के बतौर प्रतिष्ठित थे। ब्लांकी और उनके समर्थके एक छोटे समूह द्वारा गुप्त तरीके से आतंकवादी कारर्वाइ और तख्तापलट के माध्यम से सत्ता पर कब्जा कर लेने के हिमायती थे। ये लोग 1789-93 के बीच की महान फ्रांसीसी क्रांति व उसके नायकों - मराट, जैकोबिन क्लब, रॉब्सीपीयर से अभिभूत रहा करते थे। खासकर रॉब्सपीयर के तौर-तरीकों से। 

अपने जीवन का लंबा समय जेलों में व्यतीत किया था 1815 के बाद फ्रांस जी हर सरकार ने उठाए जेल में डाला यहां। पेरिस के मज़दूरों पर बलांकी का जैसा प्रभाव था उसका मुकाबला कोई दूसरा नहीं कर सकता था। अगस्त बलांकी के लिए पेरिस कम्यून ने कई पादरियों को बंधक बनाया था ताकि इनके बदले बलांकी को जेल से छुड़ाया जा सके। बलांकी कम्यून के लिए भी चुने जा चुके थे। लेकिन घाघ बर्जुआ थिएरस इसके लिए तैयार न हुआ। वह इस बात से अच्छी तरह वाकिफ था के बलांकी के रूप में पेरिस के मज़दूरों को अपना नेता मिल जाएगा। अगस्त ब्लांकी के संबंध में एक और दिलचस्प तथ्य यह है कि जब -जब फ्रांस का मजदूर वर्ग कारवाईयों में उतरा है वह परिदृश्य से बाहर रहा। 

एंगेल्स ने बलांकीवादियो के बारे में कहा है "ये लोग अपनी क्रांतिकारी व सर्वहारा वृत्ति (इंस्टिंक्ट) के कारण समाजवादी थे। उनमें से बहुत कम लोगों ने जर्मन वैज्ञानिक समाजवाद के बुनियादी सिद्धांतों में स्पष्टता हासिल की थी।" 

वैज्ञानिक समाजवाद पर लिखी मार्क्स की पुस्तकें 'क्लास स्ट्रगल इन फ्रांस', 'अठारहवीं ब्रुमेर' व सबसे बढ़कर 'पूंजी' के सैद्धान्तिक खजाने से से फ्रांस का मज़दूर वर्ग अनजान था।

बैंक ऑफ फ्रांस को ज़ब्त नहीं करना 

दूसरी सबसे बड़ी गलती जिस पर मार्क्स ने बहुत आक्रोश प्रकट किया था कि कम्यूनार्डो ने फ्रांस के सेंट्रल बैंक ‘बैंक ऑफ फ्रांस’ को कब्जे में ही नहीं लिया। पेरिस कम्यून का उदारवादी नेतृत्व पर प्रूधों के विचार हावी थे कि यदि हमने ‘बैंक ऑफ फ्रांस’ पर हाथ डाला तो फिर लोग क्या कहेंगे? देखो इन क्रांतिकारियों के हाथ भी पैसे से रंगे हैं! फिर हममें और लूटेरों में क्या फर्क रह जाएगा। 

उधर थियेरस इसी बैंक से निकाले गए पैसे से नौकरशाहों, जेनरलों व मंत्रियों की तनख्वाहें देता रहा। इन्ही पैसों की बदौलत थियेरस ने अपनी सेना खड़ी और वापस आकर पेरिस का मजदूरों का निर्ममतापूर्वक संहार किया गया।

बैंक के बदले कम्यूनार्डो ने पेरिस में मौजूद जब थिएरस समर्थकों को बंधक बनाना शुरू किया जिसके निरथर्कता के संबन्ध में एंगेल्स ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की "पेरिस कम्यून ने बंधकों के बदले सेंट्रल बैंक पर कब्जा कर लिया गया तो वह दस हजार बंधकों से अधिक लाभकारी होता।" 

बंधकों के बदले कम्यून ने पेरिस में मौजूद बर्जुआ सम्पति के स्रोतों पर हमला नहीं किया। मार्क्स ने भी इस पहलू को भी इंगित किया है "मैं ये नहीं कह रहा हूँ कि इन लोगों को अपने हाथ आये मुट्ठी भर फ्रांसीसी सिपाहियों व अनजान पादरियों को सजा दे देनी चाहिए थी। वर्साई को इन बातों की कोई परवाह नहीं हो सकती थी क्योंकि सही मायनों में महत्वपूर्ण बंधक कम्यून की पहुंच से दूर थे। लेकिन इन लोगों के हाथों में वो अब कुछ था जो बर्जुआ संपत्ति को नियमित करती हैं मसलन-सर्वे रिकॉर्ड, नोटरी रिकार्ड, गिरवी दफ्तर। अतः कम्यून ने बंधकों की धमकी के बदले सम्पत्ति के कागजों आग के हवाले कर दिया होता, बैंक को कब्जे में कर लिया होता तो वही बर्जुआ जिसने कैदी बनाये गए फेडरलों (कम्यूनार्डो) को अपमानित किया उसने थिएरस को उनकी तरफ से माफी मांगने पर मजबूर कर दिया होता।" 

लेनिन ने पेरिस कम्यून की हार की दो वजहों को गिनाते हुए कहा था "देशभक्ति व समाजवाद इन दो अंतेविरोधी कार्यभारों को एक साथ मिलाना फ्रांसीसी समाजवादियों की सबसे घातक भूल थी। सितंबर 1870 के इंटरनेशनल के मैनीफेस्टो में मार्क्स ने फ्रांसीसी समाजवादियों को इस की चेतावनी दी थी कि इस नकली राष्ट्रीय विचारों से बाज आएं। लेकिन दो भारी भूलों ने शानदार विजय की उपलब्धियों से हमें महरूम कर दिया। सर्वहारा आधे रास्ते मे ही रुक गए। शोषण, उत्पीड़न करने वालों की सम्पत्ति जब्त (एक्सप्रोप्रियटिंग द एक्सप्रोप्रियेटर्स) करने के बजाये खुद को बर्जुआ के साथ साझा राष्ट् लक्ष्य के साथ मिला दिया और उच्च स्तर के न्याय पाने की जैसी खोखली भावनाओं के साथ बह जाने दिया। बैंक जैसे संस्थानो को लेकर को प्रूधों के सिद्धांत "न्यायपूर्ण विनिमय (जस्ट एक्सचेंज)" का समाजवादियों के बीच असर भी इसका एक कारण था जिसने उन्हें बैंक ऑफ फ्रांस को कब्जे में नहीं लिया।"

अच्छे होने के कारण मारे गए

लेनिन आगे कहते हैं "दूसरी गलती यह थी की सर्वहारा द्वारा अत्यधिक बड़प्पन व सीधापन का परिचय दिया जाना। शत्रुओं के गढ़ पर हमला करने के बदले उनपर नैतिक प्रभाव के माध्यम आए उन्हें जीतने का प्रयास किया गया। सिविल वार में सीधी सैन्य कार्रवाई के महत्व को इनलोगों ने कम करके आंका। यदि उन्होंने दुश्मनो के प्रति सख्ती दिखाई होती तो उन्हें पेरिस पर जीत का ताज मिला होता। लेकिन वे इस काम मे हिचकते रहे जिससे वर्साई सरकार को काली ताकतों को इकट्ठा करने का खासा समय मिल गया जिसने मई के खूनी सप्ताह को अंजाम दिया।"

पेरिस कम्यून के पश्चात सेंट्रल कमिटी के चंद लोगों ने इस तरह का सुझाव दिया था पर उनकी बातें नहीं सुनी गई। कम्यून के उदार और अच्छे लोगों के कारण मार्क्स को भी बाद में कहना पड़ा था बर्जुआ की तुलना में अच्छे होने के कारण पेरिस के मज़दूर मार गए। 

रूसी क्रांति के 73 वें दिन लेनिन ने नृत्य किया 

पेरिस कम्यून से ही सबक लेकर बोल्शेविकों ने रूसी बुर्जआ के प्रति किसी प्रकार का भ्रम नहीं पाला। जब क्रांति के सबसे नाजुक चरणों में बोल्शेविक नेता जिनोवियेव व कामानेव ने एक गैर पार्टी अखबार में लेख लिखकर लेनिन के विद्रेाह की योजना का यह कहकर विरोध किया कि लेनिन का यह कदम आत्मधाती होगा। बोल्शेविकों को बर्जुआ कंस्टीट्यून्ट असेंबली में जाकर बहुमत प्राप्त करना चाहिए और फिर उसके अनुसार कार्य करना चाहिए।’’

लेनिन को जिन्हें पेरिस कम्यून और फ्रांसीसी बुर्जआ का अनुभव का था उन्होंने इस रास्ते पर जाने से इंकार कर दिया क्योंकि वे जानते थे कि इससे पेरिस कम्यून की तरह रूसी बर्जुआ को खुद को संगठित करने के लिए समय मिल जाएगा। फिर यह रास्ता और अधिक रक्तपात को जन्म देगा। ऐसा रक्तपात जिसके आगे पेरिस कम्यून भी छोटा पड़ जाता।

लेनिन के लिए पेरिस कम्यून का महत्व कैसा था इसे उस इस किवदन्ती से समझा जा सकता है कि जब रूसी क्रांति ने पेरिस कम्यून से अधिक दिन तक बने रहने में सफलता प्राप्त कर ली यानी 73 वें दिन तब लेनिन ने अपने दफ्तर से बाहर निकल बर्फ पर जाकर खुशी से नृत्य किया, ठुमके लगाए।

नेशनल गार्ड में किसी केंद्रीय कमान का अभाव 

तीसरी अंदरूनी कमजोरी थी नेशनलन गार्ड में किसी केंद्रीय कमान का न होना। जिसकी ओर इटली के मशहूर क्रांतिकारी गैरीबाल्डी ने भी इशारा किया था। गैरीबाल्डी जबसे फ्रांस डेमोक्रेटिक रिपब्लिक घोषित किया गया वह उसकी फ्रांस की ओर से जर्मनी से लड़ने आया था। 

जब प्रतिक्रान्तिकारी सेना ने पेरिस में प्रवेश किया तो बजाय किसी केंद्रीय रणनीति के सबको अपने-अपने पड़ोस और परिवार की रक्षा करने को कहा गया। एक केंद्रीकृत फौज का मुकाबला स्थानीय मुकाबले से नहीं किया जा सकता था जिस कारण प्रतिरोध बिखरा सा गया। 

हालांकि पेरिस के मज़दूरों व कम्युनार्डों ने बहुत बहादुरी व असाधारण त्याग का परिचय दिया और अन्तिम दम तक लड़ते रहे।

पेरिस कम्यून भले अपने समय मे पराजित हुआ उसने दुनिया को अन्तराष्ट्रीयतावाद का जो परचम लहराया वह आज समूची दुनिया मे गूंज रहा है।

इंटरनेशनल का संघर्षगीत आज समूची दुनिया के मज़दूरों का गीत बन चुका है।

उठ जाग ओ भूखे बंदी,

अब खींचो लाल तलवार

कब तक सहोगे भाई,

जालिम अत्याचार

 

तुम्हारे रक्त से रंजित क्रंदन,

अब दस दिश लाये रंग

ये सौ बरस के बंधन,

हम एक साथ करेंगे भंग

 

ये अन्तिम जंग है जिसको,

हम एक जीतेगे एक साथ

गाओ इंटरनेशनल

भव स्वतंत्रता का गान

भाग 1 - जब पहली बार पेरिस के मज़दूरों ने बोला स्वर्ग पर धावा

भाग 2- जब पेरिस कम्यून को खून में डूबो दिया गया

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