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कर्नाटक सरकार द्वारा श्रमिक स्पेशल ट्रेनों को रद्द करने के ख़िलाफ़ मज़दूर संगठन कोर्ट पहुंचे

कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु से प्रवासी मज़दूरों को लेकर जाने वालीं श्रमिक स्पेशल ट्रेनें राज्य सरकार ने रद्द कर दी हैं। यह ट्रेनें मज़दूरों को लेकर उनके गृह जनपद जाने वाली थीं।
कर्नाटक
Image courtesy:Bangalore Mirror

दिल्ली: बेंगलुरु से प्रवासी मज़दूरों को लेकर जाने वालीं श्रमिक स्पेशल ट्रेनें कर्नाटक सरकार ने रद्द कर दी हैं। बताया जा रहा है कि मंगलवार को बड़े बिल्डरों के साथ बैठक के बाद मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने फैसला लिया कि श्रमिक स्पेशल ट्रेनें नहीं भेजी जाएंगी। हालांकि सरकार के इस फैसले के ख़िलाफ़ बुधवार को ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियन्स (ऐक्टू) ने बुधवार को कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका दायर की है और कर्नाटक में फंसे प्रवासी मज़दूरों के लिए तत्काल राहत की मांग की है।  

आपको बता दे इससे पहले सरकार ने कहा कि ये प्रवासी मज़दूर राज्य के अर्थव्यवस्था के रीढ़ की हड्डी हैं। हम उन्हें ऐसे नहीं जाने दे सकते है। कर्नाटक के कई इलाकों में उद्दोग और काम करने की छूट दी गई है लेकिन सरकार के इस निर्णय की कई मज़दूर संगठनों ने आलोचना की  है। और कहाकि यह मज़दूरों की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने की कोशिश है और उन्हें बंधुआ मज़दूर और गुलाम बनाने की कोशिश है।

मज़दूर संगठन ऐक्टू ने इस मामले की तत्काल सुनवाई की मांग करते हुए 6 मई को हाई कोर्ट में जनहित याचिका लगाई। जिसमे उन्होंने कहा कि राज्य सरकार का यह रुख भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (डी) और अनुच्छेद 14 के तहत मिले मज़दूरों के मौलिक अधिकारों का हनन है।

इस याचिका में समाचार रिपोर्टों के आधार पर कहा गया कि राज्य भर में फंसे प्रवासी मज़दूरों  ने घर लौटने की इच्छा जताई है। इसके अलावा, 5 मई को मज़दूर यूनियन के सदस्यों ने बेंगलुरु अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी केंद्र का दौरा किया जहां मज़दूरों को रखा गया है और इस दौरान  कई मज़दूरों से बात भी की। यहां लगभग 5 हज़ार प्रवासी मज़दूर अपने घर जाने के लिए 50 किलोमीटर की पैदल यात्रा करके पहुंचे थे, इस उम्मीद में को यहां से इन्हे अपने घर पहुंचा दिया जाएगा। जबकि पूरे राज्य में लगभग दो लाख से अधिक मज़दूर अपने घर जाना चाहते हैं।

यूनियन के मुताबिक मज़दूरों ने कहा कि उनके पास बेंगलुरु में रहने का कोई ठिकाना नहीं है, क्योंकि वे अपना रहने का किराया नहीं दे पा रहे थे और उन्हें 24 मार्च से कोई मजदूरी नहीं मिली। इस दौरान वहां फंसे कई मज़दूरों ने भोजन और राशन न मिलने की भी बात कही। जिस कारण यह मज़दूर किसी भी हाल में अपने घर पहुंचना चाहते हैं।
 
गौरतलब है कि ट्रेनों को रद्द करने का राज्य सरकार का फैसला मंगलवार देर शाम को लिया गया। जबकि उसी दिन प्रवासी मज़दूरों से संबंधित याचिका पर सुनवाई के दौरान कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा था कि "राज्य सरकार को रिकॉर्ड पर बताना चाहिए कि वे किस तरह से राज्य के बाहर प्रवासी श्रमिकों की यात्रा की सुविधा प्रदान करेंगे और साथ ही यात्रा की लागत के संबंध में राज्य सरकार द्वारा क्या निर्णय लिया गया इसकी भी जानकारी दे।"

हाईकोर्ट ने आगे यह भी कहा था कि राज्य सरकार को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि यह प्रक्रिया सुचारू रूप से चले ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि जो प्रवासी मज़दूर बाहर जाना चाहते हैं, उन्हें रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया के संदर्भ में कोई समस्या न हो।

कोर्ट के इस आर्डर के बाद मंगलवार शाम को सरकार ने ट्रेन को रद्द कर दिया इसी के बाद मज़दूर संगठन ऐक्टू कोर्ट पहुंचा और इसमें तुरंत हस्तक्षेप की मांग की है। जबकि कोर्ट मज़दूरों की समस्या पर जो यचिका की सुनवाई कर रहा है। उसकी अगली तरीख 12 मई को है।  लेकिन ऐक्टू ने कहा की कोर्ट उससे पहले तुरंत इसमें सुनवाई करे और आदेश दे।

इसमें अधिकतर मज़दूर बिहार से है और इसको लेकर बिहार के विपक्षी दलों ने विरोध जताया सभी ने मज़दूरों के सकुशल वापसी सुनिश्चित करने की मांग की।

मुख्य विपक्षी दल आरजेडी के नेता और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने भी इसकी आलोचना की और इसे डबल इंजन की बिहार सरकार की विफलता कहा। उन्होंने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए अपने फेसबुक पोस्ट में कहा कि। "..ज़बरदस्ती रोकने और बंधक बनाने का हुक्म जारी नहीं कर सकती। बिहारी भाईयों को बंधुआ मज़दूर या गुलाम मानने की भाजपाई सरकार की कोई भी हरकत बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। केंद्र सरकार, कर्नाटक सरकार और बिहार सरकार जहां तीनों जगह भाजपा की सरकार है। वहाँ से जो मज़दूर बिहार आना चाहते है उनके लिए नियमित ट्रेनों का संचालन करें।"

तो वहीं सीपीएम के राज्यसचिव अवधेश सिंह ने कहा कि सरकार का यह रवैया पूंजीपतियों के पक्ष में मज़दूरों के ख़िलाफ़ उठाया गया कदम है। सरकार मज़दूरों के साथ जानवरों जैसा व्यवहार कर रही है।
 
भाकपा माले ने इसके लिए भाजपा-जदयू की सरकार से जवाब मांगा और भाजपा शासित राज्यों में बिहारी प्रवासी मज़दूरों के प्रताड़ना की बात कही।

भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने कहा कि लंबे संघर्ष के बाद केंद्र सरकार प्रवासी मज़दूरों को घर भेजने पर सहमत हुई थी, लेकिन अब केंद्र सरकार और भाजपा शासित राज्य सरकारें मज़दूरों को धोखा देने का काम कर रही हैं। उन्होंने भाजपा सरकार पर  बिल्डरों के दवाब में ट्रेन कैंसिल करने का आरोप लगाया और कहा भाजपा को मज़दूरों की बजाय बिल्डरों की ज्यादा चिंता है।

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