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डीयू: सफाई कर्मचारियों को हटाए जाने के ख़िलाफ़ छात्रों और कर्मचारियों का प्रदर्शन

इन सफाई कर्मचारियों को पिछले 1 अगस्त को नौकरी से निकाल दिया गया था। इसके बाद से ही ये लोग लगातार धरना और प्रदर्शन कर रहे हैं।
DU safai karamchari

दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के नॉर्थ कैम्पस में आर्ट्स फ़ैकल्टी पर डीयू के नॉर्थ-ईस्ट हाउस फॉर विमेन के सफाई कर्मचारियों ने विरोध प्रदर्शन किया। इस सफाई कर्मचारियों को पिछले 1 अगस्त को नौकरी से निकाल दिया गया था। इसके बाद से इनके सामने रोजी रोटी का गंभीर संकट खड़ा हो गया है। निकाले जाने के बाद से ही सफाई कर्मचारी लगातार विरोध प्रदर्शन और धरना दे रहे हैं। इसके बावजूद विश्वविद्यालय और हॉस्टल प्रशासन का रवैया उदासीन बना हुआ है।

बुधवार यानि 7 अगस्त को आयोजित इस प्रदर्शन में क्रांतिकारी युवा संगठन (केवाईएस), स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ़ इंडिया (एसएफआई), आल इण्डिया स्टूडेंट एसोशिएशन (आइसा), परिवर्तनगमी छात्र संगठन (पछास) समेत अन्य छात्र संगठनों ने भी अपनी एकजुटता जाहिर की और इस प्रदर्शन में शमिल हुए।

क्या है पूरा मामला?

कर्मचारियों का कहना है कि दिल्ली विश्वविद्यालय के 6 सफाई कर्मचारियों को गैरकानूनी तौर से, बिना किसी सूचना दिए नौकरी से निकाला गया है। यह कर्मचारी 2002 से विश्वविद्यालय में काम कर रहे थे। इससे पहले निकाले गए कर्मचारियों ने अपने कार्यस्थल पर प्रदर्शन किया था। बाद में उन्हें आर्ट्स फैकल्टी में प्रदर्शन के लिए मजबूर होना पड़ा।

कर्मचारियों का कहना है कि विश्वविद्यालय प्रशासन 'मुख्य नियोक्ता' होने के बावजूद उनकी मांगों की सुनवाई के लिए तैयार नहीं है। प्रशासन इसे मज़दूर-ठेकेदार का 'आपसी मामला' बता कर अपनी जिम्मेदारी से पीछे हट रहा है, जबकि कर्मचारी दिल्ली विश्वविद्यालय के हॉस्टल में पिछले 10-15 सालों से काम कर रहे थे। मगर, डीयू ने यह कभी सुनिश्चित करने की कोशिश नहीं की कि कर्मचारियों की कार्य-स्थिति कैसी है, उल्टे अब उन्हें नौकरी से ही निकाल दिया गया है।

कर्मचारियों ने बताया कि दिसम्बर 2018 में उनके मासिक वेतन को 15,070 रुपये से घटाकर 13,350 रुपये किया गया था। पिछले डेढ़ साल से उन्हें बोनस और सरकारी छुट्टियां नहीं दी जा रही थी और केवल 2012-2014 के बीच उन्हें ईएसआई/पीएफ दिया गया था। 

प्रदर्शनकारियों का कहना है कि निकाले गए कर्मचारियों में ज्यादातर महिलाएं हैं, जो समाज में पहले से ही हाशिए पर हैं। उन्हें कार्यस्थल पर भी जातिवादी गालियां सहना पड़ता है और गैरकानूनी तरीके से हास्टल प्रोहोस्ट के घर पर काम करवाया गया है।

प्रदर्शन कर रहे छात्र संगठनों ने कहा कि डीयू प्रशासन इस बात को पूरी तरह से जानबूझकर नजरअंदाज करता रहा, जिससे यह साफ पता चलता है कि वो मजदूरों के हक भी नहीं सुनिश्चित करता था।

वैसे ये कोई पहला मामला नहीं है, इससे पहले भी डीयू सैकड़ों कर्मचारियों को निकाल चुका है। 

पिछले ठेकेदार का कांट्रैक्ट खत्म किए जाने से अब इन मजदूरों की नौकरी चली गयी है। ज्ञात हो कि इससे पहले यह कर्मचारी नरेंद्र एंटरप्राइज़ेस द्वारा सफाई के काम के लिए अनुबंधित किए गए थे।

नए ठेकेदार नेक्स जेन मैनपावर कंपनी को लाए जाने से इन सफाई कर्मचारियों को काम से निकाला गया है। पिछले जून में दिल्ली विश्वविद्यालय के सैकड़ों सफाई कर्मियों को भी इस कंपनी को ठेका दिए जाने के कारण काम से निकाला गया था। दोनों ही बार पुराने ठेकेदारों द्वारा ईएसआई/पीएफ भुगतान ना किए जाने के बहाने से पुराने कर्मचारियों को निकाला गया है।

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इसी तरह आम्बेडकर विश्वविद्यालय में भी उसी समय लगभग 60 सफाई कर्मचारियों को 'अस्थायी' कर्मचारी बता कर निकाला गया था जब कि हर बार ऐसे लोगों को निकाला गया है जो 10-15 साल से कार्यरत रह चुके हैं, जुझारू मज़दूरों और छात्रों के संघर्ष से इन दोनों हादसों में प्रशासन निकाले गए कर्मचारियों को वापस लेने पे मजबूर हुई थी।

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प्रदर्शन कर रहे छात्र संगठनों ने कहा कि सफाई का काम स्थायी प्रवित्ति का होने के बावजूद डीयू में लगातार सफाई के काम में ठेकेदारी को लाया गया, जो साफ-साफ भारतीय क़ानूनों का उल्लंघन है। इस साल मई में भी सैकड़ों सफाई कर्मचारियों को नौकरी से निकाला गया था। डीयू, जो कि मुख्य नियोक्ता है, उसको यह सुनिश्चित करना चाहिए था कि जो लोग पहले से कार्यरत थे, उनको नयी कंपनी द्वारा काम पर रखा जाये। मगर डीयू और हॉस्टल प्रशासन ने अपनी इस ज़िम्मेदारी से पूरी तरह से पल्ला झाड़ लिया।

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आगे उन्होंने कहा कि इस पूरे मामले में डीयू की मिलीभगत दिखती है, क्योंकि मजदूरों के हक सुनिश्चित करना उसी की ज़िम्मेदारी है। कर्मचारियों ने अपनी खराब स्थिति के बावजूद अपना संघर्ष जारी रखा हुआ है, लेकिन डीयू प्रशासन का रवैया उदासीन है।

कर्मचारियों की मुख्य मांग है कि विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा सभी निकाले गए सफाई कर्मचारियों को तुरंत वापस काम पर रख लिया जाये और उन्हें 'रेगुलरआइज' किया जाये। साथ ही, न्यूनतम वेतन, ईएसआई/पीएफ, वार्षिक बोनस और सरकारी छुट्टियां हेतु अधिनियम लागू किया जाये। अगर यह नहीं हुआ तो प्रदर्शनकारियों ने कहा कि वो आने वाले दिनों में इसे लेकर मज़दूर और छात्र अपने संघर्ष को और तेज़ करेंगे।

 

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