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देश में लापता होते हज़ारों बच्चे, लड़कियों की संख्या लड़कों की तुलना में 5 गुना तक अधिक: रिपोर्ट

ये उन लापता बच्चों की जानकारी है जो रिपोर्ट हो पाई हैं। ज़्यादातर मामलों को तो पुलिस मानती ही नहीं, उनके मामले दर्ज करना और उनकी जाँच करना तो दूर की बात है। कुल मिलाकर देखें तो जिन परिवारों के बच्चे लापता होते हैं उन्हें सबसे ज़्यादा सरकार और प्रशासन से निराशा होती है।
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'प्रतीकात्मक फ़ोटो'

बच्चों के अधिकारों पर काम करने वाले एक गैर सरकारी संगठन की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर भारत के चार प्रमुख राज्यों- मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में बच्चों के लापता होने के मामले में काफी वृद्धि हुई है। 2021 में मध्य प्रदेश और राजस्थान में लापता लड़कियों की संख्या लड़कों की तुलना में पांच गुना अधिक है। घरेलू हिंसा, दुर्व्यवहार और उपेक्षा के कारण लड़कियां खुद भाग जाती हैं। इनमें से अधिकतर लड़कियां घरेलू नौकर या फिर व्यवसायिक यौन शोषण के धंधे में लगा दी जाती हैं। 

‘चाइल्ड राइट्स एंड यू’ (क्राइ) नाम के इस संगठन की ‘स्टेटस रिपोर्ट ऑन मिसिंग चिल्ड्रेन’ में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश के 58 जिलों में प्रतिदिन औसतन आठ बच्चे– छह लड़कियां और दो लड़के-लापता हुए हैं। वहीं दिल्ली के आठ पुलिस जिलों में 2021 में कुल 1,641 बच्चे लापता हुए यानी रोजाना औसतन पांच बच्चे लापता हुए। दिल्ली में लापता हुए बच्चों में से करीब 85 प्रतिशत बच्चे 12-18 वर्ष की आयु के थे। 
रिपोर्ट कहती है कि मध्य प्रदेश से प्रतिदिन औसतन 24 लड़कियां और पांच लड़कों समेत 29 बच्चे लापता हुए हैं। जबकि राजस्थान में कुल 5,354 बच्चे (4,468 लड़कियां और 886 लड़के) लापता हुए। रिपोर्ट के मुताबिक राजस्थान में हर दिन औसतन 12 लड़कियों और दो लड़कों समेत 14 बच्चे लापता हुए।
बता दें कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के 2020 के आंकड़ों के मुताबिक, मध्य प्रदेश में लापता बच्चों के 8,751 और राजस्थान में 3,179 मामले दर्ज किए गए। क्राइ के साझेदार संगठनों की ओर से सूचना का अधिकार कानून (आरटीआई) के तहत दायर आवेदनों के जवाब में सरकारों ने बताया कि 2021 में मध्य प्रदेश में बच्चों के गुम होने के 10,648 और राजस्थान में 5,354 मामले दर्ज किए गए हैं। ये आंकड़े 2020 की तुलना में मध्य प्रदेश में लापता बच्चों के मामलों में लगभग 26 प्रतिशत की वृद्धि और राजस्थान में 41 फीसदी की बढ़ोतरी का संकेत देते हैं।

क्या है पूरा मामला?

देशभर में साल दर साल गुमशुदा बच्चों की संख्या का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा है। लापता बच्चों को लेकर लंबे समय से चिंता भी जताई जा रही है। लेकिन हर साल ये चिंता गायब हुए बच्चों के आंकड़े के साथ ही सामने आती है और फिर कुछ समय बाद ठंड़े बस्ते में चली जाती है।

अलग- अलग आरटीआई आवेदनों के माध्यम से एकत्र किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि मध्य प्रदेश में लापता बच्चों की संख्या के मामले में शीर्ष पांच जिलों में इंदौर, भोपाल, धार, जबलपुर और रीवा शामिल हैं। उत्तर प्रदेश में लापता बच्चों की संख्या के मामले में शीर्ष पांच जिलों में लखनऊ, मुरादाबाद, कानपुर नगर, मेरठ और महराजगंज शामिल हैं। दिल्ली के इलाके देखें तो उपलब्ध कराए गए रिकॉर्ड के अनुसार, दिल्ली में 2021 में सबसे ज्यादा बच्चे उत्तर पूर्वी जिले में गुम हुए है, जबकि दक्षिण पूर्व जिले में सबसे कम लापता हुए।

यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि उत्तर प्रदेश के केवल 58 जिलों ने आंकड़े उपलब्ध कराए हैं। इसी तरह, दिल्ली में सभी पुलिस जिलों ने आंकड़े मुहैया नहीं कराए गए। वहीं, हरियाणा ने आरटीआई के तहत दायर आवेदनों का जवाब नहीं दिया। समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि देशभर में लापता बच्चों की कुल संख्या में बालिकाओं का अनुपात 2016 में लगभग 65 प्रतिशत था, जो बढ़कर 2020 में 77 प्रतिशत हो गया।

मध्य प्रदेश और राजस्थान दो ऐसे राज्य हैं, जहां लापता बच्चों की कुल संख्या में बालिकाओं का अनुपात सबसे अधिक है। मध्य प्रदेश और राजस्थान में, 2021 में लापता हुए बच्चों में 83 प्रतिशत से अधिक लड़कियां थीं।

गंभीर चिंता का विषय है लापता बच्चों में लड़कियों की संख्या अधिक होना

क्राइ (उत्तर) की क्षेत्रीय निदेशक सोहा मोइत्रा ने कहा कि यह गंभीर चिंता का विषय है कि पिछले पांच वर्षों से लापता बच्चों में लड़कियों की संख्या अधिक है। उन्होंने बताया कि मध्य प्रदेश और राजस्थान में 2021 में लापता हुए बच्चों में 83 फीसदी से ज्यादा लड़कियां थीं। मध्य प्रदेश में पिछले साल 8,876 लड़कियों और राजस्थान में 4,468 लड़कियों के लापता होने के मामले दर्ज किए गए थे।

मोइत्रा ने कहा, ‘इस स्थिति रिपोर्ट में किए गए एनसीआरबी डेटा के गहन विश्लेषण से यह भी पता चलता है कि अखिल भारतीय स्तर पर लापता बच्चों की कुल संख्या में बालिकाओं का अनुपात 2016में लगभग 65 फीसद था, जो बढ़कर 2020 में 77 प्रतिशत हो गया है। सभी चार राज्यों में यही चलन रहा है, सभी लापता बच्चों में मध्य प्रदेश और राजस्थान में लड़कियों का अनुपात सबसे अधिक है।’

मोइत्रा के मुताबिक लापता लड़कों की संख्या भी गंभीर चिंता का विषय है, क्योंकि कोविड-19 महामारी के दौरान असंगठित क्षेत्र में सस्ते श्रम की कमी के कारण बाल श्रम की मांग बढ़ गई है, जिस कारण अधिकतर बच्चे बंधुआ मजदूरी की ओर धकेले जा रहे हैं।

शासन-प्रशासन की प्राथमिकता से गायब गुमशुदा बच्चों का मुद्दा

गौरतलब है कि ये उन लापता बच्चों की जानकारी है जो रिपोर्ट हो पाई हैं। जानकारों की मानें तो इन लापता बच्चों में से ज़्यादातर मामलों को तो पुलिस मानती ही नहीं, उनके मामले दर्ज करना और उनकी जांच करना तो दूर की बात है। कुल मिलाकर देखें तो जिन परिवारों के बच्चे लापता होते हैं उन्हें सबसे ज़्यादा सरकार और प्रशासन से निराशा होती है।

मालूम हो कि इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकारों को कई मौकों पर फटकारा है और इस समस्या पर नियंत्रण के लिए तंत्र बनाने का निर्देश भी दिया है। लेकिन ऐसा लगता है कि सरकारों की प्राथमिकता सूची में यह समस्या कोई महत्व नहीं रखती। बचपन बचाओ आंदोलन संगठन की याचिका पर 10 मई 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला दिया था कि हर बच्चे के ग़ायब होने पर एफ़आईआर दर्ज होनी चाहिए और हर थाने में एक विशेष जुवेनाइल पुलिस अधिकारी होना भी जरूरी है लेकिन आज भी इस आदेश का पूर्णत: पालन नहीं होता दिखाई देता है।

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