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दिल्ली दंगों की ‘फ़ैक्ट-फ़ाइंडिंग रिपोर्ट’ : ग़लत जानकारियों से भरी रिपोर्ट जो अमित शाह को सौंपी गयी

NGO ‘न्याय की पुकार’ ने दिल्ली दंगों पर एक फ़ैक्ट-फ़ाइंडिंग रिपोर्ट अमित शाह को सौंपी. ये रिपोर्ट निराधार दावों से भरी है और इसमें शामिल कम-से-कम 5 ग़लत जानकारियों को पहले ही खारिज किया जा चुका है. पढ़िए #AltNewsFactCheck
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29 मई को गृहमंत्री अमित शाह ने दिल्ली के एक एनजीओ ‘कॉल फ़ॉर जस्टिस’ की दिल्ली दंगों की फ़ैक्ट-फ़ाइंडिंग रिपोर्ट स्वीकार की. टाइम्स नाउ और द प्रिंट समेत कई मीडिया संस्थानों ने इसे रिपोर्ट किया. जस्टिस अम्बादास जोशी (रिटायर्ड जज, बॉम्बे हाईकोर्ट) इस फ़ैक्ट-फ़ाइंडिंग कमिटी के अध्यक्ष थे. कमिटी में शामिल अन्य सदस्य थे – एमएल मीणा (रिटायर्ड आईएएस); विवेक दुबे (रिटायर्ड आईपीएस); डॉ. टीडी डोगरा (एम्स के पूर्व डायरेक्टर); नीरा मिश्रा (सामाजिक उद्यमी); नीरज अरोड़ा (वकील).

ऑल्ट न्यूज़ ने इस रिपोर्ट की समीक्षा की और पाया कि इसे ‘फ़ैक्ट-फ़ाइंडिंग’ रिपोर्ट तो कतई नहीं माना जा सकता. ऐसा इसलिए क्योंकि इस रिपोर्ट में झूठी जानकारियों की भरमार है. इसे इन केटेगरीज़ में रखा जा सकता है:

  1. फ़र्ज़ी ख़बर जिनका पहले ही फ़ैक्ट-चेक किया जा चुका है
  2. घटनाओं की भ्रामक क्रमबद्धता
  3. एकतरफा फ़ैक्ट-फ़ाइंडिंग
  4. सूचना के लिए संदिग्ध वेबसाइट का संदर्भ लेना.

वेरिफ़िकेशन

1) फ़र्ज़ी ख़बर जिनका पहले ही फ़ैक्टचेक किया जा चुका है

दावा 1 : एंटी-सीएए प्रोटेस्टर्स की तमाम कोशिशों के बावजूद भी अंतरराष्ट्रीय समुदाय से सामाजिक, नैतिक या राजनीतिक समर्थन नहीं मिला.

फ़ैक्ट-चेक: एंटी-सीएए प्रदर्शन सिर्फ़ भारत तक सीमित नहीं था.

रिपोर्ट के पहले चैप्टर के पहले पैराग्राफ़ में लिखा है, “एंटी-सीएए प्रोटेस्टर्स की तमाम कोशिशों के बावजूद भी अंतरराष्ट्रीय समुदाय से सामाजिक, नैतिक या राजनीतिक समर्थन नहीं मिला.”

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हालांकि, ये दावा पूरी तरह से आधारहीन है क्योंकि सीएए के ख़िलाफ़ भारतीय उपमहाद्वीप से बाहर कई देशों में प्रदर्शन हुए. इसे एनडीटीवीद हिंदू और डेक्कन हेरल्ड जैसे बड़े मीडिया संस्थानों ने कवर किया था.

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6 फ़रवरी को, ऑल्ट न्यूज़ ने एक मीडिया एनालिसिस रिपोर्ट प्रकाशिक की थी जिसमें दूसरे देशों में सीएए के ख़िलाफ़ हुए प्रदर्शनों का ज़िक्र था. ये रिपोर्ट न्यूज़ एजेंसी ANI की उस एकतरफा कवरेज़ का विश्लेषण था जिसमें उन्होंने सीएए के ख़िलाफ़ हुई बड़ी रैलियों को दरकिनार कर केवल सीएए के समर्थन में होने वाली रैलियों को कवर किया था.

दावा 2 : सीएए के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करने वालों को पैसे देकर बुलाया गया था. इसके सबूत के तौर पर वीडियो क्लिप पेश की गई.

फ़ैक्ट-चेक : वीडियो क्लिप में दिल्ली दंगे के पीड़ितों को व्यक्तिगत स्तर पर मदद की जा रही है

पृष्ठ संख्या 21 पर, पांचवें चैप्टर ‘कमिटी के द्वारा की गई जांच’ के अंतर्गत, रिपोर्ट में एक साक्ष्य का ज़िक्र है, “प्रदर्शन में हिस्सा लेने के लिए महिलाओं को प्रति शिफ़्ट 500 रुपये और पुरुषों को प्रति शिफ़्ट 700-800 रुपये दिए गए. ये प्रदर्शन पिछले डेढ़ महीने से 8-8 घंटों की दो शिफ़्ट में चलाया जा रहा था.” इसको सही साबित करने के लिए, रिपोर्ट में पाकिस्तानी मूल के कनाडाई कॉलमिस्ट तारेक फ़तेह के एक ट्वीट का स्क्रीनशॉट लगाया गया.

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2 मार्च को, ऑल्ट न्यूज़ फ़ैक्ट चेक ने पाया था कि वायरल वीडियो में दिख रहा व्यक्ति दिल्ली दंगे के पीड़ितों को कैश बांट रहा है. इसके अलावा, ऑल्ट न्यूज़ ने कई मौकों पर तारेक फ़तेह द्वारा ट्विटर पर फैलाई गई फ़र्ज़ी ख़बरों को रिपोर्ट किया है.

दावा 3 : अमानतुल्लाह ख़ान को जामिया नगर में दंगों का नेतृत्व करते देखा गया

फ़ैक्ट-चेक: दंगों के वक़्त अमानतुल्लाह ख़ान शाहीन बाग़ में थे

पांचवे चैप्टर ‘घटनाओं की टाइमलाइन’ में दर्ज एक पॉइंट में दावा किया गया है – “15 दिसंबर, 2019 को, आम आदमी पार्टी के विधायक और दिल्ली सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के चेयरमैन अमानतुल्लाह ख़ान को जामिया नगर में दंगे भड़काते हुए देखा गया. इस दौरान इलाक़े में कई बसों में आग लगा दी गई और ‘हिंदुओं से आज़ादी’ के नारे लगाए गए.”

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19 दिसंबर को, कई गवाहों से बातचीत के बाद, ऑल्ट न्यूज़ ने पाया था कि अमानतुल्लाह ख़ान शाहीन बाग़ में दोपहर दो बजे से शाम के 6 बजे तक मौज़ूद थे. शाहीन बाग़ में बसों में आग लगाए जाने से संबंधित कोई भी मीडिया रिपोर्ट नहीं है.

दावा 4 : एक्टिविस्ट हर्ष मंदर ने जामिया मिलिया इस्लामिया में दिए अपने भाषण से हिंसा भड़काई

फ़ैक्ट-चेक : हर्ष मंदर के भाषण की क्लिप ग़लत और भ्रामक दावे के साथ शेयर की गई

छठे चैप्टर ‘संबंधित और तात्कालिक कारण’ के एक खंड में आरोप लगाया गया है कि सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर ने कहा, “मुझे सर्वोच्च अदालत में कोई आस्था नहीं है और इसने नेशनल रज़िस्टर ऑफ़ सिटिज़न्स (NRC), अयोध्या विवाद और कश्मीर के मामले में मानवता, धर्मनिरपेक्षता और समानता की रक्षा नहीं की है… ‘अंतिम न्याय’ सिर्फ़ सड़कों पर होगा.”

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चार मार्च को, ऑल्ट न्यूज़ फ़ैक्ट चेक ने रिपोर्ट पब्लिश की कि हर्ष मंदर की एक वीडियो क्लिप सोशल मीडिया पर इस दावे के साथ वायरल हो रही है कि उन्होंने जामिया में भाषण देते हुए हिंसा भड़काई. इस वीडियो क्लिप को बीजेपी के कई नेताओं ने प्रसारित किया. कुछ मीडिया संस्थानों ने ये दिखाने की कोशिश की कि हर्ष मंदर द्वारा ‘सड़क पर उतरने’ के लिए कहने का मतलब हिंसा को बढ़ावा देना था. इन दावों के उलट, हर्ष मंदर ने कहा था कि लोगों को प्रेम के आदर्शों पर गढ़ी गई ‘संविधान की आत्मा’ की रक्षा करने के लिए बाहर आना चाहिए. इस दावे का फ़ैक्ट-चेक द क़्विंट और बूम ने भी किया था.

ये ध्यान देने वाली बात है कि रिपोर्ट में मंदर के नाम से शेयर किया गया बयान भ्रामक है. हर्ष मंदर के भाषण की ट्रांसक्रिप्ट ऑल्ट न्यूज़ की फ़ैक्ट-चेक रिपोर्ट में दर्ज है.

दावा : उमर खालिद ने डॉनल्ड ट्रंप के आगमन से पहले दंगों की बात कही थी

फ़ैक्ट: खालिद के स्पीच की वीडियो क्लिप भ्रामक दावों के साथ पेश की गई

चार मौकों पर (पेज नंबर 3, 9, 13 और 43) पर, रिपोर्ट में दावा किया गया है कि एक्टिविस्ट उमर खालिद के 17 जनवरी के भाषण में अमेरिकी प्रेसिडेंट डॉनल्ड ट्रंप के आने से पहले दंगे की बात हुई. रिपोर्ट में पेज नंबर 3 पर लिखा है, उमर खालिद ने “स्पष्ट तौर पर ज़िक्र किया कि यूएस प्रेसिडेंट के आगमन के दौरान दंगे होंगे.” इन चार स्थानों में से, सिर्फ पेज नंबर 3 और 48 पर एक वैलिड सोर्स – ऑपइंडिया (आर्काइव लिंक) और द रिपब्लिक का नाम है.

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जिस भाषण की बात हो रही है, वो खालिद ने 17 फ़रवरी को महाराष्ट्र के अमरावती में दिया था. द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, इस संबोधन की 40 सेकेंड की एक वीडियो क्लिप सोशल मीडिया पर धड़ल्ले से घुमाई गई.

हालांकि, खालिद के भाषण में दंगे भड़काने की बात होने का दावा झूठा है. पहले कुछ मिनटों में, उसने कहा, “अभी, जब आईपीएस अब्दुर रहमान (जिन्होंने वहां पर खालिद को भाषण के लिए बुलाया) बात कर रहे थे, उन्होंने गांधी की बात की और कहा कि महात्मा गांधी ने लड़ने के लिए अहिंसा और सत्याग्रह जैसे हथियार दिए हैं.”

बाद में खालिद ने कहा, “हम हिंसा का जवाब हिंसा नहीं देंगे. हम नफ़रत का जवाब नफ़रत से नहीं देंगे. अगर वो नफ़रत फैलाते हैं, हम उसका जवाब मोहब्बत से देंगे. अगर वो हमें लाठियों से पीटते हैं, हम तिरंगा लेकर डटे रहेंगे. अगर वो गोलियां चलाते हैं, हम संविधान का दामन पकड़े रहेंगे. अगर वो हमें जेल में डालते हैं, तो हम सारे जहां से अच्छा, हिंदोस्तां हमारा गाते हुए जेल जाएंगे. “ इसे द क़्विंट ने भी रिपोर्ट किया था. खालिद के भाषण की पूरी ट्रांस्क्रिप्ट ऑनलाइन उपलब्ध है.

2) घटनाओं का भ्रामक क्रम

दंगे से एक दिन पहले ईदगाह में 7 हज़ार लोग इकट्ठा हुए थे

रिपोर्ट में पांच मौकों पर (पेज नंबर 3, 10, 11, 30 और 60) लिखा गया है कि दिल्ली दंगों से एक दिन पहले (23 फ़रवरी) ईदगाह में 7 हज़ार लोग इकट्ठा हुए, इनकी उम्र 15 से 35 साल के बीच थी और ये लोग ग़लत कामों के लिए प्रशिक्षित थे. रिपोर्ट में सरदार बाज़ार की शाही ईदगाह मस्जिद में इकट्ठा हुए 7 हज़ार लोगों की धार्मिक पहचान उजागर नहीं की गई है. हालांकि, पेज नंबर 3 पर किए गए दावे के बाद, एग्जीक्यूटिव सारांश के अंतर्गत दर्ज बयान से स्पष्ट हो जाता है कि ये 7 हज़ार लोग मुस्लिम समुदाय के थे.

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रिपोर्ट में फल बेचने वाले एक व्यक्ति का बयान है जिसने बताया कि 7 हज़ार लोग ‘अंतिम जंग’ के लिए तैयार होकर आए थे.

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ऑल्ट न्यूज़ ने ‘7000 And (Idgah OR ईदगाह)’ की मदद से गूगल और ट्विटर पर कीवर्ड सर्च किया. हमें मुख्यधारा की मीडिया में इससे संबंधित एक भी रिपोर्ट नहीं मिली. अगर ‘ग़लत कामों में माहिर’ 7 हज़ार लोग ईदगाह पर जमा हुए होते, तो ये ख़बर सुर्खियों में होती. हमने संबंधित पुलिस स्टेशन के स्टेशन हाउस ऑफ़िस (SHO) से भी बात कीउन्होंने ऐसी किसी घटना से साफ़ इंकार कर दिया.

रिपोर्ट में, 27 मई को एक मस्जिद में 7 हज़ार लोगों के ‘अंतिम जंग’ के लिए इकट्ठा होने की बात लिखी गई. किसी भी प्रामाणिक स्रोत के बिना. ये दिखाता है कि इस रिपोर्ट के ज़रिये दिखाने की कोशिश की जा रही है कि दिल्ली दंगे की शुरुआत मुसलमानों ने की थी.

मीर फ़ैसल का पोस्ट

पेज नंबर 41 पर, सेक्शन 8.1 ‘हमले का समय पर निष्पादन’ में, जामिया टाइम्स के फ़्रीलांस संवाददाता, मीर फ़ैसल, के एक फ़ेसबुक पोस्ट का स्क्रीनशॉट लगाया गया है. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि वो लोगों को सड़क जाम करने के लिए उकसा रहा था. गौर करने वाली बात है कि स्क्रीनशॉट में फ़ैसल के पोस्ट का टेक्स्ट स्पष्ट नहीं दिख रहा है.

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Lexico के मुताबिक, Incite का अर्थ होता है : उत्साहित करना या उत्तेजित करना (हिंसक या गैरकानूनी व्यवहार), (किसी को) हिंसक या गैरकानूनी काम करने के लिए अनुरोध करना या राज़ी करना.”

ऑल्ट न्यूज़ ने 19 साल के फ़ैसल से बात की. वो फिलहाल मक्तूब मीडिया में इंटर्न हैं. उन्होंने बताया कि वो मक्तूब मीडिया से पहले जामिया न्यूज़ (न कि जामिया टाइम्स) के फ़ेसबुक पेज के एडिटर के तौर पर काम करते थे. उन्होंने आगे बताया, “फ़ैक्ट-फ़ाइंडिंग रिपोर्ट में जिस फ़ेसबुक पोस्ट को लगाया गया है, उसे मैंने प्राइवेट कर दिया है क्योंकि उसमें कुछ अपशब्दों का इस्तेमाल किया गया था.” फ़ैसल के मुताबिक़, इस तस्वीर में लोग चमकदार कागज़ के टुकड़ों और फ़ोम स्प्रे के साथ जश्न मनाते दिख रहे हैं. ये सेलिब्रेशन शाहीन बाग़ की तरफ जाने वाली एक सड़क को खोलने के बाद हो रहा था. द हिंदू और द न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने भी इस घटना को रिपोर्ट किया था.

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फ़ैसल के पोस्ट में लिखा है, “हम $%# है क्या कि सब छोड़ कर प्रोटेस्ट कर रहे थे, एक जगह आप कह रहे हो कि पुलिस ने रास्ता बंद कर रखा था एक जगह आप जा कर रास्ता खोल देते हो. जश्न मनाया जा रहा है 5-6 लौंडों की तरफ से मीडिया शाहीन बाग़ हार गया ऐसा चला रहा.. $%# ऑफ़ मूड ऑफ़ है, कोई वीडियो नहीं अब सा* *^%$ है जो कल से सोये नहीं हैं….

PS : सरिता विहार वाला रोड भी बंद है लेकिन उम्मीद है ये भी जल्दी खुलेगा.

ANI ने भी उसी दिन फ़ैसल के वीडियो में दिख रहे सेलिब्रेशन का वीडियो पोस्ट किया था.

चूंकि फ़ैसल ने रिपोर्ट में दर्ज पोस्ट को प्राइवेट कर लिया. इसलिए हम लोकेशन की प्रामाणिकता जांचने के लिए फ़ैसल के दूसरे पोस्ट्स पर ध्यान देंगे. फ़ैसल ने फ़ेसबुक पर जश्न के बाद का भी एक वीडियो अपलोड किया है. ये भी ANI के वीडियो में दिख रहा है. ऑल्ट न्यूज़ ने फ़ैसल और ANI के वीडियो के स्क्रीनशॉट्स की तुलना की ताकि पता लगाया जा सके कि दोनों वीडियो सेम लोकेशन पर शूट किए गए थे.

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ये पहली बार नहीं है जब फ़ैसल के सोशल मीडिया पोस्ट का इस्तेमाल फ़र्ज़ी ख़बर फ़ैलाने के लिए हुआ हो. 22 फ़रवरी को, ऑपइंडिया ने दावा किया कि फ़ैसल ने शरजील इमाम की एक ग्रैफ़िटी बनाई. फ़ैसल ने बताया, “मुझे नहीं पता कि ऐसी पेंटिंग कैसे बनाते हैं. मैं दावा कर सकता हूं कि ये मैंने नहीं बनाया है. हालांकि, ऑप इंडिया के आर्टिकल में दिख रही तस्वीर जामिया न्यूज़ के लिए मैंने ही कैमरे में कैद की थी.”

3) एकतरफा फ़ैक्टफ़ाइंडिंग

निम्नलिखित कारणों से पुष्ट होता है कि ये रिपोर्ट एंटी-सीएए प्रदर्शन और प्रदर्शनकारियों को बदनाम करने की एक कोशिश है:

मृतकों की संख्या का आंकड़ा नज़रअंदाज़ गया

एग्ज़ीक्यूटिव सारांश पैराग्राफ़ 10 में लिखा है, “हिंसा में एक आईबी अधिकारी और दिल्ली पुलिस के दो पुलिसकर्मियों सहित 53 लोगों की मौत हुई और 200 से ज़्यादा लोग घायल हो गए.” हालांकि, इसमें जान-बूझकर भुला दिया गया कि मरनेवालों में तीन-चौथाई लोग अल्पसंख्यक समुदाय के थे. The Polis Project रिपोर्ट में दर्ज है कि मरनेवाले 52 लोगों में 39 मुसलमान थे जबकि हिंदुओं की संख्या 13 थी.

हिंदुओं द्वारा दिए गए बयानों की बहुलता

रिपोर्ट के पांचवें चैप्टर में, दिल्ली दंगे के पीड़ितों और प्रत्यक्षदर्शियों के बयान दर्ज किए गए हैं. इसमें दर्ज 27 बयानों में से 21 बयान हिंदुओं के हैं. जैसा कि ऊपर दर्ज है, सांप्रदायिक दंगों में मुसलमानों को अधिक नुकसान पहुंचने के बावजूद, ये फ़ैक्ट-फ़ाइंडिंग रिपोर्ट एक समुदाय की गवाहियों पर निर्भर दिखती है.

प्रो-सीएए संगठनों के नफ़रती बयानों का मामूली ज़िक्र

सेक्शन 8.2 और 8.3 के अंतर्गत, सोशल मीडिया पोस्ट्स के आधार पर 22 और 23 फ़रवरी की घटनाओं की टाइमलाइन बनाई गई है. इनमें उन पोस्ट्स की अधिकता है जो सीएए के ख़िलाफ़ चल रहे प्रदर्शनों के बारे में है. हालांकि, इस ‘फ़ैक्ट-फ़ाइंडिंग’ रिपोर्ट में उन सोशल मीडिया पोस्ट्स से आंखे फेर ली गई हैं, जिनमें सीएए समर्थक संगठनों ने सांप्रदायिक दंगे से कुछ घंटों पहले ही भयानक नफ़रती बातें कही गई थीं.

23 फ़रवरी को, न्यूज़ 18 के साहिल मुरली मेंघानी ने रिपोर्ट किया, “मौजपुर में पुलिस के समाने ‘देश के गद्दारों को गोली मारो ….. को’ के नारे लगाए गए. ये जगह जाफ़राबाद से एक किलोमीटर से भी कम दूर है, जहां पर महिलाएं भीम आर्मी चीफ़ के समर्थन में बैठी हैं. उसी रात मेंघानी ने रिपोर्ट किया, “गोली मारो …. को” और “हिंदुस्तान में रहना होगा तो जय श्रीराम कहना होगा” के नारे पुलिस के सामने लगाए गए जहां पर पत्थरबाज़ी की घटना हुई थी.”

पेट्रोल पंप के पास मुस्लिमों के इबादतगाह को जलाने की घटना का ज़िक्र इस रिपोर्ट में नहीं है

रिपोर्ट में दो बार (पेज नंबर 20 और 48) लिखा है कि, “बी-2 ब्लॉक में स्थित पेट्रोल पंप पहली प्रॉपर्टी थी जिसे दंगाइयों ने आग और डीजल डालकर 24 फ़रवरी को दोपहर एक बजे जला दिया.”

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ऑल्ट न्यूज़ ने रिवर्स इमेज सर्च कर पता लगया कि इस तस्वीर को इंडिया टुडे (ऊपर) और द वायर (नीचे) ने इस्तेमाल किया था. रिपोर्ट्स के अनुसार, ये तस्वीर क्रमश: भजनपुरा और चांद बाग़ के पेट्रोल पंप की है. ये पुष्टि करने के लिए कि दोनों तस्वीरें एक ही पेट्रोल पंप की हैं, हमने कारवां के पत्रकार, कौशल श्रॉफ़, से बात की. वो 23 फ़रवरी को ग्राउंड रिपोर्टिंग कर रहे थे. उनके अनुसार, दोनों तस्वीरें एक ही पेट्रोल पंप की हैं. ये पेट्रोल पंप वज़ीराबाद रोड पर चांद बाग़ और भजनपुरा के बीच में पड़ता है.

कारवां के मुताबिक़, एक फ़ोटो पत्रकार ने बताया कि इस पेट्रोल पंप को ‘हिंदू दक्षिणपंथी भीड़’ ने जलाया था.

ऑल्ट न्यूज़ ने फ़ोटो पत्रकार से बात की. उन्होंने कहा, “एंटी-सीएए प्रोटेस्टर्स महिलाओं के धरनास्थल (टेंट) के आखिर में मौज़ूद थे. जैसा कि वहां पर मौज़ूद प्रदर्शनकारियों ने बताया, सुबह में पुलिस की कार्रवाई के बाद वो मुख्य सड़क की तरफ आ गए. तुरंत ही, दिल्ली पुलिस ने उनको तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले दागे और प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज भी किया. लगभग 1 बजे दोपहर को, वहां पर लोगों का हुजूम इकट्ठा हो गया. आधे लोग चांदबाग़ (मुस्लिम बहुल इलाक़ा) से थे और आधे लोग भजनपुरा (हिंदू बहुल इलाक़ा) के थे जिन्होंने दिल्ली पुलिस को जॉइन कर लिया. इसके बाद पत्थरबाज़ी और आगजनी की घटना शुरू हो गई. मैंने शाम के 6 बजे तक एक सुरक्षित जगह से दंगे देखेउस वक़्त तकएंटीसीएए प्रदर्शनकारियों की भीड़ पेट्रोल पंप तक नहीं पहुंच पाई थी क्योंकि भजनपुरा से आई सीएए समर्थकों की भीड़ भारी पड़ रही थीमैंने पेट्रोल पंप और गाड़ियों को धूधू कर जलते हुए देखामेरे ऑब्ज़र्वेशन के अनुसार, प्रदर्शनकारी, भजनपुरा की तरफ़ से होने वाले हमले से बचने की कोशिश कर रहे थे.” फ़ोटो पत्रकार के अनुसार, संघर्ष क्षेत्र का परिकेंद्र लगातार दाईं तरफ (नीचे दिखाया गया है) शिफ़्ट होता रहा.

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कारवां के लिए की गई, कौशल शरीफ़ की एक ग्राउंड रिपोर्ट के मुताबिक़, चांद बाग़ में पेट्रोल पंप के पास एक मज़ार को जला दिया गया. श्रॉफ़ से मिले इनपुट के आधार पर, ऑल्ट न्यूज़ ने मज़ार और पेट्रोल पंप को मैप पर पिन करके देखा. गौर करने वाली बात है कि मज़ार एक पुलिस चौकी से महज कुछ कदम की दूरी पर स्थित है.

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पेट्रोल पंप पर आगजनी की घटना दर्ज करने वाली फ़ैक्ट-फ़ाइंडिंग कमिटी ने ये ज़िक्र करना ज़रूरी नहीं समझा कि भीड़ ने उसी इलाक़े में एक मज़ार में भी आग लगाई थी.

द वायर ने भी इस पर रिपोर्ट की थी. ऑल्ट न्यूज़ ने वायर की रिपोर्ट में दिख रही मजार की तस्वीर और गूगल मैप की तस्वीर से कम्पेयर की और ये मैच हो गयी. दिल्ली दंगे के पूरे घटनाक्रम को द वायर ने डॉक्युमेंट किया था.

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4) सूचना के लिए संदिग्ध वेबसाइट का संदर्भ लेना

‘फ़ैक्ट-फ़ाइंडिंग’ रिपोर्ट में ऑप इंडिया का कम-से-कम 10 बार बतौर सोर्स ज़िक्र आया है. ऑप इंडिया ऐसी वेबसाइट है जिसने बार-बार फ़र्ज़ी ख़बरें पब्लिश की हैं. साल 2017 से, ऑल्ट न्यूज़ ने कई मौकों पर ऑप इंडिया को झूठी ख़बरें फैलाते हुए पकड़ा है.

पिछले साल मार्च में, दी इकोनॉमिक टाइम्स (ET) ने रिपोर्ट चलाई थी कि इंटरनेशनल फ़ैक्ट-चेकिंग नेटवर्क (IFCN) में ऑप इंडिया का आवेदन ‘पक्षपाती रिपोर्टिंग’ करने की वजह से रद्द कर दिया गया. ऑप इंडिया के एप्लीकेशन की जांच, IFCN की समीक्षक कंचन कौर ने की थी. वो इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ जर्नलिज़्म एंड न्यू मीडिया (IIJNM), बेंगलुरू की डीन भी हैं. इकोनॉमिक टाइम्स से बात करते हुए, कौर ने कहा था, “हालांकि आवेदनकर्ता ने आधिकारिक तौर पर किसी राजनीतिक संगठन का प्रचार नहीं किया था और निष्पक्षता की नीति की बात की थी, वेबसाइट पर एक पैनी नज़र डालते ही आपको इसका उल्टा दिखता है.”

20 मई को, IFCN की पेरेंट कंपनी, पॉइंटर इंस्टिट्यूट, ने एक ब्लॉग पब्लिश किया जिसमें ऑपइंडिया के IFCN एप्लीकेशन के मूल्यांकन का ज़िक्र है.

निष्कर्ष

दिल्ली के एनजीओ ‘कॉल फ़ॉर जस्टिस’ की राजधानी दिल्ली के सांप्रदायिक दंगों की रिपोर्ट गृह मंत्री अमित शाह को उनके आवास पर दी गई. ‘फ़ैक्ट-फ़ाइंडिंग’ रिपोर्ट होने का दावा करने वाली इस रिपोर्ट में पांच फ़र्ज़ी ख़बरें हैं, जिनका फ़ैक्ट-चेक स्वतंत्र मीडिया संस्थाएं कर चुकी हैं. ये रिपोर्ट पूरी तरह से ऑपइंडिया वेबसाइट पर निर्भर है, जो फ़र्ज़ी ख़बरें छापने के लिए कुख्यात है. रिपोर्ट के कई खंडों में, खासकर गवाहों के बयानों में, साफ दिखता है कि कमिटी ने सिर्फ एक समुदाय से मिले बयानों पर भरोसा जताया है. और, ये नैरेटिव बनाने की कोशिश की है कि दिल्ली के सांप्रदायिक दंगों के लिए मुस्लिम समुदाय ज़िम्मेदार था

साभार : ऑल्ट न्यूज़ 

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