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अध्ययन : कानून के बाद भी लोगों की पहुंच से दूर है खाद्यान्न

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून को बने 6 साल हो गए। मध्यप्रदेश में इसकी ज़मीनी हक़ीक़त समझने के लिए किए गए एक अध्ययन में यह बात सामने आई कि खाद्यान्न से जुड़ी योजनाओं के क्रियान्वयन में कई कमियां हैं।
national food security

भोजन के अधिकार को लेकर देश भर में चले लंबे आंदोलन के बाद 10 सितंबर 2013 को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून लागू किया गया। कानून बनने के 6 साल बाद भी लाखों लोगों को भरपेट भोजन नहीं मिल पाता और लोगों को खाद्यान्न पाने के लिए रोजमर्रा की जिंदगी में परेशानियां झेलनी पड़ती हैं।

मध्यप्रदेश लोक सहभागी साझा मंच ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के क्रियान्वयन को लेकर प्रदेश के 13 जिलों के 15 विकासखंडों में एक अध्ययन किया। इसमें 27 गांवों के सभी 3813 परिवारों को शामिल किया गया। इस अध्ययन से यह बात स्पष्ट होती है कि अभी भी एक बड़ी जनसंख्या के लिए खाद्यान्न हासिल करना एक चुनौती है।

इस कानून की प्रस्तावना में लिखा है, ‘‘ खाद्य सुरक्षा कानून मानव जीवन चक्र पर आधारित है। इसका उद्देश्य लोगों को जीवन जीने के लिए उस कीमत पर, जो उनके सामर्थ्य में हो, पर्याप्त मात्रा में गुणवत्तापूर्ण भोजन व पोषण सुरक्षा देना है, ताकि लोग सम्मान एवं गरिमा के साथ जीवनयापन कर सकें।’’ इस कानून के तहत योजना के रूप में चार तरह के अधिकार लोगों को दिए गए हैं, जिसमें राशन दुकान से सस्ती कीमत पर अनाज मिलना, आंगनवाड़ी के माध्यम से महिलाओं, किशोरियों एवं बच्चों को पोषण आहार मिलना, शालाओं (स्कूलों) में मध्यान्ह भोजन मिलना और प्रधानमंत्री मातृत्व वंदना योजना : मातृत्व हक़ का लाभ मिलना शामिल हैं।

अध्ययन में 3813 परिवार, 16 राशन दुकान, 29 आंगनवाड़ी, 42 शालाओं एवं मातृत्व हक़ पाने वाली 177 महिलाओं को शामिल किया गया है। अध्ययन में 13 संस्थाओं ने जिलों में मदद की।

अध्ययन निष्कर्षों के अनुसार इन गांवों के 2860 परिवार उचित मूल्य पर राशन पाने के पात्र हैं, लेकिन पात्र होते हुए इन गांवों के 592 परिवार इस योजना से छूटे हुए हैं।

आधार कार्ड न होने पर सामाजिक सुरक्षा सेवाओं से वंचित नहीं होने की बात ज़मीनी हक़ीक़त नहीं है।

अध्ययन वाले परिवारों में 1376 परिवार ऐसे हैं, जिनके सदस्यों के आधार नहीं होने पर उन्हें राशन नहीं मिलता। यहां तक कि आधार कार्ड होने के बाद भी अंगूठे के निशान नहीं मिलने, इंटरनेट सर्वर डाउन होने, बिजली नहीं होने और कार्ड गुम होने के कारण भी लोगों को राशन नहीं मिल पाता।

दुकानों का समय पर नहीं खुलना, दुकान दूर होने से पूरे दिन राशन लाने में बर्बाद होना, नहीं मिलने पर दोबारा जाना जैसी समस्याएं गरीब परिवारों को खाद्यान्न सुरक्षा से बाहर कर देती हैं।

इन समस्याओं का समाधान कैसे हो, जबकि लगभग 40 फीसदी हितग्राहियों को शिकायत निवारण तंत्र की जानकारी नहीं है। लोगों ने राशन के गुणवत्ता पर सवाल खड़े किए हैं और 66 परिवारों ने खराब राशन मिलना बताया।

अध्ययन में शामिल उपासना बेहार का कहना है, ‘‘प्रदेश में मार्च 2014 से कानून लागू हैइसके लिए शिकायत निवारण तंत्र बनाया गया हैलेकिन लोगों को इसके बारे में पता नहीं है। जिले में कलेक्टर को जिला शिकायत निवारण अधिकारी बनाया गया है। ज्ञापन पर 30 दिनों में कार्रवाई करना अनिवार्य है। राज्य आयोग ने पिछले दिनों 30 शिकायतों की जांच की थीउनमें से 18 शिकायतों को मंच ने उठाया था। क्रियान्वयन तंत्र को मजबूत करने की दिशा में पर्याप्त काम नहीं हुए हैंजिनकी वजह से लोगों को परेशानी उठानी पड़ती है।’’

आंगनवाड़ी केन्द्रों पर मिलने वाली सेवाओं एवं उपलब्ध सुविधाओं को अध्ययन के आधार पर देखा जाएतो 29 में 14 केन्द्रों के भवन किराये के हैं। 16 फीसदी केन्द्रों में बच्चों के बैठने के लिए पर्याप्त जगह नहीं है। 18 केन्द्रों यानी 66 फीसदी में शौचालय की सुविधा नहीं है। केन्द्रों पर वजन मापने की मशीन नहीं है। 11 केन्द्रों पर बच्चों को नाश्ता नहीं मिल पाता। कुपोषित बच्चों को अतिरिक्त तीसरा आहार 12 केन्द्रों पर नहीं मिलता। कुपोषित बच्चों को सोयाबीन बरी का पैकेट 11 केन्द्रों पर नहीं मिल पाता। 11 केन्द्रों पर किशोरी बालिकाओं को नियमित टेक होम राशन नहीं मिल पाता।

अध्ययन का विश्लेषण करने वाले जावेद अनीस का कहना है, ‘‘मध्यप्रदेश में कुपोषण का स्तर बहुत ही ज्यादा है। महिलाओं एवं किशोरियों में एनीमिया भी ज्यादा है। ऐसे में खाद्य सुरक्षा कानून का सही क्रियान्यन बहुत जरूरी हैताकि इन समस्याओं का निवारण हो सके। आंगनवाड़ी केन्द्र की सेवाओं को ज्यादा मजबूत करने की जरूरत हैलेकिन अध्ययन के आधार पर कहा जा सकता है कि इस दिशा में ठोस कार्य अभी भी नहीं हुए हैं।’’

मध्यान्ह भोजन योजना के तहत शालाओं में भोजन मिलता हैलेकिन 20 शालाओं में पीने का साफ पानी उपलब्ध नहीं हैजबकि बच्चों में जल जनित बीमारियों के होने का खतरा ज़्यादा होता है। शालाओं में मध्यान्ह भोजन में दलित एवं आदिवासी बच्चों के साथ भेदभाव की बात भी सामने आई है। शालाओं में नियमित रूप से भोजन नहीं मिलने की शिकायत भी अध्ययन में सामने आई है।

मातृत्व हक़ के 177 पात्र हितग्राहियों में से 144 के ही प्रधानमंत्री मातृत्व वंदना योजना के फॉर्म भरे गए हैं। इसमें भी केवल 88 पात्र हितग्राहियों को योजना की राशि प्राप्त हुई है। अध्ययन के अनुसार प्रसव के एक दिन पहले तक 18 महिलाएं मजदूरी में लगी हुई थीं और प्रसव के 1 माह बाद ही 39 महिलाओं ने काम पर जाना शुरू कर दिया। प्रसव पूर्व कम से कम 4 जरूरी स्वास्थ्य जांचों से वंचित महिलाओं की संख्या 25 यानी लगभग 14 फीसदी रही है।

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इस अध्यययन की रिपोर्ट को साझा करने के लिए मध्यप्रदेश लोक सहभागी साझा मंच और विकास संवाद समिति द्वारा मध्यप्रदेश में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के क्रियान्वयन की वस्तुस्थिति को लेकर राज्य स्तरीय सम्मलेन का आयोजन किया गया।

इसमें मध्यप्रदेश राज्य खाद्य आयोग के सदस्य सचिव कवीन्द्र कियावत ने कहा कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून को लागू करने के दिशा में कई व्यावहारिक और अनियमितताओं से संबंधित चुनौतियां देखने को मिल रही हैं। प्रशासन सुचारू रूप से काम करे इसके लिए निगरानी, पारदर्शिता और जवाबदेही बहुत जरूरी है। इसमें सामाजिक संस्थाओं और जागरूक नागिरकों को महत्वपूर्ण भूमिका निभागी होगी। शिकायतों को आयोग गंभीरता से लेता है, इसलिए लोग शिकायत निवारण तंत्र का उपयोग करेंगे, तो स्थिति में सुधार होगी।’’

राज्य खाद्य आयोग के प्रशासकीय अधिकारी एस. के. जैन का भी कहना है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली में प्रशासनिक स्तर पर कई कमियां हैं, जिसे दूर किया जाएगा। एक राशन दुकान से हितग्राहियों की संख्या सीमित कर देने के बाद राशन के लिए ज्यादा लंबा इंतजार नहीं करना पड़ेगा

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