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जम्मू-कश्मीर: मनमानी करने वाली युवा आईएएस से स्थानीय लोग नाराज़

अपनी भर्ती के बाद से आईएएस अधिकारियों को नेतृत्वकारी भूमिकाएं निभानी होती हैं।
जम्मू-कश्मीर: मनमानी करने वाली युवा आईएएस से स्थानीय लोग नाराज़

जम्मू-कश्मीर के गांदरबल में हुई हालिया घटना अफ़सरशाही को जगाने के लिए पर्याप्त साबित होनी चाहिए। एक स्थानीय नागरिक से एक युवा IAS अधिकारी द्वारा किए गए बुरे बर्ताव से स्थानीय लोग निराश हैं। राजा मुज़फ़्फ़र भट लिखते हैं कि जिले के नेतृत्वकर्ता होने के नाते, इन अधिकारियों को स्थानीय नागरिकों के लिए दयाभाव रखना चाहिए। लेकिन सरकार से कुछ सवाल पूछने पर, अगर एक नागरिक को 6 दिन जेल में रखा जाता है, तो लोकतंत्र के लिए उम्मीद ही क्या बचती है। 

कुछ साल पहले अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी और लोकनीति द्वारा एक सर्वे करवाया गया था, जिसमें सामने आया था कि ज़्यादातर नागरिक अपने काम के लिए विधायक या सांसद के पास जाने के बजाए, स्थानीय सरपंच या पार्षद के पास जाना पसंद करते हैं। 2019 के विधानसभा चुनावों के करीब करवाए गए इस सर्वे का शीर्षक "चुनावों के बीच राजनीति और समाज" था

सर्वे से पता चला कि अपने मुद्दे का हल करवाने के लिए 32 फ़ीसदी लोग सरपंच और 15 फ़ीसदी लोग किसी स्थानीय नेता के पास पहुंचते हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि भारत में नागरिकों को राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री के कार्यालय से ज़्यादा, जिलाधीश कार्यालय में विश्वास होता है। 

नेतृत्वकारी भूमिका

अपनी भर्ती के साथ IAS अधिकारियों के पास नेतृत्वकारी भूमिका होती है। एसडीएम (सब डिवीज़नल मजिस्ट्रेट), डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट, सरकारी सचिव या मुख्य सचिव पद पर तैनाती के दौरान IAS अधिकारियों को अपने करियर में हमेशा नेतृत्व वाली स्थिति में रहना पड़ता है।

मतलब कि उन्हें कुछ इस तरीके से प्रशिक्षित किया जाना चाहिए कि वे हमेशा नेतृत्वकारी गुणों का प्रदर्शन करें और भावनाओं में बहकर कार्रवाई ना करें। क्योंकि ऐसा करने से ना सिर्फ़ जनता की भावनाओं को ठेस पहुंचेगी, बल्कि यह प्रशासन के पूरे तंत्र के लिए भी आपदा साबित होगी। 

जम्मू-कश्मीर के गांदरबल जिले में हुई हालिया घटना को उच्च प्रशासन, खासकर लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी, मसूरी को बहुत गंभीरता के साथ देखना चाहिए, जहां युवा अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया जाता है।

गांदरबल में क्या हुआ?

10 जून को जम्मू-कश्मीर के लेफ्टिनेंट-गवर्नर के सलाहकार बशीर खान गांदरबल के मानसबल इलाके में जनसंपर्क अभियान के तहत पहुंचे थे। उनके साथ गांदरबल की डीएम भी मौजूद थीं। इन लोगों को इलाके की जनता के प्रतिनिधि मंडल से भी मिलना था। गांदरबल में सफापोरा मानसबल का एक नागरिक समाज प्रतिनिधिमंडल भी वहां अधिकारियों से मिलने के लिए पहुंचा था। इस प्रतिनिधिमंडल को स्थानीय विकास से जुड़े मुद्दों पर ज्ञापन सौंपना था। यह संयोग था कि बशीर खान एक कश्मीरी हैं, जिन्होंने 2019 में अपनी सेवानिवृत्ति तक राज्य की कार्यपालिका में कई सालों तक काम किया। 

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, इस प्रतिनिधिमंडल के प्रवक्ता, 50 साल के सज्जाद राशिद ने कहा, "मुझे आपसे उम्मीद है क्योंकि आप एक कश्मीरी हैं और हमारी समस्याएं समझ सकते हैं। मैं आपकी कॉलर पकड़कर आपसे जवाब मांग सकता हूं। लेकिन गैर-स्थानीय अधिकारियों से मैं क्या उम्मीद कर सकता हूं।"

गांदरबल की डीएम और 2014 बैच की अधिकारी कृतिका ज्योत्सना ने इस टिप्पणी पर कड़ा ऐतराज जताया। वह अपनी कुर्सी से उठीं और उन्होंने जोरदार आपत्ति जताई। अचानक बैठक में अफरा-तफरी मच गई और बैठक बाधित हो गई। इसके बाद लेफ्टिनेंट-गवर्नर के सलाहकार और उपायुक्त कार्यक्रम स्थल छोड़कर चले गए। लेकिन इतना ही काफी नहीं था। कुछ घंटे बाद डीएम ने सज्जाद को गिरफ़्तार करवा दिया।

सज्जाद को पहले सफापोरा पुलिस स्टेशन के SHO ने अपने सामने पेश होने के लिए बुलावा भेजा। वहां से उसे गांदरबल के एसपी कार्यालय ले जाया गया। शाम में सज्जाद को सफापोरा पुलिस स्टेशन लाया गया और एक घंटे बाद छोड़ दिया गया। रात 10 बजे सज्जाद को फिर से पुलिस स्टेशन आने का बुलावा भेजा गया। वहां पहुंचने के बाद उनके खिलाफ़ धारा 153A के तहत मुक़दमा दर्ज किया गया और उन्हें 6 दिन तक पुलिस थाने में हिरासत में रखा गया। गांदरबल के स्थानीय कोर्ट द्वारा ज़मानत दिए जाने के बावजूद भी उन्हें नहीं छोड़ा गया। 

यह तय करने के लिए सज्जाद और कुछ दिन जेल में रहें, उनके खिलाफ़ बाद में IPC की धारा 107 और 151 के तहत एक और मुक़दमा दायर किया गया, यहां एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट (SDM) के पास शांति भंग होने के आधार पर किसी व्यक्ति को निरोधक हिरासत में लेने का अधिकार होता है। 

यह अधिकारी डीएम के नीचे काम करते हैं। राष्ट्रीय मीडिया और सोशल मीडिया पर बहुत आलोचना होने के बाद ही पुलिस ने सज्जाद को 17 जून को रिहा किया। विडंबना यह रही कि स्थानीय मीडिया इस घटना की आलोचना नहीं कर सका, क्योंकि उन्हें खुद को निशाना बनाए जाने का डर था। अनुच्छेद 370 हटने के बाद से स्थानीय मीडिया पर बहुत दबाव है और कई अख़बारों को सरकारी विज्ञापन मिलना बंद हो गए हैं।

IAS अधिकारियों का कौशल

आमतौर पर IAS अधिकारी बहुत कुशाग्र लोग होते हैं, जिनके पास लेखन और संचार, विश्लेषण और सामान्य जागरुकता की अच्छी क्षमताएं होती हैं। यहां UPSC परीक्षार्थी की परीक्षा में सफल होने की क्षमता का परीक्षण करती है। इसमें कई कोचिंग संस्थान परीक्षार्थियों की मदद करते हैं।

लेकिन एक नेता में इससे कहीं ज़्यादा गुणों की जरूरत होती है। उसे एक टीम बनाना और अपने साथ काम करने के लिए उस टीम को प्रेरित करना आना चाहिए। इसके तहत प्रेरणा का उदाहरण बनना होता है, कई बार व्यक्तिगत त्याग भी करना होता है। अधिकारी को लिखित से आगे संचार की क्षमताओं में पारंगत होना पड़ता है। उसका नैतिक होना और सकारात्मक मानसिकता रखना जरूरी होता है। लेकिन भर्ती के वक़्त इनमें से किसी भी चीज का परीक्षण नहीं होता। 

एक सरकारी अधिकारी के पास ऐसे फ़ैसले लेने की क्षमता होनी चाहिए, जिनपर बाद में विचार करने की जरूरत ना पड़े। एक जिले का नेता होने के चलते, अधिकारी को वहां के स्थानीय लोगों से दयाभाव रखना चाहिए।

अगर 2014 बैच का IAS अधिकारी एक व्यक्ति को बिना किसी गलती के गिरफ़्तार करवा सकता है, तो हम ऐसे अधिकारी से 20-25 साल की नौकरी के बाद क्या अपेक्षा रख सकते हैं?

IAS हमारे देश में सबसे बेहतरीन पेशे में से एक है। यह उम्मीदवारों में बड़ी उम्मीदें पैदा करती है। उम्मीदवारों को बड़े बंगले के साथ अच्छी जिंदगी की अपेक्षा होती है, जहां उनकी गाड़ी के लिए ड्राईवर होगा, एक बड़ा कार्यालय होगा और उनकी सेवा में सहायक होंगे। लेकिन असलियत यह है कि एक IAS अधिकारी की जिम्मेदारियां इन सहूलियतों से कहीं ज्यादा होती हैं।

भर्ती के बाद ज़्यादातर IAS अधिकारियों की नियुक्ति ग्रामीण या अर्द्ध शहरी इलाकों में की जाती है। गंदरबल अर्द्ध-शहरी जिला है, जहां कृतिका ज्योत्सना की तैनाती कुछ महीने पहले हुई थी। ज्योत्सना उत्तरप्रदेश कैडर से हैं और उन्हें इंटर-कैडेट डेप्यूटेशन के तहत अपने पति के साथ जम्मू-कश्मीर के इस इलाके में दो साल के लिए तैनात किया गया है। 

यह इस युवा अधिकारी के लिए नई चीजें सीखने और कश्मीर में लोगों की मानसिकता समझकर, सरकार और लोगों के बीच पुल बनने का काम करने के लिए अच्छा मौका था। 

लेकिन जिस तरह से उन्होंने एक शिक्षित और ईमानदार नागरिक समाज कार्यकर्ता को बिना गलती के 6 दिन के लिए जेल में डाला और IPC की अलग-अलग धाराओं के तहत उनके ऊपर मुक़दमा दायर करवाया, उससे ना केवल गांदरबल के लोगों, बल्कि जम्मू-कश्मीर की पूरी आबादी को झटका लगा है। 

अपमानजनक अनुभव

अगर सज्जाद खान की मंशा गलत होती, तो बशीर खान को आपत्ति जताते हुए अपना अपमान करने के आरोप में सज्जाद पर मुक़दमा करवाना था। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। सलाहकार को स्थानीय लोगों की मानसिकता के बारे में जानकारी थी। एक ऐसे दौर में जब प्रदेश में चुनी हुई सरकार नहीं है और मैदानी स्तर पर प्रशासन बिखरी हुई स्थिति में है, तब स्थानीय लोग सरकारी अधिकारियों से आशा के साथ मिलने आए थे, लेकिन बदले में उन्हें अपमान मिला। 

लेकिन शीर्ष पर ऐसा नहीं है। लेफ्टिनेंट-गवर्नर मनोज सिन्हा श्रीनगर के राजभवन में रोज जनता के कई प्रतनिधिमंडल से मिलते हैं। वे लोगों के साथ कठोर नहीं हैं। लेकिन निचले स्तर पर कुछ IAS अधिकारियों को परीक्षण और दोबारा प्रशिक्षण की जरूरत है। अगर लोगों को आजादी के साथ बोलने नहीं दिया जाएगा, तो हम किस तरह के लोकतंत्र में रह रहे हैं?

संसद और राज्य विधानसभाओं में सांसद और विधायक खूब हायतौबा मचाते हैं। क्या उन सभी को सरकार ऐसा करने के लिए जेल भेज देगी? इसके उलट, सज्जा लेफ्टिनेंट-गवर्नर के सलाहकार और डीएम से उम्मीद के साथ मिलने गए थे। उनकी कुछ मांगें थीं, जिनमें प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में विकसित करने, सफापोरा में डिग्री कॉलेज के आवंटन, स्पोर्ट्स स्टेडियम के निर्माण, पंचायत भवन के निर्माण और ठोस कचरे के निस्तारण करने वाले संयंत्र को लगाने की मांग शामिल थी। 

लेकिन अब उनकी उम्मीदें टूट चुकी हैं। अब सज्जाद और जम्मू-कश्मीर के लोग निराश हैं।

यह लेख मूलत: द लीफ़लेट में प्रकाशित हुआ था।

(राजा मुज़फ़्फ़र भट श्रीनगर में रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता, स्तंभकार और स्वतंत्र शोधार्थी हैं। वे एक्यूमेन इंडिया के फ़ेलो हैं। यह उनके निजी विचार हैं।)

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

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