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चीन ने मध्य एशिया में अमेरिकी ठिकानों की नाकेबंदी की

यह जानते हुए कि बाइडेन इस मुद्दे को लेकर कितना संवेदनशील हो सकते हैं, मॉस्को फिलहाल मुखर होना मुनासिब नहीं समझेगा।
दुर्गम और ख़तरनाक़ इलाक़े से गुज़रती 1300 किलोमीटर लंबी ताजिक-अफ़ग़ान सीमा और नशीले पदार्थों के लाने-ले जाने का एक अहम क्षेत्र (फ़ाइल फ़ोटो)
दुर्गम और ख़तरनाक़ इलाक़े से गुज़रती 1300 किलोमीटर लंबी ताजिक-अफ़ग़ान सीमा और नशीले पदार्थों के लाने-ले जाने का एक अहम क्षेत्र (फ़ाइल फ़ोटो)

चीन और पांच मध्य एशियाई देशों के विदेश मंत्रियों की पहली बैठक के दस महीने बाद बीजिंग ने 11 मई को चीन के शीआन में विदेश मंत्री वांग यी की तरफ़ से आयोजित सभा के दूसरे सत्र को पूरा कर लिया है।

यह स्थल ऐतिहासिक तौर पर प्रतीकात्मक है। शीआन का यह पुराना शहर कभी सिल्क रोड का 'आरंभिक बिन्दु' हुआ करता था। और इसके लिए जो समय चुना गया गया, शायद यह भी प्रतीकात्मक था क्योंकि यह तारीख़ उस 'शंघाई फ़ाइव' प्रक्रिया की 25 वीं वर्षगांठ भी है, जहां चीन ने चुपचाप, लेकिन नियमित रूप से मध्य एशिया के साथ अपने आर्थिक, सैन्य और राजनयिक रिश्तों को गांठना शुरू कर दिया था और ख़ुद को व्यवहारिक भागीदार के तौर पर प्रस्तुत किया। 

शीआन की यह बैठक एक ऐतिहासिक घटना इसलिए है क्योंकि यह नये-नये वजूद में आये ‘C+C5’ ढांचे के लिए 'संस्थागत गारंटी' की गुंज़ाइश बनाती है। इसमें शामिल होने वाले देशों ने एक क्षेत्रीय सहयोग तंत्र स्थापित करने, बेल्ट एंड रोड के उच्च गुणवत्ता वाले निर्माण को बढ़ावा देने और सहयोग के लिहाज़ से तीन अनुसंधान केंद्र स्थापित करने को लेकर एक समझौता ज्ञापन पर सहमति जतायी है।

एक प्राचीन चीनी कहावत है कि 'एक हज़ार चीनी माइल(ली) का सफ़र किसी एक के पैरों के नीचे से ही शुरू होता है। शंघाई सहयोग संगठन में शंघाई फ़ाइव प्रक्रिया के रूप में विकसित होने के बावजूद C+C5 का भी परवान चढ़ना तय लगता है।

चीन, कज़ाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस और ताजिकिस्तान से बने शंघाई फ़ाइव की 1996 में हुई शुरुआत भी मामूली ही थी, क्योंकि इसकी शुरुआत चीन की सीमा से लगे चार पूर्व सोवियत गणराज्यों के सीमांकन और चीन के साथ विसैन्यीकरण वार्ता की एक श्रृंखला से ही हुई थी। C+C5 का संस्थागतकरण भी क्षेत्रीय सुरक्षा के लिहाज़ से एक अहम मोड़ का प्रतीक है क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी उन अटकलों के बीच हो रही है कि पेंटागन मध्य एशियाई देशों में ठिकाने बनाने की सुविधाओं की तलाश कर रहा है।

दिलचस्प बात यह है कि इस बड़े खेल का आभास भी होने लगा है। शीआन की यह बैठक (वर्चुअल स्वरूप में चलने वाली) ‘C5+1’ के प्रारूप में इसी तरह की बैठक के अठारह दिनों के भीतर हुई है, जिसमें अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने भी हिस्सा लिया है।

एशिया के अंदरुनी देश जादुई आत्माओं और बौद्ध देवताओं के लिए मशहूर रहा है। यह साफ़ नहीं है कि ब्लिंकन को इसका फ़ायदा मिला या नहीं।

गुरुवार को सरकारी अख़बार-चाइना डेली के एक संपादकीय में C+C5 से जुड़ी बीजिंग की इस कूटनीतिक पहल को बेहद अहमियत दी गयी है। बताया गया है कि C+C5 की कार्य-प्रणाली "एक ऐसी कार्य योजना की रूपरेखा तैयार करती है, जो उनके सहयोग के लिए एक मजबूत संस्थागत गारंटी प्रदान करती है।" 

इस संपादकीय में आगे कहा गया है, "सामान्य विकास को आगे बढ़ाने की अपनी साझी आकांक्षा को ठोस परियोजनाओं और कार्यों में बदलते हुए वे C+C5 क्षेत्रीय सहयोग तंत्र स्थापित करने, बेल्ट एंड रोड के उच्च गुणवत्ता वाले निर्माण को बढ़ावा देने और आधुनिक कृषि, पुरातात्विक और सांस्कृतिक विरासत और पारंपरिक चिकित्सा में सहयोग करने के लिए तीन अनुसंधान केंद्र स्थापित करने पर सहमत हुए हैं।”

इससे भी अहम बात, जो इस संपादकीय में कहा गया है कि इस C+C5 बैठक ने "रणनीतिक आपसी विश्वास को मज़बूती दी है, और चीन ने मध्य एशिया समुदाय के साथ एक साझे भविष्य के लिए ठोस प्रयास करने पर सहमति जता दी है... (और) क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता को बढ़ावा देने और अंतर्राष्ट्रीय न्याय की रक्षा के लिए मिलकर काम करने का संकल्प जताया है।"

इस संपादकीय में इन देशों के बीच हुई चर्चाओं के बाद जारी एक संयुक्त बयान पर प्रकाश डालते हुए लिखा गया है, "अफ़ग़ानिस्तान में शांतिपूर्ण सुलह को बढ़ावा देने के उनके संयुक्त प्रयासों के सिलसिले में यह दिखता है कि ये छह देश समग्र रूप से एक बड़ी भूमिका निभायेंगे... कि ये देश C+C5 विदेश मंत्रियों की एक नियमित बैठक तंत्र स्थापित करने को लेकर भी सहमत हो गये हैं, जो इस बात का संकेत है कि वे क्षेत्रीय एकता और समन्वय की अहमियत से अच्छी तरह वाक़िफ़ हैं।

बीजिंग की मंशा दो स्तरों पर दिखती है: "इस बात का साफ़ संदेश देना कि अपने आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप, और कोई भी ऐसी कार्रवाई, जो उनके अहम विकास हितों को ख़तरे में डालती है, वे (C+C5) इसके विरोध में एक साथ खड़े हैं"; और, उन्होंने ज़ोर देकर कहा है कि "उनकी आम धारणा है कि मध्य एशिया न तो किसी शक्ति का एक रंग क्रांति का एक मंच है और न ही ऐसी जगह है, जहां कोई भी ताक़त कलह के बीज बोने की कोई कोशिश करे।" 

विदेश मंत्री, वांग ने ज़ोर देकर कहा कि उज़्बेकिस्तान और ताजिकिस्तान सहित अफ़ग़ानिस्तान के पड़ोसी देशों के लिए ज़रूरी है कि वे "समय पर ढंग से अपनी स्थिति का समन्वय करें, एक स्वर में बोलें, और कठिनाइयों को दूर करने और आगे बढ़ने के लिए अफ़ग़ान की घरेलू शांति प्रक्रिया का पूरा समर्थन करें।"

इसी तरह, ग्लोबल टाइम्स ने अपनी एक टिप्पणी में बीजिंग की चिंताओं पर विस्तार से रौशनी डालते हुए लिखा है कि अमेरिकी वापसी "अराजक परिस्थितियां पैदा कर सकती है और यह क्षेत्र "तीन बुराइयों"-आतंकवाद, अलगाववाद और धार्मिक अतिवाद का खुराक स्थल बन सकता है।

इस टिप्पणी में जानकारों की राय का हवाला देते हुए कहा गया है कि रूस और चीन के अलावा, मध्य एशियाई देश भी "अपनी ज़मीन पर अमेरिकी सैनिकों की तैनाती की मेज़बानी नहीं करना" चाहेंगे, क्योंकि अमेरिकी राजनीतिक और खुफ़िया गतिविधियों में बढ़ोत्तरी और स्थानीय विपक्षी दलों, ग़ैर सरकारी संगठनों और मीडिया समूहों के साथ भागीदारी से यह पूरी परिस्थिति रंग क्रांति की ओर जा सकती है।हालांकि, "आम तौर पर इस इलाक़े में अमेरिकी सैनिकों का बहुत स्वागत नहीं होगा।"

इसके अलावा, चीनी विशेषज्ञ इस बात से भी चिंतित हैं कि अमेरिका की जल्दबाज़ी से अफ़ग़ान शांति प्रक्रिया रुक भी सकती है और गृहयुद्ध की स्थिति पैदा हो सकती है, जबकि अमेरिका ने इस क्षेत्र को 'तीन बुराइयों' और अफ़ीम की खेती के लिए एक 'ऊर्वर स्थल' बनने दिया है- "और अब वाशिंगटन इस गड़बड़ी को क्षेत्रीय देशों के हवाले कर देना चाहता है।

शीआन की इस बैठक में वांग ने अफ़ग़ान शांति प्रक्रिया पर चीन के रुख़ को लेकर विस्तार से बताया है। इसके तीन प्रमुख तत्व हैं: सभी जातीय समूहों और दलों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए समावेशी राजनीतिक व्यवस्था की ज़रूरत; पश्चिमी शैली के लोकतंत्र का अनुकरण करने के बजाय एक ऐसे संविधान का मसौदा तैयार करना, जो अफ़ग़ानिस्तान की अनूठी राष्ट्रीय परिस्थितियों और विकास की ज़रूरतों के अनुरूप हो;और, देश की विचारधारा "उदारवादी मुस्लिम नीति" हो।  

बीजिंग का दावा है कि उसका और रूस का नज़रिया एक दूसरे के पूरक हैं - "रूस सुरक्षा को लेकर ज़्यादा परवाह करता है, और चीन के पास आर्थिक क्षमता है।" अब, सवाल उठता है कि क्या SCO(शंघाई सहयोग संगठन) इस उद्देश्य की पूर्ति नहीं करता ? एक कारण तो यह हो सकता है कि इसमें बतौर सदस्य भारत और पाकिस्तान के शामिल होने के बाद एससीओ अब पहले जैसा नहीं रहा।

निश्चित रूप से रूस की नज़र पहले से ही अमेरिकी राष्ट्रपति, जो बाइडन के साथ आगामी शिखर सम्मेलन पर है, वह अमेरिका के कमज़ोर नसों पर हाथ रखने की तैयारी में है। इससे शायद बीजिंग के कंधों पर ज़बरदस्त ज़िम्मेदारी आन पड़ती है। सीसीपी ऑर्गन पीपल्स डेली में 14 मई को एक विशेष ओप-एड का शीर्षक था- अफ़ग़ान मुद्दों से अमेरिका दूर नहीं भाग सकता। इसके आख़िर में कहा गया है, 

“इस समय अमेरिका अफ़ग़ान मुद्दों का सबसे बड़ा बाहरी कारक है। व्हाइट हाउस अपनी ज़िम्मेदारियों से नहीं बच सकता और इन सब से दूर भी नहीं भाग सकता। इसकी वापसी को व्यवस्थित और ज़िम्मेदार तरीक़े से लागू किया जाना चाहिए, और इसका मक़सद इस देश में हिंसा को और बढ़ने से रोकना और आतंकवादी ताक़तों को उग्र होने और परेशानी पैदा करने से रोकना है। यह अफ़ग़ान की आंतरिक वार्ता के लिए एक अनुकूल बाहरी माहौल तैयार करेगा, न कि इसके उलट।”

सचमुच यह जानते हुए कि बाइडेन इस मुद्दे को लेकर कितना संवेदनशील हो सकते हैं, मास्को इस मोड़ पर बहुत मुखर होना मुनासिब नहीं समझेगा।

दरअसल, अमेरिकी सैनिकों ने अफ़ग़ान अधिकारियों को बिना बताये 11-12 मई की रात में अंधेरे की आड़ लेकर बड़े पैमाने पर कंधार हवाई ठिकानों को ख़ाली कर दिया है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

China Blocks US Bases in Central Asia

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