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नागरिकता का प्रश्न बंगाल की राजनैतिक बहस पर हावी!

इस बात पर गौर किया जाना चाहिए कि हाल के विधानसभा उप-चुनावों में भगवा पार्टी को हार का मुहँ देखना पड़ा है, जिसमें खड़गपुर भी शामिल है जहाँ पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने लोकसभा सदस्य बनने से पूर्व जीत हासिल की थी।
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चित्र साभार: फर्स्टपोस्ट

कोलकाता: इस बात को कहा जा सकता है कि नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 (CAB) और केंद्र द्वारा राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) पर जोर देने पर जो विरोध केन्द्रित होता जा रहा है, वह पश्चिम बंगाल के अप्रैल 2021 के विधानसभा चुनावों के दौरान और अधिक परिभाषित होने जा रहा है।

लेकिन इससे पहले अप्रैल 2020 में कोलकाता में नगर निगम के चुनाव होने जा रहे हैं। इस बात की उम्मीद है कि ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस और वाम-कांग्रेस गठबंधन इस अवसर का उपयोग केंद्र के इस जुड़वा अभियान के खिलाफ जनता की राय को गोलबंद करने के लिए करेंगी।

वहीँ दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी के लिए कोलकता नगर निगम चुनाव, सीएए-एनआरसी पर ली गई उसकी पहल के पक्ष में जन गोलबंदी को संगठित करने का सुअवसर होगा। यह बात ध्यान में रखी जानी चाहिए कि भगवा पार्टी को हाल में सम्पन्न हुए विधानसभा उप-चुनावों की सीटों पर हार का सामना करना पड़ा है। इसमें खड़गपुर की वह सीट भी शामिल है, जहां पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने लोकसभा सदस्य बनने से पहले जीत हासिल की थी।

बीजेपी के वरिष्ठ नेता समिक भट्टाचार्य के अनुसार उनकी पार्टी मतदाताओं को इस बात को समझाने में सफल रहेगी कि पश्चिम बंगाल जैसे सीमावर्ती राज्य में वे कौन से उपाय होंगे जिससे अवैध घुसपैठ को रोका जा सके, जहाँ काफी पहले से इस मुद्दे ने गंभीर स्थिति ग्रहण कर ली है।

उपलब्ध संकेतों के अनुसार ऐसा भी महसूस हो रहा है कि आल इंडिया मजलिस-ऐ-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के असदुद्दीन ओवैसी, जो लोकसभा में हैदराबाद का प्रतिनिधित्व करते हैं ने 2021के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर कई एआईएमआईएम उम्मीदवारों को चुनावी मुकाबले में खड़ा करने को लेकर गंभीरता से विचार कर रहे हैं जहाँ पर मुस्लिम सघनता अच्छी खासी संख्या में मौजूद है। इसके पीछे की मुख्य वजह पार्टी को अक्टूबर में संपन्न हुए उप-चुनाव में मिली सफलता है, जिसने उसके हौसले बुलंद कर रखे हैं। जो उसे बिहार के किशनगंज से प्राप्त हुई है, जिसकी सीमा पश्चिम बंगाल से जुड़ी है।

हालाँकि एआईएमआईएम के समर्थकों और उससे सहानुभूति रखने वालों की संख्या कम है लेकिन नागरिकता संसोधन के खिलाफ चल रहे आँदोलनों में उनकी हिस्सेदारी है। हाल के सप्ताहों में कूच बिहार में कुछ पोस्टर भी नजर आये “और इंतज़ार नहीं”, जिसका अर्थ है यह समय है कूद पड़ने का।

इस बात की संभावना है कि निकट भविष्य में ओवैसी कोलकता में एक रैली को संबोधित करें, जिसमें एआईएमआईएम के पश्चिम बंगाल की राजनीति में आग़ाज की घोषणा की जाये। यहाँ इस बात के उल्लेख की आवश्यकता है कि ममता और ओवैसी के बीच पहले दौर का वाक्-युद्ध संपन्न हो चुका है, हालांकि यह कम अवधि का रहा। मुख्यमंत्री ने बिना उनकी पार्टी और उनका बिना नाम लिए कहा कि कुछ लोग हैदराबाद से पैसे लाकर मुसलमानों को आश्वस्त कर रहे हैं कि वे उनके हक़ों की लड़ाई लड़ेंगे। इस पर ओवैसी ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुये कहा है कि पश्चिम बंगाल सरकार को खैरात बाँटने वाली राजनीति में मशगूल होने के बजाय, अल्पसंख्यक समुदाय के सशक्तीकरण के लिए काम करना चाहिए। उन्होंने ममता को याद दिलाया कि उनकी ही देख-रेख में ही बीजेपी ने 18 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की है।

सूत्रों ने न्यूज़क्लिक को बताया कि इस बात पर कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए यदि आने वाले दिनों में ओवैसी को हुगली जिले के फुरफुरा शरीफ मुस्लिम धार्मिक स्थल के मशहूर मुस्लिम धर्मगुरु पीरजादा टवाहा सिद्दीकी का समर्थन हासिल करने में सफलता मिल जाये। इस क्षेत्र में सिद्दीकी को मानने वालों की संख्या अच्छी-खासी है।

सक्षेप में कहें तो इस स्थिति में एआईएमआईएम के पश्चिम बंगाल के राजनीतिक परिदृश्य में उदय और उसके 2021विधान सभा चुनावों में हिस्सा लेने के फैसले से टीएमसी के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है क्योंकि मुस्लिम मतों में विभाजन हो सकता है।

टीएमसी और वाम-कांग्रेस गठबंधन दोनों ही सीएबी-एनआरसी का विरोध कर रहे हैं। लेकिन जरुरी नहीं कि इसका मतलब यह हो कि इसके चलते लेफ्ट-कांग्रेस गठबंधन अपने टीएमसी के विरोध को छोड़ दे। यह सच है कि हाल ही में हुए तीनों विधानसभा उपचुनावों में टीएमसी भारी अंतर से जीती है। लेकिन यह भी सच है कि बनर्जी और उनकी पार्टी के नेताओं ने बीजेपी और अन्य विपक्षी पार्टियों के खिलाफ बयानबाजी में संयम का परिचय दिखाया है। इस बदलाव के पीछे की वजहों के बारे में आम धारणा यह है कि यह सब चुनावी रणनीतिकार और इमेज बदलाव के विशेषज्ञ प्रशांत किशोर के नियमित काउंसिलिंग का असर है।

लेकिन ममता द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के खिलाफ व्यक्तिगत हमलों को रोकने के पीछे की वजह उनकी इन दोनों के साथ सितम्बर में हुई बैठक को माना जा रहा है। राजनीतिक हलकों में इसकी व्याख्या दोनों पक्षों के बीच राजनीतिक लेन-देन के संकेत के रूप में की जा रही है। ममता की मज़बूरी के बारे में बताया जा रहा है कि इसके पीछे सारदा चिट फण्ड घोटाले और नारदा स्टिंग ऑपरेशन की भूमिका है, जिसमें उनके भतीजे सहित कई पार्टी नेता शामिल हैं।

इसी कारण से उन्हें अपने वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी राजीव कुमार को बचाना भी जरुरी है, जो विभिन्न पदों पर रहते हुए इन मामलों को निपटा रहे थे, और इस स्थिति में हैं कि जांच एजेंसियों को कई महत्वपूर्ण सूचनाएं दे सकते हैं। व्यापक रूप से यह माना जा रहा है कि ममता के आग्रह के चलते ही राजीव कुमार जांच एजेंसियों के साथ सहयोग नहीं कर रहे हैं।

इस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के वरिष्ठ नेता और पूर्व साँसद, मोहम्मद सलीम ने न्यूज़क्लिक को बताया, “लोग ममता के सीएबी-एनआरसी विरोध के झांसे में नहीं आने वाले हैं। उन्हें पता है कि टीएमसी पूर्व में राष्ट्रीय लोकतान्त्रिक गठबंधन का हिस्सा रही है, और वाजपेयी मंत्रिमंडल में ममता उसकी सदस्य थीं। अगर अब वे बढ़-चढ़ कर व्यक्तिगत हमले करने से खुद को रोक रही हैं, जैसा कि वे दोनों नेताओं से अपनी मुलाक़ात से पहले किया करती थीं, तो अवश्य ही इसके पीछे कोई न कोई सौदेबाजी हुई है। किसी भी स्थिति में उनके लिए विचारधारा के लिए कोई जगह नहीं रही है।”

रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी के केंद्रीय सचिवालय के सदस्य और यूनाइटेड ट्रेड यूनियन कांग्रेस के महासचिव अशोक घोष ने कहा, “यदि ममता बनर्जी सच में ईमानदार हैं, तो उन्हें एक सर्व-दलीय बैठक का आयोजन कर इन दोनों मुद्दों पर टीएमसी के नजरिये को संसद और जनता के बीच स्पष्ट करना चाहिए। नागरिकता (संशोधन) विधेयक पर लोक सभा में मतदान के दौरान कई टीएमसी सदस्य, जिसमें फ़िल्मी हस्तियाँ भी शामिल थीं, ने मतदान प्रक्रिया में हिस्सा नहीं लिया। ना ही ममता और न ही पार्टी के किसी वरिष्ठ नेता ने उनकी अनुपस्थिति पर स्थिति स्पष्ट की है। यदि सभी 24 टीएमसी सदस्यों ने मतदान में हिस्सा लिया होता तो विपक्षी दलों की कुल गणना कहीं अधिक होती। उनकी अनुपस्थिति ही, इस व्याख्या को अर्थ देने का काम कर रही है।”

पश्चिम बंगाल कांग्रेस कमेटी के महासचिव अमिताभ चक्रवर्ती ने कहा “ममता का विरोध किसी विचारधारा की पैदाइश है, यह अपनेआप में संदेहास्पद है। वह अपने उद्देश्य के लिए गुटों की अदलाबदली करने में माहिर हैं। उनका पिछला राजनीतिक रिकॉर्ड इसका गवाह है।”

आगे जोड़ते हुए उन्होंने कहा कि लोक सभा में कई टीएमसी सदस्यों की अनुपस्थिति के प्रश्न पर पर वे घोष के कथन से सहमत हैं।

वाम मोर्चा इस बात को लेकर उत्साहित है कि उसके हालिया लॉन्ग मार्च में भारी संख्या में भागीदारी दर्ज हुई है, जिसे केंद्र सरकार की जन-विरोधी नीतियों के साथ-साथ सार्वजनिक क्षेत्र के निगमों के विनिवेश के खिलाफ आयोजित किया गया था। पार्टी ने कई बैठकों की एक पूरी फेहरिस्त तैयार की है जिसमें आम लोगों को इस बात से अवगत कराया जायेगा की किस प्रकार से मोदी सरकार ने असंवैधानिक कानून को अमली जामा पहनाया है और नागरिकता के प्रश्न पर धर्म का जबर्दस्त दुरूपयोग किया है। वाम मोर्चे के साथ हाथ मिलाने के अलावा कांग्रेस अपने स्तर पर उन क्षेत्रों में सभाएं आयोजित करेगी, जहाँ जहाँ उसकी उपस्थिति अपेक्षाकृत मजबूत है।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Citizenship Dominates Bengal’s Political Discourse, Owaisi’s Party May Split Muslim Votes

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