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अच्छे दिन : भारत में 9 करोड़ बच्चे स्कूली शिक्षा से बाहर, डेढ़ लाख सरकारी स्कूल बंद

सरकारी तंत्र शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार जैसे मूलभूत क्षेत्रों को देशी-विदेशी पूंजी घरानों को ढिढोरा पीट-पीटकर बेचनें पर तत्पर रहता दिखाई देता है!...
education crises

कहा जाता है कि शिक्षा किसी भी समाज के विकास का मुख्य आधार होती है! पर लगता है भारतीय शासन व सत्ता तंत्र बरसों से इस अवधारणा के विरुद्ध विकासमान होता आ रहा है। देश में निजी पूंजी रूपी राक्षस तमाम सार्वजनिक क्षेत्र की सुविधाओं को विकास के नाम पर ना केवल बांझ बना रहा है बल्कि निगलता जा रहा है। कभी देशी पीपीपी के नाम पर तो कभी विदेशी एफडीआई के नाम पर तो कभी विकास के नाम पर? लगता है सरकारी तंत्र शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार जैसे मूलभूत क्षेत्रों को देशी-विदेशी पूंजी घरानों को ढिढोरा पीट-पीटकर बेचनें पर तत्पर रहता दिखाई देता है! हाल ही में दिल्ली, गुड़गांव के निजी हस्पतालों की कारगुजारियां व इन संवेदनशील घटनाओं में हो रही वोट की टुच्ची राजनीति हमारे सामने है।

दूसरी तरफ हाल में जारी वैश्विक शिक्षा निगरानी रिपोर्ट 2017-18 बता रही है कि भारत में लगभग 9 करोड़ बच्चे आज स्कूली शिक्षा से बाहर हैं। इनके बाहर रहने के प्रमुख कारणों में वित्तीय व ढांचागत संसाधनों की कमी, धार्मिक, जातीय व सामंती लकवाग्रस्त सोच की जड़ता स्पष्ट दिखाई देती है।

यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि इससे बड़ा आंकड़ा उन बच्चों का है जो सरकारी स्कूलों से निरंतर ड्रापआउट हो रहे हैं। सरकारी आंकड़े बता रहे हैं कि हमने पिछले पांच साल में बच्चें कम होने का बहाना बनाकर डेढ़ लाख सरकारी स्कूलों पर ताला जड़ दिया है। अभी हाल ही में उड़ीसा के आदिवासी पिछड़े क्षेत्रों से सैंकड़ों स्कूलों को बन्द कर दिया गया और सुने हैं लगभग 8500 सरकारी स्कूलों को चिन्हित किया है जहां बच्चों की संख्या 25 से कम बताई जा रही है? घोटालों व भ्रष्टाचार में विश्व रिकार्ड बनाने वाले देश में यह भी कोई छोटा शिक्षा स्कैम नहीं है?

क्या कोई यह बताएगा कि हमने इस समय में कितने नए सरकारी स्कूल खोले हैं क्योंकि हमारी जनसंख्या तो हर पल बढ रही है? भारतीय मानस की स्थितियां तो कहती हैं कि हमें और ज्यादा स्कूलों की जरुरत है पर हमारे स्वयंभू आकाओं ने हाल ही में 14 हजार सरकारी स्कूल राजस्थान में बंद कर दिए और हजारों स्कूलों का संचालन निजी पूंजी को सोंप दिया गया है? हरियाणा, यूपी जैसे अन्य राज्य भी इस दिशा में अग्रसर हैं।

हम भलीभांति यह जान रहे हैं कि आज सरकारी स्कूलों में केवल ओर केवल दलितों, अल्पसंख्यकों, गरीब आबादियों के बच्चें ही जा रहे हैं, जहां इनके साथ ना केवल जातीय-धार्मिक भेदभाव हो रहा है बल्कि इनको शिक्षा से भी वंचित किया जा रहा है?  आखिर बीमारु तंग दिमाग नहीं चाहते कि समाज के ये तबके भी शिक्षा हासिल कर आगे बढें?

एक तरफ तो हम शिक्षा अधिकार कानून 2009 देशभर में लागू कर रहे हैं कि 6-14 उम्र के प्रत्येक बच्चें को निःशुल्क शिक्षा पाने का संवैधानिक अधिकार है पर दूसरी तरफ हम सरकारी स्कूलों पर ताले ठोंकते जा रहे हैं! और पीपीपी के तहत निजी पूंजीपतियों को बेचते जा रहे हैं। सरकार की ये दोमुँही नीति मूंह मे राम-बगल में छुरी वाली चालें मानव हित व कल्याण में कैसे सही हो सकती हैं?

एक तरफ भारतीय जनमानस गुणवत्तापूर्ण, व्यावहारिक व एक समान शिक्षा पद्धति की मांग कर रहा है लेकिन दूसरी शिक्षा किसी भी राजनीति व इनके महानतम नेताओं का एजेंडा ही नहीं है। देश के शैक्षिक सुधार-परिवर्तन पर गलती से भी किसी भी मंत्री संतरी की जबान नहीं फिसलती है? आखिर क्यों शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार जैसे मूलभूत मुद्दे गाय, आतंकवाद, लव जेहाद, राम मन्दिर की तरह घर, गली, नुक्कड़, चाय व नाई की दुकानों, अखबारों व टीवी चैनलों की चौबिसों पहर चलने वाली बहसों का हिस्सा क्यों नहीं बन पा रहे हैं? आखिर कौन, किससे और कब ये सवाल उठाएगा?

क्या देश के प्रत्येक नागरिक को यह नहीं समझना चाहिए कि आज देश किस ओर जा रहा है और हम व्यक्तिगत व सामूहिक तौर पर उसमें क्या भूमिका निभा रहे हैं? पर हम ट्रम्प, शिंजो, खिचड़ी, टीपू सुल्तान, पदमावती पर बहसों में बदहवास हुए जा रहे हैं!

सोचने वाली बात है कि आखिर देश का बच्चा-बच्चा यह तो जानता है कि बाहुबलि को किसने मारा परन्तु क्या कारण है कि देश में आज तक यह कोई नहीं जान पाया कि नजीब, गौरी लंकेश, कलबुर्गी, पानसरे, छत्रपति, अखलाक आदि को किसने मारा है? आखिर आवाम कब तक गूंगा, बहरा व अंधा बना रहेगा?

जगजाहिर है कि आज हमें शिक्षक पैदा करने वाले शिक्षालय नहीं बल्कि पुजारी पैदा करने वाले देवालय चाहिएं क्योंकि देश से निर्यात की अगली खेप पुजारियों की है जिसके बदले हमें बुलेट ट्रेन, हथियार, देश को खरीदने वाली एफडीआई चाहिए! स्कूल, कालेज, हस्पताल नहीं! क्योंकि ज्यादा पढ़े लिखे ही ज्यादा भ्रष्टाचार करते हैं! आज के राजनीतिक आतंकवाद का शैक्षिकआतंक से कोई लेना देना नहीं है! असहिष्णु लोग इनको गड्डमड्ड ना करें? क्योंकि हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में जी रहे हैं, जिस पर हमें सिर्फ गर्व करना है सवाल नहीं?

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