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छत्तीसगढ़: बीजेपी शासन में प्राथमिक शिक्षा हो रही है तबाह

सीएजी की एक रिपोर्ट में पाया गया है कि दलितों और आदिवासियों के लिए आरक्षण लागू नहीं किया जा रहा है और बुनियादी ढांचे में भारी कमी है।
Chhattisgarh primary schools

2003 से छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) लगातार 15 वर्षों से शासन कर रही है। जीवन के सभी क्षेत्रों में परिवर्तनकारी बदलाव लाने के लिए यह भरपूर समय है। फिर भी, यह दुख की बात है कि शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण सवाल के मामले में छत्तीसगढ़ में इन वर्षों में उल्लेखनीय गिरावट देखी है। छत्तीसगढ़ जैसे राज्य के लिए यह विशेष रूप से परेशान करने वाली बात है क्योंकि यहाँ दलितों और आदिवासियों की आबादी का एक बड़ा हिस्सा है, क्रमशः राज्य की आबादी का 13 और 21 प्रतिशत। पिछले साल एक सीएजी की रिपोर्ट जारी की गई है जिसने राज्य के शिक्षा विभाग से जुड़े मामलों की खेदजनक स्थिति का खुलासा किया गया।

राज्य की प्राथमिक शिक्षा प्रणाली में ठीक से नहीं चल रही है इसका पहला संकेत राज्य सरकार के अपने एक  सर्वेक्षण आयाI यह 43,529 स्कूलों में किया गया, यह आँकड़ा सभी स्कूलों का 82 प्रतिशत है। सर्वेक्षण के द्वारा स्कूलों को 100 मानकों के आधार पर मूल्यांकन किया गया और उन्हें घटते क्रम में ए से डी तक घटते क्रम में वर्गीकृत किया। यह पता चला कि केवल 25 प्रतिशत स्कूल ग्रेड ए में थे, शेष तीन चौथाई में सुधार की ज़रूरत है। एक राष्ट्रीय आँकलन सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि राज्य सभी राज्यों में 17वें स्थान पर है और शैक्षिक विकास सूचकांक के मामले में 22 वें स्थान पर है।

2010 और 2016 के दौरान प्राथमिक विद्यालयों में बच्चों के नामांकन में लगभग 12 प्रतिशत की कमी आई थी, जिस अवधि के लिए सीएजी ने काम के निष्पादन की लेखा परीक्षण रिपोर्ट नहीं पेश की थी। सरकारी स्कूलों में नामांकन में 24 प्रतिशत की कमी आई, जबकि निजी स्कूलों में नामांकन 49 प्रतिशत बढ़ा है। इसने स्पष्ट रूप से संकेत दिया कि सरकार की शिक्षा नीति में एक गंभीर कमी बनी हुई है, जिससे परिवारों को अपने बच्चों को निजी स्कूलों में भेजना पड़ रहा है। अपर प्राथमिक विद्यालयों (कक्षा 6 से 8) में, हालांकि, इस दौरान में सरकारी और निजी स्कूलों में नामांकन 13 प्रतिशत बढ़ा था। इसका क्या अर्थ है कि हाल के वर्षों में इतनी गिरावट रही है।

प्राथमिक शिक्षा पर सरकारी खर्च पर नज़र डालने से एक महत्वपूर्ण चौंकाने वाली पुष्टि की गई है। 2010-11 और 2015-16 के बीच, बजट में स्कूल शिक्षा (राजीव गांधी शिक्षा मिशन) के लिए कुल 13,379 करोड़ आवंटित किए गए थे। हालांकि, केवल 7,592 करोड़ रुपये (आवंटन का 57 प्रतिशत है) उपयोग के लिए जारी किया गया था। यह व्यय 2014-15 तक केंद्र सरकार के हिस्से के तौर पर 65 प्रतिशत और राज्य सरकार से 35 प्रतिशत था, जो बाद में 60:40 हो गया। केंद्र और राज्य सरकार दोनों ही राज्य की शैक्षणिक प्रणाली में अपरिहार्य गिरावट लाने के लिए जिम्मेदार है क्योंकि वे पूरी रकम जारी करने में नाकाम रहे थे।

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फंड में कटौती असंख्य तरीकों से दिखाई देती है क्योंकि पूरी प्रणाली तेज़ी से लड़खड़ा गयी है। सबसे भारी नुकसान आधारभूत ढाँचों जैसे इमारतों आदि को हुआ। सीएजी टीमों ने 210 स्कूलों की जांच की और पाया कि 22 प्रतिशत स्कूलों में लड़कियों के लिए कोई अलग शौचालय नहीं है, 20 प्रतिशत में कोई पुस्तकालय नहीं है, 37 प्रतिशत में कोई खेल का मैदान नहीं, 18 प्रतिशत में कोई रसोई शेड नहीं है, 23 प्रतिशत में हेडमास्टर के लिए कोई कमरा नहीं है और 43 प्रतिशत स्कूलों में कोई चार दीवारी नहीं है। बल्कि कुछ मामलों मसलन चार दिवारी के मामलों में, सरकार की फिजूलखर्ची के बाक़ायदा रिकॉर्ड दर्ज हैंI

शिक्षा प्रणाली का सबसे महत्वपूर्ण स्तम्भ है शिक्षक, इसी सम्बन्ध में सबसे ज्यादा गड़बड़ी पायी गयी। शिक्षा का अधिकार (आरटीई अधिनियम) की सिफारिश है कि प्राथमिक चरणों में, अधिकतम छात्र-शिक्षक अनुपात (पीटीआर) 30 होना चाहिए जबकि यह अपर प्राथमिक स्तर पर 35 होना चाहिए। हालांकि, छत्तीसगढ़ में, 14 प्रतिशत प्राथमिक विद्यालयों में इस मानक से अधिक पीटीआर था जबकि 45 प्रतिशत स्कूलों शिक्षक अतिरिक्त थे। ऊपरी प्राथमिक स्तर में 16 प्रतिशत स्कूलों में प्रतिकूल पीटीआर था लेकिन 61 प्रतिशत अतिरिक्त शिक्षक थे।

इससे पता चलता है कि एक तरफ, हजारों छात्र अपने स्कूलों में शिक्षकों की कमी से जूझ रहे होंगे, जबकि अन्य स्कूलों में शिक्षक निष्क्रिय होंगे। यह गड़बड़ी सरकार द्वारा उचित ध्यान न देने का प्रत्यक्ष परिणाम है जो नामांकन में गिरावट और पोस्टिंग में भी हस्तक्षेप कर रही है।

सीएजी ने पाया कि शिक्षकों के बीच एक और गंभीर मुद्दा था। 2012 में, राज्य ने निर्धारित किया गया था कि प्राथमिक विद्यालयों में 61,147 अप्रशिक्षित शिक्षक थे। इसने इन शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए एक विस्तृत कार्यक्रम शुरू किया। चार साल बाद भी, इन स्कूलों में अभी भी 11,963 अप्रशिक्षित शिक्षक पढ़ा रहे थे। यह आश्चर्य की बात है कि छत्तीसगढ़ को शिक्षा की गुणवत्ता का सामना करना पड़ा है।

निजी स्कूलों का छलावा

सीएजी रिपोर्ट सरकारी स्कूलों से निजी स्कूलों के बेहतर होने के दावे के तिल्सम को भी तोड़ती नज़र आती है। यह पाया गया कि सात जिलों में उन्होंने 145 निजी स्कूलों में 2,594 शिक्षकों की जांच की जिसमें 1,525 या यानी 59प्रतिशत अप्रशिक्षित थे! सरकारी स्कूलों में अप्रशिक्षित शिक्षकों का हिस्से कहीं अधिक है। रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि निजी स्कूल खुलेआम अपने खातों में मुनाफा दिखा रहे थे हालांकि आरटीई अधिनियम में यह निषिद्ध है। निजी स्कूल शुल्क की प्रतिपूर्ति के लिए सरकारी योजनाएं में कमी और धीमापन था।

छत्तीसगढ़ की इस क्रुद्ध शिक्षा प्रणाली का दलितों और आदिवासियों जैसे सबसे सामाजिक उत्पीड़ित वर्गों पर असर होता है,  सीएजी रिपोर्ट से भी स्पष्ट हो गया है। सात टेस्ट-चेक किए गए जिलों में, सीएजी टीमों ने पाया कि दलितों और आदिवासियों के लिए सीटों का आरक्षण - जो एक संस्थागत आवश्यकता है - निजी स्कूलों में नहीं चल रहा था। इन वर्गों के लिए कम से कम 25 प्रतिशत सीटें आरक्षित थीं लेकिन इन तबकोन के लिए  दाखिले में कमी न्यूनतम 13 प्रतिशत से 56 प्रतिशत तक है। ध्यान दें कि राज्य के राजकोष से इन छात्रों के लिए प्रवेश के लिए प्रति स्कूल 7,650 (प्राथमिक) प्रति वर्ष और 12,050 (अपर प्राथमिक) प्रति वर्ष भुगतान कर रहे हैं ।

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जाहिर है, छत्तीसगढ़ में रमन सिंह की अगुआई वाली बीजेपी सरकार तीन बार जनादेश प्राप्त करने के बावजूद राज्य में एक मज़बूत, सर्व समावेशी प्राथमिक शिक्षा प्रणाली बनाने में काफी लापरवाह रही है। ऐसा लगता है कि राज्य के लोगों और उनके बच्चों को विनाशकारी परिणामों के साथ निजी क्षेत्र के खर्च को प्रोत्साहित करने के लिए सरकारी व्यय को कम करने के नव उदारवादी सिद्धांत को लागु किया जा रहा प्रतीत होता है। वंचित वर्गों के बच्चों को इन नीतियों की गर्माहट को झेलना पड़ रहा है।

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