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बिहार विधान सभा उपचुनाव क्या वाकई कोई नया संकेत देने वाला होगा?

ये चुनाव सिर्फ दो विधान सभा सीटों का उपचुनाव मात्र नहीं है, बल्कि यह पटना और दिल्ली में बैठी सरकारों द्वारा जनता पर थोपी गयी बेलगाम महंगाई, विकराल बेरोज़गारी, जानलेवा चौपट स्वास्थ्य व्यवस्था के संकटपूर्ण हालातों के खिलाफ खबरदार करने के लिए हो रहें हैं।
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यूं तो पूरे बिहार प्रदेश में इन दिनों पंचायात चुनाव की गहमागहमी छाई हुई है, लेकिन प्रदेश के सियासी दायरों और अख़बारों से लेकर सोशल मीडिया में 30 अक्टूबर को होनेवाले दो विधान सभा सीटों का उपचुनाव की सरगर्मी कुछ ज्यादा ही है। जो कई वर्षों बाद लालू प्रसाद जी के चुनावी मैदान में उतरने से कुछ ज़्यादा ही रोचक और तीखी हो गयी है।

दरभंगा के कुशेश्वर स्थान और मुंगेर के तारापुर विधान सभा सीटों पर वहां के पूर्व जदयू विधायकों के निधन से वहां उपचुनाव होने हैं जिसमें मुख्य मुकाबला एनडीए गठबंधन के प्रमुख घटक दल जदयू और प्रदेश के मुख्या विपक्षी दल राजद में होता दिख रहा है। वहीं इस चुनाव में महागठबंधन का तालमेल टूट जाने के कारण कांग्रेस ने भी तीनों सीटों से अपने प्रत्यशी खड़े किये हैं। इसके अलावा लोजपा (पारस विरोधी गुट) ने भी अपने उम्मीदवार खड़े किये हैं। राज्य के सभी वामपंथी दल राजद को न सिर्फ अपना सक्रीय समर्थन दिया है बल्कि अपनी पार्टी विधायकों-नेताओं की टोली लेकर राजद प्रत्याशियों के चुनाव प्रचार के लिए गांव गांव कैम्प कर रहें हैं। 

महागठबंधन के टूट जाने से कांग्रेस और राजद में एक दूसरे के खिलाफ काफी तीखी प्रतिक्रियाएं जारी है। कांग्रेस का आरोप है कि राजद ने भाजपा के साथ गुपचुप गठबंधन कर उसके खिलाफ जानबूझ कर अपने प्रत्याशी खड़े किए हैं। प्रतिउत्तर में राजद नेता लालू प्रसाद जी ने कांग्रेस प्रवक्ता को ‘भकचोन्हर’ बताते हुए कह दिया कि – क्या ज़मानत ज़ब्त कराने के लिए हम उन्हें टिकट देते। राजद नेताओं का यह भी आरोप पूर्ण बयान है कि विधान सभा चुनाव में कांग्रेस को 70 सीटें देकर महागठबंधन को क्या फायदा हुआ? कई सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशी अपनी ज़मानत भी नहीं बचा सके। जवाब में कांग्रेस के बिहार प्रभारी ने भी ऐलान कर दिया कि आनेवाले चुनावों में कांग्रेस अब बिहार की सभी सीटों पर अकेले ही चुनाव लड़ेगी।

महागठबंधन में टूट का मामला गोदी मीडिया के लिए तो मानो मनचाही मुराद जैसी पूरी हो गयी है। जिनकी ख़बरों में क्षेत्र के मतदाताओं के सवाल सिरे से नदारद हैं और मुख्यमंत्री समेत सभी एनडीए नेताओं के चुनावी प्रचार से परोसे जा रहे हर झूठ, जुमलों और नए चुनावी घोषणाओं को ही विकास का सबसे बड़ा सच बनाकर धड़ल्ले परोसा जा रहा है। 

दूसरी ओर, विपक्ष द्वारा नितीश कुमार सरकार के साथ साथ मोदी सरकार के खिलाफ उठाये जा रहे- बेलगाम महंगाई, बेरोज़गारी, कोरोना काल सरकारी स्वास्थ्य सेवा की जानलेवा विफलता, क्षेत्र में हर साल होने वाली बाढ़ विभीषिका का समुचित निदान जैसे सवालों को बड़ी चालाकी से गायब कर राजद बनाम कांग्रेस के नोक झोंक को मसालेदार बनाया जा रहा है। जबकि कड़वी वास्तविकता यह है कि कि नितीश कुमार जी के 15 वर्षों के शासन में  एक अदद चलने लायक सड़क तक नहीं होने का अभिशाप झेल रहे दरभंगा के कुशेश्वर स्थान में अभी भी बाढ़ के जल जमाव का नज़ारा हर और दिख जाएगा।  

इसमें कोई शक नहीं है कि कई वर्षों के अंतराल पर और जेल से छूटने के बाद लालू प्रसाद जी का चुनावी प्रचार में आना मतदाताओं के लिए कितना बड़ा आकर्षण बना है। इसका अंदाजा  27 अक्टूबर को हुई उनकी चुनावी रैलियों में उमड़े जन सैलाब को देखकर सहज ही लगाया जा सकता है। दोनों ही जगह की रैलियों उमड़ी भारी भीड़ को संबोधित करते हुए कांग्रेस के आरोपों का जवाब दिया कि – हमने भाजपा से कभी भी समझौता नहीं किया है। बल्कि हमने ही सबसे पहले आडवानी जी के सांप्रदायिक रथ को रोका था। एनडीए कुशासन की चर्चा करते हुए कहा कि बिहार की जनता ने भाजपा के खिलाफ नितीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया था, लेकिन उन्होंने जनादेश से विश्वासघात करके भाजपा की ही गोद में जाकर बैठ गए।  बेलगाम महंगाई और बेरोज़गारी के सवाल पर केंद्र की मोदी सरकार की विफलता को निशाना बनाते हुए कहा कि मोदी सरकार देश का सबकुछ बेच रही है। रेल मंत्री रहते हुए हमने कभी भी रेल का किराया नहीं बढ़ाया था, लेकिन मोदी रोज किराया बढ़ा रहें हैं। समय ऐसा आ रहा है कि रेलवे प्लेटफार्म पर लोग तभी घुस पायेंगे जब अडानी जी को उसका भारी टैक्स चुकाएंगे। रेलवे को हमने जर्सी गाय बनाया था, अब उसे भी बेच दिया।  

दो दिन पहले तारापुर विधान सभा क्षेत्र में मुख्यमंत्री नितीश कुमार की चुनावी सभा के दौरान जब युवा मतदाताओं के एक समूह ने पोस्टर लहराते हुए सभा के दौरान जब नारे लगाये कि 19 लाख रोज़गार कहां है नितीश कुमार? तो मंच से उसका कोई  सकारात्मक जवाब देने के बजाय मुख्यमंत्री ने उन पर व्यंग कर दिया।

लालू प्रसाद जी अपने बोलने के अलग अंदाज़ के लिए हमेशा ही जाने जाते हैं, इस बार भी गोदी मीडिया के साथ-साथ सोशल मीडिया और ‘व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी’ को खूब मसाला मिल रहा है। चुनाव प्रचार अभियान में जाने से पूर्व उनके द्वारा नितीश कुमार सरकार का ‘विसर्जन कर देंगे’ का बयान मानो मुख्य चुनावी चर्चा बन गया हो। इसके खिलाफ नितीश कुमार जी की प्रतिक्रिया अखबारों के मुख्य पृष्ठ पर छापी गयी कि “लालू जी चाहें तो गोली मरवा सकते हैं, बाकी कुछ कर नहीं सकते हैं”।

लालू प्रसाद जी भी कहां चुप रहने वाले थे! अपनी चुनावी सभा में उन्होंने भी कह डाला कि “हम काहें गोली मरवायेंगे, तुम अपने मर जाओगे"!

वैसे मीडिया के एक हिस्से और आम चुनावी चर्चाओं में एक बड़ी चर्चा यह भी बनी हुई है कि क्या सचमुच में कुशेश्वर स्थान और तारापुर का विधान सभा उपचुनाव कोई नया संकेत देने वाला होगा। जो भाकपा माले द्वारा राजद प्रत्यशियों के पक्ष में चलाये जा रहे चुनाव प्रचार अभियानों में जोरशोर से उठाया जा रहा है कि ये चुनाव सिर्फ दो विधान सभा सीटों का उपचुनाव मात्र नहीं है बल्कि यह पटना और दिल्ली (केंद्र) में बैठी सरकारों द्वारा जनता पर थोपी गयी बेलगाम महंगाई, विकराल बेरोज़गारी, जानलेवा चौपट स्वास्थ्य व्यवस्था के संकटपूर्ण हालातों के खिलाफ खबरदार करने के लिए हो रहें हैं। बिहार प्रदेश के इन जैसे इलाकों के पलायन जोन बने रहने और आज तक प्रवासी मजदूरों के लिए कोई राष्ट्रीय कानून नहीं बनाने के लिए भी यह सरकार जनता के कठघरे में है।

वहीं सोशल मीडिया में यह भी खूब वायरल हो रहा है कि – झूठ बोले वोटर काटे!

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