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चमकी बुखारः मोदी की आयुष्मान योजना बिहार में क्यों असफल हो गई ?

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार एक जून से अब तक मुजफ्फरपुर में 130 बच्चों की मौत हुई जबकि राज्य भर में मृतकों की संख्या 152 पहुंच गई है।
chamki bukhar

इस साल एक जून से लेकर अब तक संदिग्ध एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम यानी एईएस से बिहार के 20 जिलों में लगभग 152 बच्चों की जान चली गई। केवल मुजफ्फरपुर जिले में 130 बच्चों के मौत की खबर है। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट तथा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने सख्त नाराज़गी जताई है और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और बिहार सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।

जिन लोगों के बच्चों की मौत हुई है उनमें से ज़्यादातर कमजोर सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के लोग हैं। इन ग़रीब लोगों के लिए नरेंद्र मोदी सरकार ने पिछले साल सितंबर में काफी शोर शराबे के साथ आयुष्मान भारत योजना (पीएम-जेएवाई) नाम से स्वास्थ्य योजना की थी।

इस योजना में लाभार्थियों की पहचान और सूचीबद्ध करने के लिए सोशियो इकोनॉमिक कास्ट सेंसस 2011 (एसईसीसी) के डेटाबेस का इस्तेमाल किया गया है। हालांकि लाभार्थी सार्वजनिक तथा निजी दोनों तरह की सुविधाओं का लाभ उठा सकते हैं। इनके उपचार का भुगतान पैकेज दर के आधार पर किया जाएगा।

एसईसीसी के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र में दो कमरे वाले पक्के घर में रहने वाले परिवार जिनके पास एक दोपहिया-वाहन या रेफ्रिजरेटर या एक लैंडलाइन फोन कनेक्शन है। वे दुनिया के इस सबसे बड़े सरकारी वित्त पोषित स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रम के तहत लाभ लेने के अयोग्य होंगे। हालांकि, अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति परिवार इस योजना के तहत पात्र हैं। शहरी क्षेत्रों में 10,000 रुपये से अधिक की मासिक आय वाला परिवार आयुष्मान भारत के तहत लाभ प्राप्त करने का पात्र नहीं है।

इस योजना का उद्देश्य निजी या सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए प्रति वर्ष 5 लाख रुपये की नकद-रहित चिकित्सा सुविधा प्रदान करना है। हालांकि, रिपोर्टों के अनुसार दिमागी बुखार से पीड़ित केवल 35 बच्चों का इलाज इस स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत किया गया।

बीपीएल (गरीबी रेखा से नीचे) परिवारों की अधिकतम संख्या के मामले में देश के दूसरे बड़े राज्य बिहार में ये स्वास्थ्य सेवा योजना दूरदराज के गांवों तक पहुंचने में विफल क्यों रही? यह अब तक अस्पष्ट है। लेकिन इसके कई संभावित उत्तर हो सकते हैं:

पहला, दिमागी बुखार से पीड़ित ज्यादातर बच्चों के माता पिता इस योजना के तहत मुफ्त इलाज का लाभ उठाने की प्रक्रियाओं के बारे में नहीं जानते हैं। इसके लिए कोई जागरूकता अभियान नहीं है। जरूरत के समय में लाभार्थियों को सूचीबद्ध अस्पताल में जाने की आवश्यकता है और उन आधिकारियों (आयुष्मान मित्र) से मिलने की आवश्यकता होती है जो रोगी तथा अस्पताल के बीच कड़ी का काम करते हैं।

आयुष्मान मित्र इस योजना के तहत रोगी के परिवार की पात्रता और उनके नामांकन की जांच करते हैं। फिर लाभार्थी को एक क्यूआर कोड दिया जाता है जिसका स्कैन और सत्यापन किया जाता है।

आयुष्मान भारत के कार्यान्वयन पर नज़र रखने वाले राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (एनएचए) के अनुसार इस योजना के तहत राज्य में 564 सरकारी अस्पताल और 84 निजी अस्पताल हैं। मुज़फ़्फ़रपुर में कुल अस्पतालों (सार्वजनिक तथा निजी दोनों) की कुल संख्या 28 है।

एनएचए के आंकड़ों के अनुसार राज्य में 1,08,95,571 पीएम-जेएवाई पात्र परिवार हैं जिनमें से केवल 16,14,174 (लगभग 16%) को योजना के तहत इलाज के लिए आयुष्मान भारत ई-कार्ड जारी किए गए हैं।

दूसरा, बिहार जैसे राज्यों में निजी अस्पतालों का नेटवर्क बेहतर नहीं है क्योंकि इनमें से अधिकांश बड़े शहरों में केंद्रित हैं। यह एक कारण हो सकता है जिसके चलते श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (एसकेएमसीएच) में अधिक संख्या में रोगियों की भर्तियां हुईं और यहां अब तक लगभग 117 बच्चों की मौत हो चुकी।

तीसरा, ऐसे राज्यों में प्रशासनिक बुनियादी ढांचे का अभाव है और इस योजना के लिए उन वंचितों को सूचीबद्ध करने को लेकर कई संबंधित मुद्दे हैं।

चौथा, ये योजना कुल खर्च के मामले में राज्य-केंद्र सरकार के योगदान पर काम करती है। राज्य को खर्च की कुल राशि का 40% देना पड़ता है जबकि केंद्र 60% देता है। यही वह स्थिति है जो ग़रीब राज्यों के मामले में वास्तविक समस्या है। इस योजना के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए समृद्ध राज्यों के लिए अपना योगदान देना आसान होता है।

मोदी सरकार ने अपने अंतरिम बजट (2019-20) में आयुष्मान भारत के लिए 6,400 करोड़ रुपये की घोषणा की। लेकिन केवल वे राज्य जो इसके 40% हिस्से का भुगतान करते हैं वे इस फंड का लाभ उठा सकते हैं। वे राज्य जो इस फंड का अपना हिस्सा नहीं दे सकते उन्हें केंद्र सरकार द्वारा आवंटित राशि नहीं मिलेगा।

केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने इस योजना के कार्यान्वयन पर एक सवाल के जवाब में 21 जून को एक लिखित जवाब में कहा कि 23.26 लाख दावों के संबंध में कुल 3,077 करोड़ रुपये दिया गया है (18 जून, 2019 तक)।

641 करोड़ रुपये हासिल करके गुजरात इस सूची में शीर्ष पर है। बड़े हिस्सेदारी वाले अन्य राज्यों में छत्तीसगढ़ (379 करोड़ रुपये), कर्नाटक (368 करोड़ रुपये) और तमिलनाडु (349 करोड़ रुपये) शामिल हैं।

बिहार केवल 39,943 दावों को जुटा सका और इसे 34.58 करोड़ रुपये ही मिले। बीपीएल की सबसे अधिक संख्या वाले राज्य उत्तर प्रदेश को 1,05 लाख दावों के संबंध में केंद्र से 117 करोड़ रुपये मिले। 14,000 दावों के मामले में पश्चिम बंगाल को इस योजना के तहत 14.14 करोड़ रुपये मिले।

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