Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

मध्यप्रदेश उपचुनाव : बड़े स्तर की ग़रीबी और काम की कमी कई लोगों के लिए बड़ा मुद्दा

मध्यप्रदेश के ग्वालियर में दैनिक मज़दूरों से लेकर लॉकडाउन के दौरान वापस लौटे प्रवासियों तक, ग़रीबों को अपनी बुनियादी ज़रूरतों की पूर्ति के लिए कठिन संघर्ष करना पड़ रहा है।
मध्यप्रदेश उपचुनाव

धूल से सनी पीली कमीज़ और फटे हुए पेंट के साथ एक गमछा गले में पहने हुए खड़े आशिक ख़ान ग्वालियर के लश्कर के रहने वाले हैं। वे दैनिक मज़दूरी करते हैं। आज वे महाराज बाड़ा के सीढ़ियों पर खाली बैठे काम मिलने का इंतज़ार कर रहे हैं।

आशिक उन 200 मज़दूरों में से हैं, जो ग्वालियर राजपरिवार की शान के गवाह रहे महाराज बाड़ा की सीढ़ियों पर काम की आस में बैठे हैं। अब यह बाड़ा दैनिक मज़दूरी करने वालों का केंद्र बन चुका है। यह लोग दिन ऊगते ही यहां आकर बैठ जाते हैं।

चुनाव प्रत्याशियों की घोषणा करने वाले राजनीतिक पार्टियों के ऊंचे-ऊंचे बैनर, जिनमें आने वाले उपचुनावों के लिए ढेरों वायदे किए जा रहे हैं, उनका आशिक जैसे हज़ारों लोगों के लिए कोई मतलब नहीं है। इन लोगों के लिए काम का इंतज़ार बढ़ता ही जा रहा है। लॉकडाउन हटने के बावजूद करीब़ 80 फ़ीसदी दैनिक मज़दूर दोपहर तक खाली हाथ लौट जाते हैं।

आशिक को तीन दिन से कोई काम नहीं मिला। 10 सदस्यों वाले परिवार में अविवाहित आशिक को अपनी रोटी की व्यवस्था खुद करने के लिए कह दिया गया है। क्योंकि लॉकडाउन लगने के बाद से ही परिवार काफ़ी दिक्कतों में है।

भारी आवाज़ के साथ आशिक कहते हैं, "पिछले 3-4 महीने से मेरा परिवार मुझे खाना देना बंद कर चुका है, क्योंकि मैं लॉकडाउन के दौरान उनकी आर्थिक मदद करने में नाकामयाब रहा। अब अगर मुझे काम मिलता है, तो मैं बाहर खाना खाता हूं। नहीं तो भूखे पेट ही सो जाता हूं।"

आशिक मज़दूर हैं, लेकिन उनके तीन साल बड़े एक भाई और एक छोटे भाई या तो पंचर की दुकान करते हैं या फिर तांगा चलाते हैं। आशिक कहते हैं, "परिवार के पास गरीबी रेखा कार्ड भी उपलब्ध नहीं है कि उन्हें हर महीने मुफ़्त राशन मिल जाए, ना ही उन्हें लॉकडाउन के दौरान सरकार या किसी एनजीओ से कोई मदद मिली। हम कई दिनों तक भूखे पेट सोते रहे।"

आशिक कहते हैं कि उनकी लगातार कोशिशों के बावजूद, वह 100 दिन की रोज़गार की गारंटी देने वाली "महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार योजना (मनरेगा)" के लिए पंजीकरण नहीं करवा पाए। आशिक मध्यप्रदेश स्ट्रीट वेंडर (रेहड़ी) योजना का लाभ लेने में भी नाकामयाब रहे हैं, जिसमें 10,000 रुपये का ब्याज़ रहित कर्ज़ मिलता है, ताकि संबंधित शख़्स लॉकडाउन के बाद व्यापार शुरू कर सके।

आशिक कहते हैं, "मैं बचपन से मज़दूरी कर रहा हूं। लेकिन मुझे मज़दूर कार्ड तक नहीं मिला।"

भिंड के मेगां गांव के रहने वाले संजीव यादव की कहानी भी आशिक से अलग नहीं है। वह बताते हैं कि उनके परिवार के पास गांव में 22 बीघा ज़मीन है, लेकिन फिर भी उन्हें मज़दूरी करने पर मजबूर होना पड़ा।

यादव कहते हैं, "मैं अपने परिवार के साथ ग्वालियर में रहता हूं और हर महीने की कमाई में से 1500 रुपये कमरे का किराया देता हूं।"

वह कहते हैं कि उन्हें इसलिए मज़दूरी करने पर मजबूर होना पड़ा, क्योंकि 22 बीघा ज़मीन पर खेती करने वाले उनके तीन भाईयों का परिवार बहुत बड़ा है। लॉकडाउन लागू होने के बाद, ऊंची महंगाई में मुश्किल से ही वे अपना गुजारा कर पा रहे हैं।

सुबह से लेकर शाम तक इस जगह हजारों मज़दूर इकट्ठा होते हैं, लेकिन कुछ भाग्यशाली लोगों को ही काम मिल पाता है, जबकि मज़दूरी की दर भी अभी गिर रही है।

52 साल के महेंद्र एक कांट्रेक्टर हैं, वे कहते हैं, "सीमेंट, मिट्टी और दूसरी निर्माण सामग्री की कीमत बेहद तेजी से बढ़ी है, जबकि निर्माण काम में बहुत कमी आई है।"

वह आगे कहते हैं, "अगर हम पूरे निर्माण कार्य को 100 मानें, तो फिलहाल सिर्फ 25 फ़ीसदी काम ही बचा है, खासकर लॉकडाउन के बाद।"

मनरेगा के तहत नहीं मिल रहा काम

न्यूज़क्लिक ने 25-30 से ज़्यादा मज़दूरों से बात की, जो महाराज बाड़ा में काम की आस में पहुंचे थे। उन्होंने एकमत से कहा कि उन्हें लॉकडाउन के दौरान बहुत परेशानी झेलनी पड़ी है और मुश्किल ही किसी को सरकार से खाद्यान्न की कोई मदद मिली हो। दर्जन भर से ज़्यादा मज़दूरों ने एक आवाज में कहा, "पिछले 6-7 महीनों में हमारे गरीबी रेखा कार्ड की वैधता खत्म हो गई और उनकी वैधता को दोबारा नहीं बढ़ाया जा रहा है।"

IMG_20201025_080639.jpg.jpeg

जब उनसे मनरेगा और स्ट्रीट वेंडर योजना के बारे में पूछा, जिसके ज़रिए राज्य सरकार ने लॉकडाउन के बाद वंचित तबकों की मदद करने का दावा करते हुए खूब प्रचार किया था, ज़्यादातर ने कहा, "मनरेगा में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार है, वहीं स्ट्रीट वेंडर योजना में ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन बहुत जल्दी बंद कर दिया गया था।"

48 साल के मज़दूर सूरज रातक कहते हैं, "जिन लोगों की पहचान या संबंध सत्ताधारी नेताओं से है, उन्हें स्ट्रीट वेंडर योजना का फायदा मिला। जबकि जिन लोगों को वास्तविक जरूरत है, उनके हाथ कुछ नहीं लगा। ऊपर से बीच के दलालों ने योजना के तहत मिलने वाली राशि में से तीस फ़ीसदी कटौती कर ली।"

जब उपचुनाव में 28 सीटों पर वोटिंग की बात होती है, तो मज़दूरों में विभाजन है। उपचुनावों में ग्वालियर की तीन सीटों- ग्वालियर, ग्वालियर पूर्व और डबरा पर भी 3 नवंबर को वोटिंग होनी है।

जब श्रीमंत या महाराज के नाम से प्रसिद्ध ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में जाने के बारे में पूछा गया, तो मज़दूरों ने कहा कि महाराज ने गलत किया और यह कदम उनकी छवि खराब कर सकता है। मज़दूरों ने यह भी कहा कि सिंधिया ने वही किया, जो उनके लिए लाभकारी था। इसके बावजूद "हम उन्हें प्यार और पसंद करते हैं।"

कई लोगों का मानना है कि कांग्रेस गरीबों और किसानों की हितैषी पार्टी है, वहीं दूसरे लोगों का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के लिए सबसे अच्छा कर रहे हैं। एक मज़दूर ने कहा, "मोदी जी गलत नहीं हो सकते।"

55 साल के रवि कहते हैं, "कोई फर्क नहीं पड़ता कि कांग्रेस शासन में हो या बीजेपी, कोई भी गरीबों के लिए काम नहीं करता।"

न्यूज़क्लिक टीम ने मुरैना जिले अम्बाह प्रखंड में भी यात्रा की, जहां लॉकडाउन में सबसे बड़ी संख्या (30,000) में मज़दूर वापस आए थे।

स्थानीय पत्रकार और ट्रेवल एजेंसी के मालिकों का कहना है कि मध्यप्रदेश का इस क्षेत्र में अंतिम प्रखंड, जिस अम्बाह की सीमा उत्तरप्रदेश और राजस्थान दोनों से लगती है, वहां से एक बार फिर प्रवास चालू हो गया है। स्थानीय पत्रकार अजय जैन कहते हैं, "एक बार फिर प्रवास शुरू हो गया है, क्योंकि यहां कोई काम नहीं है और राजनीतिक दलों ने जो वायदे किए थे, वे आज तक पूरे नहीं हो पाए हैं।"

इस बीच बालाजी ट्रेवल्स के मालिक का दावा है कि करीब 18 बसें दिल्ली, जयपुर, सूरत और अहमदाबाद के लिए शहर से हर दिन निकल रही हैं और सभी बसें पूरी तरह भरी होती हैं।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Acute Poverty and Lack of Work Main Issues for Many ahead of MP Bypolls

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest