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आर्थिक तंगी और बढ़ती बेरोज़गारी आत्महत्या के सबसे बड़े कारण!

विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस पर न्यूज़क्लिक ने कोशिश की लोगों से उनके मानसिक दबाव के कारण जानने की। बातचीत में पता लगा कि आज लोगों में मानसिक दबाव का कारण उनकी रोजगार की गांरटी न होना, कर्ज़ का बढ़ता बोझ और सुस्त अर्थव्यवस्था में हजारों नौकरियां जाना है।
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Image courtesy:Satyodaya

31जुलाई 2019 को एक चौंकाने वाली ख़बर सामने आई। कर्नाटक के हुइगेबाज़ार के नदी तट पर बेंगलुरु की रिटेल श्रृंखला कैफे कॉफी डे (सीसीडी) के संस्थापक वीजी सिद्धार्थ का शव बरामद हुआ। आशंका जताई गई कि उन्होंने खुदकुशी की है।

10 सितंबर यानी आज जब पूरी दुनिया में विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस मनाया जा रहा है। तब ऐसे समय में आत्महत्या के पीछे के कारणों को समझना बहेद जरूरी हो जाता है। आखिर क्या वजह थी की सिद्धार्थ जैसे बड़े कारोबारी को ये कदम उठाने के लिए मज़बूर होना पड़ा। क्या इसका कारण सिद्धार्थ का आर्थिक संकट से जूझना था? इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार 29 जुलाई को ग़ायब होने से पहले सिद्धार्थ ने 1600 करोड़ रुपये का क़र्ज़ लेने की कोशिश की थी। बताया जा रहा है कि CCD पर मार्च 2019 तक 6547.38 करोड़ रुपये का क़र्ज़ था।

वी सिद्धार्थ कोई पहला उदाहरण नहीं है। पिछले ही महीने दिल्ली से सटे हरियाणा के महानगर गुरुग्राम के न्यू पालम विहार इलाके में एक जानी-मानी ऑनलाइन शॉपिंग कंपनी के सेल्स मैनेजर शिवा तिवारी ने अपने कमरे में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी।  आए दिन आर्थिक हालात, मंदी, बेरोज़गारी, क़र्ज़ और मानसिक दबाव के चलते कई लोग पहले अवसाद और फिर अपने ही हाथों मौत की भेंट चढ़ जाते हैं।

तंगहाली और क़र्ज़ के चलते किसानों की आत्महत्या की ख़बरें तो आप-हम रोज़ ही पढ़ते हैं।

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विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक दुनियाभर में हर साल करीब 8 लाख लोग खुदकुशी करते हैं। इस हिसाब से हर 40 सेकंड में एक व्यक्ति अपनी जान देता है। WHO के मुताबिक भारत उन देशों में शामिल है जहां खुदकुशी की दर सबसे ज्यादा है। वैसे तो आत्महत्या की कोई विशेष उम्र नहीं है, लेकिन दुनियाभर में 15 से 29साल के लोगों के बीच आत्महत्या, मौत की दूसरी सबसे बड़ी वजह है। ये आंकड़े इस बात की तस्दीक करते हैं कि नौजवान आत्महत्या की ओर अधिक बढ़ रहे हैं।

आज विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस पर न्यूज़क्लिक ने कोशिश की लोगों से उनके मानसिक दबाव के कारण जानने की। बातचीत में पता लगा कि आज लोगों में मानसिक दबाव का कारण उनकी रोजगार की गांरटी न होना, क़र्ज़ का बढ़ता बोझ और सुस्त अर्थव्यवस्था में हजारों नौकरियां जाना है।

बिहार से नौकरी करने दिल्ली आए अविनाश बताते हैं कि जब वे तीन साल पहले दिल्ली आए थे तो कई सपने भी अपने साथ लाए थे। आज मंदी की मार में उनकी नौकरी चली गई, ऐसे में इनके ऊपर पूरे परिवार की जिम्मेदारी है। पिता ने लोन लेकर उन्हें इंजीनियरिंग कराई थी। ऐसे में वे अब लोन की किस्त कैसे भरेंगे ये सोचकर ही उनका दिल बैठ जाता है। अविनाश का कहना है कि उनके दिमाग में कई बार आत्महत्या का ख्याल भी आया, लेकिन वे अपने लाचार पिता की शक्ल याद कर रूक जाते हैं।

कुछ ही दिन पहले वाराणसी में एक पिता ने अपनी तीन बेटियों के साथ आर्थिक तंगी के चलते जहर खाकर आत्महत्या कर ली थी। ख़बरों के अनुसार वे कपड़ा उद्योग में आई मंदी का शिकार हुए थे साथ ही बैंक के बढ़ते क़र्ज़ से भी परेशान थे।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में गौर करने वाली दो मुख्य बाते हैं। एक, निम्न मध्यम आय वाले देशों में आत्महत्या की दर सबसे ज्यादा है। ऐसे देशों में भारत भी है, जहां विकास प्रक्रिया जिस तरह चल रही है, वह लोगों को तनाव या अवसाद ग्रस्त बना रही है। बेरोजगारी से लेकर दैनिक जीवन के संकट गहरा रहे हैं।

जमशेदपुर टाटा नगर में काम करने वाले राकेश ने न्यू़ज़क्लिक से बातचीत में कहा कि वो एक ऐसी कंपनी में काम करते हैं जो टाटा मोटर्स के लिए मोटर पार्ट्स बनाती है। ऐसे में जब टाटा मोटर्स का काम धीमा पड़ गया तो हमारी कंंपनी ने कई लोगों को काम से निकाल दिया गया। जो लोग परिवार वाले हैं, उनके ऊपर तो समझो दुखों का पहाड़ ही टूट पड़ा।

गुरुग्राम के एक फैक्ट्री में काम करने वाले मज़दूर श्यामलाल बताते हैं कि वे झारखंड से रोजी-रोटी की तलाश में यहां आए थे। अब अचानक काम रुकने से उनकी आमदनी रूक गई है। ऐसे में उनके सामने बड़ा संकट पैदा हो गया है। वे क्या करें, उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा।
मोदी सरकार 2.O के शपथ ग्रहण लेने के तुरंत बाद देश में बेरोज़गारी को लेकर जो आंकड़े सामने आए हैं, वो निश्चित ही चिंताजनक हैं। आधिकारिक आंकड़ों में ये बात सामने आई है कि भारत में बेरोजगारी की दर 2017-18 में 45 साल के उच्च स्तर 6.10प्रतिशत पर पहुंच गई है।

एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार भारत में 35 वर्ष से कम उम्र की 65 फीसदी आबादी है। पिछले डेढ़ दशक में ढाई लाख से ज्यादा नौजवानों ने बेरोजगारी या नौकरियों से जुड़ी परेशानियों के कारण आत्महत्या कर ली है। ऐसे में ये आंकड़े कई गंभीर सवाल खड़े करते हैं।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक साल 2000 से 2015के बीच 1,54,751 बेरोजगारों ने मौत को गले लगा लिया, वहीं इस दौरान 2,59,849 छात्रों ने आत्महत्या की। इन दोनों आंकड़ों का औसत देखें, तो भारत में  छात्र-बेरोजगारों की स्थिति गंभीर है।

7 जनवरी 2018 को गृह मंत्रालय ने बीते 3वर्ष में छात्रों की आत्महत्या को लेकर एक रिपोर्ट जारी की। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि 2014-16 के बीच 26,476 छात्रों ने खुदकुशी कर ली। गृह मंत्रालय की यह रिपोर्ट बताती है कि हमारे देश में हर घण्टे एक छात्र खुदकुशी कर रहा है।

खुदकुशी की रोकथाम के क्षेत्र में काम करने वाले गैर सरकारी संगठन आसरा के रौशन बताते हैं कि आजकल की जीवनशैली में तनाव बहुत है। पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ में सामंजस्य बैठाना मुश्किल हो जाता है और किसी करीबी के साथ बात को साझा करने में भी लोग हिचकते हैं। वे आगे कहते हैं कि अगर आपको खुदकुशी के विचार आ रहे हैं तो आपको अपने सबसे करीबी इंसान से बात साझा करनी चाहिए या फिर हेल्पलाइन या प्रोफेशनल काउंसलर या मनोचिकित्सक से बात करनी चाहिए।

मनोवैज्ञानिक मनीला बताती हैं कि व्यक्ति में यदि सकारात्मकता का अभाव हो तो ऐसी स्थिति में आत्महत्या की सोच हावी हो जाती है। यदि परिवार में मनमुटाव होता रहता हो, या नौकरी या निजी जिंदगी में कुछ उलझन हो तो ऐसी स्थिति में आत्महत्या की भावना ज्यादा प्रबल हो जाती है। ऐसे में जरूरी होता है कि आप अपने अंदर की बातों को किसी से शेयर करें।

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WHO  का मानना है कि आत्महत्या की प्रभावी रोकथाम और रणनीति के लिए निगरानी की आवश्यकता है। आत्महत्या के पैटर्न में अंतरराष्ट्रीय अंतर, आत्महत्या की दरों, विशेषताओं और तरीकों में बदलाव, प्रत्येक देश को उनके आत्महत्या संबंधी डेटा से ही कोई ठोस लक्ष्य तय हो सकता है। 2014 में प्रकाशित पहली WHO विश्व सुसाइड रिपोर्ट इसी मकसद से जारी की गई थी।

भारत में एक बड़ा आंकड़ा किसानों की आत्महत्या का भी है। कृषि राज्यमंत्री पुरुषोत्तम रूपाला ने एक प्रश्न के लिखित उत्तर में राज्यसभा को बताया कि वर्ष 2016 के बाद किसानों की आत्महत्या की रिपोर्ट अभी तक प्रकाशित नहीं की गई है। सदन में पेश किए गए आंकडों के अनुसार, वर्ष 2015 में किसानों की आत्महत्या के मामलों की संख्या 3,097और वर्ष 2014में 1,163थी।

आत्महत्या से मरने वालों की संख्या के ये आंकड़े बेशक डरावने हैं, लेकिन इस प्रवृत्ति को रोका जा सकता है। इसके लिए जरूरी है कि आत्महत्या के पीछे कारणों को सही से समझ कर उस दिशा में काम किया जाए। विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस मनाने का मकसद ही आत्महत्या के विरुद्ध लोगों में जीवन के प्रति जागरुकता फैलाना है। इस साल की थीम 'आत्महत्या के रोकथाम के लिए साथ काम करना है'। जिंदगी बहुत प्यारी है, किसी भी हालात में इसे मौत को इस पर जीत मत हासिल करने दीजिए। अगर आपके आस-पास कोई जिंदगी से निराश होता नजर आ रहा है तो थोड़ा सा समय निकालें और उसके जीवन में फिर से आशा लाने का प्रयास करें।

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